1222 1222 1222 1222
सिरा कोई पकड़ कर हम उन्हें फिर से तलाशेंगे
इन्हीं चुपचाप गलियों में जिये रिश्ते तलाशेंगे
अँधेरों की कुटिल साज़िश अगर अबभी न समझें तो
उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे
कभी उम्मीद से भारी नयन सपनों सजे तर थे
किसे मालूम था ये ही नयन सिक्के तलाशेंगे !
दिखे है दरमियाँ अपने बहुत.. पर खो गया है जो
उसे परदे, भरी चादर, रुँधे तकिये तलाशेंगे
हृदय में भाव था उसने निछावर…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on October 27, 2019 at 12:00pm — 11 Comments
हमारा दीपक - लघुकथा -
"अरे ज्योति देखो, अपना दीपक आज दिये बनाना सीख रहा है।"
"नहीं, बिलकुल नहीं। मेरा दीपक यह गंदा काम नहीं सीखेगा। सारे दिन मिट्टी से लथपथ बने रहो।"
"ज्योति, कैसी बात करती हो| यह तो हमारा पुश्तैनी धंधा है। मेरी सात पीढियाँ यही सब करती रही हैं। उसी से घर गृहस्थी चली है।"
"वह सब गुजरे जमाने की बातें हैं। तुम्हारे पुरखे अनपढ़ थे। उन्होंने शिक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया।"
"तुम्हारी बात से मैं सहमत हूँ लेकिन....।"
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं,…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 26, 2019 at 11:50am — 6 Comments
चिन्तन-प्रश्न
आस्था की अनवस्थ रग को सहलाते
सचाई के अब भयावने-हुए मुख पर
उलझनों के ताल के उस पार उतर कर
अचानक यह कैसा उठा प्रश्नों का चक्रवात
चिंता की हवाओं का मंडराता विस्तार
एकाएक
यह क्या हुआ ?
कैसा खतरनाक है यह
सतही ज़िन्दगी का सतही स्तर
बाहरी चीख-चिल्लाहट
सुनाई नहीं देता है आत्मा का स्वर
ऐसे में असहज है कितना
द्वंद्व-स्थिति में संकल्प-शक्ति से
किसी भी…
ContinueAdded by vijay nikore on October 25, 2019 at 1:22pm — 4 Comments
दीये बनते, बिकते, जलते हैं
पेट पालते हैं
दीपक तले अंधेरा
फ़िर वही रात, वही सबेरा!
दीये पालते हैं, दीये पलते हैं
विरासत पलती है
दीपक तले अंधेरा
फ़िर वही बात, वही बखेड़ा!
विरासत पालती है, विरासत पलती है
उद्योग पलते हैं; राजनीति पलती है
लोकतंत्र पलता है
दीपक तले अंधेरा
फ़िर वही धपली, वही राग!
स्वच्छता पालती है, स्वच्छता पलती है
नारे-पोस्टर पलते हैं, भाषण पलते हैं
दीपक तले अंधेरा
फ़िर वही चाल, वही…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2019 at 6:46am — 5 Comments
कभी मैं बन ओंस की बूंद
मोती बन बिखर जाता हूँ
मोहकता की छवि बना
मुस्कान चेहरे पर लाता हूँ||
कभी तपता भानु के तप में
और भाप बन उड जाता हूँ
काले घने मैं बादल बन
मैं बरसता, भू-धरा की प्यास बूझाता हूँ||
कभी बन आँसू के मोती
कभी खुशी में मैं छ्लक आता हूँ
कभी दुख में बह कर के मैं
भावुकता को दर्शाता हूँ||
बेरंग हूँ, पर हर रूप में ढलता
जिसमे मिलता उसका रूप अपनाता हूँ
निश्चित…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 24, 2019 at 12:32pm — 4 Comments
प्यार पर चंद क्षणिकाएँ : .......(. 500 वीं प्रस्तुति )
प्यार
सृष्टि का
अनुपम उपहार
प्यार
जीत गर्भ में
हार
प्यार
तिमिर पलों का
शरमीला स्वीकार
प्यार
अंतस उदगारों का
अमिट शृंगार
प्यार
यथार्थ का
स्वप्निल
अलंकार
प्यार
नैन नैन का
मधुर अभिसार
प्यार
यौवन रुत की
लजीली झंकार
प्यार
बिम्बों…
Added by Sushil Sarna on October 24, 2019 at 12:30pm — 10 Comments
प्रश्न ये है
कि अन्तोगत्वा
हाथ क्या लगता है ?
समझ में आ जाये
तो बताइये हाथ
आपका क्या लगता है ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on October 23, 2019 at 7:55am — 10 Comments
दीपावली के चंद रोज़ पहले से ही त्योहार सा माहौल था उस कच्चे से घर में। सब अपने पालनहार बनाने में जुटे हुए थे; कोई मिट्टी रौंद रहा था, कोई पहिया चला-चला कर उसके केंद्र पर मिट्टी के लौंदों को त्योहार मुताबिक़ सुंदर आकार दे रहा था। वह उन्हें धूप में कतारबद्ध जमाती जा रही थी। लेकिन अपने-अपने काम में तल्लीन और सपनों में खोये अपनों को देख कर उसे अजीब सा सुकून मिल रहा था हर मर्तबा माफ़िक़। एक तरफ़ उसकी सास; दूसरी तरफ़ समय के पहिये संग कुम्हार का पैतृक पहिया चलाता उसका पति दीपक और उसके कंधों पर झूलता…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 22, 2019 at 10:40pm — 3 Comments
चंद क्षणिकाएँ :
मन को समझाने
आई है
बादे सबा
लेकर मोहब्बत के दरीचों से
वस्ल का पैग़ाम
............................
