Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 21, 2012 at 11:33pm — 4 Comments
इस तरह दूर वो आजकल हो गई।
जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।
देह तेरी किसी बेल जैसी लगे,
आई बरसात धुलकर नवल हो गई।
इस तरह रास्ते और लम्बे हुये,
जैसे के मेरी लम्बी ग़ज़ल हो गई।
बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,
प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।
आम की भोर पर भंवरे जो आ गये
मुस्कुराहट मधुरता का फल हो गई।
एक बरसात आई तुम्हारी तरह,
और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।
सूबे सिंह…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on August 21, 2012 at 10:18pm — 20 Comments
मन की बेकल धरती पर जब, कोई बदरी छा जाए
जब बात पुरानी कोई आकर, मेरी याद दिला जाए
तब नाम हमारा लेकर खुद को, नींदों में तुम भर लेना
स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को बंद कर लेना
आस मिलन की घुल जाए, हर अंगडाई हर करवट में
जब बस जाए बस मेरा चेहरा,माथे की हर सलवट में
जब बेसुध से ये कदम तुम्हारे, दौडें बरबस देहरी को
जब मेरे आने की आहट, तुम सुन बैठो हर आहट में
तब मेरा नाम लिखे हाथों को, हारी पलकों पर धर लेना
स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को…
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 10:00pm — 8 Comments
ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,
काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |
लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |
पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 7:11pm — 24 Comments
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
जग सा ही बदहाल रहा हूँ
फटा-चिटा कल टाल रहा हूँ
किसी ठूँठ सा जड़ित धरा पर
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
हरित प्रभा, बिखरी तरुणाई
पतझड़ पग जब फटी बिवाई
ओस कणों पर प्यास लुटाए ...
घूर्णित पथ बेहाल चला हूँ
भ्रम जीने का पाल रहा हूँ
पतित-पंथ को जब भी देखा
दिखी कहाँ आशा की रेखा
बड़ी तपिश, था झीना ताना…
Added by राजेश 'मृदु' on August 21, 2012 at 5:30pm — 7 Comments
चाँद पर रख दिए हमने कदम
विकास कर रहे हैं हर दम
पहुंचे हैं आज यहाँ हम सदियों में.
पर आज भी पूजा जाता है चाँद
मेरे गांव/शहर की गलियों में ,
और चौथ का व्रत रखती हैं महिलाएं
खुश करने को अपने सुहाग को,
बी. एस.सी करती है पढ़ती हैं विज्ञान को,
पर आज भी दूध पिलाती है नागपंचमी पर नाग को.
चाहे जितना कर लो तुम विकास वो अब भी मिथकों पर है मरती .
उनके लिए आज भी शेष नाग पर टिकी है धरती !!!!!
Added by Naval Kishor Soni on August 21, 2012 at 3:00pm — 13 Comments
१. मंहगाई
दिल को देती है तन्हाई,
कभी ना होती उसकी भरपाई !
तुम क्या जानों पीर पराई ,
क्यों सखा सजनी, ना सखा मंहगाई !!
२. नेता
वो जब भी आये बलईयाँ लेता ,
सबके हाल पर चुटकी लेता !
रोज नये आश्वासन देता,
क्यों सखी साजन, ना सखी नेता !!
Added by Naval Kishor Soni on August 21, 2012 at 1:30pm — 12 Comments
यहाँ वृक्ष हुआ करते थे
जो कभी
लहलहाते थे
चरमराते थे
उनके पत्तों का
आपस का घर्षण
मन को छू लेता था
उनकी डालों की कर्कश
कभी आंधी में
डराती थी मन को |
बारिश के मौसम की
खुशबू और ताज़गी
कुछ और बढ़ा देती थी
जीवन को ||
उन वृक्षों की पांत
अब नहीं मिलती
देखने तक को भी
लेकिन , हाँ !
वृक्ष अब भी हैं
वही डिजाईन
वही उंचाई
शायद उंचाई तो कुछ
और भी ज्यादा हो
मगर इनसे…
Added by Yogi Saraswat on August 21, 2012 at 1:00pm — 20 Comments
"अलविदा दोस्तों "
मिल जाते हैं
लोग
बहुत से लोग
रहगुजर पे
कुछ बेगाने
अपने से
और कुछ अपने
बेगाने से
सवाल उठने लगते हैं
जहन में
बार- बार
कौन है यार ?????
तन्हाई क्या है
अकेलापन
या जुदाई का एहसास
यार से
किसी अपने से
ये अपना कैसे हो गया ???
और ये बेगाना कैसे ???
अच्छा है
बुरा है
अपना है
बेगाना तो बेगाना है
कुछ पैदाइशी अपने हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 21, 2012 at 12:25pm — 16 Comments
हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ
ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां
क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को
मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां
आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ
सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ
दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का
भिड़ रही हैं परवतों से राइयां
चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में
लाज रख लेना तू मेरी साइयां
इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी
मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ
इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं …
Added by Albela Khatri on August 21, 2012 at 10:30am — 37 Comments
जब भी आती है याद तुम्हारी,
पलट लेता हूँ डायरी के पन्ने को,
और पढ़ लेता हूँ
उन तारीखों का वर्तमान
और सोचता हूँ
काश!
