प्रश्न होते हैं ,उत्तर भी होते हैं रास्ते ,
पूर्व-पश्चिम और दक्षिण
सभी दिशाओं मे होते हैं रस्ते
कभी घोड़ों की टापों से कुचले जाते हैं
तो कभी फूलों से सजाये जाते हैं रास्ते
क्या जमीं कया समुंदर आशमां मे भी होते हैं रास्ते
तो क्या मंजिले नसीब नहीं होती सभी को,
पर होते हैं सभी के अपने –अपने रास्ते
कभी मंजिल तक पहुचाते हैं तो कभी खुद मंजिल बन जाते हैं रास्ते
उनकी कहां मंजिलें होती हैं
जो खुद बनाते हैं…
ContinueAdded by hemant sharma on August 31, 2013 at 11:08pm — 8 Comments
एक सच्चा गलत आदमी
सच का पैरोकार होता है
नारे लगाता है
हवा में मुट्ठियाँ भांजता है
भरोसा लपकता है
फिर उन्हे चबाता है
प्रगतिशील कहलाता है
एक सच्चा गलत आदमी
कभी पूरा झूठ नही बोलता
गलतियाँ नही दोहराता
कभी धन कभी ताकत
कभी भावनाओं के जोर पर
भोलेपन से खेलता है।
जब आत्मा धित्कारती है
बद्दुआएँ कोचती हैं
सुबह मन्दिर मे मत्था टेक आता है
चढावा चढाता है
फिर बैठ जाता है अनेक प्रेयसियों मे से
किसी एक…
Added by Gul Sarika Thakur on August 31, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
२ १ २ २ १ १ २ २ २ २
जिंदगी कैसी कज़ा चाहती है
मर के जीने की दुआ चाहती है
.
बीत गया जो तुझे साथ मुबारक
मेरी दुनिया तो नया चाहती है
.
वो अगर चाहे हमें क्षमा कर दे,
अब मगर वो भी सज़ा चाहती है
.
छीन ली उस ने हमारी दुनिया,
छीन अब न सके खुदा चाहती है
.
वो छुपा लेती है अँधेरा खुद में
जिन से लौ उन का पता चाहती है
.
जो थी मंजल हमें दिखाने निकली ,
राह में भटकी पता चाहती है
मौलिक…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on August 31, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
इस नगर में
मेरे कुछ सपने
हुए साकार
और कुछ
बिखरे किरचियाँ बन
पर
इन सपनों की
फ़ेहरिस्त थी लम्बी
इन्हें पूरा करने
जी जान से थी जुटी
कभी
भावुकता में बही
तो कभी
व्यावहारिकता ओढ़ी
कहीं
करना पड़ा संघर्ष
इसके
विद्रोही मोड़ों पर
लेकिन
इस नगर की
एक बात है ख़ास
मुस्कुराहटों में इसने
दिया मेरा साथ
पर एक बात
है इसकी…
ContinueAdded by vijayashree on August 31, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे
यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे
लोभ-मोह के छद्माकर्षण, प्रज्ञा से नित कर विश्लेषण,
इप्सा तर्पण हो प्रतिपूरित, मन में तृष्णा निःशेष रहे,
यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे
कर्तव्यों का प्रतिपालन कर,निष्काम कर्म प्रतिपादन कर,
फल से हो सर्वस मुक्त मनस,बस नेह हृदय मधु-शेष रहे,
यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 8:30pm — 37 Comments
टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |
नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||
.
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on August 31, 2013 at 6:30pm — 11 Comments
एहसासों की लेखनी में श्रेष्ठ कवयित्री अमृता जी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मेरी एक अदना सी कोशिश, उनको बयां कर पाना आसां नहीं है,बस कोशिश की है....
