मन की खिड़की पर जमा, छली कुल-जमा एक |
तीनों पाली में छले, बरबस रस्ता छेंक |
बरबस रस्ता छेंक, आह-उच्छ्वास छोड़ती |
पाऊँ कष्ट अनेक, व्यस्त हर कष्ट जोड़ती |
रविकर कैसा मोह, नहीं दे पाऊँ झिड़की |
चिदानन्द सन्दोह, बंद कर मन की खिड़की ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 5, 2013 at 9:33am — 9 Comments
बखियाने से साड़ियाँ, बने टिकाऊ माल |
लेकिन खोंचा मार के, कर दे दुष्ट बवाल |
कर दे दुष्ट बवाल, भूख नहिं देखे जूठा |
सोवे टूटी खाट, नींद का नियम अनूठा |
खोंच नींद तन भूख, कभी भी देगा लतिया |
रविकर रह चैतन्य, अन्यथा उघड़े बखिया ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 4, 2013 at 4:25pm — 7 Comments
ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |
पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 2, 2013 at 6:46pm — 15 Comments
गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दोहरे पर, व्यवहारिक भरपूर |
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जैसे ढलती |
रोज करे फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
मौलिक/अप्रकाशित
Added by रविकर on September 2, 2013 at 10:00am — 6 Comments
माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |
आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |
रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||
*ईश्वर ना करे -
आदरणीय पाठक गण-कृपया नौज के उपयोग पर कुछ कहें-
मौलिक/अप्रकाशित-
Added by रविकर on September 1, 2013 at 9:00pm — 3 Comments
टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |
नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||
.
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on August 31, 2013 at 6:30pm — 11 Comments
वंशीधर का मोहना, राधा-मुद्रा मस्त ।
नाचे नौ मन तेल बिन, किन्तु नागरिक त्रस्त ।
किन्तु नागरिक त्रस्त, मगन मन मोहन चुप्पा ।
पाई रहा बटोर, धकेले लेकिन कुप्पा ।
बीते बाइस साल, हुई मुद्रा विध्वंशी ।
चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on August 29, 2013 at 8:30am — 12 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
हाकी काकी सी सरस, क्रिकेट बुआ हमार |
राखी भैया-द्वीज पर, पा विशेष उपहार |
पा विशेष उपहार, हार हीरों का पाई |
जाए हीरो हार, करोड़ों किन्तु कमाई |
काकी का कर्तव्य, करे नित सेवा माँ की |
लेडी मेवा खाय, खूब चीयर हा हा की ||
Added by रविकर on August 27, 2013 at 12:00pm — 6 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
"पक्के-बाड़े" में पिले , जबसे सु-वर तमाम ।
मल-मलबा से माल तक, खाते सुबहो-शाम ।
खाते सुबहो-शाम, गगन-जल-भूमि सम्पदा ।
करें मौज अविराम, इधर बढ़ रही आपदा ।
उनको सुवर हराम, अहिंसा अपने आड़े ।
"मत" हिम्मत से मार, शुद्ध कर "पक्के-बाड़े" ।।
Added by रविकर on August 22, 2013 at 8:58am — 6 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।
आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।
गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।
डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए ।
बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े ।
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥
Added by रविकर on August 20, 2013 at 1:42pm — 5 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान |
दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली |
आये झँझावात, काट दे माँझा-माली |
लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी |
सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी ||
Added by रविकर on August 17, 2013 at 2:43pm — 5 Comments
नकारात्मक ग्रोथ से, होवे बेडा गर्क ।
सकल घरेलू मस्तियाँ, इन्हें पड़े नहिं फर्क-
आम जिंदगी नर्क बनाए ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
रोटी थाली की छिने, चाहे रोजी जाय ।
छद्म धर्म निरपेक्षता, मौला-ना मन भाय -
फिर भी फिर सरकार बनाये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
पाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ ।
सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -
अन्दर वह सीमा सरकाए ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
चला…
ContinueAdded by रविकर on July 14, 2013 at 8:00pm — 4 Comments
हम ले दे के चार मन, दिग्गी मम्मी पूत ।
हमले रो के रोक लें, पर कैसे यमदूत ।
पर कैसे यमदूत, नस्ल कुत्ते की इनकी ।
मार काट का पाठ, पढ़े ये कातिल सनकी ।
मन्दिर मस्जिद हाट, पहुँच जाते हैं बम ले ।
पुलिस जोहती बाट, भाग जाते कर हमले ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on July 11, 2013 at 11:01am — 12 Comments
पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश |
चारो पाये तंत्र के, दिये हमें पर क्लेश |
दिये हमें पर क्लेश, दिये टिमटिमा रहे हैं |
हुआ तैल्य नि:शेष, काल ने प्राण गहे हैं |
है आश्वासन झूठ, मूठ हल की जब आये |
पाये हल हर हाल, जियें मानव चौपाये ||
मौलिक/अप्रकाशित
Added by रविकर on July 5, 2013 at 9:01pm — 4 Comments
बिपदा बढ़ती बहु-गुणा, बा-शिंदे बेहाल |
बस-बेबस बहते बहे, बज-बंशी भूपाल |
बज बंशी भूपाल, बहर बंदिशें सुरीली |
मनमोहन मदमस्त, मगन मीरा शर्मीली |
चले अचल छल-चाल, भयंकर नदी बिगडती |
चारो तरफ बवाल, हमारी बिपदा बढ़ती ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on July 4, 2013 at 11:00pm — 7 Comments
हो जाती कुदरत खफा, देती मिटा वजूद ।
उलथ उत्तराखंड ज्यों, होय नेस्तनाबूद ।।
क्या मूरख मानव चेता ।।
विस्फोटों से तोड़ते, ऊंचे खड़े पहाड़ ।
हाड़ कुचलते शैलखंड, अपना मौका ताड़ ।।
ऐसे ही बदला लेता ।।
सरिता-झरना का करे, मनुज मार्ग अवरुद्ध ।
कुछ वर्षों में ही मगर, कर दे वर्षा शुद्ध ।।
जीव-जंतु घर बार समेता ॥
विजय होय बहु-गुणों से, किन्तु चेतना सून।
मार जाय लाखों मनुज, ज्यों तेरह का जून ॥
धिक्कारो ऐसा…
ContinueAdded by रविकर on July 2, 2013 at 11:11am — 11 Comments
थोथी-थूल दलील दे, भाँजे लापरवाह |
लीला लाखों जिंदगी, कातिल है नरनाह |
कातिल है नरनाह, दिखाए दुर्गति-लीला |
विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला |
धरे हाथ पर हाथ, मजे में बाँचे पोथी |
छी छी सत्ता स्वार्थ, थुड़ी थू थोथा-थोथी ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on July 1, 2013 at 7:33pm — 12 Comments
होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ।
अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = गंगा जी
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 29, 2013 at 10:50am — 9 Comments
मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥
आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥
घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥
नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 28, 2013 at 4:44pm — 8 Comments
सवैया -
(1)
बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |
गान्धि सरोवर हिंसक हो मलबा-जल ढेर बहावत क्यूँ |
शंकर नेत्र खुला तिसरा करते धरती पर तांडव ज्यूँ |
धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ |
(2)
सवैया -
नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा |
कष्ट बढ़ा गतिमान नदी करती कलिका किलकार कलेवा |
दूर रहे सरकार जहाँ बस खाय रही कुरसी-कर-मेवा |
हिम्मत से तब फौज…
Added by रविकर on June 28, 2013 at 9:30am — 4 Comments
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