For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

June 2015 Blog Posts (183)

पिघलता ग्लेसियर ( लघुकथा )

" क्यों नहीं हो सकता ये , मैं रह सकती हूँ तुम्हारे घर तो तुम क्यों नहीं रह सकते मेरे घर शादी के बाद "|

" लेकिन लोग क्या कहेंगे , घर जमाई बन गया | मेरे घरवाले भी तो तैयार नहीं होंगे "|

" जब मुझसे शादी का फैसला किया था , तब क्या लोगों की परवाह की थी तुमने | और तुम्हारे घर तो भैया का परिवार है ही , मैं तो एकलौती लड़की हूँ अपने पेरेंट्स की , उनको कैसे अकेला छोड़ दूँ "|

" ठीक है , मैं घर में बात करता हूँ | क्या हम लोग आते जाते नहीं रह सकते "|

" आते जाते तो हम लोग यहाँ से भी रह सकते…

Continue

Added by विनय कुमार on June 11, 2015 at 2:29am — 20 Comments

उमठी दाल

उमठी दाल

पायलगी करके मैं शिवनाथन बाबा की सामने वाली खटिया पर बैठ गया और वो रोटी के कौर को दाल में डुबाने लगे |

“इ साली मटर दाल भी बहुत तंग करती है |कभी भगोनी तले आंच धर के ज्ठाइन लगती है तो कभी पानी में घुलती ही नहीं |पकना तो जैसे इसके स्वभाव में है ही नहीं |”

“दादा जी दाल ,क्या भदेली में पकाते हैं ?” मैंने पूछ लिया

वो कुछ देर खाने में तल्लीन रहे और फिर झटके से बोले

“और नहीं तो क्या हमारे पास क्या कुकड़ धरा है |एलुमिनियम हाड़ी-मटिया के चूल्हे की आग पर ही हमारे यहाँ खाना… Continue

Added by somesh kumar on June 10, 2015 at 9:02pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पहिये (हास्य व्यंग )

 “जज साहब, पहले ही मैं उस पहिये के नटबोल्ट टाईट करके रखता तो आज तलाक तक नौबत नहीं आती और गाड़ी सही चलती.. गलती मेरी ही है” “तुम पेशे से मकेनिक हो क्या”?जजसाहब ने चुटकी ली| “जी साहब,मेरा गैरेज है”|  

अगला केस ...

“आपको ये तो पता ही होगा मैडम कि पति पत्नी गाड़ी के दो पहियों के समान”...”जी जी अच्छे से पता है पर जंग लगे स्क्रू फिट हों पहिये में तो धोखा तो देंगे ही न!! पहले ही उसके  स्क्रू  टेस्ट कर लेती तो आज नौबत तलाक तक न पँहुचती और जब पहिया कंडम हो जाता है तो बदलना भी पड़ता…

Continue

Added by rajesh kumari on June 10, 2015 at 12:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल -- दुश्मनों से भी मुहब्बत करना .

2122-1122-22.

अपनी मंज़िल की जो हसरत करना

घर से चलने की भी हिम्मत करना

.

कोई तुझको जो अमानत सौंपे

जान देकर भी हिफ़ाजत करना

.

कहना आसान है करना मुश्किल

दुश्मनों से भी मुहब्बत करना

.

आज बचपन में है वो बात कहाँ

वक़्त बे-वक़्त शरारत करना

.

तेरे भीतर का ख़ुदा जाग उठे

इतनी शिद्दत से इबादत करना

.

सिर्फ कहने को ही तेरा न हो वो

उसके दुख दर्द में शिरक़त करना

.

फ़र्ज़ औलाद का यह होता 'दिनेश'

अपने माँ बाप की…

Continue

Added by दिनेश कुमार on June 10, 2015 at 10:46am — 16 Comments

जगह पर हूँ(गजल,मनन कु.सिंह)

सही जगह पर हूँ,
नहीं कि शह पर हूँ।
कहूँ वजह-ए-कहन,
कहूँ कि तह पर हूँ।
रहे गुजरती वह,
वहीं सतह पर हूँ।
रचो गजल अपनी,
कहूँ कि बह पर हूँ।
बँधें बँधे पुख्ता,
कहूँ कि दह पर हूँ।
@मनन
बह=बाँस की जड़ जहाँ से बाँस निकलती है।
दह=जल मग्न होने की स्थिति।
बँधे=बाँध

Added by Manan Kumar singh on June 9, 2015 at 10:52pm — 3 Comments

क्षणिकाएँ --6 -डॉo विजय शकर

इतने कांटे
कि उनसे बचते-बचते
गुलाब क्या
हर फूल से हम
दूर हो गए .......... 1.

पेड़ कहीं जाते नहीं
फल पक जाएँ
तो रुक पाते नहीं....... 2 .

तुम क्या गये
मेरी तन्हाई
भी ले गये .......…… 3.

