चेहरा ...
एक चेहरा एक पल में
लाखों चेहरे जी रहा
कौन जाने कौन सा चेहरा
हंस के आंसू पी रहा
एक चेहरा लगता अपना
एक क्यों बेगाना लगे
कौन दिल की बात कहता
कौन होठों को सी रहा
कत्ल होता रोज इक चेहरा
रोज इक जन्म हो रहा
एक जागे किसी की खातिर
आगोश में इक सो रहा
एक चेहरा ख्वाब बन के
ख़्वाबों में बस जाता है
एक चेहरा अक्स बन के
नींदें किसी की पी रहा
एक चेहरा अपनी दुनिया
चेहरों में बसाता है
एक चेहरा दुनिया…
Added by Sushil Sarna on June 16, 2016 at 2:59pm — 6 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
इक दफा ये मर्ज लग जाये तो छुटकारा नहीं
इश्क है ये मस्त खुशबू का कोई झोंका नहीं
यार तुमने जिन्दगी को गौर से देखा नहीं
दरमियाँ मेरे तुम्हारे लक्ष्मनी रेखा नहीं
तपती साँसों की तपिश कुछ सच बयानी कर रही
धड़कने कहती हैंं दिल की प्यार है धोखा नहीं
इश्क का अहसास कैसे ज़िंदगी में आ गया
शेख जी कुछ राय देंगे मैंने कुछ सोचा नहीं
इश्क है रब की इबादत राज गहरा जान लो
देख…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 16, 2016 at 2:30pm — 5 Comments
दिए जो तूने मुझको गम,
हुए जुदा खुद से हम,
रुख़ ये तूने मोड़ा क्यूँ,
दिल मेरा तोड़ा क्यूँ...
तेरी यादों मे जिया, ज़ख़्म दिल का है सिया,
तेरी यादों मे जिया, ज़ख़्म दिल का है सिया,
आँखों से बहते रहे अश्क, दर्द का प्याला पिया....
दिए जो तूने मुझको गम,
हुए जुदा खुद से हम....
बातें तेरी अनकही,
पास तू भी है नही,
बातें तेरी अनकही,
पास तू भी है नही,
करले कुछ वक़्त यार तू अब, प्यार झूठा ही सही....
दिए जो तूने मुझको…
Added by M Vijish kumar on June 16, 2016 at 9:30am — No Comments
Added by amita tiwari on June 15, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
"ओ रे बुधिया , अब ये फूस हटाना ही पड़ेगा अपनी टपरी से "
" ई का कह रहे हो बुड्ढा , अब हम सब बिना छत के रहें का ? "
" नाहीं रे , कुछ टीन टपरा जोड़ लेंगे "
" काहे जोड़ लेंगे टीन-टप्पर , क्यु कहे तुम फूस हटाने को ?"
" खेत से आवत रहें तो गाँव के जोरगरहा दुई जन को कुछ कहते सुनत रहे , ओही से कहे है "
" का सुन लिये रहे हो ?"
" कहत रहे कि फुसहा घर गाँव के विकास में…
ContinueAdded by kanta roy on June 15, 2016 at 8:00pm — 5 Comments
Added by dileepvishwakarma on June 15, 2016 at 1:46pm — 5 Comments
Added by maharshi tripathi on June 15, 2016 at 1:06pm — 14 Comments
2122 1122 1122 22 /112
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तुम जो चाहो तो ये गिर्दाब, किनारा लिख दो
डूब भी जाये कोई , पार उतारा लिख दो
कैसे उस चाँद को धरती पे उतारा लिख दो
कैसे आँगन में हुआ खूब नज़ारा लिख दो
खटखटाने से कोई दर न खुले, तो दर पर
बारहा मैने तेरा नाम पुकारा लिख दो
जंग अपनो से भला कैसे कोई कर लेता
ख़ुद को जीता, तो कहीं मुझको ही हारा लिख दो
हो यक़ीं या कि न हो तुम तो लिखो सच अपना
दश्ते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 9:30am — 59 Comments
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
ग़ज़ल
सड़क पर बजबजाते चीखते नारों से क्या होगा
हवा में फुस्स हो जायें जो, गुब्बारों से क्या होगा ?
लडाई है बहुत बाकी बहुत कुछ कर गुजरना है
नही है हौसला दिल में तो नक्कारों से क्या होगा ?
जिन्हें हमने अता की है, हकूमत देश की यारों
उन्ही में बदगुमानी है तो उद्गारों से क्या होगा ?
