वो कहते हैं
शब्द र्निजीव होते है,
बेजुबान होते है।
वो कहते है,
यह लेखनी से बने,
आकार भर है।
जुबान से निकली,
आवाज भर है।
ना इनकी पहचान है,
ना इनका अस्तिव।
मगर यारो शब्द तो शब्द हैं,
अक्षरों केा संगठित कर
खुद में समाहित कर,
वाक्य बना कर उसे
पहचान देते है।
और खुद गुमनामी के
अँधेरे में खो जाते है।
ये शब्द निस्वार्थ सेवा का
एक सच्चा उदाहरण है।
एक शब्द झकझोर…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on October 28, 2013 at 7:30pm — 5 Comments
तुमसे इश्क में भीगी बातें करनी थीं
लेकिन किसान का मायूस चेहरा
आता रहा बार-बार सामने
तुम्हारी घनी जुल्फों के साए में छुपना था
कि कार्तिक मास में
असमय छाये काले पनीले
मनहूस बादलों ने ग़मगीन किया मुझे
तुम्हारी खनकती हंसी सुननी थी
कि किसानो के आर्तनाद ने रोक लिया
तुम्हे मालूम है
कि…
Added by anwar suhail on October 28, 2013 at 7:29pm — 7 Comments
रे मन न झूम आज स्वर्णिम प्रभा को देख......कृत्रिम प्रकाश देती दीप की अवलि है
पागल पवन रक्तपात में है अनुरक्त...................वक्त है विवेकहीन होती नरबलि है
देख अति पीड़ित सुरम्यताविहीन कली..लज्जा त्याग के खड़ी ठगा सा खड़ा अलि है
व्याघ्र अति चिन्तित कि गर्दभ चुनौती बना व्यापक दिशा दिशा बलिष्ठ हुआ कलि है
सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना---
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on October 28, 2013 at 6:00pm — 9 Comments
माते ! मैं ही रहा अभागा
जो तुझको सुख दे न सका
पावन तेरी चरण-धूलि तक
अपने हित संजो न सका
भर नथुनों में अमर गंध तू
ठाकुर का मेहमान हुई
सित फूलों की उस घाटी में
अमर ब्रह्म मुदमान हुई
औ तेरा यह पारिजात मां
गलित गात, क्षत शाख हुआ
खेद-स्वेद के तीक्ष्ण धार से
गलता-जलता राख हुआ
करूणे ! तेरा वृथा पुत्र यह
तेरी रातें धो न सका
धन,बल,वैभव खूब सहेजा
पर तुझको संजो न…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 28, 2013 at 5:30pm — 19 Comments
पूर्वाग्रह
नेहा कॉलेज से घर लौट रही थी.रास्ते में उसकी सहेली रश्मि मिल गई .रश्मि का घर नजदीक ही था .उसने नेहा को थोड़ी देर गप -शप करने और चाय पीकर जाने का आग्रह किया..नेहा ने बात मान ली .बातों ही बातों में नेहा ने कहा .रश्मि आजकल ``मैं बड़ी परेशान हूँ .कुछ दिनों के लिए मेरी सास आने वाली हैं ...वही ताने ..उलाहने ..अपने ज़माने की बातों से हमारी तुलना ..सच
बड़ी आफत है ...क्या करूँ?``रश्मि बोली .".देख नेहा बुरा मत मानना ....मैं भी तेरी तरह हूँ नए ज़माने की ही ..पर शायद…
Added by Jyotirmai Pant on October 28, 2013 at 11:00am — 19 Comments
1222 1222 1222 1222
कभी फूलों मे कलियों में, कभी झरनों के पानी में
मुझे महसूस तू होता, हवाओं की रवानी में
कभी बेकस की आहों में ,निगाहे बेबसी में भी
कभी खोजा किया तुझको, किसी गमगीं कहानी में
मुदावा मेरी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 7:30am — 41 Comments
देख तमाशा
नेता मांगते भीख
लोकतंत्र है ।
जांच परख
आंखो देखी गवाह
जज हो आज ।
खोलता वह
आश्वासनों का बाक्स
सम्हलो जरा
कागजी फूल
चढ़ावा लाया वह
हे जन देव
मदिरा स्नान
गहरा षडयंत्र
बेसुध लोग
चुनोगे कैसे
लड़खड़ाते पांव
ड़ोलते हाथ
होश में ज्ञानी
घर बैठे अज्ञानी
निर्लिप्त भाव
जड़ भरत
देश के बुद्धिजीवी
करे संताप…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 27, 2013 at 10:30pm — 11 Comments
नाव है, पतवार नहीं
भाव है, पर शब्द नहीं
शब्द साधे पर,
अभिव्यक्ति का
सलीका नहीं |
छंद का ज्ञान कर,
शिल्प को साध कर
कविता गढ़ दी
बार बार पढ़कर
पाया,
कविता में वह-
मधुर तान नहीं |
तब, कविता लिखा
कागद फाड़कर,
डालता रहा-
कूड़ेदान में,
कलम हाथ में पकडे
पकड़कर माथा,
गडा दी आँखे
घूरते कागजो के-
कूड़ेदान में |
फिर आहिस्ता से
सिर उठाया-
आसमान की…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2013 at 10:00pm — 14 Comments
मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन
वो तब होता है बेकल एक पल को कल नहीं मिलताा
उसे सेल फोन पर जब भी कभी सिगनल नहीे मिलता।
गरीबों की दुआओं से उन्हें भी स्वर्ग मिलता है,
जिन्हें मरते समय दो बूँद गंगा जल नहीे मिलता ।
मुसाफिर की बड़ी मुषिकल से तपती दोपहर कटती ,
अगर रस्ते में बरगद , नीम या पीपल नहीें मिलता।
किसी के घर में मिलतीं सिलिलयाँ सोने की चाँदी की ,
किसी के घर में साहब दो किलो चावल नहीं मिलता।
हमारे…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 27, 2013 at 9:14pm — 11 Comments
आकाश में छाये काले बादल
किसान के साथ-साथ
अब मुझे भी डराने लगे हैं...