नज्मों को सांसें
लम्हों को आहें
भरते देखा
अमृता के शब्दों में
दिन को सोते देखा
सूरज की गलियों में
बाज़ार
चाँद पर मेला लगते देखा
रिश्तों में हर मौसम का
आना - जाना देखा
अपने देश की…
ContinueAdded by Priyanka singh on August 31, 2013 at 5:00pm — 25 Comments
कितने ही मरुथल
छूट गये पीछे
पगली आशाओं को
मुट्ठी में भींचे
नदिया सी रेतीली
राहों में बहती
कलुष भी वहन करतीं
धाराएँ जीवन की
अवचेतन में, गुपचुप
सुख दुःख को बांचें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
दादी अम्मा का
भैय्या को दुलराना
चुपके से, दूध- भात
गोद में खिलाना
किन्तु 'परे हट' कहकर,
उसे दुरदुराना
रह- रहकर कोचें
वह शैशव की फासें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
जागी…
Added by Vinita Shukla on August 31, 2013 at 3:04pm — 16 Comments
शब्द नहीं आते है
देख दुर्दशा
सुन कर व्यथा
गूँजता करुण क्रंदन
न पिघला मानव मन
कुछ कहने को शब्द नहीं आते है ....
लुट रही अस्मिता
मिट रहा सुहाग
छिन रहे माँओ के लाल
रक्तरंजित हो रही धरा
व्यथा सुनाने को शब्द नहीं आते है .......
जन्मांध न होकर भी जो
बन चुके धृतराष्ट्र
हलक तक शुष्क हो चला
जिह्वा चिपक गई तालु से
पुकार लगाने को शब्द नहीं आते हैं…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 12:30pm — 16 Comments
बड़े साहब की गाड़ी जैसे ही चौराहे पर सिग्नल के लिए रुकी एक चौदह पंद्रह वर्षीय बालक हाथ मे कपड़े का टुकड़ा लिए उनकी गाड़ी की तरफ लपका और फटाफट शीशे चमकाने लगा । शायद ये लोग कुछ पैसों की खातिर अपनी जान को जोखिम मे डाले फिरते है । क्या करे पेट की आग और गरीबी की मार कुछ भी करवाती है । बड़े साहब ने नई मर्सिडीज़ खरीदी थी उस पर उस बच्चे के गंदे हाथ देख तिलमिला गए , उतरे और एक झन्नाटे दार थप्पड़ उसके कोमल गाल पर जड़ दिया , - “ यू रासकल्स ! गंदी नाली के कीड़े ! तेरी हिम्मत कैसे हुई गाड़ी को हाथ लगाने की ।”…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 12:00pm — 30 Comments
नारी सबला जानिए ,देकर अनुपम प्यार
नारी से नर उपजिया ,मानस पटल सुधार |
मानस पटल सुधार , जान नारी जस माता
जैसे करता करम ,फल वैसा तभी पाता |
नारी माँगे मान,जान ना उसको अबला
देकर अनुपम प्यार,जान लो नारी सबला ||
.................
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sarita Bhatia on August 31, 2013 at 9:57am — 15 Comments
रखना ख़याल शह्र का मौसम बदल न जाय
जुल्मत कहीं चराग़ की लौ को निगल न जाय
आमादा तो है नस्लकुशी पर अमीरे शह्र
डरता भी है कि उसका पसीना उबल न जाय
अजदाद से मिला जो…
ContinueAdded by Sushil Thakur on August 31, 2013 at 9:39am — 16 Comments
2122 2122 2122 2122
शेर मेरे ये सभी यूं तो ज़माने के लिए हैं।
बेवफा से भी मुहब्बत ही जताने के लिए हैं।।
याद है तुझको कभी तू भी रहा है साथ मेरे।
याद भी तेरी जहां में भूल जाने के लिए हैं।।
चाहता है दर्द उसके सब मिटे दुनिया से कमसिन।
दर्द भी कुछ सीने पर ही तो लगाने के लिए हैं।।
दिल उन्होंने यूं संभाला जैसे कोई आइना हो।
आइना तो यार सब ही टूट जाने के लिए हैं।।
जख्म मेरे जो भी दुनिया से मिले है प्यार में वो।
जख्म ये सब यार उनसे ही…
Added by Ketan Parmar on August 31, 2013 at 9:30am — 14 Comments
काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 9:07am — 26 Comments
खट- खट की आवाज सुनकर गली के कुत्ते भौंकने लगे। चोर कुछ देर शांत हो गये। थोड़ी देर बाद फिर से खोदने लगे। कुत्ते फिर भौंकने लगे।
चोरों ने डंडा मारकर कुत्तों को भगाना चाहा, लेकिन कुत्ते निकले निरा ढीठ, वे और तेज भौंकने लगे। लाल मोहन ही क्या अब तो सारा मुहल्ला जाग चुका था । लेकिन किसी ने अपने बिस्तर से उठकर बाहर यह पता करने की ज़हमत नहीं उठायी कि कुत्ते भौंक क्यों रहे थे ।
सुबह-सुबह पूरे मुहल्ले में यह ख़बर आग बनी थी, लाल मोहन लुट चुका है।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 8:00am — 20 Comments
रुसवाईयां ही रुसवाईयां
दूर तलक गम की
कोई ख़ुशी नही है अब
चैन कहाँ मिले...