पड़े है एक कोने…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2016 at 8:39am — 18 Comments
ग़ज़ल ( हादसा घट गया )
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212 -212 -212
यक बयक हादसा घट गया ।
राहे उल्फत से वह हट गया ।
ज़ुल्म में ही था शामिल करम
था गुमाँ मुझको वह पट गया ।
जाऊं सदक़े सियासत तेरे
हर कोई क़ौम में बट गया ।
नाव भी डगमगाने लगी
हो रहा है गुमाँ तट गया ।
ऐसा लगता है फ़हरिस्त से
नाम शायद मेरा कट गया ।
खाये पत्थर गली में तेरी
सर मेरा यूँ नहीं फट गया…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on June 15, 2016 at 7:33am — 21 Comments
आज तुम असमंजस में क्यूँ हो
देखकर गंगा में बहते फूलों को
जब तुम ही नहीं हो अब सुनने को
अब अपाहिज हुए अनुभूत तथ्यों को
अंधेरे बंद कमरे में कल रात
बड़ी देर तक ठहर गई थी रात
अकुलाती, दर्द भरी, रतजगी
आस्था रह न गई
ख़्यालों के अनबूझे ब्रह्माण्ड में
छटपटाती छिपी हुई कोई गहरी पहचान
भोर से पहले रात की अंतिम-दम चीखें
अन्धकार भरे अम्बर में जीवन्त पीड़ा
ऐसे में हमारे निजी अनुभूत तथ्यों ने
लिख कर…
ContinueAdded by vijay nikore on June 15, 2016 at 1:55am — 18 Comments
ईंट का आखिरी खेप सिर से उतार कर पास रखे ड्रम से पानी ले हाथ-मुँह धो सीधे उसके पास आकर खड़ा हो गया ।
" सेठ , अब जल्दी से आज का हिसाब कर दो "
" कल ले लेना इकट्ठे दोनों दिन की मजूरी ।"
" नहीं सेठ , आज का हिसाब आज करो , कल को मै काम आता या नहीं , भरोसा नहीं "
" मतलब "
" इस हफ्ते पाँच दिन काम किया ना , बहुत कमा लिया ,इतना ही काफी है । अब अगले हफ्ते ही काम पर आऊँगा ।"
" बहुत कमा लिया , हूँ ह ! इतनी-सी कमाई में क्या - क्या करोगे ?"
" क्या-क्या नहीं…
ContinueAdded by kanta roy on June 14, 2016 at 12:30pm — 22 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2016 at 11:03am — 20 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 10:00am — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 14, 2016 at 7:03am — 11 Comments
"भाभी, चाय खौल चुकी है, कहाँ खोई हुई हो तुम!" देवरानी ने गैस चूल्हा बंद करते हुए जिठानी से कहा।
"ओह, मैं चाय की पत्ती के बारे में सोच रही थी!"
"क्यों?"
"मैं भी यहाँ चाय की पत्ती ही तो हूँ!"
"क्या मतलब?"
"बिना शक्कर के सबको चाय कड़वी ही तो लगती है, मिठास मिले तो सबको मीठी चाय भाये!"
"लेकिन चाय मीठी हो या फीकी, रिश्ते मधुर बनाने में एक पहल तो करती ही है, बस यह ध्यान रहे कि कहां फीकी चलेगी और कहां मीठी!"
"सही कहा तुमने, लेकिन नौकरी पेशा औरत को जब मध्यमवर्गीय…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 13, 2016 at 4:00pm — 12 Comments
मायाजाल ...
ये मकड़ी भी
कितनी पागल है
बार बार गिरती है
मगर जाल बुनना
बंद नहीं करती
बहुत सुकून मिलता है उसे
अपने ही जाल के मोह में
स्वयं को उलझाए रखने में
वो स्वयं को
वासनाओं के जाल में
लिप्त रखना चाहती है
शायद वो जानती है
जिस दिन भी वो
अपना कर्म छोड़ देगी
वो अपनी पहचान खो देगी
पाकीज़गी उसे मोक्ष तक ले जाएगी
लेकिन इस तरह का मोक्ष
कभी उसकी पसंद नहीं होता
उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है…
Added by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 3:35pm — 12 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २१२
आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये
क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये
हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना
अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये
अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये
दिल हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा
मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये
जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू
हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 13, 2016 at 1:57pm — 12 Comments
'मत्तगयन्द सवैया'
हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे मग, दर्शन को तव साँझ-सकारे।
कौन भला जग में तुम्हरे बिन, संकट से प्रभु ! मोहि उबारे?
आय करो उजियार प्रभो ! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।1।।
'दुर्मिल सवैया'
जय हे जगदीश! कृपा करके, कर आय प्रभो! मम शीश धरो।
तुम मूरत बुद्धि-दया-बल के, सदबुद्धि-दया-बल दान करो।
शुचि ज्ञान-प्रकाश बहा प्रभु हे ! मन के तम-पाप-प्रमाद हरो।
हर लो हर दुर्बलता हिय के, उर…
Added by रामबली गुप्ता on June 13, 2016 at 1:00pm — 6 Comments
Added by SudhenduOjha on June 13, 2016 at 12:36pm — No Comments
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