और यह भी , यूँ ही,

उनका लिखा शेर खूब चला, खूब चला, खूब चला,
चलना ही था , ट्रक के पीछे जो लिखा था ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2015 at 9:30pm — 23 Comments

मेरा मन माली सा हो गया

टूट टूट के अपना दिल कुछ जाली सा हो गया

अंतरमन का वो कोना कुछ खाली सा हो गया

 

वस्ल की निगाहें हो गयी, दोस्ती की आड़ में

नारी होकर जीना अब कुछ गाली सा हो गया

 

नजरों में घुली शराब, चाचा मामा भाई की

आँखों में हर रिश्ता, अब कुछ साली सा हो गया

 

गर्दिश में लिपटी कनीज़, सहारे की तलाश में

मन अकबर शज़र का भी, कुछ डाली सा हो गया

 

शोर में दब के रह गयी आबरू की आवाज

चीखती ललना का स्वर, बस ताली सा हो…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on June 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments

धड़कन भी खो जायेगी....

आओ न !

मेरे शब्दों को सांसें दे दो

हर क्षण तुम्हारी स्मृतियों में

मेरे स्नेहिल शब्द

तुम्हें सम्बोधित करने को

आकुल रहते हैं

गयी हो जबसे

मयंक भी उदासी का

पीला लिबास पहन

रजनी के आँगन में बैठ

तुम्हारे आने का इंतज़ार करता है

न जाने अपने प्यार के बिना

तुम कैसे जी लेती हो

यहाँ तो हर क्षण तुम्हारी आस है

तुम बिन हर सांस अंतिम सांस है

तुम नहीं जानती

तुम्हारी न आने की ज़िद क्या कहर ढायेगी

जिस्म रहेंगे मगर

जिस्मों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 9, 2015 at 2:44pm — 16 Comments

तरही ग़ज़ल -- " बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा " .

१२१२-११२२-१२१२-२२

निग़ाहे नाज़ से देखो, करो शिकार मेरा

तुम आजमाओ सनम दिल ये एक बार मेरा

.

तू आरज़ू है मेरी और तू है प्यार मेरा

तेरी वफ़ा पे है अब जीने का मदार मेरा

.

तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने

तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा

.

मुआमलात-ए-जवानी कहे नहीं जाते

न पूछ कौन है हमदम, कहाँ क़रार मेरा

.

वो मुझसे बात तो करता है, पर वो बात नहीं

" बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा "

.

वो बदगुमाँ है जो, कमज़र्फ़ मुझको…

Continue

Added by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 2:21pm — 20 Comments

रुकी हुई सी इक ज़िन्दगी-सिक्वेल 2

रुकी-रुकी सी इक ज़िन्दगी –सिक्वेल 2

 25 साल का सोनू मुझसे चार साल बाद मिल रहा था |इससे पहले जब मिला था तो उसकी शादी नहीं हुई थी |यूँ तो उसका मेरे घर पर बराबर आना-जाना है |पर दिल्ली में रहने और एकाध दिन के लिए ही गाँव में ठहरने के कारण उससे चार सालों से नही मिला था |जाति से लुहार और पेशे से ट्रक-ड्राईवर |पर मेरे पिताजी से उसके पिताजी और उसके आत्मीय सम्बन्ध थे |बस पिताजी की एक छोटी सी मदद के बदले पूरा परिवार मेरे पिता के लिए हमेशा खड़ा रहता था |जब उसकी शादी तय हुई तो पिताजी दिल्ली…

Continue

Added by somesh kumar on June 9, 2015 at 1:12pm — 3 Comments

गजल //// मर रही हैं देव नदियाँ

रमल मुरब्बा सालिम  

2122   2122

क्या  ज़माने आ गये हैं ?

बेशरम  शर्मा  गये  हैं  I

 

था  भरोसा बहुत उनका

वे मगर उकता गये हैं I

 

पोंछ लें आंसू कृषक अब 

स्वर्ण वे  बरसा गये हैं I

 

देखकर   अंदाज   तेरे

हौसले  मुरझा  गये है I

 

लाजिम है हो नशा भी

जाम जब टकरा…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 9, 2015 at 11:34am — 24 Comments

आठवां फेरा - कथा

"सातवां फेरा सम्पन्न हुआ, माता पिता वर-वधू को को आशीर्वाद देने के लिये आगे आये।" पंडितजी की आवाज पर बधाई गान के साथ साथ लोग भी बधाई के लिये अग्रसर होने लगे।

"नही पंडितजी। अभी एक फेरा बाकी है, आठवां फेरा।" प्रधानजी की आवाज ने सब के चेहरे प्रश्नवाचक बना दिये लेकिन प्रश्न करने की चेष्टा कोई नही कर पाया कयोंकि कस्बे के सम्मानित प्रधानजी का अनादर करने की तो कोई सोच भी नही सकता था। कुछ देर के मौन के बाद आखिर पड़ितजी ने ही प्रश्न किया। "ये क्या कह रहे है आप? सभी जानते है कि हमारे शास्त्ररो मे भी… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 8, 2015 at 5:39pm — 22 Comments

मटमैले सपने ( लघुकथा )

उसका सपना था कि वो अंतरिक्ष में जाये , उस धवल और खूबसूरत चाँद को छुए जिसके बारे में वो पढ़ती रही थी | आखिरकार उसे दाखिला मिल गया विदेश की एक यूनिवर्सिटी में |
लेकिन पैसों का इंतज़ाम , ऐसे में याद आया वो |
" तुझे चाँद छूने से कोई नहीं रोक सकता ", वादे पर ऐतबार करके उसके साथ निकल गयी बत्तियों से जगमगाते महानगर की ओर |
अब उस सीलन भरे कोठे में रातों को चांद , सपनों की तरह बहुत मटमैला दिखता था |
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on June 8, 2015 at 3:46pm — 22 Comments

ग़ज़ल ;रिश्तों में जो थीं.. /श्री सुनील

2212 2122 2212



रिश्तों में जो थी दरारें, भरने लगीं

पहले सा मैं, आप तब सी लगने लगीं.



