Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2012 at 4:42pm — 4 Comments
शाम जन्नत हुई सहर जन्नत
आप आये हुआ ये घर जन्नत
जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ
हो गया है मेरा शहर जन्नत
राह मुश्किल भरी रही लेकिन
आपके साथ था सफ़र जन्नत
ख्वाब क्या और क्या हकीकत में…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 3:00pm — 16 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2012 at 2:24pm — 3 Comments
"मौलिक संतान"
कोख
माँ की कोख
प्यारी न्यारी
जीव का प्रारंभ
उसकी जन्नत
माँ की कोख
सबसे खूबसूरत
कोई शै नहीं
इस सारे जहाँ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 1:25pm — 2 Comments
मेरे सपनो का भारत ऐसा तो नहीं था
इतना कमजोर , इतना खोखला
ऐसा देश तो मैंने कभी चाहा ही नही था
बाहर से जितना साफ अंदर से उतना ही गन्दा
मेरे सपनो का भारत ....................
सोचा था मैंने तो कि ये चमन खूब महकेगा
अपने परिंदों के चहकने से खूब चहकेगा
मगर ये क्या --- इसे तो इसके ही फूलो ने कांटे चुभोये
लहू देशभक्तों का बो कर भी गद्दार उगाये
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा ......................
.
मैंने चाहा…
Added by Sonam Saini on September 10, 2012 at 9:30am — 10 Comments
आज ९ सितम्बर २०१२, रविवार को इलाहाबाद के वर्धा विश्वविधालय क्षेत्रीय सभागार में एक काव्य गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया जिसमें अकबर इलाहाबादी को उनकी पुन्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया | कार्यक्रम की शुरुआत अकबर इलाहाबादी साहब के चित्र पर माल्यार्पण से हुयी | तत्पश्चात इलाहाबाद के तंज़ ओ मजाह के सशक्त हस्ताक्षर फरमूद इलाहाबादी साहब ने तंज़ ओ मजाह के महान शायर अकबर इलाहाबादी साहब को याद करते हुए अकबर साहब की ग़ज़ल के चंद अशआर पढ़े तथा उसके पश्चात सभी कवियों…
ContinueAdded by वीनस केसरी on September 10, 2012 at 2:00am — 1 Comment
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 10, 2012 at 1:00am — 9 Comments
पेड़ों के झुरमुट में
छुप छुप भरमाता है
मेघों के अंचल में
अटक अटक जाता है
यायावर सा फिरता
मतवाला चाँद
उषा- रश्मियों से घिर
धुंधलाता जाता है
अरुणाभा में, नभ की
डूबता- उतराता है
चलाचली की बेला
कहता सूरज को विदा
पवन से पराग की
पीकर हाला चाँद
Added by Vinita Shukla on September 9, 2012 at 9:43pm — 3 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on September 9, 2012 at 5:27pm — No Comments
राज़ नवादवी: मेरी बेटियों की जोड़ी को एक पत्र
-------------------------------------------------- -----------
मेरी प्यारी बेटियों साशा और नाना,
मुझे आप दोनों की दुनियावी तकलीफों और दर्द के बारे में जानकार बहुत दुःख है. मुझे ऐसा लगता है कि घर से मेरा मुसलसल (लगातार) दूर रहना भी इनकी एक वजह है, मगर शायद फिलहाल मेरी ज़िंदगी कुछ ऐसी है कि इसमें जुदाई और फुर्कत (विरह) का साथ अभी और बाकी है.
मेरी दरख्वास्त है कि कभी अपना हौसला मत खोना क्यूंकि…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 9, 2012 at 2:03pm — No Comments
राज़ नवादवी: मेरी बेटियों की जोड़ी को एक पत्र
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मेरी प्यारी बेटियों साशा और नाना,
मुझे आप दोनों की दुनियावी तकलीफों और दर्द के बारे में जानकार बहुत दुःख है. मुझे ऐसा लगता है कि घर से मेरा मुसलसल (लगातार) दूर रहना भी इनकी एक वजह है, मगर शायद फिलहाल मेरी ज़िंदगी कुछ ऐसी है कि इसमें जुदाई और फुर्कत (विरह) का साथ अभी और बाकी है.
मेरी दरख्वास्त है कि कभी अपना हौसला मत खोना क्यूंकि…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 9, 2012 at 2:03pm — 4 Comments
मेघ...संग ले चल मुझे भी
स्वच्छंदता के रथ पर बिठा के
उड़ा के दूर
उन्मुक्त, अनंत गगन में
अपनी प्रज्ञात ऊँचाइयों पर
सभी बंधनों से परे
निराकार, निर्विकार रूप में
व्यापक बना के अपने
नयनाभिराम नीलिमा से सुसज्जित
नीरवता की विपुल राशि
हिमावृत सदृश भवनों वाले
अप्रतिम बहुरंगी छटाओं से युक्त
मंत्रमुग्ध करते दृश्यों से शोभित
अथाह सौन्दर्य के मध्य विराजमान
अलभ्य संपदा से संपन्न
किसी स्वप्नलोक का भान कराते…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 9, 2012 at 9:27am — 4 Comments
दोस्तों, ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं ..
