गंगा तो पवित्र है
इन्सानों के दुष्कर्म
अनवरत बहाना इसका चरित्र है
मैली पड़ जाती है
फिर भी बहती जाती है
आखिर माँ है
चुप चाप सहती जाती है
मगर दूषित करने वाले
माँ पुकार कर भी
ज़हर पिलाते जाते हैं
दुखों का अम्बार जुटाते जाते हैं
कहाँ किसी को ये प्यार दे पाते हैं
स्वार्थ ही तो कर्म है इनका
बस यही धर्म निभाते जाते हैं
इक दिन ये राख़ बन जाएंगे
माँ से मिलने फिर वापस आएंगे
किस मुहं से मुक्ति मांग पाएंगे
मगर गंगा तो आखिर गंगा माँ…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 7:56am — 21 Comments
कभी ऐसे भी दिन थे
होती है सोच हैरानी
बचपन हरा कर
जब जीती थी मासूम जवानी !
याद है जब मैंने
चूमी थी तेरी पेशानी
आज भी भुला नहीं पाता
है मुझ को हैरानी !
वो आंखें मिलाना
तेरा हाथ छूने के
नादान बहाने जुटाना
तेरी नज़र बचा कर
तुझे तकते जाना !
हवा के झोंके से
जब तेरा पल्लू मुझे छू जाना
उफ़ ...तुझ पे इसकदर मर जाना
क्यूँ होता है
दिल ऐसा दीवाना
हैरां हूँ वो भी क्या था ज़माना !
ये बात है इतनी पुरानी
आज…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 30, 2015 at 7:00am — No Comments
मैं हूँ एक आवारा बादल
और मुझे एहसासों से
तरबतर करता पानी हो तुम
अपने आगोश में ले तुम्हें
मस्त हवाओं से हठखेलियाँ करता
दूर तक निकल जाता हूँ
अपार उर्जा से दमकता
गर्जन करता
इस मिलन का उद्घोष करता हूँ
मगर फिर ना जाने क्यूँ
तुम बिछुड़ जाती हो मुझसे
बरस जाती हो अपने बादल को छोड़
और देखो ...मैं बिखर जाता हूँ
मेरा अस्तित्व ही मिट जाता है
जानता हूँ
इस बंज़र ज़मीन को भी
तुम्हारी प्यास रहती है
अगर तुम न बरसो
तो नया सृजन कैसे…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 4:06pm — 6 Comments
2 2 2 1 / 2 2 2 2 / 2 1 222
दिल में शायरी का जब भी दोर उट्ठेगा
सबसे पहले तेरे नाम का शोर उट्ठेगा !!
पहली बारिश की रिमझिम शुरू क्या हुई
देख आज बगिया में नाच मोर उट्ठेगा !!
तेज हवाएँ तेरे इश्क़ में कुछ चलीं ऐसी
दिल में एहसासों का बबंडर जोर उट्ठेगा !!
जब आयेगा धुवाँ पड़ोस के घर के चुल्हे से
तभी मेरे हाथ से ये खाने का कोर उट्ठेगा !!
बचा कर रखना ये दिल मेरी तीरंदाजी से
वर्ना लूटने 'इंतज़ार' के दिल का…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 9:34am — 21 Comments
बरसाती नदी सी क्यूँ हो तुम ?
किसी और की मनोदशा
निर्धारित करती है तुम्हारा बहाव
किसी की मेहेरबानी से चल पड़ती हो
तो कभी सूख जाती हो
कभी सोचा है
मेरा हाल उस मछली की तरहाँ होता है
जो बचे-खुचे कीचड़ में
तड़पती है सिर्फ़ भीगने के लिये
जिंदा रहने के लिये
और जब सैलाब आता है
तो बहुत दूर बह जाती है बेकाबू
तुम कब एक प्रवाह में स्वतन्त्र बहोगी
नदी हो... पहाड़ों से टक्कर ले जीत चुकी हो
अब कोई कैसे स्वार्थ के बांध बना
रोक सकता है तुम्हारा…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 7, 2015 at 7:59am — 14 Comments
ये मेरे दिल में जो तूने
एक भांग का पौधा
बो दिया था
अब वो बड़ा हो गया है
और लत लग गई है मुझे
रोज़ दो पत्ती खाने की...
प्यार के नशे में तेरे
डूबना बड़ा अच्छा लगता है
कहते हैं कि नशा गुनाह है
मगर यहाँ किसे परवाह है
अगर मैं मुजरिम हूँ
तो सिर्फ़ तेरा
तू चाहे जो सज़ा दे दे
मंज़ूर है सब
मगर शर्त ये है कि
कभी कभी इसे सींच देना
अपने एहसासों की बौछार से…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 6, 2015 at 5:46am — 20 Comments
मेरे जीवन में तुम आके बरसो
आसमानी बादल बन के ना बरसो
पास आ सैलाब बन के बरसो
पुरवाई का झोंका बन के ना बरसो
प्यार की अंगार बन के बरसो
मिलन की आस बन के ना बरसो
बोसों की बौछार बनके बरसो
चांदनी बन के ना बरसो
चकोरी की प्यास बन के बरसो
उमंगों के आकाश से
एहसासों की बारात बन के बरसो
तनहाइयाँ बहुत हुईं
एक मिलन की रात बन के बरसो
अब जैसे भी बरसो ....
मगर कुछ ऐसे बरसो
कि बेहिसाब हो के बरसो…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 5, 2015 at 6:19am — 10 Comments
पल्लू लहरा देते हैं वो हवा का रूख़ देख कर
बीमार हो जाते हैं हम भी हसीं दवा देख कर !
यूँ तो हम तुम्हारे सिवा किसी और पे मरते नहीं
महफ़िल हसीनाओं की हो तो शिरकत से डरते नहीं !
तूने अगर दिल में अपने मुझे घर दिया होता
तन्हाईओं की बारिशों से मैं ना गल गया होता !
सुना है मिजाज़ गर्म और नज़र तिरछी है उनकी
'इंतज़ार' हम कहाँ मरते हैं हसीं बद दुआओं से उनकी !
तुम बिन ख़त्म हो जायेगी तिलस्मी दुनियाँ मेरी
अधभरे पन्नों में…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:30am — 19 Comments
बेचारा ...बेबस... लाचार दिल
आँखों से कितनी दूर है
जो बस गए हैं सपने
उन्हें सच समझने को मजबूर है
आँखों की कहानी अपनी है
जो देखा बस वोही खीर पकनी है
छल फ़रेब की चाल रोज़ बदलनी है
क्या करे दिल की दुनियाँ का
वहाँ तो सिर्फ़ दिल की ही दाल गलनी है
हाँ ....बंद आंखें दिल को देखती हैं
मगर आँखों को
बंद आँखों से देखने पर भरोसा ही नहीं
क्यूंकि वो जानती हैं कि दिल मजबूर है
और सच्चाई सपनों से कितनी दूर है
यूँ हर किसी का दिल आँखों से दूर…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 31, 2015 at 2:36pm — 9 Comments
तेरी चाहत में
सारी उम्र गलाना अच्छा लगा !
ना पा कर भी
तुझे चाहना अच्छा लगा !
लिख लिख के अशआर
तुझे सुनाना अच्छा लगा !
सच कहूँ तो मुझे
ये जीने का बहाना अच्छा लगा !!
दुप्पट्टा खिसका कर
चाँद की झलक दिखाना अच्छा लगा !
पास से निकली तो
हलके से मुड़ के तेरा मुस्कुराना अच्छा लगा !
बदली से निकल कर आज
चाँद का सामने आना अच्छा लगा !!
मिलने नहीं आयी मगर
रात सपनों में तेरा आना अच्छा लगा !
ला इलाज ही सही मगर
प्रेम का ये…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 18, 2015 at 8:04am — 13 Comments
तुम चढ़ान हो जीवन की
मैं उतरान पे आ गया हूँ
चलो मिलकर समतल बना लें
हर अनुभूति
हर तत्व की
मिलकर औसत निकालें
कहीं तुम में उछाल होगा
कहीं मुझमें गहन बहाव होगा
चलो जीवन के चिंतन को
मिलकर माध्य सार बनालें
कभी तुम पर्वत शिखर पर हिम होगी
मैं ढलता सूरज होकर भी
तुम्हें जल जल कर जाऊँगा
चलो मिलकर जीवन को
अमृत धार बनालें
कभी तुम भैरवी सा राग होगी
मैं तुम्हारे सुर के पृष्ठाधार में ताल दूंगा
चलो मिलकर जीवन काया को
समझौतों का एक मधुर…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 16, 2015 at 5:50pm — 6 Comments
सुनो ...प्यार बड़ी चीज़ है
सबके काम आता है ये
डूबतों का तिनका
दुखियों का सहारा है ये
रोते हुओं के आँसू पोंछ
टूटे हुए दिलों को जोड़ जाता है ये
रूठों को मना लाता है
रिश्तों को शहद बनाता है ये
'इंतज़ार' कम ही लोगों को
करना आता है ये
इसकी तहज़ीब सीख लीजिये
वर्ना सोने वालों की
नीद उड़ा ले जाता है ये
उमंगों को भड़का
ज़िंदगी का मकसद बन जाता है ये
सुनो ...एहसासों का बुलबुला है ये
कांटा लगा ......तो
हवा हो जाता है ये…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 14, 2015 at 7:18am — 14 Comments
ज़िंदगी है तो
जीने से डरना क्या !
ख़वाब रंगीन होते हैं
देखने से डरना क्या !
जाम जब होंठों को छू जाये
तो फिर पीने से डरना क्या !
प्यार हो जाये
तो इकरार से डरना क्या !
ज़िंदगी एक सफ़र ही तो है
फिर रास्तों से डरना क्या !
सफ़र में कई हमसफ़र होंगे
मिलना क्या बिछुड़ना क्या !
हर मंजिल एक पड़ाव ही तो है
पाना क्या और खोना क्या !
जीवन सिर्फ़ एक आवागमन ही तो है
फिर आना क्या और जाना क्या…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 12, 2015 at 6:00pm — 4 Comments
दर्द के दरिया में सब कुछ खारा है
तुम ना जानो ...
