चमकती, फैलती, दीपावली की रोशनी देखो
जो फैलाई है तुमने इक नजर वो गन्दगी देखो
हमेशा दूसरों में तो निकाली हैं कमी लाखों, ...
पता चल जाएगा सच, जब कभी अपनी कमी देखो
खुशी अपनी जताने के तरीके तो हजारों हैं,
किसी की मुस्कुराती आँखों के पीछे नमी देखो
मसीहा ही समझता है हमारे दर्द के सच को
वो सबके दर्द लेकर खुश हुआ, उसकी खुशी देखो
वो कुदरत की तबाही, बेघरों के दर्द जाने है,
फरिश्ता ही मना सकता है यूँ दीपावली देखो।
^^^^^^^^^सूबे सिंह सुजान…
Added by सूबे सिंह सुजान on October 23, 2014 at 10:47pm — No Comments
वहशतों का असर न हो जाये
आदमी जानवर न हो जाये
शाम के धुंधलके डराने लगे हैं,
हमसे ओझल नगर न हो जाये
अपने रिश्तों को अपने तक रखना,
मीडिया को खबर न हो जाये
ग़म का पत्थर मुझे दबा देगा,
आपकी हाँ अगर न हो जाये...
आप झुक जाएंगी जवानी में,
टहनियों सी कमर हो जाये
आपका इन्तजार जहर बना,
“सब्र वहशत असर…
Added by सूबे सिंह सुजान on October 6, 2014 at 9:00pm — 2 Comments
दर्द पत्थर को जब सुनाता था
मुझको पत्थर और आजमाता था।
बोलना,उसके सामने जाकर,
मैं तो अन्दर से काँप जाता था
वो समझता न था,मेरे अहसास,
मैं तो मिट्टी पे लेट जाता था
इतनी पूजा की विधि थी उसके पास,
हर किसी को वो लूट जाता था
आज मालूम हो गया मुझको,
एक पुतला मुझे डराता था।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on September 18, 2014 at 9:55am — 5 Comments
भारतीय या किसी अन्य देश व प्रांत की भाषा,संस्कृति,धर्म व जीवन शैली वंहा की अपनी मौलिक व प्राकृतिक होती है । जिसका स्वतः विकास होना अति आवश्यक होता है। परंतु अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा दूसरे राज्य,संस्कृति,धर्म,पर अनावश्यक दबाव मानवीय मूल्यों को क्षति तो पहुंचाता है साथ ही अनैतिक है। किसी भी सच्चे अर्थों में जो मानव होते हैं उन्हें यह अनैतिक दबाव सहन नहीं होता , जिसके कारण मानव आपस में लडते हैं और मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है। सच्चे अर्थों में मानव के लिये ऐसा कार्य निंदनीय होता है। भारतीय…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 8, 2014 at 10:27pm — No Comments
अब खतरनाक हो गया बादल
या कहें बेलगाम है पागल
कोई तो इन्द्र को ये समझाये,
कर रहा है किसान को घायल
आसमाँ ने कहा शराबी है,
मेघ नाचे है बाँध कर पायल
ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,
बालियों में है धूधिया चावल
गडगडाहट करे, डराये है,
बिजलियाँ हो रही तेरी कायल
.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on September 4, 2014 at 12:00am — 8 Comments
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....
जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,
इसलिये हिन्दी को करें धारण
विश्व को आओ सच बतायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....
सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में
एक इतिहास जिसकी गाथा में
अपनी गाथायें मत भुलायें हम...
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....
संस्कृत रक्त में समायी है
देव भाषा वही बनायी है
अपने सम्मान को बढायें हम..
