For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

काश कहीं से मिल जाती इक जादू की हाथ घड़ी (ग़ज़ल)

काश कहीं से मिल जाती इक जादू की हाथ घड़ी

मैं दस साल घटा लेता तू होती दस साल बड़ी

माथे से होंठों तक का सफर न मैं तय कर पाया

रस्ता ऊबड़-खाबड़ था ऊपर से थी नाक बड़ी

प्यार मुहब्बत की बातें सारी भूल चुका था मैं

किस मनहूस घड़ी में…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2020 at 11:29pm — 1 Comment

ग़ज़ल- रोज़ सितम वो ढाते देखो हम बेबस बेचारों पर

रोज़ सितम वो ढाते देखो हम बेबस बेचारों पर

कोई अंकुश नहीं लगाता इन सरमाया दारों पर।

मजदूरों का जीवन देखो कितना मुश्किल होता है

बिस्तर पास नहीं जब होता सो जाते अख़बारों पर।

भूक ग़रीबी ज्यों की त्यों क्यों तख़्त नशीं कुछ तो बोलो

दोष मढ़ोगे कब तक आख़िर पिछली ही सरकारों पर।

वक़्त नहीं है पास किसी के सबको अपनी आज पड़ी

दौर पुराना ख़्वाब लगे जब भीड़ जुटे चौबारों पर।

बच्चे झुककर बात करेंगे घर के सारे लोगों से

आईने जब लग जाएँगे घर…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on July 12, 2020 at 12:59pm — 10 Comments

दो लघु-कवितायें — डॉo विजय शंकर

सच्चे मन से ईश्वर

मंदिर से अधिक

अस्पतालों में

याद किया जाता है l 

जो…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments

रोटी.....( अतुकांत कविता)

रोटी का जुगाड़

कोरोना काल में

आषाढ़ मास में

कदचित बहुत कठिन रहा

आसान जेठ में भी नहीं था.

पर, प्रयास में नए- नए मुल्ला

अजान उत्साह से पढ रहे थे...

दारु मृत संजीवनी सुरा बन गयी थी

सरकार के लिए भी,

कोरोना पैशैन्ट्स के लिए भी

और, पीने वालों का जोश तो देखने लायक था,

सबकी चाँदी थी...!

आषाढ़ तो बर्बादी रही..

इधर मानसून की बारिश

उधर मज़दूरो की भुखमरी

और, बेरोज़गारी.....

सच, मानो कलेजा मुुँह

को आ गय़ा...!…

Continue

Added by Chetan Prakash on July 11, 2020 at 1:00pm — No Comments

ग़ज़ल -पुराने गाँव की अब भी कहानी याद है हमको

था सब आँखों में मर्यादा का पानी याद है हमको

पुराने गाँव की अब भी कहानी याद है हमको।

भले खपरैल छप्पर बाँस का घर था हमारा पर

वहीं पर थी सुखों की राजधानी याद है हमको

वो भूके रहके ख़ुद महमान को खाना खिलाते थे

ग़रीबों के घरों की मेज़बानी याद है हमको

हमारे गाँव की बैठक में क़िस्सा गो सुनाता था

वही हामिद के चिमटे की कहानी याद है हमको

सलोना और मनभावन शरारत से भरा बचपन

अभी तक मस्त अल्हड़ ज़िंदगानी याद है…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल ( उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो....)

(221 2121 1221 212)

उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो

ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो

आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा

आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो

वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने

हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो

जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा

मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो

अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ

किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो

बाज़ार में तो…

Continue

Added by सालिक गणवीर on July 11, 2020 at 7:30am — 8 Comments

रोटी

जीवित रहने के लिए जीव,

रहता है जिस पर निर्भर।

आटे से बनती है जो और

गोल गोल जिसकी सूरत।।

सही पहचाने नाम है उसका,

कहते हैं सब रोटी।

मम्मी के हाथों की रोटी,

बड़े स्वाद की होती।।

भूखे को मिल जाए जो रोटी,

तो त्रप्ति उसको होती।

आत्मनिर्भर बनने के लिए,

कमानी पड़ती है रोजी रोटी।।

भूल ना जाना तुम ये बात,

जब भी पकाओ तुम रोटी।

सबसे पहले गाय की रोटी,

और अंत में कुत्ते की रोटी।।

मानव की मूल…

Continue

Added by Neeta Tayal on July 11, 2020 at 6:36am — 2 Comments

तेरे ख्वाहिशों के शह्र में- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२



