२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पानी नहीं नदी से जिन्हें रेत चाहिए
रचने को सेज अन्न का हर खेत चाहिए।२।
*
औषध नहीं पहाड़ से पत्थर खदान कर
कंक्रीट के नगर को वो समवेत चाहिए।२।
*
दो पल के सुख दे छीनले पूरी सदी को जो
सब को विकास नाम का वो प्रेत चाहिए।३।
*
छाया से पेड़ की नहीं लकड़ी से प्यार है
कुर्सी को जंगलों की सभी बेत चाहिए।४।
*
धरती को नोच चाँद को रौंदा उन्हें यहाँ
रीती नदी में नीर का संकेत चाहिए।५।
*
वैभव नगर का साथ में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2022 at 6:40am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
अब झूठ राजनीति में दस्तूर हो गया
जिस का हुआ विरोध वो मशहूर हो गया।१।
*
जनता के हक में बोलते जो काम बोझ है
नेता के हक में काम वो मन्जूर हो गया।२।
*
कहते हो वोट शक्ति का पर्याय है अगर
क्यों लोक आज देश का मजबूर हो गया।३।
*
जो चाहे मोल दे के करा लेता काम है
कानून जैसे देश का मजदूर हो गया।४।
*
जनता न राजनीति की मन्जिल बनी कभी
उपयोग उस का राह सा भरपूर हो गया।५।
*
होता भला न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2022 at 3:30am — 2 Comments
सत्य
उषा अवस्थी
असत्य को धार देकर
बढ़ाने का ख़ुमार हो गया है
स्वस्थ परिचर्चा को
ग़लत दिशा देना
लोगों की आदत में
शुमार हो गया है।
असत्य के महल खड़े कर
खिल्ली मत उड़ाओ
अनेकानेक झूठ को
सत्य से,धूल चटाओ
शास्त्र वाक्यों को दोराकर
अभिमान मत जताओ
कर्म में परिणित करो
व्यर्थ मत,समय गँवाओ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 1, 2022 at 7:05pm — 2 Comments
दीवारें हैं छत हैं
संगमरमर का फर्श भी
फिर भी ये मकान अपना घर नहीं लगता
चुकाता हूँ
मैं इसका दाम, हर तारीख पहली…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 1, 2022 at 11:30am — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
*
सियासत को आता है तलवार पढ़ना
उसे भी सिखाओ तनिक प्यार पढ़ना।।
*
किसी दिन सभी कुछ यहाँ फूक देगा
सिखाओ न अब तुम ये अंगार पढ़ना।।
*
वही झूठ हर दिन वही दुख भरा है
सुखद कब लगेगा ये अखबार पढ़ना।।
*
शिखर खोजते है बहुत लोग लेकिन
किसी को न भाता है आधार पढ़ना।।
*
कभी तो पढ़ेगा वो संसार घर हैं
जिसे आ गया घर को संसार पढ़ना।।
*
जमाने को अच्छा अगर कर न पाये
समझ लो हुआ सबका बेकार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2022 at 2:53am — 9 Comments
22 22 22 22 22 2
जबसे तुमने मिलना-जुलना छोड़ दिया
यूँ लगता है जैसे नाता तोड़ दिया
मंदिर-मस्जिद के चक्कर में कितनों ने
पुश्तैनी रिश्तों को यूँ ही तोड़ दिया
मुझ पर है इल्ज़ाम कि मैं चुप रहता हूँ
तुम ने भी तो लड़ना-वड़ना छोड़ दिया
मुझको आगे आते जो देखा उसने
ग़ुप-चुप अपनी राहों का रुख़ मोड़ दिया
मुझको बीच समंदर उसने जाने क्यों
लहरों की बाहों में तन्हा छोड़…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 30, 2022 at 10:44pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२
*
जो नदी की आस लेकर जी रहे हैं
एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं।१।
*
है बहुत धोखा सभी की साँस में यूँ
परकटे विश्वास लेकर जी रहे हैं।२।
*
जो पुरोधा हैं यहाँ स्वाधीनता के
साथ अनगिन दास लेकर जी रहे हैं।३।
*
भोग में डूबे स्वयम् उपदेश देकर
कौन ये सन्यास लेकर जी रहे हैं।४।
*
जिन्दगी उन को लुभा ले हर्ष देकर
जो मरण की आस लेकर जी रहे हैं।५।
*
एक दिन तो ईश को सुनना पड़ेगा
जीभ में अरदास लेकर जी रहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2022 at 10:50am — 11 Comments
गज़ल
221 2121 1221 212
अख़लाक पर मुहब्बत भरोसा रहा नहीं
हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं
दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ
जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं
लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती
गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं
गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी
क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं
औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है
मत खेल तू ज़मीर से…
Added by Chetan Prakash on June 30, 2022 at 10:00am — 1 Comment
२१२ १२१२ १२१२ १२१२
चाहता रहा उसे मगर न बोल पा रहा
उम्र बीतती रही मलाल सालता रहा
जिंदगी की दोपहर अगर-मगर में रह गयी
शाम की ढलान पर किसे पुकारता रहा ?
