मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी ये…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 6, 2013 at 10:30am — 25 Comments
तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी
तो शृंगार रस में डुबोकर तूलिका,
मन में कोई छवि बना ली
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख
तूलिका का रंग बदला
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जिसके अंग-अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत ! व्यथित है चित्रकारी
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Added by rajesh kumari on February 4, 2013 at 1:00pm — 13 Comments
यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी
उदासी जहन में जमी तो रहेगी
हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर
वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी
नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी
करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में
हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी
भले मौन हो जाए तेरा नसीबा
कहीं ना कहीं सरग़मी तो रहेगी
वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ
रगो में झलक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 2, 2013 at 8:16pm — 28 Comments
ना जाने कब तुमने चुपके से
ये इश्क के बीज रोपित किये
मेरे सुकोमल ह्रदय में
की मैं बांवरी हो गई
तुम्हारी चाह में ,सांस लेने लगी
उस तिलस्मी फिजाँ में
रंग बिरंगे इन्द्रधनुष आकर लेने लगे
मेरी रग रग में
ऐ मेरे शिखर तुम्हारी गगन चुम्बी चोटी
भी अब सूक्ष्म और सुलभ लगने लगी
मुहब्बत के नशे में चूर
इश्क के जूनून में जंगली
घास बन ,फूलों के संग संग तुम्हारे
बदन पर रेंगती…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 25, 2013 at 11:36am — 10 Comments
{चार चरण मात्रा ३२ यति (१०,८,८,६) , चरणान्त समतुकांत तथा चरणान्त में जगण वर्जित, अंत में गुरु (२)}
(1)निश्शंक जिए जा , कर्म किये जा , ,फल की मत कर ,अभिलाषा
भगवन सब जाने ,सब पहचाने , कृपा करेंगे ,रख आशा
कर मनन निरंतर ,हिय अभ्यंतर,तन मन सुख की ,परिभाषा
पर लोभ बुरा है , क्षोभ बुरा है, पर मन जीते , मृदु भाषा
(2)
शिव हरि नाम भजो ,मद बिषय तजो ,जितेंद्रिय नाम,सुख पाओ
भज दुर्गे अम्बा , माँ जगदम्बा ,मातु रूप नौ , …
Added by rajesh kumari on January 23, 2013 at 11:01pm — 12 Comments
ले गए मुंड काट कायर धुंध में सूरत छुपा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे
बे ज़मीर हो तुम दुश्मनी के भी लायक नहीं
कहें जानवर तो होता उनका भी अपमान कहीं
होते जो इंसा ना जाते अंधकार में दुम दबा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
बारूद के ज्वाला मुखी को दे गए चिंगारी तुम
अब बचाओ अपना दामन मौत के संचारी तुम
भाई कहकर छल से…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 17, 2013 at 11:12am — 16 Comments
उड़ेल दिए क्या नमक के बोरे ,या चाँदी की किरचें बिछाई
लटके यहाँ- वहां रुई के गोले क्या बादलों की फटी रजाई
मति मेरी देख- देख चकराई |
डाल- डाल पर जड़े कुदरत ने जैसे धवल नगीने चुन- चुन कर
लगता कभी- कभी जैसे धुन रहे …
ContinueAdded by rajesh kumari on January 13, 2013 at 7:08pm — 14 Comments
थर्रा गये मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर
जब कर्ण में पड़ी मासूम की चीत्कार
सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते
बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग की दीवार
रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु समंदर
दिलों में नफरतों के नाग रहे फुफकार
उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर
और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 25, 2012 at 7:38pm — 24 Comments
लिखी गई फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां
खिलखिलाई गुलशन में नृशंसता की निशानियां
छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई
उड़ती चिड़िया ने नभ से न आने की कसमें खाई
बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई
गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे, झट उर से चिपकाई
सकुचाई ,फड़फडाई तितली देख देख ये सोचे
कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे
देख सामाजिक ढांचा…
Added by rajesh kumari on December 20, 2012 at 11:30am — 22 Comments
अनुपम अद्दभुत कलाकृति है या द्रष्टि का छलावरण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं द्रग और अंतःकरण
त्रण-त्रण चैतन्य औ चित्ताकर्षक रंगों का ज़खीरा
पहना सतरंगी वसन शिखर को कहाँ छुपा चितेरा
शीर्ष पर बरसते हैं रजत,कभी स्वर्णिम रुपहले कण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण…
Added by rajesh kumari on December 16, 2012 at 10:30pm — 11 Comments
रवि किरणों को कंटक सम चुभता