लिखना न मेरा नाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में

आयेगा कुछ न काम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।१।

**

सबको पता है धूल से बढ़कर न मैं रहा कभी

ऊँचा भले ही दाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।२।

**

सूरज न उगता भोर का तारों भरी न रात हूँ

ढलती हुई सी शाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।३।

**

रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ

करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४।

**

चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई

चलना मुझे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2020 at 6:45am — 13 Comments

गीत- नेह बदरिया नीर नदी बन

नेह बदरिया नीर नदी बन

आंखों आंखों स्वप्न सधे हैं

काजल की काली रेखाएं

सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।

नख बन भाव कुरेदें बातें

यादें मोहक धूमिल छवि की

टूट रहे पतवार हृदय के

तूफानी लय है सांसों की

पर्वत से तटबंध दिलों पर

सकुचाते उदगार बंधें हैं।

काजल की काली रेखाएं

सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।

मुनरी कंगन छागल बिछुए

सबकी सबसे रार हुई है

गजरे की अनबन बालों से

अबकी पहली बार हुई है

आतुर है श्रृंगार…

Continue

Added by Neelam Dixit on July 9, 2020 at 11:26pm — 2 Comments

छत पे आने की कहो- ग़ज़ल

मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

इस जिग़र में प्यास बाकी है बुझाने की कहो, 

झूमती काली घटा से छत पे आने की कहो. 

है मधुर आवाज़ उसकी और चेहरा खूबसूरत,

गीत सावन के सुहाने आज गाने की कहो. 

देखना गर चाहते हो इस जहाँ को ख़ुशनुमा, …

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on July 9, 2020 at 8:44pm — 8 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122

अपनी  रानाई  पे  तू  मग़रूर  है  क्या ।

बेवफ़ाई  के  लिए  मज़बूर  है  क्या ।।

कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी ।।

तू  बता  उल्फ़त  की  दिल्ली  दूर  है क्या ।।

दूर तक चर्चा है क़ातिल के हुनर की ।

वो ज़रा  सी उम्र में मशहूर  है  क्या ।।

तोड़ देना दिल किसी का बेसबब ही ।

शह्र   का   तेरे  नया  दस्तूर  है  क्या ।।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 9, 2020 at 3:00pm — 3 Comments

उरिझै कवनेउ मंद

सत्य सुनावै मनई कोउ

भरि साँसैं जमुहाईं

झूठि जहाँ पर चलि रहा

हुइ चैतन मुसुकाहिं

बहुतै मजा मिलै जहाँ

चुगली खावैं लोग

नमक, खटाई, मिरचि जब

चटकि , तबहिं मन मोद

का कलजुग ना दिखावै

सत्पथ धरहि जो पाँव

तपति मरूथल रेत जसि

दीखै कहूँ न छाँव

मौनी अब तौ साधिहौं

वाहै मा आनन्द

ई सांसारिक जालि मा

उरझै कवनेउ मंद

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on July 8, 2020 at 6:28pm — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी

रात दिन तुमको पुकारा,

किन्तु तुम अब तक न आए !

चित्र मेरी कल्पना के,

मूर्तियों में ढल न पाए !

 

चिर प्रतीक्षित आस के संग, प्यार अपना बाँट लूँगी ।

उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी !!

 

प्रेम तुमसे ही तुम्हारा,

किस तरह आखिर छिपाऊँ ?

और कह भी दूँ, कहो यह,

रीत फिर कैसे निभाऊं ?

 

गूँजते हो धड़कनों की,

थाप पर अनुनाद बन कर !

मौन मन की सिहरनों में,

घुल चुके आह्लाद बन कर…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on July 8, 2020 at 4:30pm — 6 Comments

किसे आवाज़ दूँ (ग़ज़ल - शाहिद फ़िरोज़पुरी)

बह्रे रमल मुसम्मन महज़ूफ़

2122  / 2122  /  2122  /  212

जिस तरफ़ देखूँ है तन्हाई किसे आवाज़ दूँ

हर मसर्रत दिल की गहनाई किसे आवाज़ दूँ

ना-उमीदी दिल पे है छाई किसे आवाज़ दूँ

दौर-ए-ग़म से रूह घबराई किसे आवाज़ दूँ

बंद है हर दर यहाँ तो हर गली वीरान है

ज़िन्दगी मुझको कहाँ लाई किसे आवाज़ दूँ

कोई भी ऐसा नहीं जो दर्द-ओ-ग़म समझे मेरा

हर तरफ़…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on July 8, 2020 at 2:01pm — 7 Comments

कोरोना और सावन

सखी री, जे कोरोना लै गयौ,

सावन की बहार।

ना उमंग के बादल घुमड़ें,

ना उत्साह की फुहार।।

अब के सावन ऐसे लागै,

बिन शक्कर की चाय।

ना बागों में झूले पड़ रहे,

ना सेल कौ परचम लहराऐ।।

तीज त्यौहार अबके सावन के,

सब फीके फीके लागैं।

सखी री, अब तोसे मिलने कूं,

जियौ मेरौ तरसो जावै।।

भाई बहन राखी त्यौहार अब,

पहले जैसौ कैसे मनावें?

