1212 1122 1212 112
यूँ उम्र भर रहे बेताब देखने के लिये
किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये
कहाँ थे देखो सनम हम कहाँ चले आये
वो गुलबदन के वो महताब देखने के लिये
न जाने कब से हक़ीक़त की थी तलब हमको
न जाने कब से थे बेताब देखने के लिये
छुआ तो जाना हर इक ख़्वाब था धुआँ यारो
बचा न कुछ भी याँ नायाब देखने के लिये
क़रीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने
लुटे हैं ज़िंदगी शादाब देखने के…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on October 10, 2021 at 12:00pm — 8 Comments
संगदिल गर ज़िन्दगी है उससे टकराना भी क्या ।
फोड़कर सर अपना यारो रोना चिल्लाना भी क्या ।।
ज़िन्दगी गर है चुनौती मुँह छिपाकर जीना क्या ।
हाथ दो - दो होने दो फिर सच को झुठलाना भी क्या
कीमती आँसू हैं तेरे वो निशाँ जुल्म ओ सितम,
बंद दरवाजों के आगे सर वो फुड़वाना भी क्या ।
कर खुदा की बन्दगी और एहतराम उसका कर ले,
लोग ही क़मज़र्फ हैं गर उनको जतलाना भी क्या ।
नोंचनी लाशें हैं उनको कौम को है…
ContinueAdded by Chetan Prakash on October 10, 2021 at 7:25am — No Comments
मुक्तक
आधार छंद - रोला
10-10-21
छूट गए सब संग ,देह से साँसें छूटी ।
झूठी देकर आस, जगत ने खुशियाँ लूटी ।
रिश्तों के सब रंग ,बदलते हर पल जग में -
कैसे कह दें श्वास ,देह से कैसे टूटी ।
---------------------------------------------------
बहके-बहके नैन, करें अक्सर मनमानी ।
जीने के दिन चार, न बीते कहीं जवानी ।
अक्सर होती भूल, प्यार की रुत जब आती -
भर देती है शूल, जवानी मैं नादानी ।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 9, 2021 at 4:38pm — 5 Comments
22, 22, 22, 22,
1)कितनी बातें करते हो तुम
ख़ाली बातें करते हो तुम
2)तुमको कोई मरज़ है क्या बस
अपनी बातें करते हो तुम
3) सीधा बंदा हूँ क्यों मुझसे
उल्टी बातें करते हो तुम
4)छुप कर मिलने क्यों आऊँ मैं
ख़ाली बातें करते हो तुम
5)होने लगता है कुछ दिल में
जब भी बातें करते हो तुम
6) चाँद सितारों से क्या अब भी
मेरी बातें करते हो…
Added by Md. Anis arman on October 7, 2021 at 8:42pm — 6 Comments
मोहन दास जब यमराज के सामने पहुंचे,"मोहन जी, जब आपको गोलियाँ लग गयीं और आप लगभग मरणासन्न हो गये तो उस वक्त राम को पुकारने का क्या तात्पर्य था?”
"महोदय, आप मेरे "हे राम" उच्चारण का अर्थ शायद समझ नहीं सके।”
"क्या इसमें भी कोई गूढ़ रहस्य है? मेरे विचार से तो यह एक मरते हुए व्यक्ति द्वारा अपने इष्ट देव से अपनी रक्षा हेतु मात्र एक याचना…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 7, 2021 at 11:30am — 8 Comments
1222 1222 122
मिलेगा और मिल कर रो पड़ेगा
मुझे देखेगा तो घर रो पड़ेगा
न जाने क्यों कहाँ खोया रहा हूँ
मेरी आहट पे ही दर रो पड़ेगा
मुझे वो भूल जाने के लिये ही
करेगा याद अक़्सर रो पड़ेगा
हँसी मुस्कान होंठों पे सजाकर
कोई इंसान अंदर रो पड़ेगा
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 5, 2021 at 3:00pm — 10 Comments
बेमौसम पतझड़ आया हो जैसे
पेड़ से झड़ते पत्तों-सी थर्राती
परिक्लांत पक्षी की पुकार
बींधती कराह-सी
सारी हवा में घुल गई
शोक समाचार को सुनते ही
आज अचानक
हवा जहाँ कहीं भी थी
वहीं की वहीं रूक गई
कि जैसे वह दिवंगत आत्मा
मेरे मित्र
केवल तुम्हारी माँ ही नहीं, वह तो
सारी सृष्टि की माँ रही
पेड़, पत्ते, पक्षी, मुझको, तुमको
एक संग सभी को
आज अनाथ कर गई
पुनर्जन्म सच है यदि तो कैसे कह…
ContinueAdded by vijay nikore on October 3, 2021 at 3:00pm — 4 Comments
जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया
सुनते हैं वो पागल लड़का टूट गया.
