जंगल भागी शेरनी, ख़बर छपी अखबार।
फौरन फोन घुमाइए, नज़र पड़े जो यार।।
नज़र पड़े जो यार, पड़े हम भी चक्कर में,
कर डाला झट फोन, उसी पल चिड़ियाघर में।…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on October 1, 2013 at 8:30pm — 24 Comments
लोहा ले तलवार से, तभी कलम की शान
जनता करती याद है, बढे कलम का मान |
बढे कलम का मान, जुल्म पर खुलकर बोले
मसी छोड़ दे छाप, न्यायिक तुला पर तोले
रही धर्म के साथ, उसी ने मन को मोहा
काँपे कभी न हाथ, झूठ से जब ले लोहा||
(मौलिक व अप्रकाशित )
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 1, 2013 at 8:30pm — 9 Comments
आज बरसो के बाद उधर जा निकला जहाँ कभी मेरे प्यार की आखरी कब्र बनी थी , उस जगह न जाने कहाँ से दो पीले रंग के फूल खिले थे . आँखों से गंगा जमुना बहने लगी ! सब कुछ ऐसे याद आने लगा की जैसे कल ही की बात हो! मन पुरानी यादों में खो गया ! आज बहुत ज्यादा थक कर सोया था ये प्राइवेट स्कूल की नौकरी भी ना स्कूल वाले पैसे तो कुछ देते नहीं बस तेल निकलने पे लगे रहते है! ओ बेटा जल्दी उठा जा आज छुट्टी है तो क्या शाम तक सोयेगा जा उठकर देख दरवाजे पे कौन है माँ घर के दुसरे कोने पे कुछ काम कर रही थी , माँ की आवाज़…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 1, 2013 at 7:30pm — 2 Comments
ओढ़ चुनरिया स्याह सी, उतरी जब ये रात!
गुपचुप सी वह कर रही, धरती से क्या बात!!
तारों का झुरमुट सजा, चाँद खड़ा मुस्काय!
इठलाये जब चाँदनी, मन-उपवन खिल जाय!!
धवल रंग की रोशनी, जगत रही है सींच!…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 5:46pm — 22 Comments
मुतदारिक मुसद्दस सालिम
212 /212/ 212
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।
बन्दगी तिश्नगी आशिकी ॥
जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।…
ContinueAdded by बसंत नेमा on October 1, 2013 at 4:30pm — 16 Comments
Added by shashi purwar on October 1, 2013 at 3:01pm — 18 Comments
यूं मुझे भूल न पाओगे था मालूम मुझे
दिल में लोबान जलाओगे था मालूम मुझे
अपने अश्कों से भिगो बैठोगे मेरा दामन
एक दिन मुझको रुलाओगे था मालूम मुझे
मैंने सीने से लगा रक्खा है तेरा हर ख़त
ख़त मगर मेरा जलाओगे था मालूम मुझे
यूं तो वादा भी किया, तुमने कसम भी खाई.
