आँज गगन का नील निगाहें
लगती गहरी झील निगाहें
माँस बदन पर दिख जाये तो
बन जाती है चील निगाहें
आन टिकी है मुझ पर सबकी
चुभती पैनी कील निगाहें
बंद गली के उस नुक्कड़ पर
करती है क्या डील निगाहें
इक पल में तय कर लेती है
यार हज़ारों मील निगाहें
बाँध सकेगा मन क्या इनको
देती मन को ढील निगाहें
दिखने दे ‘खुरशीद’ नज़ारे
किरणों से मत छील निगाहें
मौलिक व…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 18, 2015 at 3:30pm — 18 Comments
मातृधरा को शीश नवाने फिर आऊँगा
जननी तेरा कर्ज़ चुकाने फिर आऊँगा
चंदन जैसी महक रही है जो साँसों में
उस माटी से तिलक लगाने फिर आऊँगा
आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में
उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा
इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन
आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा
गोपालों के हँसी ठहाके यादों में हैं
चौपालों की शाम सजाने फिर आऊँगा
खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन
जेठ दुपहरी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 11, 2015 at 11:29am — 24 Comments
२१२२ — १२१२ — ११२(२२)
खिल रहे हैं सुमन बहारों में
झूमता है पवन बहारों में
ओढ़कर फागुनी चुनर देखो
सज गया है चमन बहारों में
आइने की तरह चमकता है
निखरा निखरा गगन बहारों में
यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों
हो गया शोख़ मन बहारों में
देखते हैं खिलाता है क्या गुल
आपका आगमन बहारों में
हो धनुष कामदेव का जैसे
तेरे तीखे नयन बहारों में
घुल गई है फिज़ा में मदिरा…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 12:00pm — 18 Comments
1222-1222-1222-1222
दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत
रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत रियाज़त=परिश्रम
तबस्सुम के दिये की लौ गला देगी हर इक ज़ंजीर
शब-ए-गम की तवालत से असीरों को डराओ मत तवालत=लम्बाई, असीर=कैदी
ये जन्नत की हक़ीक़त भी बख़ूबी जानते हैं जी
दिखाकर डर जहन्नुम का ग़रीबों को डराओ मत
मज़ा आने लगा है अब सभी को दर्द-ए-उल्फ़त…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 1:00pm — 13 Comments
1222--1222--1222--1222
ख़ला की गोद में लाकर हमेशा छोड़ देते हैं
तसव्वुर के परिंदे साथ मेरा छोड़ देते हैं
अँधेरी रात हमने तो ब मुश्किल काट ली यारों
तुम्हारे वास्ते उजला सवेरा छोड़ देते हैं
ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी
जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं
हमारा नाम लेकर अब न रुसवाई तेरी होगी
मुसफ़िर हम तो ठहरे शह्र तेरा छोड़ देते हैं
लड़कपन में जिन्हेँ चलना सिखाया थामकर…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 2, 2015 at 10:30am — 18 Comments
१२२२—१२२२—१२२२
उमंगों के चरागों को बुझाओ मत
उजाले को अँधेरों से डराओ मत
न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का तगाफ़ुल= उपेक्षा
परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत
उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन
तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत
चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी
सताओ मत सताओ मत सताओ मत
सजाओ आइने दीवार में लेकिन
हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत
बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी
मगर उर्यां…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:38am — 26 Comments
थकन से चूर होकर , गिरे तो सो गये हम
जो चलते चलते गाफ़िल , हुये तो सो गये हम
हमारी भूख का क्या , हमारी प्यास का क्या
ये अहसासात दिल में , जगे तो सो गये हम
शनासा भी न कोई , तो अपना भी न कोई
अकेले थे अकेले , रहे तो सो गये हम
हमारी नींद सपने , सजाती ही नहीं है
हक़ीक़त से जहाँ की , डरे तो सो गये हम
मनाओ शुक्र तुम हो , गमों से दूर साथी
हमें तुम मुस्कुराते , मिले तो सो गये हम
हमारा दर्द…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 26, 2015 at 2:00pm — 22 Comments
दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया
पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया
प्यार मुहब्बत , भाईचारे ,मानवता की
नहीं समझती बातें सीधी सादी ,दुनिया
दिन सी उजली रातें भी हो जाये यारों
अँधियारे में रहे भला क्यूं आधी दुनिया
घर से ऑफिस ऑफिस से घर फिर कुछ ग़ज़लें
सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
शहरों में है झूठे दर्पण…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 1:26pm — 13 Comments
आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये
फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये
गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं
घाटियों में आप इन बादलों को देखिये
रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर
आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये
दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे
दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये
रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा
मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये
आपके सर पर चलो एक छत है तो…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 13, 2015 at 9:30am — 18 Comments
२१२२--२१२२--२१२
आपके किरदार को समझा चलो
नाग की फुफकार को समझा चलो
हार कर संसार से हर दौड़ में
वक़्त की रफ़्तार को समझा चलो
मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का
ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो
कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं
वो मेरे आज़ार को समझा चलो
सर गँवा कर भी बचा ली आबरू
क़ीमती दस्तार को समझा चलो
दोस्त था लेकिन अदू से जा मिला
मैं भी इक अय्यार को समझा चलो
ख़ामोशी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:47pm — 15 Comments
१२२२-१२२२-१२२२-१२२२
अना के ज़ोर से कमज़ोर रिश्ते टूट जाते हैं
ज़रा सी बाहमी टक्कर से शीशे टूट जाते हैं
गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी
गर आपस में उलझ जायें तो धागे टूट जाते हैं
बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो
ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं
किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी
करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं
तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 9, 2015 at 10:59am — 20 Comments
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
तेरी यादों की बूबास घुलेगी ज्यूं ज्यूं
बढ़ती जाएगी त्यूं त्यूं महकार समय की
वक़्त कहाँ मिलता है दुनियावी पचड़ों से
मेरी ग़ज़लें सारी है बेकार समय की
वक़्त सिकंदर विश्व-विजेता सदियों से है
सुल्तानी लाफ़ानी है सरदार समय की
चंदा-सूरज गगन-पवन सब मौन खड़े हैं
आयु कौन बतलायेगा सुकुमार समय की
बैर भूलकर मीत बनें सब एक…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 2:43pm — 18 Comments
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
युगों युगों तक फैला है कुहसार वसन का कुहसार =पर्वतांचल
कौन अज़ल से बाँध रहा दस्तार समय की दस्तार = पगड़ी
नोक कलम की पर रखते हैं काल तीन हम
केवल हमने स्वीकारी ललकार समय की
ख़ार दर्द के चुनकर गीत उगायेंगे हम
कर जायेंगे वादी हम गुलज़ार समय की
तू ऊषा की लाली मैं संध्या का…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 1:28am — 11 Comments
ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
मोल समय का उससे जाकर पूछो माधो
नासमझी में जिसने झेली मार समय की
जीवन नैया पार हुई बस उस केवट से
कसकर थामी जिसने भी पतवार समय की
आलस छोड़ो साहस धारो कर्म करो तुम
उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की
कद्र तुम्हारी ये संसार करेगा उस दिन
कद्र करोगे जिस दिन बरखुर्दार…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 3:30pm — 19 Comments
1222 1222 1222 122
नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से
शब-ए-ग़म में नया किस्सा चलो इक बार फिर से
तेरे पिंदार का दामन तसव्वुर थाम लेगा
तेरी यादें तेरा चर्चा चलो इक बार फिर से
किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की
वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से
किसी पर तंज़िया पत्थर उछालेंगे न हरगिज
यही ख़ुद से करें वादा चलो इक बार फिर से
बुझेगी तिश्नगी अपनी शरारों से हमेशा
निगलने आग का दरिया चलो…
ContinueAdded by khursheed khairadi on December 31, 2014 at 11:00am — 13 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
महबूब ख़ुदा मेरा ,उल्फ़त ही इबादत है
है दीन बड़ा मुश्किल ,आसान मुहब्बत है
तेजाब छिड़कते हो कलियों के तबस्सुम पर
कहते हो इसे मज़हब ,क्या ख़ूब इबारत है
ये खून खराबा क्यूं ,ये शोर शराबा क्यूं
मैं किसको झुकाऊँ सिर ,इसमें भी सियासत है
इक सब्ज़ पैराहन पर , है खून के कुछ छीटें
दहशत में लड़कपन है ,नफ़रत की वज़ाहत है वज़ाहत=विस्तार \पराकाष्टा
बारूद की बदबू है ,बच्चों के खिलौनों…
ContinueAdded by khursheed khairadi on December 28, 2014 at 11:00pm — 10 Comments
अपनी ही परछाई से डर लगता है
मुझको इस तन्हाई से डर लगता है
साथ देखकर भाईयों का जग डरता
भाई को अब भाई से डर लगता है
मनमोहक है भोलापन उसका इतना
दुनिया की चतुराई से डर लगता है
मौन रहूं या झूठ कहूं उलझन में हूं
लोगों को सच्चाई से डर लगता है
सारा जीवन सहराओं में भटका हूं
मुझको अब अमराई से डर लगता है
कानों में इक सिसकी सीसा घोल गई
मुझको अब शहनाई से डर लगता है
ग़म…
ContinueAdded by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:30pm — 10 Comments
एक धरा है एक गगन है
किंतु विभाजित अपना मन है
मीत किसी का ख़ाक बनेगा
उसकी ख़ुद से ही अनबन है
याद तुम्हारी महकाये मन
इस सहरा में इक गुलशन है
स्वर्ग तिहारे चरणों की रज
मातृधरा तुझको वंदन है
चौक बड़ा सा एक चबूतर
यादों में कच्चा आँगन है
नहीं बहलता खुशियों से मन
ग़म से अपना अपनापन है
आँसू बाती आँखें दीपक
दुख की लौ में सुख रोशन है
घाव दिये…
ContinueAdded by khursheed khairadi on December 23, 2014 at 12:30pm — 22 Comments
खेतों की हरियाली गुम है
गाँवों की खुशहाली गुम है
बंद जहाँ है खुशियाँ सारी
उस ताले की ताली गुम है
जाने किस जंगल में गुम हूं
दुनिया देखी भाली गुम है
कैसी फ़सलें बोयी माधो
बूटे गायब बाली गुम है
शहरों में मजदूरी करते
बागों के सब माली गुम है
झूलों वाला सावन गुमसुम
अमुवे वाली डाली गुम है
क्यूं पलकें ‘खुरशीद’ हुई नम
वो अलकें घुँघराली गुम है
मौलिक व…
ContinueAdded by khursheed khairadi on November 12, 2014 at 9:30am — 7 Comments
दिल्ली के दावेदारों तुम , देहातों में जाकर देखो
तकलीफ़ों की लहरें देखो ,गम का गहरा सागर देखो
सूरज अंधा चंदा अंधा , दीप बुझे हैं आशाओं के
रातें काली हैं सदियों से , और दुपहरें धूसर देखो
निर्धन की झोली में है दुख ,मौज दलालों के हिस्से में
कुटिया देखो दुखिया की तुम ,वैभव मुखिया के घर देखो
मोती निपजाने वाले तन ,धोती को तरसे बेचारे
गोदामों में सड़ता गेंहूं , भूखे बेबस हलधर देखो
आँसू गाँवों के भरते हो ,…
ContinueAdded by khursheed khairadi on November 11, 2014 at 9:00am — 8 Comments
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