आपने कभी आत्मा की आवाज सुनी है ?’‘- बाबा ने पूछा I
‘कौन आत्मा ? ‘
‘वही जो हर मनुष्य के अंतर में रहती है I ‘
‘बाबा मैं नेता हूँ , मुझे आत्मा-अंतरात्मा से क्या ?
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 4, 2019 at 11:47am — 8 Comments
" वो लोग भी कमाल के होते हैं, जो कमाल की बाते करते हैं ।",उनकी मीटिंग खत्म होने के बाद पास बैठे आदमी ने कहा
"पर इन लोगों ने कभी चुप शांत रहने वाले लोगों के बारे भी सोचा है, वो भी कुछ दायरे संभाल रखें हैं ।" , उसने ख़ुद से पूछा
चुप व शांत रहने वालों की भी उन्हें प्रवाह करनी चाहिए, जब वे लोग आपस में बातें कर रहे होते हैं ।
"पर उनके लिए ये जानना भी ज़रूरी है कि इनकी सोच के दायरे से बड़ा भी कोई किसी का दायरा हो सकता है ।"
वहाँ बैठे आदमी ने फिर पूछ ही लिया, " भाई साहिब, आप जो…
Added by मोहन बेगोवाल on October 3, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
उठाओ नजर रहगुज़र देख लो ।
यहाँ जिन्दगी का सफ़र देख लो ।
नियम कायदे तो बने हैं कई
मगर भंग हैं सब जिधर देख लो ।
न भय है न चिंता न है शर्म ही
बना है बशर जानवर देख लो ।
कहीं लूट है तो कहीं क़त्ल है
किसी भी नगर की ख़बर देख लो ।
गले मिल रहे दोस्त खंजर लिए
बदलते समय का असर देख लो ।
करें फ़िक्र उनकी जो हैं नापसंद
सियासत का है ये हुनर देख लो ।
बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2019 at 10:00pm — 7 Comments
अपना भारत.... (लघु रचना)
हार गई
लाठी से
बन्दूक
आख़िर
जीत गई
बापू की अहिंसा
हिंसा से
मुक्ति दिलाई
गुलामी की
बेड़ियों से
तिरंगे को मिला
अपना आसमान
अपना सम्मान
अपना भारत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 2, 2019 at 9:52pm — 4 Comments
समसामयिक दोहे-
अर्थशास्त्र का ज्ञान ही, सब देशों का मूल.
कभी बढाता शक्ति यह, कभी हिला दे चूल.१
राजनीति परमार्थ को, लिया स्वार्थ में ढाल.
खुद सुख सुविधा भोगते, सौंप दुःख जंजाल.२
राजनीति के शास्त्र में, कूटनीति के मन्त्र.
दलदल कीचड़ वासना, फलते पाप कुतंत्र.३
जीवन में संवेदना, बहुत काम की चीज.
कभी विफल होती नहीं, मिलें श्रेष्ठ या नीच.४
द्वेष भावना में किये, गए…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2019 at 8:00pm — 6 Comments
122 122 122 12
चलो भी जला के दिखा दें दिये
चले जा रहे वे अँधेरा किये।1
बहुत दिन गये चोट खाते हुए
रहेंगे कहाँ तक कहो मुँह सिये।2
किये जा रहे मौज मस्ती बड़ी
भुलाते हमें,जो हमारे हिये।3
चले पाँव नंगे, मिलीं कुर्सियाँ
लगा आजकल हैं नशा वे पिये।4
उड़ीं जो पतंगें, हुईं बेवफा
पिटे लोग लगता है' अपने किये।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 2, 2019 at 7:28am — 3 Comments
रात-अँधेरे सारी रात
टटोलते कोई एक शब्द
स्वयं में स्माविष्ट कर ले
जो तुम्हारे आने का उल्लास
चले जाने का विषाद
कभी बूँद-बूँद में लुप्त होती
खिलखिलाती रंग-बिरंगी हँसी
और प्यारी हिचकियाँ तुम्हारी
आँसू ढुलकाती, मेरी ओर ताकती
दीप-माला-सी तुम्हारी आँखें
कि मोहनिद्रा में जैसे
मेरे ओठों पर तुम
अपने शब्दों को खोज रही हो
यह प्रासंगकि नहीं है क्या
कि मैं रात-अँधेरे सारी रात
टटोल रहा…
