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सरकार नित ही वोट से मेरी बनी मगर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

***

ये सच नहीं कि रूप  से वो भा गयी मुझे

बारात उस के वादों की बहका गयी मुझे।१।

*

सरकार नित ही वोट  से  मेरी बनी मगर

कीमत का भार डाल के दफना गई मुझे।२।

*

दंगो की आग दूर थी कहने को मीलों पर

रिश्तों की ढाल भेद  के  झुलसा गई मुझे।३।

*

अच्छे बहुत थे नित्य के यौवन में रत जगे

पर नींद ढलते काल में अब भा गयी मुझे।४।

*

नद झील ताल सिन्धु पे है तंज प्यास यूँ

दो एक…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2023 at 7:58am — No Comments

कुछ विचार

कुछ विचार

उषा अवस्थी

राष्ट्र, समाज, स्वयं का

यदि चाहें कल्याण

चोरी, झूठ, फरेब से

है पाना परित्राण

अशुभ निवारक गुरु चरण

वन्दन कर, छल त्याग

जिनके दर्शन मात्र से 

पाप, शोक हों नाश

यह दुनिया हर निमिष पल

गिरे काल के गाल

क्यों पाना इसको भला?

जहाँ बचे न भाल

इस अनन्त ब्रम्हाण्ड में

पृथ्वी का क्या मोल?

पल-पल, घिस-घिस छीजती

तोल सके तो…

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Added by Usha Awasthi on October 8, 2023 at 6:52pm — 3 Comments

ईमानदारी. . . . . (लघु कथा )

ईमानदारी ....

"अरे भोलू ! क्या हुआ तेरे पापा 4-5 दिन से दूध देने नहीं आ रहे ।"सविता ने भोलू के बेटे को  दूध का भगोना देते हुए पूछा ।

"वो बीवी जी, पापा की साइकिल  कुछ खराब हो गई इसलिए मैं दूध देने आ गया ।" भोलू के बेटे ने भगोने में दूध डालते हुए कहा ।

"अच्छा ,  अच्छा यह बता जब से तुम दूध दे रहे हो दूध  इतना पतला क्यों है ? पापा तो  दूध गाढ़ा लाते थे ।"

सविता ने कहा ।

"बीवी जी, यह साइकिल नहीं फटफटिया है ।  अगर दूध गाढ़ा बेचेंगे तो फटफटिया कैसे चलायेंगे…

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Added by Sushil Sarna on October 8, 2023 at 1:30pm — 2 Comments

सुनो, एक बात कहानी है

सुनो,

एक बात कहानी है

गर गलत न समझो तो

तो कह कर हल्का हो लूँ

हाँ अगर तुम्हें भली ना लगे

तो कुछ ना कहना और चली जाना तुम

पर एक इल्तजा है सुन लो “ना” ना कहना…

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Added by AMAN SINHA on October 8, 2023 at 7:31am — No Comments

जिंदगी के कीड़े

ज़िन्दगी के कीड़े

सुरेन्द्र वर्मा

दो स्थितियां होती हैं – एक मिथ, अंधविश्वास, रूढियों, कर्मकाण्डों की, तो दूसरी बुद्धि, विवेक, तर्क, सोच-विचार और ज्ञान की। एक पक्ष कहता है कि कहीं न कहीं आस्था तो टिकनी ही है, जब सब जगह से निराश हो जाएं, तो जहां कहीं से आशा की किरण जीवन में प्रवेश करती है, वहीं शरण ले लेते हैं और फिर वहां विज्ञान और तर्क बौने पड़…

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Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on October 7, 2023 at 10:14pm — No Comments

भिखारी छंद

भिखारी छंद -

24 मात्रिक - 12 पर यति - पदांत-गा ला

मन से मन की बातें, मन  करता  मतवाला ।

मन में हरदम जलती , इच्छाओं की ज्वाला ।

भोगी  मन  तो  चाहे , बाला  की  मधुशाला ।

पी  कर मन  ये  नाचे , नैन   नशीली   हाला ।

                  ××××××

उल्फ़त  की सौगातें,  आँखों  की  बरसातें ।

तन्हा  -  तन्हा  बीती , भीगी - भीगी   रातें ।

जाकर फिर कब आते , बीते दिन मतवाले ।

दिल को बहुत सताते , खाली-खाली प्याले ।

सुशील सरना /5-10-23…

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Added by Sushil Sarna on October 5, 2023 at 2:38pm — No Comments

मनका छंद

मनका / वर्णिका छंद - तीन चरण, पाँच-पाँच वर्ण प्रत्येक चरण,दो चरण या तीनों चरण समतुकांत

मस्त जवानी
   फिर न आनी
       हसीं कहानी !
*
आई बहार
   अलि गुँजार
        पुष्प शृंगार !
*
झड़ते पात
   अन्तिम रात
        एक यथार्थ !
*
मुक्त विहार
   काम विकार
         देह व्यापार!
*
घोर  अँधेरा
    छुपा सवेरा
         स्वप्न का डेरा !

सुशील सरना 3-10-23
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 3, 2023 at 1:24pm — 2 Comments

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२ २२२२ २२२२ २

**

पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद

हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा चाँद।१।

*

आस नयी जब लिए अटारी झाँका होगा चाँद

मन कहता है झुँझलाहट से बिफरा होगा चाँद।२।

*

हम होते तो कोशिश करते बात हमारी और

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद।३।

*

चाँद बिना हम यहाँ  नगर  में जैसे काली रात

अबके पूनौ हम बिन भी तो आधा होगा चाँद।४।

*

बातें करती होगी बैठी याद हमारी पास

कैसे कह दें तन्हाई  में तन्हा होगा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 1, 2023 at 12:33pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .राजनीति

दोहा पंचक. . . राजनीति

राजनीति के जाल में, जनता है  बेहाल ।

मतदाता पर लोभ का, नेता डालें जाल ।।

राजनीति में आजकल, धन का है व्यापार ।

भ्रष्टाचारी की  यहाँ , होती  जय  जयकार ।।

राजनीति में अब नहीं ,  सत्य निष्ठ प्रतिमान ।

श्वेत तिजोरी मांगती , जनता से बलिदान ।।

भ्रष्टाचारी   पंक   में, नेता   करते    ठाठ।

कीच   नीर   में   यूँ   रहें, जैसे तैरे काठ ।।

राजनीति के तीर पर, बगुले करते ध्यान ।

मीन…

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Added by Sushil Sarna on September 26, 2023 at 2:00pm — 6 Comments

डर के आगे (लघुकथा)

. पिंकी के बारे में उसको यह पता चला था कि वह बहुत बीमार रही और काफ़ी समय तक अस्पताल में रही। उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था परंतु जब पिंकी को स्कूल में देखा तो वह चहक उठी। वह पिंकी से लिपट गयी और कुछ पूछने को थी कि पिंकी ने जमकर उसका हाथ पकड़ लिया। पूरे दिन दोनों में से कोई न बोला। स्कूल खत्म होने पर दोनों एक साथ हाथ पकड़ कर बाहर निकले तब पिंकी के पापा-मम्मी को उनकी कार में खड़े पाया। चुप्पी तोड़ते हुए पिंकी ने धीरे से कहा, "घर चलोगी?" तान्या ने पिंकी की मम्मी से उनका मोबाइल माँगा और कॉल लगाया। इस…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 26, 2023 at 1:49pm — 2 Comments

बेटी दिवस पर दोहा ग़ज़ल. . . .

बेटी दिवस पर दोहा ग़ज़ल ....

बेटी घर की आन है, बेटी घर की  शान ।

दो दो कुल संवारती, बेटी  की  मुस्कान ।।

बेटी को  मत  जानिए, बेटे  से  कमजोर ,

जग में बेटी आज है, उन्नति की पहचान ।

बेटे को जग वंश का, समझे दावेदार,

बेटे से कम  आंकता, बेटी के अरमान ।।

धरती अरु आकाश पर , लिख दी अपनी जीत,

बेटी ने अब छू लिया , धरा से आसमान ।।

बेटी अबला अब हुई, अतुल शक्ति पर्याय ,

उसके साहस को करे, नमन सारा जहान…

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Added by Sushil Sarna on September 25, 2023 at 11:56am — 4 Comments

क्षणिकायें 01/23 - डॉ० विजय शंकर

वक़्त अच्छा है
तो सब अच्छा है ,
वर्ना बुरे वक़्त से
बुरा, कुछ नहीं। ....... (1)

जोड़ना और जुड़ जाना भी
एक बहुत बड़ा  हुनर है।
अक्सर लोग , टूट कर ,
खुद ही बिखर जाते हैं ,
दूसरों को तोड़ने में । ... (2)

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 24, 2023 at 5:30pm — 6 Comments

एक और ग़जल ः

2121 2122 2122 212



ढूढ़ ले हबीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके

साथ हो नसीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके



छोड़ देता रोना-धोना मस्त जीता ज़िन्दगी

दोस्त हो करीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके



मरता जीता मुश्किलों तू आदमी है बदगुमाँ

साध ले सलीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके



ज़ीस्त बोझ बन गई हर शख़्स वो है झींकता

जाम हो अजीब कोई जिन्दगी तो हो सके



खो चुका ख़ुलूस आदम हो गया बे होश है

दोस्त हो ग़रीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके



उम्र सारी वो गँवा दी… Continue

Added by Chetan Prakash on September 24, 2023 at 9:46am — 1 Comment

कलियुग

कलियुग

उषा अवस्थी

ब्रह्मज्ञानी उपहास का पात्र है

अर्थार्थी सिर का ताज है 

किसको ,कब पटखनी दें? आँखें गड़ाए हैं

मिलते ही मौका, धूल में मिलाए हैं 

कलियुग है,चाहते अपनी वज़ाहत है

दूसरों को मारकर जीने की चाहत है

श्रमिकों की मेहनत का हक़, हक़ से लेते हैं 

जन्म-जन्मांतर पापों को ढोते हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Usha Awasthi on September 23, 2023 at 5:37am — 2 Comments

मधुमालती छंद. . . .

मधुमालती छंद ....

1

डर कर कभी, रोना नहीं ।

विश्वास को, खोना  नहीं ।

तूफान   में, सोना  नहीं ।

नफरत कभी , बोना नहीं ।

***

2

क्षण- क्षण बड़ा, बलवान है ।

संग्राम    की,  पहचान    है ।

हर   पल  यहाँ,   संघर्ष   है ।

पल भर  यहाँ , बस  हर्ष  है ।

***

3

सपने कभी ,मरते नहीं

दीपक सभी  , जलते नहीं ।

थोड़ी  यहाँ,  मुस्कान है ।

ढेरों यहाँ , व्यवधान  है ।

***

4

हर वक्त ही,बस काम है।

जीवन इसी का नाम है ।

थोड़ी यहाँ, पर…

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Added by Sushil Sarna on September 21, 2023 at 8:12pm — No Comments

मन नहीं है

मन नहीं है

उषा अवस्थी

अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है

 

क्या कहें ? साहित्य के नाम पर

चलाए जा रहे व्यापार में

ख़रीद-फ़रोख़्त के बाज़ार में

 

बिकने का मन, नहीं है

अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है

इस दुनिया की इक छोटी सी बस्ती में

रहती हूँ, कोई बड़ी हस्ती नहीं हूँ मैं

शकुनी की शतरंजी झूठी इन चालों से

मोहरों के बेवजह…

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Added by Usha Awasthi on September 21, 2023 at 6:30am — 4 Comments

ग़ज़ल: अगर कोशिश करेंगे आबोदाना मिल ही जाएगा।

1222 1222 1222 1222

 

अगर कोशिश करेंगे आबोदाना मिल ही जाएगा।

किराए का सही कोई ठिकाना मिल ही जाएगा।

.

अगर तर्के तअल्लुक का अहद कर ही चुके हो तुम,

ज़ह्न पर ज़ोर दो, कोई बहाना मिल ही जाएगा।

.

हमें अच्छी बुरी कोई न कोई मिल ही जाएगी,

तुम्हें डिप्टी कलक्टर का घराना मिल ही जाएगा।

.

ज़रूरत क्या है दरिया के भँवर को आज़माने की, 

किनारा थाम कर चलिए, दहाना मिल ही जाएगा।

.

खुशी अपनी किसी लॉकर में रख कर भूल गए…

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Added by Balram Dhakar on September 19, 2023 at 4:56pm — 2 Comments

एक ताज़ा गज़ल

1222    1222    1222    1222

सुहाना सुब्ह मौसम है तुम्हें अब ग़म नहीं होता

खिली है धूप गुलशन में सवेरा कम नहीं होता

वो काली रात है तारी अँधेरा कम नहीं होता

ये कैसा वक़्त आया है सनम हमदम नहीं होता

परायापन बना हासिल कि रिश्तों दम नहीं होता

न प्यारा कोई है दुनिया कभी दुख कम नहीं होता

तुम्हारी आँख का पानी अभी क्यों सूखता जानाँ

हमे तो शर्म आती हैं पशेमाँ दम नहीं होता

तुम्हारे शह्र के हालात वो…

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Added by Chetan Prakash on September 15, 2023 at 8:22am — 2 Comments

प्रकृति

प्रकृति

उषा अवस्थी

पैसे देकर छ्प गए

ढोया झूठा भार

भावों के सौदागरों का 

चलता व्यापार

अक्षर-अक्षर, शब्द हैं

"वाणी" का उपहार

सर्व- समर्थ अनन्त से

जिसके जुड़ते तार

ठुकराती दुर्गा उन्हे

जिनमें अहं विकार

सन्मार्गी को चल स्वयं

दिखलाती प्रभु- द्वार

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Usha Awasthi on September 15, 2023 at 1:50am — No Comments

सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर

सत्य अटल है , स्थिर है ,
झूठ न अटल है ,न स्थिर है।
समय के अनुसार परिवर्तन शील है ,
परिस्थिति वश बदल जाता है ,
हर हाल से समझौता कर लेता है ,
मुखर है , निडर है ,सर चढ़ कर बोल लेता है ,
बहुरंगी है , बहुधन्धी है ,
इसलिए हर जगह चलता है ,
सत्य स्थिर है , अटल है ,
सत्य खोजना पड़ता है ,
झूट स्वयं उपस्थित हो जाता है.

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 14, 2023 at 10:00pm — 4 Comments

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