.
थामा ही था हाथ तुम्हारा मैंने बस
और अचानक मेरा सपना टूट गया.
.
अब ये आँखें कोई ख्वाब नहीं बुनतीं
पिछली नींद में मेरा करघा टूट गया.
.
अपने लालच को तुम काबू में रक्खो
वो देखो इक और सितारा टूट गया.
.
एक ज़रा सी बात से बातें यूँ बिगडीं
फिर तो जैसे हर समझौता टूट गया.
.
आप अदू से दूर हुए ये नेमत है
बिल्ली की क़िस्मत से छींका टूट गया.
.
कह…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2021 at 9:30am — 16 Comments
छीन के उनका पूरा बचपन कैसे कैसे लोग यहाँ
काट रहे हैं अपना जीवन कैसे कैसे लोग यहाँ।२।
*
पाने को यूँ नित्य शिखर को साथी देखो दौड़े जो
कर बैठे औरों को साधन कैसे कैसे लोग यहाँ।२।
*
स्वार्थ सधे तो अपनों से भी झूठ छिपाने साथी यूँ
कीचड़ को कह देते चन्दन कैसे कैसे लोग यहाँ।३।
*
साध न पाये यार सियासत उस खुन्नस में देखो तो
बाँट रहे हैं मन का …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2021 at 6:30am — 12 Comments
अगर राष्ट्रपिता के नाम से महात्मा गांधी को याद किया जाता है वही उजास की लकीर बिखेरने। वाले नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में शास्त्री जी को याद किया जाता है। संपूर्ण भारतीयता का उदाहरण शास्त्री जी के विषय में राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था कि भारतीयता को जो तीन कसौटियाँ भाषा भूसा और भवन बांधी थी, शास्त्री जी उसका स्पष्ट प्रतिबिंब हैं। सादगी प्रिय शास्त्री जी करूणामयी अग्रगामी सोच वाले ऐसे दार्शनिक प्रधानमंत्री थे जिनके संस्कार व नैतिकता व्यक्तिवाद और परिवारवाद से परे थी। अपने पद व प्रतिष्ठा…
ContinueAdded by babitagupta on October 2, 2021 at 3:28pm — 3 Comments
2122 / 1212 / 22
1
दिल का रिश्ता यूँ भी निभाना था
फिर से रूठा ख़ुदा मनाना था
2
चार ईंटें टिका के निस्बत की
आदमीयत का घर बसाना था…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on October 2, 2021 at 12:23pm — 6 Comments
हर संगदिल को दिल का पता बता दिया
जितने बेवफा मिले सबको घर दिखला दिया
सभी ने छोड़ दिया जिस ग़म को खुशी के खातिर
हमे जहाँ भी दिखा,उसे हंसके गले लगा लिया
साथ हो दर्द तभी जीने का मज़ा आता है
ग़म जुदाई का हो तो पीने का मज़ा आता है
छुपा के रख सके जो दर्द को जहन मे अपने
ज़ख्मों को सीने का मज़ा बस उसी को आता है
खुशी है बुलबुला एक दिन फूट जाएगा
हंसाया इसने जितना, उतना ही रुलाएगा
हमसफर है सच्चा ग़म ही अपना यारों
जो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on October 1, 2021 at 11:30am — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |