पीतल और ऐलुमिनियम के बर्तनों में वर्चस्व की लड़ाई होने लगी, आखिर तय हुआ कि चाँदी महाराज से निर्णय करवाया जाये कि कौन श्रेष्ठ है । पीतल ने कहा कि उसके बर्तनों में देवों को भोग लगाया जाता है, कुलीनजनों के पास उसका स्थान है जबकि ऐलुमिनियम के बर्तनों में झुग्गी-झोपड़ी के लोग खाते हैं और तो और इसका कटोरा भिखमंगे लेकर घूमते रहते हैं ।
ऐलुमिनियम अपने पक्ष में कोई विशेष दलील नहीं दे सका…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 10, 2014 at 4:21pm — 31 Comments
रहस्य-भावानुभूति
पा लेने की प्यास
खो देने की तड़प
ज्वालामुखी अग्नि हैं दोनों
बिछोह के धुँए को आँखों में सहते
गहरापन ओढ़े
गुज़र जाते हैं एक के बाद एक
खुशिओं के त्योहार
खुशियों में शून्यताओं की पीड़ाएँ अपार
नहीं ठहरती है हाथों में
खुशी, मुठ्ठी में रेत-सी
पर मौसम कोई भी हो
अकुलाती रहती है पैरों के तलवों के नीचे
तपती रेत की अग्नि-सी…
ContinueAdded by vijay nikore on November 10, 2014 at 3:30pm — 12 Comments
दीनों का बस एक गुज़ारा ठाकुरजी
कष्टनिवारक नाम तुम्हारा ठाकुरजी
जग ने हमको दुत्कारा है हर युग में
रखना तुम तो ध्यान हमारा ठाकुरजी
साख भराऊं तुमरे सूरज चंदा से
देहातों में है अँधियारा ठाकुरजी
युगों युगों से खोज रहा हूं मैं ख़ुद को
दर दर भटकूं मारा मारा ठाकुरजी
सप्त सिंधु है बेबस तेरी अँजुरी में
मेरे होठों पर अंगारा ठाकुरजी
बीच भँवर में नैया डोले टेर सुनो
टूटा चप्पू दूर…
ContinueAdded by khursheed khairadi on November 10, 2014 at 2:30pm — 7 Comments
ऐ दिल
ख्वाबोँ की बस्ती से
निकल चल तो अच्छा हो
ये वो रँग हैँ
बिगाड देँगे जो
जिंदगी की तस्वीर
को तेरी
ले समझ
उस क्षितिज से आगे
है और भी दुनिया
सरकती जाती है सीमायेँ
और राहेँ साथ चलती हैँ
हर सजग राही की
बन चेरी
है गम
हार का अच्छा
न जश्न
किसी जीत का बेहतर
हवाओँ के रुख के साथ
बदलती रह्ती है
मरु मेँ रेत की
ये ढेरी
मौलिक…
ContinueAdded by Mohinder Kumar on November 10, 2014 at 12:30pm — 4 Comments
छंद- गीतिका
लक्षण – इसके प्रत्येक चरण में (14 ,12 )पर यति देकर 26 मात्रायें होती हैं I इसकी 3सरी, 10वीं, 17वीं और 24वीं मात्रा सदैव लघु होती है I चरणांत में लघु –दीर्घ होना आवश्यक है I
मिट चुकी अनुकूलता सब अब सहज प्रतिकूल हूँ I
मर चुका जिसका ह्रदय वह एक बासी फूल हूँ II
किन्तु तुम संजीवनी हो ! प्राणदा हो ! प्यार हो !
हो अलस संभार…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 10, 2014 at 12:00pm — 24 Comments
क़सम ले लो उन्हें फिर भी न मैं बुरा कहता
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१२१२ ११२२ १२१२ २२ /११२
वो मेरे दिल में न होते तो मैं ज़ुदा कहता
क़सम ले लो उन्हें फिर भी न मैं बुरा कहता
वो जिसकी ताब ने ज़र्रे को आसमान किया ( ओ बी ओ को समर्पित )
उसे न कहता तो फिर किसको मैं ख़ुदा कहता
रहम दिली पे मुझे खूब है यकीं उनकी
करूँ क्या ? वक़्त मिला ही न मुद्दआ कहता
तवील …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 10, 2014 at 8:57am — 24 Comments
दिल ये मेरा फ़क़ीर होना चाहे
घर फूँके बिन कबीर होना चाहे
तकसीम मज़हबों में करके हमको
तू बस्ती का वज़ीर होना चाहे
किस्मत में न सही तू ,पर तेरे ही
हाथों की वो लकीर होना चाहे
माँ की बराबरी करना छोडो तुम
गो ,खिचड़ी आज खीर होना चाहे
शोख नज़र दिलनशी अदा ये रूखसार
देख तुझे दिल शरीर होना चाहे
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on November 10, 2014 at 7:00am — 5 Comments
मन को दुर्बल क्यों करें'क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा'आशा का आह्लाद।।
रिश्ते भी अब हो गये'ज्यों दैनिक अखबार।
आज पढ़ लिया प्रेम से'कल फिर से बेकार।।
ह्रदय प्रेम से भर गया'देखा अनुपम प्यार।
कामदेव दुन्दुभि लिये'आये मेरे द्वार।।
खुद को भी आवाज़ दे,खुद को ज़रा पुकार!
एक रात तू भी कभी,खुद के साथ गुजार।!