चुप्पी सी थी इक ख़ला सा था बीच में

उम्मीद की वां शुआऐं दिखने लगीं.



अब ये जहाँ तेरी ज़़द में लगता है, लो!

आँचल में तेरे फ़िज़ाऐं छुपने लगीं.



जब फ़ासलों में पड़ीं थोड़ी सिलबटें

ये क़ुर्बतें अपनी सब को खलने लगीं.



तू मेरी होगी, यकीं ये था क्योंकि इन

हाँथो में तुम सी लकीरें बनने लगीं.



किस जज्बे से तुम दुआएं करती हो… Continue

Added by shree suneel on June 8, 2015 at 2:01pm — 22 Comments

मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं

मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन/फ़ाइलान





मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं

हर दिल पे हो रहा है असर देखते नहीं



दीवाने अपने हाल से रहते हैं बेख़बर

किस सम्त हो रहा है सफ़र देखते नहीं



उर्यानियत के खेल इन्हें भी पसंद हैं

ख़ामोश हैं ये एहल-ए-नज़र देखते नहीं



वो देश हित की फ़िक्र में ग़लताँ हैं आज कल

ये और बात है कि इधर देखते नहीं



अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा

अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं



कुछ देर… Continue

Added by Samar kabeer on June 8, 2015 at 11:09am — 36 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गज़ल -( फिल बदीह ) - हौसले जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले

दिया गया मिसरा -"चिलचिलाती धूप में जब मोम से रिश्ते मिले।"

-----------------------------------------------------------------------

2122   2122    2122   212

 …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 7:30am — 30 Comments

अनुत्तरित प्रश्न ( लघुकथा )

रात में धमाका हुआ , पूरा ट्रक उड़ गया , कोई नहीं बचा ।
सारी टोली अगले दिन टी वी पर चिपकी थी , अपने विजय का दृश्य और उसका असर देखने के लिए ।
उन समाचारों में बस उसी विस्फ़ोट की गूँज थी और सारे देश में उसी पर चर्चा हो रही थी । लेकिन फिर टी वी पर आये उस दृश्य को देखकर वो सब निशब्द रह गए जिसमे तीन साल की बच्ची विस्फोट में मृत अपने पिता के शरीर से लिपट कर रो रही थी ।
उसने कोई सवाल नहीं पूछा लेकिन उसके सवालों का उनके पास कोई ज़वाब नहीं था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on June 7, 2015 at 11:58pm — 29 Comments

विधि....(लघुकथा)

"सुनो! आजकल न्यूज चैनल पर अदालती कार्यवाही की खबर सुनकर, यूँ लगता है कि क़ानून तेज और सबसे ऊपर है"

"हाँ! बिलकुल सही कह रही हो. यार!  रिमोर्ट कहाँ है..? थोड़ा वाल्यूम कम करना, वकील साहब का फोन आ रहा है "

"नमस्ते वकील साहब! कहाँ तक पहुंचा मामला..? अगली तारीख कब है..? "

"उन लोगों ने कहीं से कुछ साक्ष्य प्रस्तुत किये है हम कमजोर पड़ सकते हैं. और अगली तारीख इसी माह है..?

"इसी माह्ह्ह.. वकील साहब! इतनी गर्मी पड़ रही है. मेरा परिवार के साथ सैर-सपाटे पर जाने का प्लान है. आप…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2015 at 3:30am — 19 Comments

गलत संगति

"अरे मिश्रा जी ,इतना सामान कहाँ ले जा रहे हैं "-पड़ोस के एक सज्जन ने पूछा |

"कुछ नही ,भाई रमेश ,मेरे बेटे का बी.टेक में सिलेक्शन हो गया है न ,उसे हास्टल  छोड़ने जा रहा  हूँ"-मिश्रा जी ने बड़े गर्व से कहा |

"देखो ,बेटे ,वहां सभी गन्दी चीज़ों से दूर रहना ,अब तक तो हम तेरे साथ थे ,अब तुझे खुद ही सब कुछ करना होगा "-बेटे को समझाते हुए मिश्रा जी ने कहा |

बेटा  जो अभी  कच्ची मिटटी था  ,अपने माँ बाप से कभी दूर नही हुआ आँखों में आंसू भरकर बोला "जी,पिता जी"

इतना कह कर बेटा…

Continue

Added by maharshi tripathi on June 6, 2015 at 8:00pm — 16 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service