रात
हो जाती है
लहूलुहान
काँटे हिज़्र के
सोने नहीं देते
तमाम शब
............................
रात
जितने भी
नींदों में ख़वाब देखे
उतने
सहर के काँधों पर
अजाब देखे
...............................
हया
मोहब्बत में
हो गयी …
Added by Sushil Sarna on October 21, 2019 at 7:30pm — 9 Comments
122 122 122 122
गजल बेबहर है, नदी बिन लहर है
कहो,क्या करूँ जब बिखरता जहर है?1
कहूँ क्या भला मैं? सुनेगा न कोई,
हुआ हादसा,मौन सारा शहर है।2
बचेगी नहीं लाज समझा करो तुम
बहकती यहां की हवा हर पहर है।3
गिनूँ क्या सितम गैर से जो मिले
मिले दर्द घर में, बड़ा ही कहर है।4
बुझाते रहे जो चिरागों को' अबतक
बताते कि होने को' अब तो सहर है।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 21, 2019 at 11:00am — 2 Comments
1. ये यादों का अकूत कारवां है,
नित बेहिसाब चला पर वही खड़ाI
2. तेरी हाथों की लकीरों का दोष,
या मेरी दुआओ का,
अकाट्य प्रवाह पहेली सा I
3. कभी शब्द भी मौन हुए,
कभी मौन मुस्काए है I
कभी अभिव्यक्तियों को पंख लगे,
कभी सन्नाटों के साये है I
4. बातो का सिलसिला टूटा नहीं तेरे जाने से,
बस फर्क इतना है तेरा किरदार भी निभाती हूँ मै I
5. यूँ तो जी भर जिया हमने जिन्दगी को साथ…
ContinueAdded by Dr. Geeta Chaudhary on October 20, 2019 at 8:14pm — 9 Comments
212 212 212 212
याद उसको कभी,मेरी आती नहीं ।
और ख्वाबों से मेरे,वो जाती नहीं ।।
सो रही अब भी वो, चैन से रात भर…
ContinueAdded by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on October 19, 2019 at 10:30pm — 3 Comments
जैसी हो
अच्छी हो
ऐसी ही रहना तुम
कांटो की बगिया में
तितली सी उड़ जाना
रस्ते में पत्थर हो
नदिया सी मुड़ जाना
भँवरों की…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 19, 2019 at 10:42am — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
मुहब्बत के नगर में आँसुओं के कारखाने है,
यहां रहकर पुराने जन्म के कर्ज़े चुकाने हैं.
सड़क पर आके देखों तो झुलस जाओगे शिद्दत से,
समाचारों में तो इस दौर के मौसम सुहाने हैं.
उतर आया अब आँखों में आंगन में भरा पानी,
मेरी चाहत के अफसाने में पटना के फसाने हैं.
फलक पर चाँद चाहे चौथ का हो या हो पूनम का,
हमें त्यौहार सब परदेस में तन्हा मनाने हैं.
कहाँ पे आके बिगड़ी ये कहानी…
ContinueAdded by मनोज अहसास on October 17, 2019 at 8:51pm — 3 Comments
1222 1222 1222
चरागाँ इक मुहब्बत का जला दो तुम,
अभी उन्वान रिश्ते को नया दो तुम ।
फ़ना ही हो गये जो इश्क़ कर बैठे,
ज़हर है ये,ज़हर ही तो पिला दो तुम ।
हया कायम रहे,कब तक मुहब्बत में,
ज़रा पर्दा शराफत का उठा दो तुम…
ContinueAdded by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on October 17, 2019 at 8:44pm — 6 Comments
Added by Balram Dhakar on October 16, 2019 at 10:00pm — 9 Comments
Added by विमल शर्मा 'विमल' on October 16, 2019 at 12:59pm — 7 Comments
स्वप्न-सृष्टि
बुझते दिन का सहारा बनी
गहन गंभीर अभागी शाम
मन में अब अपने ही पुराने घाव की
मौन वेदना की गुथियाँ समेटती
बूँद-बूँद गलती
पहले स्वयं सरकती-सी रात की ओर
अंधेरा होते ही फिर घसीट लेती है रात
बेरहमी से अपनी काली कोठरी में …
ContinueAdded by vijay nikore on October 15, 2019 at 4:30am — 2 Comments
2×16
इश्क रुई के जैसा है पर,ग़म से रिश्ता मत कर लेना.
लेकर चलने में आफत हो इतना गिला मत कर लेना.
एक समय ऐसा आता है, सूरज भी मुरझा जाता है,
चार दिनों की गर्दिश में तुम दामन मैला मत कर लेना.
लाख बहाने पास है उसके, अब तो खफा होने के मुझसे,
किंतु मना लेने में उसको अना को रुसवा मत कर लेना.
सबसे अच्छे शब्दों में तुम अपनी बात बता सकते हो,
लेकिन कोई समझ भी लेगा इसका भरोसा मत कर लेना.
व्याकुल माता बचपन से ही बच्चों को…
ContinueAdded by मनोज अहसास on October 15, 2019 at 2:01am — 4 Comments
अनपेक्षित तज्रिबों को लीलती हुई
मन में सहसा उठते घिरते
उलझी रस्सी-से खयालों को ठेलती
गलियाँ पार करती चली आती थी तुम
तब साथ तुम्हारा था
साहस हमारा
तुम्हारी मनोहर महक
थी दमकती हवाओं का उत्साह
और तुम्हारे चेहरे की चमक
थी हमारी शाम की अजब रोशनी
और मैं ...
तुम्हारी बातें सुनते नहीं थकता था
हँसी के पट्टे पर कूदते-खेलते
बीच हमारे कोई सरहदें
सीमाएँ न थीं
समय के पल्लू में…
ContinueAdded by vijay nikore on October 14, 2019 at 9:23am — 8 Comments
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