आप कहो कुछ मै कहूँ'बातें हो दो चार।
तुम खुश मैं भी खुश रहूँ'बना रहेगा…
Added by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 1:58pm — 16 Comments
रविवार का दिन था। सज्जनदासजी के घर पड़ौसी प्रकाश चौधरी आ कर चाय का आनंद ले रहे थे।
बातों बातों में प्रकाशजी ने कहा- ‘क्या जमाना आ गया, देखिए न अपने पड़ौसी, वे परिमलजी, कोर्ट में रीडर थे, उनके बेटे आशुतोष की पत्नी को मरे अभी साल भर ही हुआ है, मैंने सुना है, उसने दूसरी शादी कर ली है। बेटा है, बहू है और एक साल की पोती भी। अट्ठावन साल की उम्र में क्या सूझी दुबारा शादी करने की। पत्नी नौकरी में थी, इसलिए पेंशन भी मिल रही थी। अब शादी करने से पेंशन बंद हो जाएगी। यह तो अपने पैरों पर…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on November 9, 2014 at 9:30am — 7 Comments
Added by Hari Prakash Dubey on November 8, 2014 at 8:00pm — 16 Comments
अविनाशी प्रभु अंश ही, कृष्ण रहे बतलाय
मोह रहे न कर्म सधे, कर्म सधे फल पाय
कर्म सधे फल पाय, राह चलकर पथ पाते
हर पल चाहे लाभ, निभे क्या रिश्ते नाते
लक्ष्मण कहते संत, रहे मानव मितभाषी
आत्मा छोड़े देह, जो है अमर अविनाशी |
गंगा मात्र नदी नहीं, समझे इसका सार
गंगा माँ को मानते जीवन का आधार |
जीवन का आधार, इसी से भाग्य जगा है
कूड़ा कचरा डाल, मनुज ने किया दगा है
कह लक्ष्मण कविराय, रहोगे तन से चंगा
धोते सारे पाप, रखे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 8, 2014 at 6:20pm — 17 Comments
करें कैसे भरोसा जिन्दगी का !
नहीं है आदमी जब आदमी का !!
नहीं फिर लूट पाता वो हमें भी !
वहाँ पर साथ होता गर किसी का !!
करे वो प्यार भी तो पागलो सा !
मगर ये खेल लगता दिल्लगी का
नहीं करता अगर हम को इशारे !
न होता सामना नाराजगी का !!
इबादत से डरे क्यों हम खुदा की !
मिले है रास्ता जब बंदगी का !!
अगर अपना समझ कर साथ में हो
भरोसा तो करो फिर दोस्ती का !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by Alok Mittal on November 8, 2014 at 2:30pm — 14 Comments
जानकीप्रसाद जी सेवानिवृत्ति के पश्चात कई वर्षों से अपनी पत्नि के साथ, बड़े प्यार से अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत कर रहे है. दीपावली के आते ही घर में रंगरोगन का काम शुरू होने वाला है. जानकीप्रसाद जी ने अपने पडौसी से कहकर, दीवारों पर रंग करने के लिए एक पुताई वाले को बुलवाया है. उस पुताई वाले नौजवान को देख अकेले रह रहे बुजुर्ग दंपति बहुत खुश है. क्युकी दो-तीन दिनों के लिए एक मेहमान आया है
“बेटा! तुम्हारा क्या नाम है..? “ जानकीप्रसाद जी ने बड़े ही स्नेह से पूछा
प्रश्न…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on November 8, 2014 at 10:23am — 24 Comments
212 212 212 212
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एक किस्सा उसी ने बनाया मुझे
फिर तो पूरे शह़र ने ही गाया मुझे
बात आँखों से आँखों ने छेडी ज़रा
रात को छत पे उसने बुलाया मुझे
चाँद शामिल रहा फिर मुलाकात में
प्यार का गीत उसने सुनाया मुझे
रात चढ़ती गयी बात बढ़ती गयी
उसने बाहों में भरके सुलाया मुझे
मिल गये दिल, बदन से बदन मिल गये
पंछियों की चहक ने ज़गाया मुझे
सुब्ह होने से पहले दिखा आयना
खुद हक़ीक़त…
Added by umesh katara on November 8, 2014 at 10:00am — 22 Comments
Added by maharshi tripathi on November 7, 2014 at 9:27pm — 8 Comments
क्या क्या मँशा उनसे बैठे पाले लोग
क्या करते हैँ सत्ता के ठैले वाले लोग
यहाँ दिन भर खटकर चुल्हा जलता
कुछ जनता की खाते बैठे ठाले लोग
सरकारेँ बनती पूँजीपतियोँ के पैसे से
ताकत वोट की समझेँ भोले-भाले लोग
कुछ सालोँ बाद हवा खुद बदलती है
बुझा पुरानी नई मशाल सँभालेँ लोग
कुर्सी पर बैठे लोगोँ के हैँ ऊँचे सपने
जनता को सपने बेचेँ कुर्सी वाले लोग
देश विदेश के दौरे हैँ उनकी…
ContinueAdded by Mohinder Kumar on November 7, 2014 at 3:30pm — 5 Comments
उसने खौला लिया था सूरज एक चम्मच चीनी के साथ
वह जीवन के कडुवे अंधेरों में कुछ मिठास घोलना चाहता था
उसके दिन के उजाले चाय के कप में डूबे हुए थे
और उसका सूरज
ताजगी देता हुआ जीवन की उष्मा से भरपूर
गर्म शिप बनकर उतर आता था लोगों की जिव्हा पर …
Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on November 7, 2014 at 11:00am — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 7, 2014 at 10:59am — 22 Comments
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on November 6, 2014 at 7:00pm — 9 Comments
नैन कटीले …
नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 6, 2014 at 6:18pm — 26 Comments
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