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कौन है वो. . . .

कौन है वो ......

उनींदीं आँखें
बिखरे बाल
पेशानी पर सलवटें
अजब सी तिश्नगी लिए
चलता रहता है
मेरे साथ
मुझ सा ही कोई
मेरी परछांईं बनकर
कौन है वो
जो
मेरे देखने पर
दूर खड़ा होकर
मुस्कुराता है
मेरी बेबसी पर

सुशील सरना / 5-6-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on June 5, 2022 at 12:15pm — No Comments

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

मजहब की नफरतों का ये मन्जर नया नहीं

टोपी तिलक के बीच का अन्तर नया नहीं।१।

*

कितनों को कोसें और कहें जा निकल अभी

जाफर विभीषणों से भरा घर नया नहीं।२।

*

कितना बचेंगे साध के चुप्पी भला यहाँ

अपनों की आस्तीन का खन्जर नया नहीं।३।

*

उन की जुबाँ पे आज भी बँटवारा बैठा है

अपनों से पायी पीर का सागर नया नहीं।४।

*

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने

देना तो देश दुनिया को उत्तर नया नहीं।५।

*

उलझे हुओं की सोच में तारण उसी से…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2022 at 9:39pm — 2 Comments

ग़ज़ल-गूँगा कर दिया

2122 2122 2122 212

1

 उसने मेरे ज़ख़्मों का ऐसे मुदावा कर दिया

सी के आहों का मुहाना उनको गूँगा कर दिया

2

जिसने मेरा कद बढ़ा कर सबसे ऊँचा कर दिया

 उसने सी कर लब मेरे किरदार बौना कर दिया

3

घर जलाकर अपना जिसके दर प कर दी रौशनी

उसने घबरा कर धुँएँ से शोर बरपा कर दिया

4

ख़त्म होते ही नहीं हैं ज़िन्दगी के मसअले

बैठते ही इक के दूजे ने तमाशा कर दिया

5

साथ देता ही नहीं है मेरे दिल का…

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Added by Rachna Bhatia on May 31, 2022 at 7:30pm — 6 Comments

मानसिक रोग

अक्सर मैंने देखा उसको खुद से हीं बातें करते

कभी-कभी बिना कारण हीं खुद में हंसते खुद में रोते

कई दफा तो काटी उसने रातें यूं ही जाग जाग के 

कभी किसी पर अटक गई जो पलकें उसकी बिना झपके 

        

बैठे-बैठे खो जाती है वो…

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Added by AMAN SINHA on May 31, 2022 at 9:30am — 2 Comments

जब है मंदिर और मस्जिद में वही - लक्ष्मण धामी " मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए

दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।

*

देशहित में क्या भला है आप भी

कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।

*

जब है मंदिर और मस्जिद में वही

आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।

*

सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया

क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।

*

धर्म  माटी  को  समझकर  देश  की

आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।

*

चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का

आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।

*

फिर उठाना दूसरे की आप सौं

पहले पूरा इक वचन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2022 at 10:45pm — 2 Comments

तथागत बुद्ध वंदना (दुर्मिल सवैया पर आधारित)

गहरे तुम ध्यान समाधि लिए  अभया  अमिताभ गतागत हो

मुनि सोच पुनीत अथाह धरे  करते  सबका  हिय स्वागत हो

मुखमंडल तेज लगे इस भांति कि सत्य विनायक आगत हो

तुम पंकज मध्य सुवासित सम्यक  गौतम  बुुद्ध तथागत हो।।1

तप से तप  धम्म सहिष्णु बने न किसी पर स्थावर क्रुद्ध हुए

जब तर्क अकाट्य सुना  जग ने सब ढोंग प्रपंच निरूद्ध हुए

अरु हिंसक वृत्ति रुकी जग की जन कर्म विचार विशुद्ध हुए

अपना सब दीप  स्वयं बनिये  कह  गौतम  से मुनि बुद्ध हुए।।2

नाथ…

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Added by नाथ सोनांचली on May 30, 2022 at 6:00am — 2 Comments

पत्रकार

कलम की धार

सशक्त हथियार

चौबीसों घण्टे

चलता व्यापार



निष्पक्ष समाचार

बुराई पर वार

सम्भावित, हर लम्हा

तलवार की धार…



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Added by Usha Awasthi on May 29, 2022 at 5:30pm — 2 Comments

याद आयेगा हमें. . . . .

याद  आयेगा हमें .....

