एक बार की बात है. किसी जंगल का राजा एक शेर था.
(1)
बड़े प्यार से जो दुलरावै|
हमको अपने गले लगावै|
प्रीति-रीति में हम हों बंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!
_________________________
(2)
अलंकार से सज्जित सोहै|
रस की वृष्टि सदा मन मोहै |
मिल जाता है परमानन्द |
क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |
__________________________
(3)
परम संतुलित जिसका भार|
गुरु लघु रूप बना आधार!
जन-जन को है जिसने मोहा|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि…
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 24, 2011 at 11:00pm — 23 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - छः ---------------------
बम सदृश धमाका हुआ ......................मुझे कानों पर पर विश्वास नहीं हो रहा था पर यथार्थ हर हालत में यथार्थ ही होता है. मैं शालू का प्रस्ताव सुनकर अवाक था .
"शालू , जानती हो तुम क्या कह रही हो ?"
"अच्छी तरह. आपने ही तो कहा था कि बार-बार कहा जाने वाला झूठ भी सच हो जाता है . आज सब लोग मुझे आपकी प्रेमिका और महबूबा कह रहे हैं . मेरे नाम के साथ आपका नाम जोड़…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 24, 2011 at 10:20pm — No Comments
Added by वीनस केसरी on September 24, 2011 at 2:00am — 24 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - पांच ---------------------
उसे देखते ही शालू तीर की तरह निकल गयी
सुबह संजय से मालूम हुआ कि रात में शालू को बेहरहमी से पीटा गया है . समाज की संकीर्णता देखकर मेरा मन क्षुब्ध हो उठा .किसी लड़की का किसी लड़के से मिलने का एक ही मतलब निकालने वाला यह समाज सजग एवं सचेत रहने के नाम पर भयंकर लापरवाही का परिचय देता रहता है . शालू पर , जो अभी यौवन के पड़ाव से कुछ दूर ही थी , उसकी मां ने सुरक्षा के ख्याल…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 23, 2011 at 9:06pm — 2 Comments
Added by Kailash C Sharma on September 23, 2011 at 7:00pm — 1 Comment
(१)
जब आए - तो रस बरसाए
न आए - तो बड़ा सताए
कोई न ऐसा मनभावन
ऐ सखी साजन?? न सखी सावन ।
(२)
मोरे पास - तो करे मगन
दूजे के संग - देत जलन
न जग मे कोई वाके जैसा
ऐ सखी साजन?? न सखी पैसा |
(३)
हमरे जीवन कै आधार
वो ही तो सगरा संसार
बड़ा सोच के रचिन रचैया
ऐ सखी साजन?? न सखी मैया
Added by Vikram Srivastava on September 23, 2011 at 3:00pm — 13 Comments
Added by Vikram Pratap on September 23, 2011 at 2:25pm — 1 Comment
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - चार ---------------------
मैं सोच नहीं पा रहा था की इस नयी परिस्थिति का किस तरह सामना करूँ . शालू जाने लगी तो मैनें उसे पकड़ कर पुनः बिठा दिया .
" शालू ,मुझे गलत मत समझो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए अब भी वहीँ स्नेह है, पर मां की आज्ञा तुम्हें माननी चाहिए."
शालू का मेरे यहाँ आना-जाना अब काफी कम हो गया था. वह मेरे यहाँ तब ही आती थी जब उसकी मां और मधु या तो घर से बाहर हों या सो गयी…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 22, 2011 at 10:56pm — 2 Comments
मैं हूँ सामान्य वर्ग का एक सामान्य अधेड़
न, न, अभी उम्र पचास की नहीं हुई
केवल पैंतीस की ही है
मगर अधेड़ जैसा लगने लगा हूँ
मेरी गलती यही है
कि मैं विलक्षण प्रतिभा का स्वामी नहीं हूँ
न ही किसी पुराने जमींदार की औलाद हूँ
एक सामान्य से किसान का बेटा हूँ मैं
बचपन में न मेरे बापू ने मेरी पढ़ाई पर ध्यान दिया
न मैंने
नौंवी कक्षा में मुझे समझ में आया
कि इस दुनिया में मेरे लिए कहीं आशा बाकी है
तो वह पढ़ाई में ही है
तब मैंने पढ़ना…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 22, 2011 at 3:38pm — 17 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - तीन ---------------------
वह बड़ी हो चुकी थी. सदैव की भाँती एक दिन वह आकर मेरे बगल में बैठ गयी . मैं कुछ परेशान था .
"मुझसे नाराज है अंकल?" उसने पूछा .
"नहीं तो . सर में हल्का दर्द है ." मैंने यूं ही उसे टालने के ख्याल से…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 21, 2011 at 11:26pm — 3 Comments
तेरी प्यारी सी सूरत
ममता की मूरत
तेरी आँखों से झरती करुणा
स्नेह का झरना
माँ! तेरी आँखों से झरती वो करुणा,
कब, मेरे अन्दर रिस गई,
मैं नहीं जान पाई?…
Added by mohinichordia on September 21, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
मेरा दिल वो मेरी धड़कन,
उसपे कुरबां मेरा जीवन !