बाद मुद्दतों दिखा.. हवा सिहर-सिहर गयी
मन गया कहाँ-कहाँ, मैं बस वहीं खड़ा रहा
आयी और छू गयी कि ये गयी कि वो गयी
मैं इधर हवा-छुआ खुमार में पड़ा रहा
रौशनी से लिख रखा है खुश्बुओं में डूब कर
खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा !
बादलो, इधर न आ…
Added by Saurabh Pandey on June 27, 2022 at 11:00pm — 15 Comments
ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में
जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में
चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ
क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात
जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 27, 2022 at 12:25pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
सीमित से दायरे में न पल भर उड़ान हो
उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।
*
दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के
राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।
*
केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए
इस को नहीं जरूरी बड़ा खानदान हो।३।
*
मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें
इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।
*
जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे
जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।
*
हिस्से में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2022 at 7:00am — 4 Comments
पाँच दोहे मेघों पर . . . . .
अम्बर में विचरण करे, मेघों का विस्तार ।
सावन की देने लगी, दस्तक अब बौछार ।।
मेघों का मेला करे, अम्बर का शृंगार ।
आज दिवाकर लग रहा, थोड़ा सा लाचार ।।
थोड़ी सी है धूप तो, थोड़ी सी बरसात ।
अम्बर में आदित्य को, बादल देते मात ।।
बादल नभ को चूमते, पहन श्वेत परिधान ।
हंसों की ये टोलियाँ, आसमान की शान ।।
नील वसन पर कर दिया, मेघों ने शृंगार ।
धरती पर चलने लगी, शीतल मस्त बयार…
Added by Sushil Sarna on June 24, 2022 at 2:30pm — 6 Comments
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे नैना चार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मुझसा प्यार करो
कब चाहा मैंने के तुम मेरे जैसा इज़हार करो
कब चाहा मैंने के तुम अपने प्रेम का इकरार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलने को तड़पो
कब…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 24, 2022 at 10:59am — No Comments
हंसगति छन्द. . . .(11,9)
जले शमा के साथ, रात परवाने ।
करें इश्क की बात, शमा दीवाने ।
दिल को दिल दिन-रात, सुनाता बातें ।
आती रह -रह याद, तन को बरसातें ।
* * * *
बिखरी-बिखरी ज़ुल्फ,कहे अफसाने ।
तन्हा - तन्हा आज, लगे मैख़ाने ।
पैमानों से रिन्द , करें मनमानी ।
अब लगती है जीस्त , यहाँ बेमानी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुशील सरना / 23-6-22
Added by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 1:14pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . .
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत इसकी प्यास ।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत…
Added by Sushil Sarna on June 22, 2022 at 6:12pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
खंडित करे न देश को तलवार मजहबी
आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।
*
मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना
करते रहे हैं लोग जो व्यापार मजहबी।।
*
जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा
इन्सानियत से दूर हो सन्सार मजहबी।।
*
माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो
इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।
*
समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है
बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।
*
करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments
1212 1122 1212 22 /112
1
हम आह जब कभी महफ़िल में भरने लगते हैं
नज़र में भर के वो हर दर्द हरने लगते हैं
2
जुनून-ए-इश्क़ में अब क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल
ख़याल आते ही उनका सँवरने…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on June 21, 2022 at 8:21pm — 7 Comments
मैं बंजारा, मैं आवारा, फिरता दर दर पर ना बेचारा
ना मन पर मेरा ज़ोर कोई, मैं अपने मन से हूँ हारा
ठिठक नहीं कोई ठौर नहीं, आगे बढ़ने की होड नहीं
कोई मेरा रास्ता ताके, जीवन में ऐसी कोई और नहीं
ना रिश्ता है ना नाता है, बस अपना खुद से वादा…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 21, 2022 at 11:20am — No Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
*
नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं
दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।
*
तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय
मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।
*
हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है
सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।
*
तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से
बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।
*
जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही
कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2022 at 5:21am — No Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
मौज आयी..घर को फूंक तमाशा बना दिया
हा.... झोंपड़ा फ़क़ीर ने ख़ुद ही जला दिया
कर के इशारा बज़्म से जिसको उठा दिया
दरवेश ने उसी का मुक़द्दर बना दिया
अपनों के होते ग़ैर भला क्यूँ उठाए ग़म
नादान दोस्तों ने ही रुसवा करा दिया
नफ़रत की फ़स्ल देख के ख़ुश हो रहे थे सब
बोया था जिसने ज़ह्र उसी को चखा दिया
मुझको था ए'तिमाद कि आ जाएगी बहार
रंग-ए-ख़िज़ाँ ने मेरे यक़ीं को…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2022 at 11:59am — 12 Comments
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