आओ हिन्दी पढें…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 2, 2014 at 11:00pm — 12 Comments
चाँद की आँख में नमी होगी
लोगों को ईद पर खुशी होगी
चाँद हर रोज देखता है तुम्हें,
आपकी आज बेबसी होगी
जिंदगी रोज खून से लथपथ,
आज कैसे ये जिंदगी होगी
गर्दनें काट कर दिखाते हो,
क्या खुशी फिर भी ईद की होगी
अन्ध-विश्वास से लडाई है,
अब लडाई ये रोकनी होगी
छोड दो अपना-अपना कहना उसे,
इस तरह खत्म दुश्मनी होगी
आज इनसानियत है खतरे में,
क्या वजह है ये सोचनी…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on July 29, 2014 at 10:00pm — 18 Comments
भीषण गरमी का मौसम( अतुकांत)
भीषण गरमी के मौसम में
हम करते हैं आराम।
लेकिन जिन्दगी में,
कैसे करें आराम ।
काली काली जामुन
सावन से पहले की मीठी मीठी
हमने खायी,नहाते नहाते
क्या बिन बिजली हम जीते नहीं थे
अब सब बिजली के बिन चिल्लाते हैं
मजदूरों को कभी गरमी नहीं लगती
न वो बोलते हैं
अगर बोलें भी , तो कोई नहीं सुनता।।
मौलिक व अप्रकाशित।
Added by सूबे सिंह सुजान on June 29, 2014 at 1:22pm — 7 Comments
तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।
मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।
सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,
जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।
हम प्रेम प्रेम प्रेम करें, प्रेम प्रेम प्रेम,
कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।
हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,
परमात्मा ने प्रेम, हमें सर्वथा दिया।।
वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,
देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on May 17, 2014 at 10:00pm — 25 Comments
रसिया
आज होली मनाओ रे रसिया
रंग में भीग जाओ रे रसिया
दिल से दिल को मिलाओ रे रसिया
दुश्मनी भूल जाओ रे रसिया.
आज होली मनाओ रे रसिया........
मस्तों की रंग - भंग है टोली
नैनों से मारे रंगों की गोली
छोड शर्मो हया मेरे हमजोली
आओ खेलेंगे मिल के हम होली...
दोस्तों को मिलाओ रे रसिया ..
प्यार दिल से जगाओ रे रसिया..
आज होली मनाओ रे रसिया..
रंग में भीग जाओ रे…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 9, 2014 at 11:00pm — 16 Comments
बात ही बात है
हर जगह बात है
हवा थक चुकी है
बात ही बात से,
बूँदों को बार बरसना पड रहा है
ताकि उसकी तरफ भी कोई देखे,
लेकिन लोगों को बात से फुरसत नहीं है।
बात को बात से लडाया जा रहा है
बात किसी को नहीं देख पा रही है
कौन उसका है,और कौन पराया है
बात लोगों से नाराज है।
बात ही बात से।
लोगों के दिमाग़ पर छाई है बात
बात लोगों से तंग है
लोग बातों से तंग हैं
ये वर्तमान में जीने के…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 1, 2014 at 11:30pm — 9 Comments
2 2 1 2 1 2 1 1 2 2 1 2 1 2
अब राजनीति सबकी रगों में समा गई
विश्वास खो गया,तो कंही आस्था गई ।।
मैं देखता हूँ मेरे नगर में ये क्या हुआ,
लडकी खुशी-खुशी से ही इज्जत लुटा गई।
हर मोड पर जो शहर के आवारगी खडी,
मैं क्या करूँ बजुर्गों की चिन्ता बढा गई।
बादल न जाने किसके हवन पर गया कंही,
रूठी हुई सी तन्हा अकेली हवा गई।
महफिल में ही किसी ने मेरी बात छेड दी,
सुनते ही इतना रूप की गागर लजा…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on January 14, 2014 at 10:30pm — 25 Comments
ग़ज़ल-
.
मौसम की आसमान में जाहिर हुई खुशी।
खुश्बू है आम की, और कोयल है कूकती।।
बाहर निकल के घर से जरा खेत में चलें,
फ़सलों की खुश्बुओं से निखरती है जिन्दगी...
सूरज को प्रातः काल नमस्कार कीजिये,
अंधकार वो भगाये है, देता है रोशनी....
है आज मेरी और सितारों की ग़फतगू,
ऐ-चाँद पास आओ जरूरत है आपकी...
बरसों गुजर गये हैं मुलाक़ात भी हुये,
अब भी ख़याल आता है मुझको…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on December 7, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
जख़्म किसने दिया बता दूँ क्या ?
दिल में चाकू कहो घुमा दूं क्या ?
हुक़्म पे तेरे चलता हूं आका ,
ये वफ़ादारियाँ निभा दूँ क्या ?
देखता हूं जिसे मैं सपनों में,
उसकी तस्वीर भी दिखा दूँ क्या ?
आपकी राजनीति कहती है
बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या ?
