१२२/१२२/१२२/१२२
समझ मत उसे यूँ बुरा और होगा
तपेगा दुखों में खरा और होगा।।
*
उजाला कभी जन्म लेगा वहाँ भी
अँधेरा कहाँ तक भला और होगा।।
*
रवैय्या है बदला यहाँ चाँद ने अब
रहेगा कहीं पर पता और होगा।।
*
लहू में है उस के वही साहूकारी
कहा और होगा लिखा और होगा।।
*
करो जुर्म जमकर ये अन्धेर नगरी
सजा को तुम्हारी गला और होगा।।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 18, 2022 at 6:40am — 6 Comments
22 22 22 22 22 22
घुटकर मरने जीने पर भी टैक्स लगेगा
एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
नदी साफ तो कभी न होगी लेकिन एक दिन
दर्या, घाट, सफ़ीने पर भी टैक्स लगेगा
दंगा, नफ़रत, हत्या कर से मुक्त रहेंगे
लेकिन इश्क़ कमीने पर भी टैक्स लगेगा
पानी, धूप, हवा, मिट्टी, अम्बर तो छोड़ो
एक दिन चौड़े सीने पर भी टैक्स लगेगा
भारी हो जायेगा खाना रोटी-चटनी
धनिया और पुदीने पर भी टैक्स…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2022 at 6:34pm — 5 Comments
2122 1212 22
उसकी आँखों से जूझते आँसू
मैंने देखे हैं बोलते आँसू
कैसे आँखों में बाँध रक्खोगे,
हिज्र की शब में काँपते आँसू,
राज़ कितने छुपाये हैं मन में,
उस की पलकों से झाँकते आँसू
कैसे तस्लीम कर लिये जायें
बेवफ़ा तेरे वास्ते आँसू,
इब्तिदा इश्क़ की हँसाती थी,
इंतिहा में हैं टूटते आँसू
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 15, 2022 at 7:44pm — 3 Comments
दोहा त्रयी : फूल
कागज के ये फूल कब, देते कोई गंध ।
भौंरों को भाता नहीं, आभासी मकरंद ।।
इस नकली मकरंद पर, मौन मधुप गुंजार ।
अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।।
अब कागज के पुष्प दें, प्रीतम को उपहार ।
मुरझाता नकली नहीं, फूलों का संसार ।।
सुशील सरना / 15-7-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 15, 2022 at 3:17pm — No Comments
पा लेता हूँ जहां को तेरी चौखट पर लेकिन
तेरी एक बूंद से मेरी प्यास नहीं बुझती
भुला सकता हूँ मैं अपना वजूद भी तेरी खातिर पर
तुझसे एक पल की दूरी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती
भूल जाता हूँ मैं ग़म अपने होंठो से लगाकर तुझे
जब तक छु ना लूँ तुझे मेरी रफ्तार नहीं बढ़ती
बड़ा सुकून मिलता है नसों मे तेरे घुलने से
किसी भी साज़ मे ऐसी कोई बात…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 15, 2022 at 10:20am — No Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 14, 2022 at 8:59am — 8 Comments
Added by Usha Awasthi on July 11, 2022 at 11:11pm — No Comments
जो मैं होता गीत कोई तो तुम भी मुझको गा लेते
जो मैं होता खामोश परिंदा तो अपना मुझे बना लेते
जो मैं होता फूल कोई तो गजरा मुझे बना लेते
जो मैं होता इत्र कोई तो तन पर मुझे लगा लेते
जो मैं होता काजल तो तुम टीका मेरा कर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 11, 2022 at 1:01pm — No Comments
मुक्तक : गाँव .....
मिट्टी का घर ढूँढते, भटक रहे हैं पाँव।
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव ।
पीपल बूढ़ा हो गया, मौन हुए सब कूप -
काली सड़कों पर हुई, दुर्लभ ठंडी छाँव ।
*******
कच्चे घर पक्के हुए, बदल गया परिवेश ।
छीन लिया हल बैल का, यंत्रों ने अब देश ।
बदले- बदले अब लगें , भोर साँझ के रंग -
वर्तमान में गाँव का, बदल गया है पेश ।
(पेश =रूप, आकार )
********
गाँवों…
Added by Sushil Sarna on July 11, 2022 at 1:00pm — No Comments
212 212 212 212
साथ यादों के उनके ज़माने चले
हम ग़ज़ल कोई जब गुनगुनाने चले
है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना तो क्या
हीर राँझा को दरया मिलाने चले
हाथ थामो मेरा और चलो उस तरफ़
जिस तरफ़ दुनिया भर के दिवाने चले
चाह सुहबत की है इसलिए आज हम
चाय पर दोस्तो को बुलाने चले
दाद महफ़िल में जब ख़ूब मिलने लगी
यूँ लगा शेर सारे ठिकाने चले
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 11, 2022 at 8:13am — 3 Comments
२२२ २२२ २२
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ये मत पूछो क्या-क्या निकला,
आँसू का इक दरया निकला
हम उसके दिल से यूँ निकले
जैसे कोई काँटा निकला
जिसको जितना गहरा समझे
वो उतना ही उथला निकला
हिज्र की शब की बात बताऊँ ?
