ये लो महारानी जी आज नदारद हो गयीं , इन लोगों के मिजाज का कोई ठिकाना ही नहीं है..सुबह सुबह "गौरम्मा" के ना आने से मन खिन्न हो गया , गौरम्मा हमारी काम वाली
हमेशा तो कह कर जाती थी , माँ ( दछिन भारत में येही संबोधन आदर में देते हैं ) हम कल नहीं आ पायेगा , मगर आज सुबह के ११ बज रहे हैं कोई खबर ही नहीं . दो तीन दिन से मैं उसे कुछ बुझी बुझी देख रही थी , मगर मेहमानों की…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:00am — 15 Comments
मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव
दूरियों की दूरी ...
कम नहीं होती।
बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो
किसी "एक" के पास आने से,
नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,
या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप…
ContinueAdded by vijay nikore on December 14, 2012 at 12:00am — 4 Comments
Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:30pm — 5 Comments
हसरते, अरमान
तिरस्कार, अपमान
इन्हें लक्ष्मण रेखा को न पार करने दो
या फिर इन्हें कैद करो ऐसे
यह सांस भी न ले पाए जैसे
और चाबी ऐसे दफनाओ
के खुद भी न ढुंढ पाओ
फिर उड़ो ,पंख फैलाओ…
Added by Anwesha Anjushree on December 13, 2012 at 10:00pm — 6 Comments
Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:00pm — 3 Comments
या फिर सागर मंथन होगा ???
बात सत्य लगती खारी जब
गरल उगलते नर नारी तब
छुप कर बैठे विष धारी सब
इस पर शिव से चिंतन होगा
या फिर सागर मंथन होगा ???
कितना किसको तुमने बांटा
सुख की माला दुःख का काँटा
नमक दाल और चावल आटा
पास किसी के अंकन होगा
या फिर सागर मंथन होगा ???..................
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 6:02pm — 4 Comments
शब्द दर शब्द बोलती हैं कुछ खामोश चीखें
मैंने माना कोई नहीं अपना
तोड़ डाला है आज हर सपना
रखे गैरत मिला है क्या मुझको
सोच में इसकी भला क्यूँ खपना
सुन लूँ बिसरी हुई सी ऊँघती बेहोश चीखें
शब्द दर शब्द बोलती हैं कुछ खामोश…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 3:45pm — 4 Comments
खुदगर्जी
मेरा जन्म, हर्सौल्लास, जलसा
मां बाबू जी मुराद पूरी, खुशियाँ, चर्मोत्कर्ष
लालन पालन, उत्कर्ष
हर ख़ुशी, मुहैया
हट पूरी ,हर हाल में
मां कई रातें जागी, में सोया
मां सोते से जागी, में रोया
बाबू जी नई स्फूर्ति, उत्साह से ओतप्रोत
में प्रेरणास्रोत
सने सने मेरी बढती काया, बुद्धि,सोच…
Added by Dr.Ajay Khare on December 13, 2012 at 1:00pm — No Comments
(पूर्णतया काल्पनिक, वास्तविकता से समानता केवल संयोग)
बहुत समय पहले की बात है। जंगल में शेर, लोमड़ी, गधे और कुत्ते ने मिलकर एक कंपनी खोली, जिसका नाम सर्वसम्मति से ‘राष्ट्रीय वन निगम’ रखा गया । गधा दिन भर बोझ ढोता। शाम को अपनी गलतियों के लिए शेर की डाँट और सूखी घास खाकर जमीन पर सो जाता। कुत्ता दरवाजे के बाहर दिन भर भौंक भौंक कर कंपनी की रखवाली करता और शाम को बाहर फेंकी हड्डियाँ खाकर कागजों के ढेर पर सो जाता। लोमड़ी दिन भर हिसाब किताब देखती। हिसाब में थोड़ा बहुत इधर उधर करके…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2012 at 12:13pm — 16 Comments
सड़क पर पड़े, उस दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को अपनी गाड़ी में लेकर रमेश अभी-अभी अस्पताल पहुंचा था ! उससे नहीं देखा गया कि हजारों की भीड़ में से एक आदमी भी उस तड़पते व्यक्ति के लिए आगे नही आ रहा है ! वो समझ नही पा रहा था कि लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं ? और बस इसीलिए वो उस व्यक्ति को अपनी कार में डालकर अस्पताल ले आया था ! अभी उस व्यक्ति का ऑपरेशन चल रहा था ! कुछ देर बाद....! ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले !
“क्या हुवा डॉक्टर? सब ठीक तो है न ?” रमेश ने पूछा…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on December 13, 2012 at 8:30am — 18 Comments
बचपन की देहरी लांघ कर
सच्चे हुए जज्बात जब
रस्ते जो थे अनजान तब
अब मंजिलों का नाम दें
अब हाथ उनका थाम लें .