अब किसी काम ही नहीं आता,
आग संविधान में लगा दूँ क्या?
sube singh sujan
यह रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है।
Added by सूबे सिंह सुजान on November 28, 2013 at 10:13pm — 20 Comments
तज़्मीन-- किसी अन्य शायर के शेर पर, शेर से पहले तीन पंक्तियाँ नई इस तरह से जोडना कि वे पंक्तियाँ उसी शेर का अविभाज्य अंग लगें। मैं डा. सत्य प्रकाश तफ़्ता ज़ारी के दो शेरों पर दो तज़्मीन पेश कर रहा हूँ। गौर फरमाईयेगा।
1.
जिन्दगी सुन्दर बगीचा फूल,चुन
कह रहे कुछ ख़्वाब तेरे,उनको सुन
तेरे अन्दर बज रही संगीत धुन-------सूबे सिंह सुजान
हो सके ग़ाफिल। अगर तू उसको सुन,
तेरे अन्दर जो तेरी आवाज़ है।। -----डा. सत्य प्रकाश तफ़्ता…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 9, 2013 at 11:00pm — 13 Comments
लघुकथा-लौटना
मन के कोने में कुछ विचार उथल-पुथल मचा रहे थे। कि मनुष्य को जब आगे कुछ दिखाई दे रहा हो तो वह आगे बढ कर उसे समेट लेने की सोचता है जबकि जिस जगह वह खडा होता है वह वहां तक उसी रास्ते से आया है। जिस रास्ते को वह आगे देखते हुय़े भूल जाता है। सोचते-सोचते सागर अपनी यादों में खो जाता है और बिल्कुल अकेला हो जाता है वह याद करता है कि किस तरह उसकी प्रयेसी कुसुम उसके आफिस में उससे दुनिया से अलग हट कर प्यार करने की बातें करती थी। और प्यार जताती भी थी, जब उसका तबादला हो गया तो वह…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on August 27, 2013 at 7:30am — 9 Comments
सबको बरसात अच्छी लगती है
किन्तु कब तक ये अच्छी लगती है।
कम दिनों के लिये सुहानी है
थोडी-थोडी पडे तो पानी है
ज्यादा तो मौत की कहानी है
इसकी कुछ बात अच्छी लगती है
सबको बरसात अच्छी लगती है .......।
सब नदी-नाले ये चलाती है
रास्ते भी यही बनाती है
हमको चलना यही सिखाती है
हर मुलाक़ात अच्छी लगती है
सबको बरसात अच्छी लगती है........
पेड-पौधों का सबका कहना है
साथ इसके सभी को रहना…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on June 25, 2013 at 11:30pm — 14 Comments
पिता परमात्मा सा होता है
जो जन्म देकर दुनिया में ले आता है
वो दुनिया दिखाने वाला पिता,परमात्मा से कैसे कम है
हमारी आहट से जो सन्न हो जाता है
जिसके भीतर हर पल हमारे पालन की चिन्ता पलती है
जो हमें जन्म देने के बाद,
अपने सारे सुख भूल जाता है।।
दुनिया में हमारे आने के बाद
वो एक राह पर ही चलता है
और अपने पुरातन ताज्य कार्य भी छोड देता है
उसकी दुनिया हमारी आहट से बदल जाती है
वो पिता परमात्मा सा होता…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on June 10, 2013 at 4:38pm — 11 Comments
माहिया पंजाब से उपजा है। जो कि शादी-ब्याह में गाया जाता रहा है।
माहिया का छन्द है मात्रायें- तीन चरणों में पहले में 2211222 दूसरे में 211222 तीसरे में 2211222
************************************
माहिया-1.
कजरा ये मुहब्बत का,
तुमने लगाया है,
आँखों में कयामत का।
2.
कजरा तो निशानी है,
अपनी मुहब्बत की,
चर्चा भी सुहानी है।
3.
आँखों से बता देना,
तुमने कंहाँ सीखा,
ये तीर चला…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on June 1, 2013 at 10:00pm — 9 Comments
जिन्दगी तुमसे लड नहीं पाया ।
हमने आख़िर में ख़ुद को समझाया।।
कुछ नहीं आदमी के हाथों में,
मरते-मरते ये सबने समझाया।।
जिन्दगी भर गरूर रहता है,
मौत के वक़्त ये नहीं पाया।।
जिन्दगी हर कसौटी पर जी,ली,
इसलिये राम,राम कहलाया।।
आदमी लालची ही होता है,
भूल जाता है राम की माया।।
मैं बहकता रहा हूँ उतना ही,
आपने मुझको जितना बहकाया।।
रात से हमको मिलती शीतलता,
रात ने शांत रहना…
Added by सूबे सिंह सुजान on May 31, 2013 at 11:00pm — 19 Comments
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