क्यूंकि ये दर्द तो हमारा है
वो जो परिंदा इसमें डूबा है
इसे तुमने ही वहां उतारा है !
मगर समंदर के खारे पानी में
मछलियाँ ख़ुशी से तैर रही हैं
एक दूजे से खेल रही हैं
दुखी नज़र नहीं आतीं वो
यहाँ से निकलने का कोई
उतावलापन भी नहीं दिखता उन्हें
और अगले पल की फिक्र भी नहीं !
मैं भी तो मछली बन सकता हूँ
मुठ्ठी ढीली छोड़
ग़मों को आज़ाद कर सकता हूँ
और पकड़ सकता हूँ
कुछ…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 4, 2015 at 9:51am — 12 Comments
जिंदगी में कोई
क्यूँ नहीं मिलता
एक नया तूफ़ान
क्यूँ नहीं खिलता
मैं भी देख लूँ जी के
ऊँचे टीलों पे
क्या होते हैं एहसास
इन कबीलों के !
मैं भी उड़ लूँ
तूफ़ानी फिज़ाओं में
जानता हूँ एक दिन
तूफ़ान थम जायेंगे
फिर खुशिओं के
उत्सव ढल जायेंगे
और बेवफाईओं के
ख़ामोश पल आयेंगे !
मौत आ जाये बेधड़क
तूफ़ान के बवंडर में
न होने से तो
कुछ होना अच्छा होगा
प्यार ना मिलने से तो
मिलकर खोना अच्छा…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 7:35am — 12 Comments
धरती के सीने में
अमृत छलकता है
धरती के ऊपर पानी है
अन्दर भी पानी है
ये धरती की मेहेरबानी है
कि बादल में पानी है
बादल तरसते हैं
तो धरती अपना पानी
नभ तक पहुंचा
उनकी प्यास बुझाती है
बादल बरस कर
एहसान नहीं करते
सिर्फ़ बिन सूद
कर्ज चुकाते हैं
क्यूंकि पानी तो वो
धरती से ही पाते हैं
फिर भी धरती पर गरजते हैं
बिजली गिराते हैं
जहाँ से जीवन पाते हैं
उसी को सताते हैं
जननी का हाल
कुछ ऐसा ही बताया था
परमार्थ का बीज बोया…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 28, 2015 at 7:59am — 14 Comments
देह में तृष्णा के सागर
रेशम में ढकी गागर
इत्र से दबी गंध
लहू के धब्बों में
धुन्दलाया चेहरा
मुखोटों के पीछे
छिपाया मोहरा
न कोई मंजिल
ना कोई पहचान
बैठ ऊँचे मचान पर
ढूंढे नये आसमान
बे-माईने वक़्त का ये जहान
प्रेम परिभाषा ढूँढता वासना में
तम के घेरे में घिरा इंसान !!
******************************************
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 27, 2015 at 6:30am — 18 Comments
हो चुकी हो तुम एक पाषाण
वो एहसासों की लहरों पे तैरना
धड़कनों को खामोशीओं में सुनना
होठों को छू लेने की तड़प
आगोश में भर लेने की चसक
सब रेत के घरोंदे थे .........
रेत के इन घरोंदों को
तूफ़ान से पहले क्यूँ खुद ही ढाना पड़ता है !
चादर में ग़मों की फटन को
वक़्त के धागे से क्यूँ ख़ुद ही सीना पड़ता है !
नींद के आगोश में
मरे हुए ख़वाबों को क्यूँ खुद ही ढोना पड़ता है !
उमंगों के उड़ते परिंदों को
दर्द के दरिया में क्यूँ…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 24, 2015 at 4:15am — 12 Comments
तुम दीया हो तो मुझे बाती बनना होगा
तेरा साथ पाने को चाहे मुझे जलना होगा !
तुम अगर रात हो तो मुझे अँधेरा बनना होगा
तुम से मिलने को मुझे सवेरों से लड़ना होगा !
तुम ग़र दरिया हो तो मुझे समन्दर बनना होगा
तुमको फिर मुहब्बत में मुझ से मिलना होगा !
तुम अगर हवा हो तो मुझे धूल बनना होगा
मुझे आगोश में ले आँधियों में तुम्हें उड़ना होगा !
तुम अगर चाँद हो तो मुझे चकोरी बनना होगा
तुमको हर रात मेरा मिलन का गीत सुनना होगा…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 1:25pm — 16 Comments
हवा क्यूँ है ?
ये सूरज क्यूँ है ?
क्या करूँगा मैं किरणों का
ये सूरज निकलता क्यूँ है ?
ना जमीं मेरी है
ना आसमां मेरा
बस इन अंधेरों का अँधेरा मेरा !
ये चमन क्यूँ है
ये फूल मुरझाये क्यूँ नहीं अब तक
ये तितलियाँ... ये भंवरे
घर गये क्यूँ नहीं अब तक
पेड़ों ने पत्तियाँ गिराई नहीं ?
हर चीज़ क्यूँ मुरझाई नहीं अब तक
धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक
जब तू ही नहीं
तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 9, 2015 at 7:33am — 5 Comments
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