जिन्दगी भी पलट जाती,
यूं ही उन तारीखों तक............../
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 12:30am — 7 Comments
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 20, 2012 at 9:00pm — 5 Comments
********************
तुम हकीकत हो
या ख़्वाब?
बतादो ना.
अरज है मेरी
ज़नाब
बतादो ना.
तुम्हारे ही ख़्वाबों में
मैं जीता हूँ,तुम्हारी आँखों से ही
मैं पीता हूँ.
तुम अमृत हो
या शराब ?
बतादो ना.
अपनी जिंदगी का अक्स
तुम्हीं में देखता हूँ,
अपनी जिंदगी के मायने
तुम्हीं में पढता हूँ.
तुम आईना हो
या किताब?
बतादो ना.
जिंदगी के समंदर का
ज्वार भी तुम हो,
मेरी कश्ती और
पतवार भी तुम हो.
तुम सवाल हो
या…
Added by अशोक पुनमिया on August 20, 2012 at 2:55pm — 11 Comments
तपती दोपहरी में पसीने से
भीगा हुवा ये तन
दूर एक रेगिस्तान में
पानी को तरस रहा है ये मन
है इसी आस में की बारिश तो होगी कभी
हमारे सुने से आँगन में
कोई फुलवारी तो खिलेगी कभी
तपती रेत पर कभी एक पानी की बूँद न
गिरी
रेगिस्तान में एक घर में जला रही है दोपहरी
रेत के टिलों में पेड़ की
छाव को
तरस रहा है ये मन
कभी तो बारिश होगी
कभी तो भिगेगा ये तन
तपता
रेगिस्तान है फिर भी प्यारा यहाँ का घर
बारिश न आए तो…
Added by saroj sharma on August 20, 2012 at 2:00pm — 6 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 20, 2012 at 12:32pm — 3 Comments
सब तरफ हो शांति जले दीप न्याय का !
विरोध करें मिल कर हम सब अन्याय का !
भूखे तो सब जगे मगर भूखा सोयें न कोई !
खुशहाली हो चहूँ ओर खून के आंसू रोयें न कोई !
हर हाथ को काम मिलें बेरोजगार रहे न कोई !
सब को काम का पूरा दाम मिले बेगार सहे न कोई !
सब कोई हमें पुकारे सदैव भारतीय के नाम से
हिन्दू ,सिख,इसाई , मुसलमान कहें न कोई .
Added by Naval Kishor Soni on August 20, 2012 at 11:30am — No Comments
ईद मुबारक
वो जब आये, धूम मचाये
आँगन आँगन ख़ुशियाँ लाये
सब कहते हैं ख़ुश आमदीद
क्या सखि साजन ?
नहिं सखि ईद
तन नूरानी, मन नूरानी
सबके घर आँगन नूरानी
चमकदार है इसकी दीद
क्या सखि साजन ?
नहिं सखि ईद
उसकी आमद लगे सुहानी
झूमे नाना झूमे नानी
सारा आलम लगे खुर्शीद
क्या सखि बादल ?
नहीं सखि ईद
ईद मुबारक
-अलबेला खत्री
Added by Albela Khatri on August 20, 2012 at 11:00am — 4 Comments
पवन तुझसे है निवेदन
कर रहा सब कुछ मैं अर्पण
जा प्रिये के पास मेरी
कह सुना उसको कहानी
जो है मेरा हाल कहते
काँप जाती है जुबानी
है तड़प मन में तेरी
मुस्कुराती यह जवानी
कह रही है बार-बार
तेरे बिना कुछ ना जवानी
क्या सफलता लिखूँ मैं
इतिहास के पन्ने कहेंगे
रो पड़ा जो प्रेयसी को
मर्द उसको ना कहेंगे
कह न पाया बात मन कि
रो पड़ी तुम उससे ही पहले
मै चाहता था बहुत कहना
स्वप्न जो देखे सुनहले
चाह है पाने की तुमको
पर…
Added by अजय कुमार on August 20, 2012 at 10:00am — No Comments
मानव की प्रवृत्तियाँ क्या हैं? वह क्या चाहता है? क्या पसन्द है उसे? क्या नही पसन्द करता वो? ये सभी बातें उसी पर निर्भर हैं। किन्तु ये नही कहने वाला हूँ मै। कुछ और ही कहना चाहता हूँ।
कुछ लोगों को अच्छे लोग नही भाते बल्कि बुरे लोगो में दिलचस्पी हो जाती है। पता नही कैसा ये मन का रिश्ता है। क्या पता कब, कैसे, किससे जुड़ जाये। इसकी खबर भी नही लगती।
बात ये भी नही कहना चाहता मै लेकिन ये सभी घटनायें कभी न कभी अवश्य ही घटती हैं जीवन मे। इनके पीछे क्या होता है उस समय कोई नही जान सकता।…
ContinueAdded by आशीष यादव on August 20, 2012 at 10:00am — No Comments
नाराज़गी है।
किस बात की भला,
लो मैं तो चला।।।
सूबे सिंह सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on August 19, 2012 at 10:58pm — 1 Comment
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