नोच डाला गिद्धों ने जो गिरी का बदन
करते हैं दोहन उसकी भुजाओं का
कैसे दिखाए नदी शिव को अपना वदन
जब चाहा संहार किया काटी ग्रीवा
आज चुपचाप बिलखते हैं अरण्य सघन
मासूम गंगा की छीन ली पावनता
बहाते गन्दगी धुलते मैले कुचैले वसन
शून्य धरा शून्य अम्बर बचा क्या
प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन
क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को
कुछ तो बचा लो ,सुनो क्या कहे …
ContinueAdded by rajesh kumari on December 2, 2012 at 10:34am — 10 Comments
धन से पत्थर पूजते ,मन में लेकर पाप
ये आडम्बर देखकर ,निर्धन देगा श्राप
निर्धन देगा श्राप ,उलट फल देगी पूजा
दीन धर्म से श्रेष्ठ , कर्म ना कोई दूजा
मन में रख सद्भाव ,करो सभी भक्ति मन से
निर्धन का हर घाव , भरो उसी शक्ति धन से
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Added by rajesh kumari on November 27, 2012 at 9:22am — 6 Comments
धरती अम्बर से कहे ,सुना प्रेम के गीत
अम्बर धरती से कहे, दिवस गए वो बीत
दिवस गए वो बीत ,मुझे कुछ दे न दिखाई
कोलाहल के बीच,तुझे देगा न सुनाई
जन करनी के दंड, अभागिन प्रकृति भरती
किस विध मिलना होय ,तरसते अम्बर धरती
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Added by rajesh kumari on November 23, 2012 at 12:30pm — 17 Comments
चुन चुन के ख्वाब मेरे जलाया दोस्तों
खूँ में उसने आज ये क्या मिलाया दोस्तों
रब से मिलती रही औ घूँट भरती रही
जहर उसने ज्यों प्याले से पिलाया दोस्तों
चाहत घर की रही और मकाँ मिल गया
कैसा किस्मत ने देखो गुल खिलाया दोस्तों
जिस्म अपना रहा औ रूह उसकी मिली
सब कुछ उसकी लगन में है भुलाया दोस्तों
पीर जमती रही औ पर्वत बनता रहा
आंसुओं की तपन ने ना पिघलाया दोस्तों
खुद ही रख दूँ मैं लकड़ी चिता…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 22, 2012 at 1:37pm — 16 Comments
लेकर तिनका चौंच में ,चिड़िया तू कित जाय
नीड महल का छोड़ के , घर किस देश बसाय
घर किस देश बसाय ,सभी सुख साधन छोड़े
ऊँची चढ़ती बेल , धरा पे वापस मोड़े
देख बिगड़ते बाल, माथ मेरा है ठनका
जाती अपने गाँव , चौंच में लेकर तिनका
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(अपने एक ख़याल के ऊपर बनाई यह कुंडली )
चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो शौकत से रहती हो तो वो बोली वहां मेरे बच्चे बिगड़ रहे…
Added by rajesh kumari on November 17, 2012 at 11:00am — 18 Comments
(1) घर की छत के दो बड़े स्तम्भ गिर चुके हैं देखो छोटे स्तंभों पर कब तक टिकती है छत !!
(2)सबने कहा और तुमने मान लिया एक बार तो कुरेद कर देखते मेरी राख शायद मैं तुमसे कुछ कहती !!
(3)जिंदगी में बहुत दूर तक तैरने पर कोई नाव मिली ,कुछ गर्म धूप कुछ नर्म छाँव मिली !!
(4)अपनों के हस्ताक्षर के साथ जब कोई कविता आँगन से बाहर जायेगी ,तो जरूर नया कोई गुल खिलाएगी!!
(5)चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 16, 2012 at 11:14am — 15 Comments
नेता खुद करते फिरें, इधर उधर की ऐश
दीवाली पर ना मिले, तेल, कोयला, गैस
तेल, कोयला, गैस, चूल्हा जलेगा कैसे
रंक भाड़ में जाय, भरलो बैंक में पैसे
वोट दियो पछताय, मनुज अब जाकर चेता
उजले हैं परिधान, ह्रदय से काले नेता
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Added by rajesh kumari on November 7, 2012 at 8:30pm — 11 Comments
गैस होगी न कोयला होगा
चूल्हा ग़मजदा मिला होगा
पेट रोटी टटोलता हो जब
थाल में अश्रु झिलमिला होगा
भूख की कैंचियों से कटने पर
सिसकियों से उदर सिला होगा
चाँद होगा न चांदनी होगी
ख़्वाब में भी तिमिर मिला होगा
भोर होगी न रौशनी होगी
जिंदगी से बड़ा गिला होगा
लग रहा क्यूँ हुजूम अब सोचूँ
मौत का कोई काफिला होगा
बेबसी की बनी किसी कब्र पर
नफरतों का पुहुप खिला होगा
अब बता "राज"दोष है किस…
Added by rajesh kumari on November 6, 2012 at 2:00pm — 20 Comments
"माहिया" में पति पत्नी की चुहल बाजी मात्रा १२,१०,१२ कही कहीं गायन की सुविधा के लिए एक दो मात्रा कम या ज्यादा हो सकती हैं
(पत्नी )
Added by rajesh kumari on October 30, 2012 at 12:00pm — 37 Comments
तीन दोहें....
बाहर रावण फूँक कर ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||
सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश |
कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश ||
सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश |
दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश ||
दो रोलें...
दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा
संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा
अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा
लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद…
Added by rajesh kumari on October 24, 2012 at 2:30pm — 18 Comments
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