Added by amita tiwari on September 30, 2016 at 8:30pm — 11 Comments
कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे
कब सुख से सूखे लोचन पर करुणा के घन लाओगे
काले मन से कब छूटेगा
मोह श्वेत परिधानों का
कब तक आलंबन पाओगे
व्योम प्रवृत्त विमानों का
कब तक शोणित की सरिता में तुम निर्विघ्न नहाओगे
नश्वर देह सुरक्षित कितना
रक्षक के समुदायों से
दंभ भरा अस्तित्व बचेगा
कब तक कठिन उपायों से
मन के उजले संकेतों को कब तक तुम झुठलाओगे
झूठा नाटक कब तक मरने
वालों पर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 30, 2016 at 7:07pm — 14 Comments
ख़्वाबों की लहद ....
ये आंखें
न जाने कितने चेहरे
हर पल जीती हैं
हर चेहरे के
हज़ारों ग़म पीती हैं
मुस्कुराती हैं तो
ख़बर नहीं होती
मगर बरस कर
ये सफर को अंजाम
दे जाती हैं
ज़हन की मिट्टी को
किसी दर्द का
पैग़ाम दे जाती हैं
मेरी तन्हाईयों को
नापते -नापते
न जाने कितने आफ़ताब लौट गए
मेरी तारीकियों में
हर शरर ने
अपना वज़ूद खोया है
हर लम्हा
किसी न किसी लम्हे के लिए
वक्त की चौखट से…
Added by Sushil Sarna on September 30, 2016 at 3:24pm — 14 Comments
Added by S.S Dipu on September 30, 2016 at 12:05am — 4 Comments
बहर : २१२ २१२ २१२ २१२ २२
ना करो ऐसे↓ कुछ, रस्म जैसे निभाती हो
आरसी भी तरस जाता↓, तब मुहँ दिखाती हो |
छोड़कर तब गयी अब हमें, क्यों रुला/ती हो
याद के झरने↓ में आब जू, तुम बहाती हो |
रात दिन जब लगी आँख, बन ख़्वाब आती हो
अलविदा कह दिया फिर, अभी क्यों सताती हो ?
जिंदगी जीये हैं इस जहाँ मौज मस्ती से
गलतियाँ भी किये याद क्यों अब दिलाती हो |
प्रज्ञ हो जानती हो कहाँ दुःखती रग…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 29, 2016 at 10:30pm — 10 Comments
क्यों करते
खुदकी वाह वाही
होती उसकी
फिर बुराई
माना बहुत कुछ
जान गये हो
खुद को भी
पहचान गये हो
न इतना
गुमान करो
खुद का खुद
सम्मान हरो
अच्छे हो
जानो खुदको
इन्सां हो
मानो खुदको ।
चलो भले
अपनी ही चाल
न खींचों
दूसरों की खाल
धीरे धीरे
चलना है
दौड़ना नहीं
बस चलना है ।
जय हो जय हो
का नारा छोड़ो
स्व तारीफ़ से
नाता तोडो ।
एक दिन
पेड़ क्या
बन जाओगे
ज़मीन…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 29, 2016 at 10:30pm — 12 Comments
2122 1212 22
जुगनुओं की बरात मुश्किल है।
साथ हो कायनात मुश्किल है।।
चांदनी गर बिखर नहीं जाती
इन निगाहों से मात मुश्किल है।।
यूँ हकीकत छुपी नहीं रहती।
आईने से निजात मुश्किल है।।
रात के बाद निकलता है दिन।
कैसे कह दूँ हयात मुश्किल है।।
दो जहां को सवाँर दूँ तब भी।
इस जहां की बिसात मुश्किल है।।
फासले दरमियाँ न आ पाते।
चुगलियों से निजात मुश्किल है।।
मौलिक और अप्रकाशित
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 29, 2016 at 10:00pm — 18 Comments
देखो भाई, स्मार्ट फोन का, जमाना आया,
साथ में नेट-पैक वालों की, चाँदी कर लाया,
उँगलियों के स्पर्श से, चलता ये पुर्जा,
हजारों रूपये का , इस पर होता खर्चा,
हर छुअन पर , जाता है सिहर,
जहाँ छुओ, वहाँ खुल जाता, एक नया मंजर,
फेसबुक, व्हाट्सएप की बड़ी बहार है,
चुटीले-उपदेशी संदेशों की भरमार है,
विभिन्न समूहों में होरहीं, गहन चर्चाएँ,
सारे राष्ट्र की समस्याएँ, यहीं सुलझाएँ,
अपने -अपने गुटों की, खुली है चौपाल,
सरकार भी चौकन्नी…