बचा है अब यही इक रास्ता क्या
मुझे भी भेज दोगे करबला क्या
तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या…
Added by वीनस केसरी on September 9, 2012 at 2:30am — 13 Comments
न होता परवाना तो जलके शरार क्या होता
न होती शम्मा तो फिर जाँनिसार क्या होता
तेरे हाथों मेरा रेज़एइश्क नागवार क्या होता
अगर उड़ता नहीं हवाओं में गुबार क्या होता
वफाशनास कब हुआ है हुस्न आप ही बोलो
अगर जो होता वो वैसा तो प्यार क्या होता
मुझे यकीन है वादों पे कि ये मेरी चाहत है
जोहोता न खुदपे तो तेरा ऐतेबार क्या होता
लिखी जाती कहानियां हमारी भी हाशिए पर
मैं तेरे चाहने वालोंमें होके शुमार क्या…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 8, 2012 at 3:54pm — No Comments
कोई तो बता दे जरा , हुयी क्या हमसे खता
जमाना बैरी हुआ , सब गैर हुआ ऐसी क्या की खता
बेटी बन जन्म लिया , कसूर बस इतना किया
चाहा था कि मैं भी भैया की तरह खूब पढूंगी
माँ-बाप का नाम रौशन करुँगी
देश का ऊँचा नाम करुँगी
अपने सब सपने साकार करुँगी
लेकिन जब समाज से हुआ सामना
न कोई सपना रहा न कोई अपना
ज़माने की ठोकर मिली और अपनों के ताने
क्यूँ तुने जन्म लिया ओ ! अभागी
मैं गरीब बाप तेरा कहाँ से दहेज़ जुटाऊंगा
दहेज…
Added by Parveen Malik on September 8, 2012 at 1:00pm — 2 Comments
लोकतंत्र
जहाँ हर नेता भ्रष्ट
हर अधिकारी घूस खाने को
स्वतंत्र है |
यही तो अपना
लोकतंत्र है ||
पहचान
लोकसभा और विधानसभा को
बना दिया जंग का मैदान |
देख कर इन नेताओं के कारनामे
लोग हो रहे हैरान ||
उजले कपड़ों के पीछे लिपटे
इंसानों की शक्लों में घूम रहे शैतान |
पचा गए यूरिया , खा गए चारा
बच के रहना मेरे भाई
कहीं खा ना जायें इंसान ||
कहें 'योगी ' कविराय
इन नेताओं से उठा…
Added by Yogi Saraswat on September 7, 2012 at 2:00pm — 8 Comments
प्यारे मित्रो ! आगामी 17 सितम्बर को तेरा पंथ युवक परिषद् ने द्वारा देश भर में रक्तदान का अभियान आयोजित किया है . एक लाख बोतल रक्त का लक्ष्य है ......उनके इस पुनीत कार्य के समर्थन में मैंने अहमदाबाद के संयोजक श्री सुनील वोहरा और अखिल भारतीय संयोजक श्री राजेश सुराणा के लिए कुछ दोहे लिखे हैं जो वे बैनर्स पर काम लेंगे.......आप भी पढ़ कर बताइये ..कैसे लगे ?
रक्तदान के…
Added by Albela Khatri on September 6, 2012 at 8:50pm — 4 Comments
इतने मिले जख्म कि जख्म ही दवा बने
न पाई ख़ुशी में ख़ुशी न रोये गम में हम
दिल और यह दिमाग सब शून्य हो गये
.................................................
है मुहब्बत इक फरेब औ प्यार इक धोखा
साये में है जिसके बस आंसूओं का सौदा
चोट पर चोट दिल पे हम खाते चले गये
................................................
वफा को जो न समझे तुम सनम बेवफा हो
रहें गैरों की बाहों में और सिला दो वफा का
मेरे सपनो की तस्वीर के टुकड़े हुए तुम्ही से …
Added by Rekha Joshi on September 6, 2012 at 5:40pm — 2 Comments
संदली नाजुक बदन या बोलती तस्वीर है
आयतें खामोशियाँ हैं शर्म ये तफ़सीर है
सर्द हैं जुल्फों के साए सोज साँसों में भरी
कातिलाना है अदा या ख्वाब की ताबीर है
ये गजाली चश्म तेरे श्याह गहरी झील से
औ तबस्सुम होंठ पे जैसे कोई शमशीर है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 4:05pm — 5 Comments
यह रचना उन (ढोंगी ) बाबाओं और गुरुओं के नाम जो अमरबेल से हर गली में हर रोज उग रहे है .....
Added by seema agrawal on September 6, 2012 at 10:21am — 11 Comments
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