हरियाली तीज पर सखियां अब,

गीत मल्हार भी कैसे गावें?

अपने कान्हा के दर्शन कूं,

मेरौ…

Continue

Added by Neeta Tayal on July 8, 2020 at 10:00am — 3 Comments

मुहब्बत कीजिए यारो सदा दिलदार की सूरत (११६ )

ग़ज़ल (1222 1222 1222 1222 )

.

मुहब्बत कीजिए यारो सदा दिलदार की सूरत

भरोसा कीजिए मज़बूत इक दीवार की सूरत

**

रहें कुछ राज़ अपनी ज़िंदगी के राज़ ही बेहतर

नहीं अच्छा कि हो ये ज़िंदगी अख़बार की सूरत

**

ख़ुशी के चंद पल ही ज़िंदगी में दोस्त मिलते हैं

मगर आते हैं ग़म अक्सर सबा-रफ़्तार की सूरत

**

भले पैदा हुए हैं आप मुफ़लिस कीजिए कोशिश

न समझें आप ख़ुद को…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 7, 2020 at 6:30pm — 5 Comments

कामोदसामन्त : विनय प्रकाश

शायद अब इच्छाओं का अंत हो रहा है

यह सीमित शरीर अब अनंत हो रहा है

रे मन अचानक तुझे ये क्या हो गया है

खिलखिलाता था तू अब कुमंत हो रहा है

खुशियां बहुत सी बटोरी थी हमने भी

हर यादगार लम्हा अब अश्मंत हो रहा है

करीबी रिश्तों का मेरे मन के साथ सजाया

हर विचार शायद अब उमंत हो रहा है

करंड की भांति हर शरीर धरा पर मेरा भी

शहद या धार चली गई अब अस्वंत हो रहा है

मेरा चंचल मन जो नरेश था मेरे निर्णयों…

Continue

Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on July 7, 2020 at 10:00am — 1 Comment

ग़ज़ल-सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं -रामबली गुप्ता

1222 1222 122

सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं

सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं

बताओ नाम तो उन पर्वतों के

हमारे हौसलों से जो बड़े हैं

नहीं हैं नैन ये गर सच कहूँ तो

सुघर चंदा में दो हीरे जड़े हैं

जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें

नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं

ये सच है कर्मशीलों के लिए तो

सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं

ये दिल के घाव अब तक हैं हरे क्यों

यकीनन शूल शब्दों के गड़े…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on July 6, 2020 at 11:37pm — 12 Comments

वर्षा के दोहे -१

नगर खिन्न हो देखता, खुश होता देहात

हरियाली  उपहार  में,  देती  है ब रसात।१।

**

हलधर सोया खेत में, तन पर ओढ़े धूल

रूठी बदली देखिए, जा बैठी किस कूल।२।

**

धरती के  दुख  से  हुई, अँधियारी  हर भोर

बादल बिजली चीखते, मत आना इस ओर।३।

**

जब से आयी गाँव में, फिर रिमझिम बरसात

सौंधी मिट्टी  की  महक, उठती  है  दिन-रात।४।

**

वसन धरा के जो सुना, तपन ले गयी चोर

बौराए घन  नापते, पलपल  नभ का छोर।५।

**

मेंढक जी तो हैं सदा, बरखा के…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 10:51pm — 4 Comments

आज पर कुछ दोहे :

आज पर कुछ दोहे :

झूठ सरासर भूख से, तन बनता बाज़ार।

उजले बंगलों में चलें, कोठे कई हजार।।

नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार।

नज़र नज़र में बिक गया, एक तन कई बार।।

नज़रों में है प्यार का, झूठ भरा संसार।

प्यार ओट में वासना, का होता व्यापार।।

कलियों का तन नोचतीं, वहशी नज़रें आज।

रक्षक भक्षक बन गए, लज्जित हुआ समाज।।



हुई पुरातन सभ्यता, नव युग हुआ महान।

बेशर्मी पर आज का, गर्व करे इंसान।।

सुशील…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 6, 2020 at 9:46pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service