सदियों जैसा लम्हा निकला
दुनिया का ग़म, आहें, तड़पन
दिल से कितना मलबा निकला ....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 8, 2022 at 6:46pm — 5 Comments
कुछ उक्तियाँ
उषा अवस्थी
आज 'गधे' को पीट कर
'घोड़ा' दिया बनाय
कल फिर तुम क्या करोगे
जब रेंकेगा जाय?
कैसे - कैसे लोग है
कैसे - कैसे घाघ?…
Added by Usha Awasthi on July 6, 2022 at 3:30pm — No Comments
बुढ़ापा ....
तन पर दस्तक दे रही, जरा काल की शाम ।
काया को भाने लगा, अच्छा अब आराम ।1।
बीते कल की आज हम, कहलाते हैं शान ।
शान बुढ़ापे की हुई, अपनों से अंजान ।2।
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती ,मुड़ कर बीते वर्ष ।3।
देख बुढ़ापा हो गया, चिन्तित क्यों इंसान ।
शायद उसको हो गया, अन्तिम पल का भान ।4।
काया में कम्पन बढी , दृष्टि हुई मजबूर ।
अपनों से अपने हुए, जरा काल में दूर…
Added by Sushil Sarna on July 6, 2022 at 12:30pm — 4 Comments
मैं जताना जानता तो बन बैरागी यूं ना फिरता
मेरे ही ख़िलाफ़ ना होता आज ये उसूल मेरा
मैं ठहरना जानता तो बन के यूं भंवरा ना फिरता
मेरे पग को बांध लेता फिर कोई अरमान मेरा
मैं बताना जानता तो दाग़ लेकर यूं ना…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 6, 2022 at 11:40am — No Comments
दोहे
****
मुख सा सम्मुख और के, रखिए शब्द सँवार
सुन्दर शब्दों के बिना, कहते लोग गँवार।१।
*
युद्ध शब्द से जन्मते, और शब्द से शान्ति
महिमा अद्भुत शब्द की, जिससे होती क्रांति।२।
*
कोई शब्दों में भरे, अद्भुत सहज मिठास I
कोई रीता रख उन्हें, देता अनबुझ प्यास।३।
*
कोई सज्जन कह गया, बात बड़ी गम्भीर।
जीवन घायल मत करो, शब्दों को कर तीर।४।
*
कोई छाया दे सदा, कर शब्दों को पेड़।
कोई शब्दों से यहाँ , बखिया देत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2022 at 5:30am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पथ में कोई सँभालने वाला नहीं हुआ
ये पाँव जानते थे जो छाला नहीं हुआ।।
*
कैसा तमस ये साँझ ने आगोश में भरा
इतने जले चराग उजाला नहीं हुआ।।
*
कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में
ऐसे ही मुख ये आप का काला नहीं हुआ।।
*
नेता ने क्या क्या पेट में ठूँसा है देश का
बस आदमी ही उसका निवाला नहीं हुआ।।
*
कोशिश बहुत की वैसे तो बँटवारे बाद भी
यह घर किसी भी राह शिवाला नहीं हुआ।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 2:19pm — 3 Comments
दोहा मुक्तक ........
कड़- कड़ कड़के दामिनी, घन बरसे घनघोर ।
उत्पातों के दौर में, साँस का मचाए शोर ।
रात बढ़ी बढ़ते गए, आलिंगन के बंध -
पागल दिल को भा गया , दिल का प्यारा चोर ।
* * * * *
एक दिवानी को हुआ, दीवाने से प्यार ।
पलकों में सजने लगा, सपनों का संसार ।
गुपचुप-गुपचुप फिर हुए, नैनों में संकेत -
चरम पलों में हो गए, शर्मीले अभिसार…
Added by Sushil Sarna on July 4, 2022 at 9:38pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
जब कोई दीवानगी ही आप ने पाली नहीं
जान लो ये जिन्दगी भी जिन्दगी सोची नहीं।।
*
पात टूटे दूब सूखी ठूठ जैसे हैं विटप
शेष धरती का कहीं भी रंग अब धानी नहीं।।
*
भर रहे हैं सब हवा में आग जब देखो सनम
फूल होगा याद में बस गन्ध तो होगी नहीं।।
*
तैरती है प्यास आँखों में सभी के रक्त की
हो गये हैं लोग दानव पी रहे पानी नहीं।।
*
राजशाही साम्यवादी लोकशाही दौर सब
भोर सुख की निर्धनों ने पर कहीं देखी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2022 at 7:22pm — 2 Comments
212 212 212 22
इक वहम सी लगे वो भरी सी जेब
साथ रहती मेरे अब फटी सी जेब
ख्वाब देखे सदा सुनहरे दिन के
आँख खुलते मिली बस कटी सी जेब
चैन आराम सब खो दिया तुमने
पास…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 4, 2022 at 9:30am — 6 Comments
सब एक
उषा अवस्थी
सत्य में स्थित
कौन किसे हाराएगा?
कौन किससे हारेगा?
जो तुम, वह हम
सब एक
ज्ञानी वही अज्ञानी भी वही…
Added by Usha Awasthi on July 3, 2022 at 6:56pm — No Comments
2024
2023
2022
2021
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