जान  ले  लेगा   हमारी   मुस्कुराना   आपका

इस गली का हर बशर अब है दिवाना आपका

बारिशों में बाम पर वो  भीगती  अगड़ाइयाँ

आँख से जाता नहीं वो रुख छुपाना आपका

हम गली के मोड़ पर हैं आज तक ठहरे हुए

सोचते हैं हो गया गुम क्यों ठिकाना आपका

दिल लगा कर तोड़ना तासीर है ये आपकी

दूर जाने का नहीं  अच्छा  बहाना  आपका

वो गिराना खिड़कियों से पर्चियाँ इकरार की 

याद  आयेगा  हमें  सदियों जमाना …

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Added by Sushil Sarna on May 29, 2022 at 1:29pm — No Comments

रोला छंद. . . . .

रोला छंद. . . .

विगत पलों की याद, हृदय  को  लगे  सुहानी।
छलक-छलक ये नैन, गाल पर लिखें कहानी ।
मौन छुअन  संवाद, देह  पर  विचरण  करते ।
सुधियों  के  सब  रंग, रिक्त अम्बर  में भरते ।
                    *=*=*=*
तड़प- तड़प  के  रात, गुजारे  प्रेम  दिवानी ।
विरहन की ये पीर, जगत ने  कब  है  जानी ।
मौसम  गुजरे   साथ, प्यार  के  गये  जमाने ।
रह - रह  आते  याद, रात  के  वो अफसाने ।

सुशील सरना / 28-5-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on May 28, 2022 at 2:23pm — No Comments

अर्धांगिनी को समर्पित (दुर्मिल सवैया पर आधारित)

तुम फूल कली तुम चन्द्र मुखी तुम स्वर्ग परी चित चंचल हो

तुम लौकिक केवल देह  नहीं  मकरन्द  भरा नव  कोंपल हो

तुम भ्रांति नहीं अनुभूति प्रिये तुम पुष्प कली सम कोमल हो

तुम पादप पल्लव हार  प्रिये तुम  गंग नदी  सम  निर्मल  हो।।1

तुम निश्छल  प्रेम भरी  गगरी ऋतु पावस सी मनभावन हो

तुम हो इक नाम समर्पण का  तुम  रूप  प्रसून  सुहावन हो

तुम प्राणप्रिया शुचिता वनिता तुम ही रखती  घर  पावन हो

तुम प्रान सुधा घनश्याम  घटा उर  में बरसे वह सावन…

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Added by नाथ सोनांचली on May 25, 2022 at 12:39pm — 6 Comments

क्या रंग है आँसू का

क्या रंग है आँसू का कैसे कोई बतलाएगा?

सुख का है या दु:ख का है ये कोई कैसे समझाएगा?

कभी किसी के खो जाने से, कोई कभी मिल जाए तो 

कभी कोई जो दूर हो गया, कोई पास कभी आ जाए तो 

किस भाव में कितना बहता, कोई ध्यान नहीं रखता

हर हाल में इसका एक ही रंग है, फर्क ना कोई कर सकता 

कभी दर्द में बह जाता है, हंसी में भी ये दूर…

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Added by AMAN SINHA on May 25, 2022 at 11:47am — 2 Comments

आँधियों से क्या गिला. . . . .

आँधियों से क्या गिला .....

2122  2122  2122  212

रूठ जाएँ मंजिलें  तो  रहबरों  से  क्या गिला

हो समन्दर बेवफ़ा तो कश्तियों से क्या गिला

टूट जाए घर किसी का ग़र  हवाओं  से  कहीं

वक्त ही ग़र हो बुरा तो आँधियों से क्या गिला

याद आया वो शज़र जिस पर गिरी थी बारिशें

आज भीगे हम अकेले  बारिशों से क्या  गिला

ज़ख्म  यादों के  न जाने आज क्यूँ रिसने  लगे

दर्द के हों  जलजले  तो आँसुओं से क्या…

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Added by Sushil Sarna on May 24, 2022 at 4:00pm — 10 Comments

सिन्दूर -(क्षणिकाएँ )

सिन्दूर  (क्षणिकाएँ ).....