जिनकी वजह जीवन मिला
इश्वर तुम्हारा शुक्रिया
अब कर्म की दुनिया में हम
अपना भी योगदान दें
अब हाथ उनका थाम लें
थोड़ी हंसी मासूम सी
मेरी वजह रंगीन सी
माँ से थी जिद्द थोड़ी सुलह
जीवन के मसले हल करें
अब हाथ…
Added by SUMAN MISHRA on December 13, 2012 at 1:30am — 9 Comments
शानू उठो, देखो पापा शहर से आ गए हैं,,मगर नीद थी की उसे उठने ही नहीं दे रही थी , आज उसे गाँव आये हुए १५ दिन हो गए थे, नंगे पाँव बागों में फिरना कच्चे, अधपके आमों की लालच में , धुल मिटटी से गंदी हुयी फ्रॉक की कोई परवाह नहीं , पूरी आजादी, और फ़िक्र हो भी क्यों उसने अपना इम्तिहान बहुत मन लगाकर दिया था, प्रथम आयी तो ठीक मगर उस सुरेश को नहीं आने देना है , येही मलाल लिए गर्मी की…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 7:00pm — 13 Comments
Added by अरुन 'अनन्त' on December 12, 2012 at 6:05pm — 8 Comments
दिन रात सरकारी सिस्टम और तथाकथित भ्रष्टाचारियों को कोसते कोसते एक दिन कोसू राम भगवान् के घर को विदा हुए जी हाँ जिन्दगी भर ईमानदारी से जिए कोसू राम जी जैसे ही ऊपर पहुंचे, भीड़ लगी हुई थी चौंककर पूछा ये क्या हो रहा है !! आवाज आई पंक्ति में खड़े हो जाओ फिर बताते हैं, कोसू राम जी पंक्ति में खड़े हो गए आगे वाले सज्जन ने बताया वो दरवाजे देख रहे हो उनसे हमें पंक्तिबद्ध अन्दर जाना है शुक्रिया अदा कर कोसूराम जी सोचने लगे, चलिए आज कुछ तो अच्छा हुआ यहाँ कुछ तो ईमानदारी है अपना नंबर आ ही जायेगा । थोड़ी देर…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 12, 2012 at 6:00pm — 1 Comment
दूरियों की दूरी
मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव
दूरियों की दूरी ...
कम नहीं होती।
बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो
किसी "एक" के पास आने से,
नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,
या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप
अश्रुओं से दामन भिगो लेने से
रिश्ते भीग नहीं जाते,
उनमें पड़ी चुन्नटें भी ऐसे
कभी कम नहीं होतीं।
रिश्तों में रस न रहा जब शेष हो
तो पतझड़ के पेड़ों की सूखी टहनियों की तरह
टूट-टूट जाते हैं वह
ज़मीन पर गिरे सूखे पत्तों की…
ContinueAdded by vijay nikore on December 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
समरसता की पले भावना सबका हो यह नारा
यह मानव धर्म हमारा शुभ मानव धर्म हमारा..
जन-जन में फैले विश्व शांति आपस में भाईचारे
मंदिर बांटा मस्जिद बांटी अब बांटों ना गुरूद्वारे.
राम नाम भव तारेगा सदगुरू का एक इशारा..
यह मानव धर्म हमारा................
सुख दुःख आपस में बांटों बन व्योम,चन्द्र औ तारे
लहर दौड़ समता की जाये बचें कहर से सारे .
अमन शांति और विश्व एकता यह शुभ कर्म हमारा ..
यह मानव धर्म…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on December 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
कवि का आक्रोश
में भी आप सभी सा हूँ
बस थोडा सा बीसा हूँ
बाहर से में फौलादी हूँ
अंदर से में शीशा हूँ
ह्रदय से में कवि सा हूँ
जन्म हुआ तभी से हूँ
बहर से जुगनू लगता हूँ
अंदर से रवि सा हूँ
मेरी कविताओं में वो दम है
जो लोहे को पिघला देंगी
मेरी जोशीली रचनाएँ
मुर्दे को जिला देगीं
कविता पाठ से में
धरती को हिला दूंगा
अपने मार्मिक छंदों से,
कुम्भकर्ण को जगा दूंगा
रोक…
Added by Dr.Ajay Khare on December 12, 2012 at 4:00pm — 3 Comments
आज सुबह से सौरभ उदास था, आज कहाँ जाएगा नौकरी के लिए, घर में किसी को पता नहीं था की उसके नौकरी छूट गयी है, माँ, पिता की दवा लानी है आज और जेब पूरी खाली, अगर सौरभ अपने नौकरी छूटने की बात बता दे,,तो शायद घर में बीमारी और बढ़ जायेगी,,,आखिर नयी चिंता का जन्म हो जाएगा...येही सोचते सोचते जाने कबतक सड़क के किनारे वो भ्रमित सा खडा रहा,,उसे कुछ समझ में नहीं…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 3:00pm — 13 Comments
हे देह लता बन शरद घटा
पर देख जरा यह ध्यान रहे
पथ है अपार भीषण तुषार
हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे
मन भेद भरे नित चरण गहे
तन मूल धूल यह भान रहे
यौवन सम्हार छलना विचार
निर्लिप्त दीप्त बस प्राण रहे
यह नृत्य गान भींगा विहान
छाया प्रमाण खम ठोंक कहे
'गढ़ नेह-मोह रच दूं विछोह
जो लेश मात्र अंजान रहे'
तज दर्प दंभ हैं ये भुजंग
आभा अनूप नित तूम रहे
दस द्वार ज्वार करता…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on December 12, 2012 at 2:54pm — 5 Comments
और कितनी है जुदाई पता तो चले
वो मेरी है या पराई, पता तो चले
यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म
अदा ये किसने सिखाई पता तो चले
कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले
ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले
चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले
खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये
मौत किसपे है आई पता तो चले
गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई
कुछ उन्हें भी…
Added by Pushyamitra Upadhyay on December 12, 2012 at 2:21pm — 10 Comments
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