ये काले बादलों का वक्त नही है
ये तेज़ धुप और गुलाबी हवाओं का समय है
कि खलिहान में आकर बालियों से धान अलग हो जाए
कि धान के दाने घर में पारा-पारी पहुँचने लगें
कि घर में समृद्धि के लक्षण दिखें
कि दीपावली में लक्ष्मी का स्वागत हो…
Added by anwar suhail on October 27, 2013 at 8:02pm — 2 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on October 27, 2013 at 6:30pm — 23 Comments
क्यों रे दीपक
क्यों जलता है,
क्या तुझमें
सपना पलता है...?!
हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...?!
हममें भी
श्वासों की बाती
प्राणों को
पीती है जाती,
क्या तुझमें जीवन रहता है...?!
तू जलता
तो उत्सव होता
हम जलते
तो मातम होता,
इतना अंतर क्यों रहता है...?!
तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 5:00pm — 31 Comments
चॅाद की शीतलता,
फूलों की महक,
शब्दों से खुशी,
शब्दो से रास्ते,
दिखाता एक कवि है,
शब्दो केा माले में पिरोता,
एक कवि है,
फिर भी गुमनामी की जिन्दगी…
Added by Akhand Gahmari on October 27, 2013 at 10:00am — 6 Comments
1222/ 1222/ 1222/ 1222
.
नहीं चलता है वो मुझ को जो कहता है कि चलता है,
यही अंदाज़ दुनियाँ का हमेशा मुझ को खलता है.
***
सलामी उस को मिलती है, चढ़ा जिसका सितारा हो,
मगर चढ़ता हुआ सूरज भी हर इक शाम ढलता है.
***
न तुम कोई खिलौना हो, न मेरा दिल कोई बच्चा,
मगर दिल देख कर तुमको न जाने क्यूँ मचलता है.
***
किनारे है…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 27, 2013 at 8:30am — 12 Comments
गीत (रिश्ते नाते हारे)
गया सवेरा, ख़त्म दोपहर, ढली सुनहरी शाम,
आँखें ताक रहीं शून्य, और मुँह में लगा विराम,
गीत, गज़ल ख़ामोश खड़े औ कविता हुई उदास,
जब सबने छोड़ा साथ,…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on October 27, 2013 at 7:48am — 16 Comments
सामने
द्वार के
तुम रंगोली भरो
मैं उजाले भरूँ
दीप ओड़े हुए.. .
क्या हुआ
शाम से
आज बिजली नहीं
दोपहर से लगे टैप…
Added by Saurabh Pandey on October 27, 2013 at 1:00am — 30 Comments
छोड़ता नही मौका
उसे बेइज्ज़त करने का कोई
पहली डाले गए डोरे
उसे मान कर तितली
फिर फेंका गया जाल
उसे मान कर मछली
छींटा गया दाना
उसे मान कर चिड़िया
सदियों से विद्वानों ने
मनन कर बनाया था सूत्र
"स्त्री चरित्रं...पुरुषस्य भाग्यम..."
इसीलिए उसने खिसिया कर
सार्वजनिक रूप से
उछाला उसके चरित्र पर कीचड...…
Added by anwar suhail on October 26, 2013 at 8:30pm — 10 Comments
रावण अंतस में जगा ,करता ताण्डव नृत्य
दमन करें इसका अगर फैले नहीं कुकृत्य/
फैले नहीं कुकृत्य ,सख्त कानून बनायें
पूजनीय हो नार,इसे सम्मान दिलायें
करना ऐसे काम ,धरा हो जाए पावन
अंतरमन हो शुद्ध, नहीं हो पैदा रावण //
...................................................
..........मौलिक व अप्रकाशित...............
Added by Sarita Bhatia on October 26, 2013 at 6:00pm — 6 Comments
(दिगपाल छंद विधान:- यह छंद 24 मात्रायों का, जिसमें 12 -12 में यति के साथ चरण पूर्ण होता है)
तजि अधर्म,कर्म,सुधर्म कर,
गीता तुझे बताए I
हों शुद्ध,बुद्ध,प्रबुद्ध सब,
निज धर्म को न भुलाए I I
धर नव नीव स्वधर्म की,
शिव ही सत्य मानिए I
छोड़ सकल लोभ मोह,
ऒम ही सर्व जानिए I I
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Devendra Pandey on October 26, 2013 at 3:00pm — 18 Comments
चॉदनी रात में
खुले आसमान में
विचरण करते चॉंद को देख रहा था
कितना निश्चल कितना शांत
चला जा रहा है अपने रस्ते
पर प्रकाश से प्रकाशमान पर
ना ईष्या ना कुंठा,ना हिनता
प्रकाश दाता के अस्त पर
बन कर प्रतिबिम्ब उसका
अंधेरे को दूर कर उजाले के
लिये सदैव प्रत्यनशील
भले रोक ले आवारा बादल
उसका रास्ता
छुपा ले प्रकाश उसका
मगर फिर भी प्रत्यन कर
बादलो से निकल कर
पुन: धरती को, अंबंर को, मानव को…
Added by Akhand Gahmari on October 26, 2013 at 10:30am — 6 Comments
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