सजावट की

नहीं

निभाने की चीज है

सिन्दूर

******

निभाने की नहीं

आजकल

सजावट की चीज है

सिन्दूर

******

छीन लिया है

अर्थ

सिन्दूर का

वर्तमान के

बदले परिवेश ने

******

प्रतीक है

दो साँसों के समर्पण की

अभिव्यक्ति का

सिन्दूर

******

आरम्भ है

एक विश्वास के

उदय होने का

माथे पर अलंकृत

चुटकी भर

सिन्दूर

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on May 23, 2022 at 10:53am — 2 Comments

ग़ज़ल: सुरूर है या शबाब है ये

12112 12112

सुरूर है या शबाब है ये

के जो भी है ला जवाब है ये

फ़क़ीर की है या पीर की है

के चश्म जो आब-ओ-ताब है ये

कज़ा है अगर सरक गया तो

जो चेहरे पे नकाब है ये

अजीब है सफ़ह-ए-ज़िंदगी भी

न पूछो की क्या जनाब है ये

कभी है ख़ुशी तो है कभी ग़म

बस एक ऐसी किताब है ये

हैं अश्क से आज चश्म जो नम

महब्बतों का हिसाब है ये

न जाने कोई है माज़रा क्या

की…

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Added by Aazi Tamaam on May 22, 2022 at 8:00am — 10 Comments

तुम वीरांगना हो जीवन की

तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो

चाहे उलाहना पाओ जितनी, तुम अपने जिद पर अड़ी रहो



गर्भ में ही मारेंगे तुमको, वो सांस नहीं लेने देंगे 

कली मसल कर रख देंगे वो फूल नही बनने देंगे 

तुम मगर गर्भ से निकल कर अपनी खुशबू बिखरा दो 

तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो



चाहे पथ पर पत्थर फेंके, शिक्षा से रोके तुमको 

कुछ पुराने मनोवृत्ति वाले चूल्हे में झोंके तुमको 

तुम ना डिगना अपने प्रण से, एकाग्रचित्त हो जमी…

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Added by AMAN SINHA on May 21, 2022 at 11:59am — No Comments

फिर किसी के वास्ते .......

फिर किसी के वास्ते ......

क्यूँ दिलाएं हम यकीं दिल को किसी  के वास्ते ।

हो गया दिल आज गमगीं फिर किसी के वास्ते ।

था बसाया घर कभी हमने किसी के ख़्वाब में ,

छोड़ दी हमने ज़मीं वो फिर किसी के वास्ते ।

मर मिटा था दिल कभी जो इक हसीं के नूर पर ,

तोड़ आए  दिल वहीं  वो फिर  किसी के वास्ते ।

दे गया महबूब मेरा  मुझ को  जीने की सज़ा ,

आज क्यूँ जाने हज़ीं है दिल किसी के वास्ते ।

वो तसव्वुर में हमारे बस गई कुछ इस तरह…

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Added by Sushil Sarna on May 19, 2022 at 2:12pm — 3 Comments

मैं धरती बोल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ,

हाँ-हाँ धरती बोल रही हूँ

अपनी व्यथा सुनाने को मैं

मैं कब से डोल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

 

मैंने ही तुमको जन्म दिया…

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Added by AMAN SINHA on May 16, 2022 at 11:30am — 2 Comments

गज़ल - ज़ुल्फ की जंजीर से ......

गजल- ज़ुल्फ की जंजीर से ......

2122 2122 2122 212



आश्ना  होते  अगर  हम  हुस्न  की  तासीर से

दिल लगाते हम भला क्यों ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर से

खा रहे थे लाख क़समें जो हमारे प्यार की

दे गए वो दर्द लाखों इक नज़र के तीर से

हमसफ़र बन कर चले वो रास्ते में छोड़ कर

भर गए झोली  हमारी ग़र्द  की  जागीर  से

मंज़िलों  के  पास  आ  के  दूर  मंज़िंलें हो  गई

क्या गिला शिकवा करें हम धड़कनों के पीर से

बाद मुद्दत के मिले…

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Added by Sushil Sarna on May 13, 2022 at 9:00pm — 8 Comments

तलाक़

दर्द है ये दो दिलों का, एक का होता नहीं

जागते है संग दोनों, कोई भी सोता नहीं

ये ख़ुशी है या के ग़म है, कोई कह सकता नहीं

दर्द का वैसे भी यारो, रंग होता हीं नहीं

याद आती है घडी वो, जब पहली बार हम मिले थे

बसंत के वो दिन नहीं थे, पर फूल दिल में खिले थे

क्या हुआ जो…

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Added by AMAN SINHA on May 13, 2022 at 1:00pm — No Comments

अज्ञात

ख़यालों में मेरे ख़याल एक आता है

भरम मेरा मुझको यूं भरमा के जाता है

दिखता नहीं है पर कोई बातें करता है

नहीं साथ मेरे पर महसूस होता है

मैं अंजान उससे पर वो जानता है

वो है बस यहीं पर ये दिल मानता है

दिखा जो कहीं पर तो पहचान लूंगी

यही मर्ज़ मेरा है मैं जान लूंगी

वो है झोंका हवा का है अंदाज़…

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Added by AMAN SINHA on May 12, 2022 at 1:31pm — No Comments

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