ContinueAdded by Arpana Sharma on September 29, 2016 at 8:00pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 29, 2016 at 5:41pm — 21 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 29, 2016 at 2:00pm — 18 Comments
Added by S.S Dipu on September 28, 2016 at 9:45pm — 1 Comment
ग़ज़ल ( अहदे वफ़ा चाहिए )
--------
फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल
न कुछ तुम से इसके सिवा चाहिए ।
हमें सिर्फ़ अहदे वफ़ा चाहिए ।
जो दौलत है ले जाओ तुम भाइयों
मुझे सिर्फ़ माँ की दुआ चाहिए ।
करे ऐब गोई जो हर शख़्स की
उसे दोस्तों आइना चाहिए ।
जो क़ायम करे एकता मुल्क में
हमें सिर्फ़ वह रहनुमा चाहिए ।
कहीं दिल लगाना भी है लाज़मी
अगर दर्दे ग़म का मज़ा चाहिए ।
ज़रूरी है ख़िदमत भी मख़लूक़ की
अगर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 28, 2016 at 9:26pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222 तरही ग़ज़ल
अगर बेटे की भाई से अदावत और हो जाती
मेरे अपने ही घर में इक बगावत और हो जाती
जहाँ खामोशी से मेरी जसामत और हो जाती
वहीं कुछ कहने से मेरे मुसाफत और हो जाती
हिमानी के शिखर पर डाल गलबहियाँ पलक मींचे
युगल प्रेमी यही सोचे क़यामत और हो जाती
सुलगती साँसे जलता तन पिला दो मय ये आँखों की
जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 28, 2016 at 5:07pm — 8 Comments
पुरानी किताबें ........
पुरानी किताबें
कुछ भी तो नहीं
सिवाय पुरानी कब्रों के
जिनमें दफ़्न हैं
चंद सूखे गुलाब
कुछ सिसकते हुए
मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़
कुछ पुराने पीले
टुकड़े टुकड़े से
अधूरे प्रेम के
प्रेम पत्र
पुरानी किताबें
जिनमें सो गयी
जीने की आस लिए
कई आकांक्षाएं
घुटी हुई सांसें
मोटी सी ज़िल्द की
अलमारी में
कैदियों से जीते
मौन कई अफ़साने
जंज़ीरों में…
Added by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 3:00pm — 12 Comments
Added by Arpana Sharma on September 28, 2016 at 12:30pm — 6 Comments
गैर ही तू सही तेरा असर तो बाक़ी है
लज्ज़तेयाद का वीराना घर तो बाक़ी है
माना मंजिल नहीं इश्बाह की हासिल मुझको
पैरों के वास्ते इक रहगुज़र तो बाक़ी है
तेरे सीने की आग बुझ गई तो क्या कीजे
मेरे सीने में धड़कता जिगर तो बाक़ी है
सोज़िशें रोज़ की जीने नहीं देतीं मुझको
क्या करें साँसों का लंबा सफ़र तो बाक़ी है
तेरी साँसें भी हैं मलबूस मेरी साँसों से
मेरे भी सीने में तेरा ज़हर तो बाक़ी…
Added by राज़ नवादवी on September 28, 2016 at 12:26pm — No Comments
रोज़मर्रा की ज़रुरत बद से बदतर हो गई
दाल-रोटी ही हमारा अब मुक़द्दर हो गई
फ़िक्र में आलूदगी ही हर घड़ी का काम है
रात को दो गज ज़मीं ही मेरा बिस्तर हो गई
सूखी कलियों की तरह हर ख़्वाब ही कुम्हला गया
धूप यूँ हालातेनौ की नोकेनश्तर हो गई
जिस्म भी अब थक गया है सांस भी अब बोझ है
मेरे कदमों की गराँबारी ही ठोकर हो गई
यास की तारीकियों से यूँ हुई रौशन हयात
ज़ुल्मतेवीराँ से मेरी जाँ मुनव्वर हो…
Added by राज़ नवादवी on September 28, 2016 at 12:00pm — No Comments
Added by S.S Dipu on September 28, 2016 at 10:05am — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 28, 2016 at 8:34am — 13 Comments
Added by दिनेश कुमार on September 28, 2016 at 7:17am — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |