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All Blog Posts (19,108)

अमर प्रेम

इससे पहले के तुम दर्पण निहारों

मैं इन केशों में इक वेणी लगा दूँ

 

लो रख दी बाँसुरी धरती पे मैंने

तुम्हें गाकर के मैं लोरी सुला दूँ

 

समीरण रुक गई है बहते बहते

कहो तो शाख पेडो की हिला दूँ

 

पवन से वेग की इच्छा अगर है

कहो तो अंक में लेकर झूला दूँ

 

सुगंधित हैं सुमन उपवन के सगरे

बताओ कौन सा मैं पुष्प ला दूँ

 

घटा आकाश में छाने को व्याकुल

कहो तो नयनों में तुमको बिठा…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 7, 2020 at 1:30pm — 6 Comments

आया है जनवरी (ग़ज़ल)

(221 2121 1221 212)

(बहर मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़)

अब के अजीब रंग में आया है जनवरी

ग़म सब पुराने साथ में लाया है जनवरी

बे-नूर सुब्ह-ओ-शाम हैं वीरां हैं रास्ते

तू भी किसी के ग़म का सताया है जनवरी

ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में

मत पूछिये कि कैसे निभाया है जनवरी

क़हर-ओ-सितम है ठंड का जारी उसी तरह

कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी

शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी

तुझको सितम…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on January 7, 2020 at 11:41am — 6 Comments

स्वप्न-मिलन

स्वप्न-मिलन

रात ... कल रात

कटने-पिटने के बावजूद

बड़ी देर तक उपस्थित रही

नींद के धुँधलके एकान्त में

पिघलते मोम-सा

कोई परिचित सलोना सपना बना…

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Added by vijay nikore on January 7, 2020 at 6:30am — 8 Comments

माग रहे हैं तोड़ के घर को -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



छोड़ गये थे केवट जिन को तूफानी मझधारों पर

साहिल वालो उनसे पूछो क्या बीती दुखियारों पर।१।



हम  जैसों  की  मजबूरी  थी  हालातों  के  मारे थे

कहने वाले खुदा स्वयम् को नाचे खूब इशारों पर।२।



आग जलाकर मजहब की नित सबने जो तैयार किये

सच  में  हर  पल  देश  हमारा  बैठा  उन  अंगारों पर।३।



माग रहे हैं तोड़ के घर को नित…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2020 at 4:55am — 10 Comments

अहसास की ग़ज़ल -मनोज अहसास

12122×4

समझ नहीं आ रही है हमको ज़माने वाले तेरी पहेली,

शिकन से माथा भी भर दिया है लकीरों से जब भरी हथेली.

उदास बच्चे ने माँ के आंचल से अपनी आंखों को ढक लिया है,

गुज़र ही जाएगी रात काली जो चांद तारों की ओट लेली.



इक ऐसा गम है मैं जिससे यारों नजर चुरा के ही जी रहा हूँ,

ज़रा सा उसके करीब जाऊं बिखरने लगती है जां अकेली.

अजब है दुनिया का ये बगीचा ,अजब है इसका हठीला माली

तमाम…

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Added by मनोज अहसास on January 5, 2020 at 1:53am — No Comments

गीत

बात बर्फ सी जमी हुई है, शब्दों में है लेकिन आग ।

देखो चमन न बँटने पाये, निकले हैं जहरीले नाग ।।

                                 

                             

बाढ़ आ गई आगजनी की,तोड़-फोड़ होती अविराम ।

भाईचारा है सूली पर, लोकतंत्र के चक्के जाम ।।

राष्ट्र संपदा की बलि देकर, दुश्मन खेल रहा है फाग ।

देखो चमन न बँटने पाये , निकले हैं जहरीले नाग ।।

                             

हिंसा भीड़ तमाशे का जो,…

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Added by Anamika singh Ana on January 4, 2020 at 3:30pm — 5 Comments

त्रिशंकु (लघुकथा)

त्रिवेदी जी अपने समय के ख्याति प्राप्त व्यापारी, समाज सेवक, राज नेता, मंत्री और ना जाने किस किस पद को शोभायमान कर चुके थे।

आज वृद्धावस्था के कारण जर्जर शरीर को लेकर  अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई में मरणासन्न स्थिति में पड़े थे। दवाओं का शरीर पर कोई अनुकूल प्रभाव नहीं हो रहा था। लेकिन अस्पताल वाले अति आशावादी  होने का नाटक कर रहे थे। वहाँ के डॉक्टरों का दावा था कि वे पूर्व में मृत प्रायः लोगों में भी जान डाल चुके हैं| वे इतनी मोटी मुर्गी को तबियत से हलाल करना चाहते थे।यमदूत बार बार आकर…

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Added by TEJ VEER SINGH on January 4, 2020 at 11:00am — 8 Comments

पधार गए हो नए साल जो

पधार गए हो नए साल जो

खुश रहो औ ख़ुश रहने दो

आओ जीमो मौज मनाओ

जो जमा हुआ वो बहने दो

पथ भी रहें पंथी भी रहें

राहें भी दुश्वार न हों

सुरों मे गीत रहें न रहें…

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Added by amita tiwari on January 4, 2020 at 4:00am — 4 Comments

अहसास की ग़ज़ल -मनोज अहसास

1222   1222   1222   1222

हमारे सारे मिसरे मुख्तलिफ अर्थों में लिपटे हैं,

तुझे अब याद भी करते हैं तो डर कर ही करते हैं.