ContinueAdded by vijay nikore on October 1, 2019 at 3:30pm — 8 Comments
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 1, 2019 at 1:00pm — 4 Comments
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन
ये वक़्त के फ़साने सब पैतरे हैं छल के
तुम भी बिखर न जाना यूँ मेरे साथ चल के
उस डायरी में तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा
कुछ बन्द गीत के हैं कुछ शे'र हैं ग़ज़ल के
ये याद भी नही है शोला थ याकि शबनम
हालाँकि उस बला ने देखा तो था मचल के
अब क्या तुम्हें बताएं किस बात का गुमां है
कल रात चाँद मेरी छत पे गया टहल के
किस बात से…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 1, 2019 at 12:00pm — 8 Comments
बड़े दिल का तो वो कद में बड़ा होने से पहले था
जमीं से राब्ता उसका ख़ुदा होने से पहले था
करें मत फ़िक्र अब मेरी सभी एहबाब घर जाएँ
मुझे एहसास-ए-तन्हाई नशा होने से पहले था
हुनर आया तपिश सहकर हजारों चोट खाकर ही
फ़कत माटी का लोंदा वो घड़ा होने से पहले था
बुरी सुहबत ने ही उसको मियाँ ऎसा बनाया है़
वगरना नेक बच्चा वो बुरा होने से पहले था
मुखौटे में निहाँ कितना घिनौना रूप था उसका
मसीहा वेश में ढोंगी सज़ा होने से पहले…
Added by rajesh kumari on October 1, 2019 at 12:00pm — 7 Comments
विभाग की तरफ से सर्वेक्षण का काम पूरा होने के बाद, जूनियर स्टॉफ सदस्यों को विश्लेषण का काम दिया गया। जो टीम इस काम में लगाई गई, उस में एक पुरुष और महिला को चुना गया। विश्लेषण कर रहे जूनियर स्टॉफ के मन में परिणाम देख कर कुछ सवाल पैदा हो गए थे। जिन के बारे वह वरिष्ठ सदस्यों से पूछना चाहते थे। दो दिन के बाद वरिष्ठ स्टॉफ सदस्यों के सामने जब सर्वेक्षण का परिणाम रखा गया। तब पहला सवाल जो उन्होंने पूछा कि "एक वर्ष से कम उम्र के शिशुओं में पुरुषों की तुलना महिला शिशुओं की संख्या अधिक कैसे हो गई और वह…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 1, 2019 at 10:39am — 1 Comment
2122 1122 1122 22
मेरी आँखों में हुआ जब से ठिकाना तेरा
लोग कहते हैं सरे आम दिवाना तेरा
रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको
जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा
छीन लेगा ये मेरा होश यकीनन इक दिन …
Added by SALIM RAZA REWA on October 1, 2019 at 8:00am — 10 Comments
2×15
चंद मुकम्मल ग़ज़लों से हम दुनिया को बहला देंगे,
और अधूरे मिसरे तेरी यादों का पहरा देंगे.
जो कुछ तेरी इच्छा है वो ही तुझको दिखला देंगे,
हम खुद को धोखे में रखकर प्यार का मोल चुका देंगे.
ऐसे वो अपने चेहरे के सारे दाग छुपा देंगे,
कंप्यूटर से बनी हुई उम्दा तस्वीर दिखा देंगे.
जब तक तेरी आंखों से बरसेगी करुणा की धारा,
तब तक ये दुनिया वाले मेरे अहसास जला देंगे.
कीमत जिन फूलों की दाता के दर पर भी नहीं…
ContinueAdded by मनोज अहसास on October 1, 2019 at 12:24am — 4 Comments
कितने "अपने"
पहचाने थे यही रास्ते
पेड़ों की छाँह ओढ़े
कुहनी टेक
सरक जाते थे कितने
अच्छे-बुरे तजुर्बे
अचानक
चौंक जाती थी शाम
"मुझको घर जाना है"
तुम्हारे अरुणिम ललाट पर
अकस्मात चिंता की छायाएँ
और फिर ...