मेरी दौलत मेरी चाहत
ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !
---------------------------------------
(२)
अंग अंग में मस्ती भर दे
आलिम को दीवाना कर दे
महका देता है वो तन मन
ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन !
---------------------------------------
(३)
मिले न गर, दुनिया रुक जाए
मिले तो जियरा खूब जलाए !
हो कैसा भी - है अनमोल,
ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on September 21, 2011 at 4:30pm — 59 Comments
प्रभु! नभ-जल-थल में तुम्हारा गुणगान हो,
तुमसे छुपाऊँ क्यों, तुम सर्वव्यापिमान हो!
कैसे मैं कमाई करूँ, मुझे भी तो ज्ञान हो,
मेरी भी समस्या का कोई तो समाधान हो!
नियत, हैसियत प्रभु मेरी तुम जानो वैसे,
माल-असबाब यहाँ खा रहे है कैसे कैसे!
चौखट में आया तेरी, वादा चढ़ावे का ले…
Added by Subhash Trehan on September 21, 2011 at 1:30pm — 9 Comments
सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए
याद हमको आज वह गुज़रे ज़माने आ गए
आज क्यूँ उन को हमारी याद आयी क्या हुआ
जो हमें ठुकरा चुके थे हक़ जताने आ गए
दिल के कुछ अरमान मुश्किल से गए थे दिल से दूर
ज़िन्दगी में फिर से वह हलचल मचाने आ गए
ग़ैर से शिकवा नहीं अपनों का बस यह हाल है
चैन से देखा हमें फ़ौरन सताने आ गए
उम्र भर शामो सहर मुझ से रहे जो बेख़बर
बाद मेरे क़ब्र पे आंसू बहाने आ गए
हैं "सिया' के…
Added by siyasachdev on September 21, 2011 at 2:19am — 7 Comments
बस प्रेम सिखाने आई थी ??
जो प्रेम सिखाकर जाती हो ??
ख्वाबों में आकर नींद के थैले से
यूँ चैन चुराकर जाती हो...
तुमने ही सिखाया था मुझको
सूनी…
ContinueAdded by Vikram Srivastava on September 21, 2011 at 12:28am — 4 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - दो ---------------------
तब मैं बी. ए. पार्ट -1 का छात्र था जब वर्माजी मेरे मकान में बतौर किरायेदार रहने आये थे . वे पिताजी का एक सिफारिशी खत अपने साथ लाये थे कि वर्मा जी मेरे आज्ञाकारी छात्र रहे हैं, बगलवाले फ्लैट में इनके रहने की व्यवस्था करा देना . मुझे भला क्यों आपत्ति होती . वर्माजी रहने लगे और मैं…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 20, 2011 at 11:00pm — No Comments
बोध कथा:
शब्द और अर्थ
संजीव 'सलिल'
*
शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त होने पर चैन की साँस ली और कमर सीधी करने के लिये लेटा ही था कि काम करने की मेज पर कुछ हलचल सुनाई दी. वह मन मारकर उठा, देखा मेज पर शब्द समूहों में से कुछ शब्द बाहर आ गये थे. उसने पढ़ा - वे शब्द थे प्रजातंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र और…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on September 20, 2011 at 2:30am — 3 Comments
मां की ममता, पिताजी का त्याग,
बहन की समझदारी, भाई का प्यार!
क्या यही है रिश्तो की बुनियाद,
ये रिश्ते कभी नहीं होते बेकार!
माँ की ममता हमारे दुख भूलती,
हमको हमेशा सही राह दिखाती!
पिताजी कात्याग देता देता अनुशासन का पाठ,
बनता है हमको और भी महान!
बहन की समझदारी हमें हमेशा हौसला दिलाती,…
ContinueAdded by Smrit Mishra on September 20, 2011 at 1:14am — 1 Comment
नहीं आऊँगी (कहानी )
लेखक - सतीश मापतपुरी
----------------- अंक - एक --------------------
मैं जब कभी बरामदे में बैठता हूँ , अनायास मेरी निगाहें उस दरवाजे पर जा टिकती है, जिससे कभी शालू निकलती थी और यह कहते हुए मेरे गले लग जाती थी - " अंकल, आप बहुत अच्छे हैं."
कई साल गुजर गए उस मनहूस घटना को बीते हुए. वक़्त ने उस घटना को अतीत का रूप तो दे दिया, किन्तु ............... मेरे लिए वह घटना आज भी ................. शालू की यादें शायद कभी भी मेरा पीछा…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 20, 2011 at 12:43am — No Comments
Added by Vikram Srivastava on September 19, 2011 at 9:59pm — 3 Comments
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