बहुत मुमकिन है इसमें फिर तुम्हारा ज़िक्र आ जाए,

नज़र में आज लेकिन दर्द सब दुनिया जहां के हैं.

जरा सा ध्यान से आ जाते हैं छोटे से मिसरे में,

मुहब्बत के सभी अफसाने रेशम के दुपट्टे हैं.

कई खुदगर्ज मछुआरों ने कब्जा कर लिया उस पर,

वह दरिया जिसमें अपनी नेकियां हम डाल आते हैं.

जहाँ से…

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Added by मनोज अहसास on January 4, 2020 at 12:30am — 4 Comments

भारत दर्शन (प्रथम कड़ी) मत्त गयंद छंद

जन्म लिया जिस देश धरा पर वो हमको लगता अति प्यारा

वैर न आपस में रखते वसुधैव कुटुम्ब लगे जग सारा

पूजन कीर्तन साथ जहाँ सम मन्दिर मस्जिद या गुरुद्वारा

लोग निरोग रहे जग में नित पावन सा इक ध्येय हमारा।।1

पूरब में जिसके नित बारिश, हो हर दृश्य मनोरम वाला

लेकर व्योम चले रथ को रवि वो अरुणाचल राज्य निराला

गूढ़ रहस्य अनन्त छिपा पहने उर पादप औषधि माला

जो मकरन्द बहे घन पुष्पित कानन को कर दे मधुशाला।।2

उत्तर में जिसके प्रहरी सम पर्वत राज हिमालय…

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Added by नाथ सोनांचली on January 3, 2020 at 5:00pm — 9 Comments

"तुम्हारे लिए"

तुम यूँ ही बीच राह में

रोज़ तरूवर क़ी छाँव में

मुझे यूँ ही रोक लेते हो 

और मैं भी रुक जाती हूँ

क्यों कि मैं भी रहती हूँ अधीर

तुमसे मिलकर बातें करने को!

 

तुम्हारा यूँ एकटक निहारना

मेरे दिल को भाता है बहोत*

मैं भी देखने लगती हूँ तुम्हें

सीधी कभी तिरछी नज़रों से

तुम मुस्कुरा देते हो शरारत से

मैं शर्माकर कुरेदती हूँ ज़मीन  

 

पर ये सब भी कब तलक

जब ये कुहासा नहीं होगा

बढ़…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 3, 2020 at 12:43pm — 2 Comments

रखकर वतन को आपने काँटों की सेज पर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल)

२२१/२१२१/२२२/१२१२



मिट्टी को जिसने देश की चन्दन बना लिया

जीवन को उसने हर तरह पावन बना लिया।१।



करते नमन हैं  उस को  नित छोटा भले सही

जिसने भी अपना सन्त सा यौवन बना लिया।२।



कहते  हैं  राह रच  के  ही  रहजन  हुए  मगर

अब तो वही है जिसने पथ भटकन बना लिया।३।



साधन हो साध्य से अधिक पावन ये रीत थी

पर अब फरेब  झूठ  को  साधन बना लिया।४।



जो उम्र पढ़ने लिखने की पत्थर हैं हाथ में

कैसा सुलगता देश का बचपन बना…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2020 at 6:32am — 4 Comments

मनुष्य और पयोनिधि

आओ और निकट से देखो

हिलोरें लेते इस पारावार को

हमारा जीवन भी ऐसा ही है

नीर जैसा स्वच्छ और निर्मल

 

जब पयोधि क़ी लहरें छूती हैं

रेत क़ी फ़ैली हुई कगार को

तब वह समेट लेती सब कुछ

और ले जाती है पयोनिधी में

 

हम मनुष्य भी तो ऐसे ही हैं

जब हम प्रेम में होते हैं तब

ढूंढते रहते हैं बस एक साहिल

ताकि समेट सकें स्वयं में सब कुछ

 

किंतु उदधि और मनुज क़ा प्रेम

उदर में ज्य़ादा काल नहीं…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 2, 2020 at 12:30pm — 6 Comments

छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है

2122 2122 2122

.

जानते हैं तुम में ताकत हो गयी है,

और किस-किस पे ये आफत हो गयी है।

झूठ है जो, झूठ बिन कुछ भी नहीं, पर

अब जमाने में सदाक़त हो गयी है।

जब चमन का फूल होने का भरो दम,

क्यों चमन से ही अदावत हो गयी है?

जिस्म पर ठंडा लबादा, आग मुँह में,

जिसने रक्खे उसकी शुहरत हो गयी है।

कौम के अच्छे की खातिर काम हो अब,

छोड़ दो काफ़ी सियासत हो गयी है।

हर खुशी पर, मेरी बोलो तो भला क्यों,…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2020 at 12:00pm — 14 Comments

कविता : चलो, विश्वास भरें

चलो, विश्वास भरें

गया पुरातन वर्ष

नवीन विचार करें

आपस के सब मनमुटाव कर दूर 

चलो, विश्वास भरें

बैर भाव से हुए प्रदूषित

जो मन, बुद्धि , धारणाएँ

ज्ञानाग्नि से , सर्व कलुष कर दग्ध

सभी संत्रास हरें

आपस के सब मनमुटाव कर दूर 

चलो, विश्वास भरें

है अनेकता में सुन्दर एकत्व

उसे अनुभूति करें

कर संशय, भ्रम दूर

नेह, सतभाव वरें

आपस के सब मनमुटाव कर दूर

चलो,…

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Added by Usha Awasthi on January 1, 2020 at 9:12pm — 5 Comments

नव वर्ष गीत

हुआ है उजाला धरा पर नया अब। 

मिटा घन अँधेरा छटा ये धुआँ सब। 

नया साल आया नई आस लाया। 

करो काम दिल से न जो भी हुआ सब।।
रहे जग हमेसा ख़ुशी की सफ़र पे। 

न काटें मिले अब किसी की डगर पे। 

करो प्यार सबसे की जीवन है प्यारा। 

न कीचड़ उछालो हमारे नगर…
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Added by Vivek Pandey Dwij on January 1, 2020 at 9:00pm — 7 Comments

नव विहान (नवगीत)

नव विहान का गीत मनोहर गाता चल।

जीवन में मुस्काता चल।।

मन मराल को कभी मनोहत मत करना ।

हो कण्टक परिविद्ध तनिक भी ना डरना।

गम को भूल सभी से नेह लगाता चल।

जीवन में मुस्काता चल।।

वैर भाव की ये खाई पट जाएगी।

वर्गभेद तम की बदली छँट जाएगी।

बनकर मयार मधुत्व रस छलकाता चल।

जीवन में मुस्काता चल।।

महदाशा रख मर्ष भाव अंतर्मन में

जानराय बन ओज जगाओ जनजन में।

हो भवितव्य पुनर्नव राह बनाता चल।

जीवन में मुस्काता…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on January 1, 2020 at 1:00pm — 8 Comments

उन्नीस-बीस (2019-2020) नूतन वर्ष

छोटी बातों से तू  इतना, विचलित क्यूँ कर होता है

जीवन धार नदी की, इसमें उन्नीस बीस तो होता है

दुनियाँ का दस्तूर है, ज्यादा  रोते को रुलवाने का

कितना समझाया तुझको तू, फिर भी नयन भिगोता है

जाने वाले साल को सारे, दुख अपने तू अर्पण कर दे                                                                                                              तेरे भाग्य में फिर वो कैसे, बीज खुशी के बोता है

अस्त हुआ उन्नीस का भानु, बीस का दिनकर…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 1, 2020 at 11:00am — 10 Comments

भूख गरीबी जाति धर्म से लड़ना नूतन साल यहाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

बर्षों  से  जब  रहते  आये  दुख  से  मालामाल  यहाँ

सुख आकर भी कर पायेगा फिर कितना कंगाल यहाँ।।



तुम रख लेना शायद तुमको उम्मीदों का साल मिले

हमने तो हर पल  है  खोया  उम्मीदों का साल यहाँ।।



शीष झुकाये रहे सहिष्णुता जैसे सब की दोषी हो

खूब मजहबी झगड़े रहते ताने अब तो भाल यहाँ।।



साल नया कितनी उम्मीदें…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2020 at 5:51am — 10 Comments

नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो

नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो 

घर आँगन में उजियारा हो

दुःखों का दूर अँधियारा हो

हो नई चेतना नवल स्फूर्ति

नित नव प्रभात आभामय हो

नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो 

नित नई नई ऊँचाई हो

हृद प्राशान्तिक गहराई हो

नित नव आयामों को चूमो

चहुँओर तुम्हारी जय जय हो

नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो 

जो खुशियाँ अब तक नहीं मिलीं

जो कलियाँ अब तक नहीं खिलीं

जीवन के नूतन अवसर पर

उनका मिलना-खिलना तय हो

नव वर्ष तुम्हे मंगलमय…

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Added by आशीष यादव on January 1, 2020 at 12:31am — 13 Comments

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"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
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सदस्य कार्यकारिणी
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Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
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Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

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