और फिर देख
मेरी आँखों में अपनी आँखों की चमक
तुम्हारा ही मन नहीं करता था
हाथ छोड़ चले जाने को
कि मानो जाते-जाते रुक जाती थी शाम
एक "और" आज के प्रेम-पत्र…
ContinueAdded by vijay nikore on September 30, 2019 at 10:22pm — 6 Comments
जहाँ ये कर दिखाना होगाl
हमारे दिल बताना होगा l
करोगे बात जैसी तुम भी ,
सवालों को उठाना होगा l
सुनी जो भीड़ तूने गाती ,
मिरे दिल का फ़साना होगा l
ख़बर जाती कहानी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 30, 2019 at 7:00pm — 2 Comments
212*
तीर नज़रों का उनका चलाना हुआ,
और दिल का इधर छटपटाना हुआ।
हाल नादान दिल का न पूछे कोई,
वो तो खोया पड़ा आशिक़ाना हुआ।
ये शब-ओ-रोज़, आब-ओ-हवा आसमाँ,
शय अज़ब इश्क़ है सब सुहाना हुआ।
अब नहीं बाक़ी उसमें किसी की जगह,
जिनकी यादों का दिल आशियाना हुआ।
क्या यही इश्क़ है, रूठा दिलवर उधर,
और दुश्मन इधर ये जमाना हुआ।
जो परिंदा महब्बत का दिल में बसा,
बाग़ उजड़ा तो वो बेठिकाना…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 30, 2019 at 5:49pm — 4 Comments
व्यथित हृदय
अनुपम सृजन सृष्टि की बेटी
बेटी को ना ठुकराएं।
प्यार मुहब्बत की निधि बेटी
हाथ बढ़ाकर अपनाएं।।
बेटी अगर अनादृत होगी
जग कलुषित हो जाएगा।
आन मान सम्मान धरा पर
कहीं नहीं बच पायेगा।।
मृदुल भाव मधु सदृश बेटियाँ
जग रोशन नित करतीं हैं।
अंतर्मन के हर विषाद तम
सुखद अमिय रस भरतीं हैं।।
सस्मित सुरभि लुटाकर हर पल
जग मधुमय कर देतीं हैं।
सदा अंक में प्रदीप्त करके
हर बाधा हर लेतीं…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on September 27, 2019 at 7:05pm — 7 Comments
मूर्खता विद्व्ता के सर पर ताण्डव कर रही है ,
सर के अंदर छुपी विद्व्ता संतुलन बनाये हुए है ,
क्योंकि मूर्खता में कोई वजन नहीं है ,
विद्व्ता शालीन है , संयत है , संतुलित है
आराम से मूर्खता को ढोये जा रही है ,
क्योंकि यही युग धर्म है आज , शायद ,
कि वह मूर्खता को शिरोधार्य करे ,
उसे नाचने के लिए ठोस मंच दे , आधार दे।
युगदृष्टा जाने विद्व्ता ने शायद ही कभी
मूर्खता का पृश्रय लिया हो , उसे आधार बनाया हो।
भाषा वैज्ञानिक स्वयं भ्रमित…
Added by Dr. Vijai Shanker on September 27, 2019 at 6:30pm — 4 Comments
यक्ष प्रश्न - लघुकथा -
गौतम ने बैंड बाजे के साथ अपनी एस यू वी गाड़ी से गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जन हेतु दोनों बांहों में सहेज कर बाहर निकाला।
गौतम जैसे ही मूर्ति को लेकर विसर्जन हेतु नदी के तट पर पहुंचा और मूर्ति को विसर्जित करने ही वाला था कि एक अज्ञात हाथ ने उसका हाथ पकड़ लिया।
गौतम अचंभित होकर उस हाथ को पहचानने की चेष्टा करने लगा। उसे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि यह तो उसकी बाँहों में बैठे प्रभु गणेश का ही हाथ था।
उसे लगा कि प्रभु इस अंतिम विदा की बेला में…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 27, 2019 at 12:47pm — 10 Comments
12122×4
हमीं थे सच के करीब दिलबर यकीन तुमको दिलायें कैसे
नज़र से तुमने गिरा दिया जब नज़र में तुमको बसायें कैसे
मिज़ाज़ से तो गई नहीं है तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें
जमीं से पौधा उखड़ गया पर हवा से खुशबू मिटायें कैसे
जो पकड़े बैठे हैं जिंदगी को वो अपने साये से डर गए हैं
तमाम दौलत कमा चुके हैं सुकून दिल का कमायें कैसे
ग़ज़ल की उंगली पकड़ के चलना सभी के गम में उदास होना
यही तो शाइर की जिंदगी है हम इसको नेमत बतायें…
ContinueAdded by मनोज अहसास on September 27, 2019 at 2:36am — 6 Comments
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