वर्षों हुए
एक बार देखे उसको
तब वो पूरे श्रृंगार में होती थी
बात बहुत
करती थी अपनी गहरी आँखों से
शब्द कहने से उसे उलझने तमाम होती थी
इमली चटनी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 27, 2022 at 11:30am — 1 Comment
Added by Deepalee Thakur on April 25, 2022 at 5:46pm — 3 Comments
सुख-दुख हैं दो तीर , साँस की बहती धारा ।
जीवन का संघर्ष , अन्त में जीवन हारा ।
बचा न कुछ भी शेष,
रही बस शेष कहानी ।
काया के अवशेष ,
ले गया गंगा पानी ।
अटल सत्य जब श्वास, छोड़ कर जाती काया ।
कुछ न आता काम , व्यर्थ हो जाती माया ।
वक्त गया जो बीत,
कभी न लौट कर आए ।
शून्य व्योम ये सत्य ,
बार - बार दोहराए ।
सुशील सरना / 26-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 25, 2022 at 12:00pm — 2 Comments
दोहावली......
जग के झूठे तीर हैं, झूठी है पतवार ।
अवगुंठन में जीत के, मुस्काती है हार ।।
कुदरत ने सबको दिया, जीने का अधिकार ।
धरती के हर जीव को, बाँटो अपना प्यार ।।
छाया देती साथ जब, होता प्रखर प्रकाश ।
विषम काल में ईश ही , काटे दुख के पाश ।।
दो साँसों के तीर में, सुख -दुख का है नीर ।
भज दाता के नाम को, जब तक चले शरीर ।।
काया की प्राचीर में, साँसें खेलें खेल ।
इसकी हर दीवार पर, इच्छाओं की…
Added by Sushil Sarna on April 24, 2022 at 12:10pm — 2 Comments
पुस्तक दिवस पर )
कैदी......
पहले कैद थे
लफ्ज़
अन्तस की गहन कंदराओं में
फिर कैद हुए
मोटी- मोटी जिल्दों में सोये पृष्ठों में
फिर कैद हुए
लकड़ी की अलमारियों में
आओ
मुक्ति दें इन अनमोल कैदियों को
जो बैठे हैं
उन कद्रदानों के इन्तिज़ार में
जो पहचान सकें
लफ्जों में लिपटे मौसम के
अनबोले अहसासों के
सुशील सरना / 23-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 23, 2022 at 10:26pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
नफ़रतों की आग भड़की भाईचारा जल उठा
ख़ौफ़ इतना है कि दरिया का किनारा जल उठा
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 22, 2022 at 8:24pm — 2 Comments
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ मुझे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खालीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 22, 2022 at 10:30am — 1 Comment
छल ......
कल
फिर एक
कल होगा
भूख के साथ छल होगा
आशाओं के प्रासाद होंगे
तृष्णा की नाद होगी
उदर की कहानी होगी
छल से छली जवानी होगी
एक आदि का उदय होगा
एक आदि का अन्त होगा
आने वाला हर पल विकल होगा
जिन्दगी के सवाल होंगे
मृत्यु के जाल होंगे
मरीचिका सा कल होगा
तृष्णा तृप्ति का छल होगा
सच
कल
भोर के साथ
फिर एक कल होगा
भूख के साथ
छल होगा
सुशील सरना / 21-4-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 21, 2022 at 9:57pm — 2 Comments
सार छंद : अनुभूति
छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसी प्रीत निभायी ,
दिल ने तुझको समझा अपना , तू निकला हरजाई।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सपनों में जब आना ,
किसी और के सपनों मे फिर ,भूले से मत जाना ।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा ये युग आया ।
रिश्तों का कोई मोल नहीं, अच्छी लगती माया ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा कलियुग आया ।
सास बनाये रोटी सब्जी, बहू सजाए काया ।।
सुशील सरना / 12-4-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 12, 2022 at 6:00pm — 6 Comments
ख़्वाब देखे जो भी मैंने सब अधूरे रह गए
मिटटी के बर्तन थे कच्चे, पानी के संग बह गए
रेत की दीवार थी और दलदली सी छतरही
मौज़ों के टकराव से वो अंत तक लड़ती रही
साल सोलह कर लिए जो पूरे अपने उम्र के
कैद में घिरने लगी मैं बिन किये एक जुर्म के
स्कूल का बस्ता भी मेरा कोने में था पड गया
सांस लेती किताबों पर भी धूल सा एक जम…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 7, 2022 at 3:12pm — 2 Comments