गैर का घर ही बसाओगे था मालूम मुझे
सारे इलज़ाम ले बैठा तो हूँ मैं अपने सर
मिलने पर नजरें चुराओगे था मालूम मुझे
डॉ आशुतोष…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 1, 2013 at 1:58pm — 12 Comments
ये नज़र किससे मेरी टकरा गई
पल में दिल को बारहा धडका गई
एक टक उसको लगे हम ताकने
शर्म थी आँखों में हमको भा गई
लब गुलाबों से बदन था संदली
खुशबू जिसकी दिल जिगर महका गई
कैद है या खूबसूरत ख्वाब-गाह
गेसुओं में इस कदर उलझा गई
पग जहाँ उसने रखे थे उस जगह
जर्रे जर्रे पे जवानी आ गई
“दीप” जो बुझने लगा था इश्क का
मुस्कुरा के उसको वो भड़का गई
संदीप पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on October 1, 2013 at 1:30pm — 14 Comments
आत्म-मन्थन
कभी-कभी इन दिनों
आत्म-मन्थन करती
जीवन के तथ्यों को तोलती
मेरी हँसती मनोरम खूबसूरत ज़िन्दगी
जाने किस-किस सोच से घायल
कष्ट-ग्रस्त
‘अचानक’ बैठी उदास हो जाती है
लौट आते हैं उस असामान्य पल में
कितने टूटे पुराने बिखरे हुए सपने
भय और शंका और आतंक के कटु-भाव
रौंद देते हैं मेरा ज्ञानानुभाव स्वभाव
और उस कुहरीले पल का धुँधलापन ओढ़े
अपने मूल्यों को मिट्टी के पहाड़-सा…
ContinueAdded by vijay nikore on October 1, 2013 at 1:30pm — 26 Comments
जीवन के पथ हैं सरल ,अगर सही हो सोच
जीवन की इस दौड़ में ,आती रहती मोच /
आती रहती मोच ,बैठ कर रुक मत जाना
आगे की लो सोच लक्ष्य जल्दी यदि पाना
अगर सारथी कृष्ण दौड़ते जीवन रथ हैं
यदि हौंसले बुलंद, सरल जीवन के पथ हैं//
..........................
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sarita Bhatia on October 1, 2013 at 11:30am — 16 Comments
छंदों की फुहार हैं भीगे अशआर हैं
कहे कलम क्या; सृजन करूँ ?
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
जो नित नए रंग बदलते हों
पल पल में साथ बदलते हों
नूतन परिधानों की…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 1, 2013 at 11:30am — 18 Comments
आलू-बंडे से अलग, मुर्गी अंडे देख |
बा-शिन्दे अभिमत यही, भेजें यह अभिलेख |
भेजें यह अभिलेख, नहीं भेजे में आये |
गिरा आम पर गाज, बड़ा अमलेट बनाए |,
भेदभाव कुविचार, किचन कैबिनट में चालू |
अंडे हुवे विशेष, हमेशा काटे आलू ||
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by रविकर on October 1, 2013 at 10:24am — 6 Comments
[अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर लघु कथा]
लगभग एक माह पूर्व बेटे का विदेश से फोन आया था कि वह मिलने आ रहा है. मन्नू लाल जी खुशी से झूम उठे. पाँच वर्ष पूर्व बेटा नौकरी करने विदेश निकला था. वहीं शादी भी कर ली थी. अब एक साल की बिटिया भी है.शादी करने की बात बेटे ने बताई थी. पहले तो माँ–बाप जरा नाराज हुये थे, फिर यह सोच कर कि बेटे को विदेश में अकेले रहने में कितनी तकलीफ होती होगी, फिर बहू भी तो भारतीय ही थी, अपने-आप को मना ही लिया था.
मन्नू लाल जी और उनकी पत्नी दोनों ही साठ…
Added by अरुण कुमार निगम on October 1, 2013 at 10:00am — 26 Comments
सागर , सरिता ,
निर्झर , मरू
कलरव करते विहग
सुन्दर फूल , गिरि , तरु
अरुणाई उषा की
रजनी से मिलन शशि का
जल, वर्षा , इन्द्रधनुष
कोटि जीव , वीर पुरुष
सब कितना मंजुल जग में
प्रकृति का रूप अनूप
लेकिन
नारी, तुम हो जगत में
प्रकृति का सबसे सुन्दर रूप.
......मौलिक एवं अप्रकाशित ....
Added by Neeraj Neer on October 1, 2013 at 8:30am — 17 Comments
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ग़ज़ल
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कैसा भाईचारा जी
रख दो माल हमारा जी .
दिल का क्या कहना मानें
दिल तो है आवारा जी .
शीशा तोड़ा, क्या तोड़ा ?
तोड़ो तम की कारा जी .
माल अकेले गपक गये
तुम सारे का सारा जी .
जाओ, कूद पड़ो रण में
दुश्मन ने ललकारा जी .
पेट भरेगा…
ContinueAdded by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 1, 2013 at 8:00am — 14 Comments
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