परछाईयां ही परछाईयां
हर वक़्त अतीत की
कोई भोर नही है अब
रोशनी कहाँ मिले...
अंगड़ाईयां ही अंगड़ाईयां
रोज एक थकन की
कोई आराम नही है अब
कहाँ शाम ढले...
तन्हाईयां ही तन्हाईयां
इस अकेलेपन की
कोई साथ नही है अब
जीना है अकेले...
न ख़ुशी न सुकून
न आराम
न साथ किसी का
फिर भी जिए जा रहा हूँ....…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 12:30am — 26 Comments
बह्र : मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन फा
------------
छोटे छोटे घर जब हमसे लेता है बाजार
बनता बड़े मकानों का विक्रेता है बाजार
इसका रोना इसका गाना सब कुछ नकली है
ध्यान रहे सबसे अच्छा अभिनेता है बाजार
मुर्गी को देता कुछ दाने जिनके बदले में
सारे के सारे अंडे ले लेता है बाजार
कैसे भी हो इसको सिर्फ़ लाभ से मतलब है
जिसको चुनते पूँजीपति वो नेता है बाजार
खून पसीने से अर्जित पैसो के…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 30, 2013 at 7:09pm — 15 Comments
सुहानी सुबह में
खिली थी नन्ही कली
बगिया गुलजार थी
मेरी मौजूदगी से
आने जाने वाले
रोक न पाते खुद को
नाजुक थी कोमल थी
महका करती थी
माली ने सींचा था
खून पसीने से
देखा था सपना
सजोगी कभी आराध्य पर
कभी शहीदों के सीने पर
फूल भी गौरवान्वित थी
अपनी इस कली पर
कर रही थी रक्षा कांटे भी
पते ढक कर सुलाती थी
कली तो अभी कली थी
उसने खुद के लिए कुछ
सोचा भी नहीं था
लापरवाह थी भविष्य से…
Added by shubhra sharma on August 30, 2013 at 5:30pm — 14 Comments
किसने कहा ? आप स्वतंत्र नही हैं
आप तो स्वभाव से स्वतंत्र हैं
और पहले भी थे , सदा से थे ।
जैसे आप स्वतंत्र हैं
हाथ घुमाने के लिये
तब तक , जब तक कि ,
किसी का चेहरा न सामने आये ।
मुश्किल तो यही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 30, 2013 at 3:30pm — 13 Comments
"भाभी कहाँ से लायी हो इतनी सुन्दर दुल्हन ? नजर ना लगे", श्यामला ने घूंघट उठाते ही कहा, "..ऐसा लगे है जैसे कौव्वा जलेबी ले उड़ा.."
दूर बैठी श्यामा ने जैसे ही दबी जबान में कहा, खिलखिलाहट से सारा कमरा गूँज उठा ।
"श्यामा भाभी कभी तो मीठा बोल लिया करो.. मेरा भतीजा कहाँ से कव्वा लगता है तुम्हे ? मेरे घर का कोई शुभ काम तुम्हे सहन नहीं होता तो क्यूँ आती हो ?" श्यामला ने आँखें तरेरते हुए श्यामा को कहा।
मुंह दिखाई का सिलसिला चल ही रहा था कि पड़ोस का नन्हें बदहवास-सा दौड़ता हुआ…
Added by rajesh kumari on August 30, 2013 at 11:30am — 25 Comments
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