समय से पहुंचना जरूरी था, इसलिए मैंने बस पकड़ ली थी। बैठने के लिए स्थान नहीं मिला लेकिन एक ओर खड़े होने की जगह मिल गई थी। बस लगभग पूरी तरह भरी हुई थी। साथ चढ़ने वाले यात्रियों में पचास के आसपास की वह ग्रामीण स्त्री भी थी, जो बस की स्थिति देखकर मायूस हो; अन्य सभी की तरह एक सीट के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गई। उसी सीट पर बैठी दो युवा उच्च शिक्षित…
ContinueAdded by VIRENDER VEER MEHTA on April 6, 2022 at 1:30pm — 7 Comments
पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति अविचल,अपरिमित,
अव्याख्येय वसन्त
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 6, 2022 at 12:37pm — 6 Comments
मैं जहाँ पर खड़ा हूँ
वहाँ से हर मोड़ दिखता है
इस जहाँ से उस जहाँ का
हरेक छोर दिखता है
ये वो किनारा है जहां
सब खत्म हुआ समझो
सभी भावनाओं का जैसे
अब अंत हुआ समझो
दर्द मुझे है बहुत मगर
अब उसका कोई इलाज नहीं
मैं ना लगूँ खुश…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 6, 2022 at 10:33am — No Comments
2122 2122 2122 212
1
अश्क पीना छोड़ दें हम दिल लगाना छोड़ दें
एक उनकी मुस्कुराहट पर ज़माना छोड़ दें
2
हर किसी के आप दिल में आना जाना छोड़ दें
इश़्क को सौदा समझ क़ीमत लगाना छोड़ दें
3
कह दें अपनी चूड़ियों से खनखनाना छोड़ दें
दिल के रिसते ज़ख़्मों पर यूँ सरसराना छोड़ दें
4
लग गए हों ताले ख़ामोशी के जिनके होठों पर
उनसे उम्मीदें सदाओं की लगाना छोड़ दें
5
कब तलक फिरते रहेंगे आप ग़म के सहरा…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on April 5, 2022 at 9:00pm — 8 Comments
बोल जो हमने लिखे थे गीत तेरे हो गए
साथी मेरे जो भी थे सब मीत तेरे हो गए
वो हया थी या भरम था हम थे जिस पर मर गए
आज भी हम सोचते है क्या ख़ता हम कर गए
चाह थी हंसी की हमको आंसुओ से भर गए
पास थे मंज़िल के अपने गुमशूदा तुम कर गए
एक तेरी खातिर हमतो इस जहाँ से लड़ गए
रस्मों रिवाज़ तोरे हद से हम गुज़र गए
क़तार…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 5, 2022 at 10:00am — No Comments
गजल
221/2121/1221/212
*
लेखन का खूब गुण जो सिखाता है ओबीओ
कारण यही है सब को लुभाता है ओबीओ।।
*
जुड़कर हुआ हूँ धन्य निखर लेखनी गयी
परिवार जैसा धर्म निभाता है ओबीओ।।
*
कमियों बता के दूर करें कैसे यह सिखा
लेखक सुगढ़ हमें यूँ बनाता है ओबीओ।।
*
अच्छा स्वयं तो लिखना है औरों को भी सिखा
चाहत ये सब के मन में जगाता है ओबीओ।।
*
वर्धन हमारा हौसला करने को साथ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2022 at 8:20am — 16 Comments
आवाज .....
सम्मान दिया
हर आवाज को
दबा कर
अपनी आवाज
स्त्री ने
तूफान आ गया
आवाज उठाई
उसने जो
अपनी
आवाज के लिए
--------------------
वाचाल हो गया
मौन
नारी का
तोड़ कर
हर वर्जना
पुरातन की
सुशील सरना / 4-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 4, 2022 at 10:57pm — 10 Comments
वो मेरा करीबी था, मैं मगर फरेबी था
इश्क़ वो वफा ओं वाली चाह बन के रह गयी
जो भी सितम हुए, सब मैंने ही सनम किए
टोकरी दुआओं वाली, आह बनके रह गयी
था मेरा गुरूर उसको, मेरा था शुरूर उसको
साथ जब मैंने छोड़ा, आंखे नम रह गयी
सपनों का था एक क़िला, मिलने का वो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 4, 2022 at 11:28am — 2 Comments
212 212 212 212
साल बारह का अब है हुआ ओबीओ
उम्र तरुणाई की पा गया ओबीओ
शाइरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल
के अमिय नीर का है पता ओबीओ
संस्कार औ अदब का यहाँ मोल है
लेखनी के नियम पर टिका ओबीओ
गर है साहित्य संसार का आइना
तब तो दर्पण ही है दुनिया का ओबीओ
सीखने व सिखाने की है झील तू
ये भी पंकज तुझी में खिला ओबीओ
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 3, 2022 at 11:30am — 16 Comments
212 212 212 212
जब कभी दर्द हद से गुज़रने लगा
शाइरी का हुनर तब निखरने लगा
ज़ख़्म जब भी लगा दिल से दरिया कोई
हर्फ़ बन कागज़ों पर बिखरने लगा
तन के भीतर जो उस आइने में उतर
कौन ऐसा है जो अब सँवरने लगा
बेवफ़ाई का ऐसा हुआ है असर
एक सन्नाटा दिल में पसरने लगा
रँग बदलने की आदत तेरी गिरगिटी
सो जहाँ तू नज़र से उतरने लगा
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 3, 2022 at 11:00am — 8 Comments
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