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साक्षरता की गूंज (लघुकथा)

समय से पहुंचना जरूरी था, इसलिए मैंने बस पकड़ ली थी। बैठने के लिए स्थान नहीं मिला लेकिन एक ओर खड़े होने की जगह मिल गई थी। बस लगभग पूरी तरह भरी हुई थी। साथ चढ़ने वाले यात्रियों में पचास के आसपास की वह ग्रामीण स्त्री भी थी, जो बस की स्थिति देखकर मायूस हो; अन्य सभी की तरह एक सीट के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गई। उसी सीट पर बैठी दो युवा उच्च शिक्षित…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on April 6, 2022 at 1:30pm — 7 Comments

वसन्त (अतुकान्त )

पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति अविचल,अपरिमित,
अव्याख्येय वसन्त

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 6, 2022 at 12:37pm — 6 Comments

अंतिम सफ़र

मैं जहाँ पर खड़ा हूँ

वहाँ से हर मोड़ दिखता है

इस जहाँ से उस जहाँ का

हरेक छोर दिखता है 

ये वो किनारा है जहां

सब खत्म हुआ समझो

सभी भावनाओं का जैसे

अब अंत हुआ समझो

दर्द मुझे है बहुत मगर

अब उसका कोई इलाज नहीं

मैं ना लगूँ खुश…

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Added by AMAN SINHA on April 6, 2022 at 10:33am — No Comments

ग़ज़ल -दिल लगाना छोड़ दें

2122 2122 2122 212

1

अश्क पीना छोड़ दें हम दिल लगाना छोड़ दें 

एक उनकी मुस्कुराहट पर ज़माना छोड़ दें

2

हर किसी के आप दिल में आना जाना छोड़ दें

इश़्क को सौदा समझ क़ीमत लगाना छोड़ दें

3

कह दें अपनी चूड़ियों से खनखनाना छोड़ दें 

दिल के रिसते ज़ख़्मों पर यूँ सरसराना छोड़ दें

4

लग गए हों ताले ख़ामोशी के जिनके होठों पर 

उनसे उम्मीदें सदाओं की लगाना छोड़ दें 

5

कब तलक फिरते रहेंगे आप ग़म के सहरा…

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Added by Rachna Bhatia on April 5, 2022 at 9:00pm — 8 Comments

पल दो पल का साथ

बोल जो हमने लिखे थे गीत तेरे हो गए

साथी मेरे जो भी थे सब मीत तेरे हो गए

वो हया थी या भरम था हम थे जिस पर मर गए

आज भी हम सोचते है क्या ख़ता हम कर गए

चाह थी हंसी की हमको आंसुओ से भर गए

पास थे मंज़िल के अपने गुमशूदा तुम कर गए

एक तेरी खातिर हमतो इस जहाँ से लड़ गए

रस्मों रिवाज़ तोरे हद से हम गुज़र गए

क़तार…

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Added by AMAN SINHA on April 5, 2022 at 10:00am — No Comments

कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ

गजल

221/2121/1221/212

*

लेखन का खूब गुण जो सिखाता है ओबीओ

कारण यही है सब  को  लुभाता  है ओबीओ।।

*

जुड़कर  हुआ  हूँ  धन्य  निखर  लेखनी गयी

परिवार  जैसा   धर्म   निभाता   है  ओबीओ।।

*

कमियों बता के दूर करें कैसे यह सिखा

लेखक सुगढ़ हमें यूँ बनाता है ओबीओ।।

*

अच्छा स्वयं तो लिखना है औरों को भी सिखा

चाहत ये सब के  मन  में  जगाता  है ओबीओ।।

*

वर्धन हमारा  हौसला  करने  को साथ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2022 at 8:20am — 16 Comments

आवाज ......

आवाज .....

सम्मान दिया
हर आवाज को
दबा कर
अपनी आवाज
स्त्री ने
तूफान आ गया
आवाज उठाई
उसने जो
अपनी 
आवाज के लिए
--------------------
वाचाल हो गया
मौन
नारी का
तोड़ कर
हर वर्जना
पुरातन की

सुशील सरना / 4-4-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on April 4, 2022 at 10:57pm — 10 Comments

बेग़ैरत

वो मेरा करीबी था, मैं मगर फरेबी था

इश्क़ वो वफा ओं वाली चाह बन के रह गयी

जो भी सितम हुए, सब मैंने ही सनम किए

टोकरी दुआओं वाली, आह बनके रह गयी

था मेरा गुरूर उसको, मेरा था शुरूर उसको

साथ जब मैंने छोड़ा, आंखे नम रह गयी

सपनों का था एक क़िला, मिलने का वो…

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Added by AMAN SINHA on April 4, 2022 at 11:28am — 2 Comments

ओबीओ को एक छोटी सी भेंट---ग़ज़ल

212 212 212 212

साल बारह का अब है हुआ ओबीओ 

उम्र तरुणाई की पा गया ओबीओ

शाइरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल

के अमिय नीर का है पता ओबीओ

संस्कार औ अदब का यहाँ मोल है

लेखनी के नियम पर टिका ओबीओ 

गर है साहित्य संसार का आइना

तब तो दर्पण ही है दुनिया का ओबीओ

सीखने व सिखाने की है झील तू

ये भी पंकज तुझी में खिला ओबीओ 

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 3, 2022 at 11:30am — 16 Comments

गिरगिटी रंगबाज़ी की आदत तेरी----- ग़ज़ल

212 212 212 212

जब कभी दर्द हद से गुज़रने लगा
शाइरी का हुनर तब निखरने लगा

ज़ख़्म जब भी लगा दिल से दरिया कोई
हर्फ़ बन कागज़ों पर बिखरने लगा

तन के भीतर जो उस आइने में उतर
कौन ऐसा है जो अब सँवरने लगा

बेवफ़ाई का ऐसा हुआ है असर
एक सन्नाटा दिल में पसरने लगा

रँग बदलने की आदत तेरी गिरगिटी 
सो जहाँ तू नज़र से उतरने लगा

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 3, 2022 at 11:00am — 8 Comments

ओ बी ओ मंच को 12वीं सालगिरह पर समर्पित ग़ज़ल

ओ बी ओ मंच को 12वीं सालगिरह पर समर्पित ग़ज़ल (1222*4)

किये हैं पूर्ण बारह वर्ष ओ बी ओ बधाई है,

हमारे दिल में चाहत बस तेरी ही रहती छाई है।

मिला इक मंच तुझ जैसा हमें अभिमान है इसका,

हमारी इस जहाँ में ओ बी ओ से ही बड़ाई है।

सभी इक दूसरे से सीखते हैं और सिखाते हैं,

हमारी एकता की ओ बी ओ ही बस इकाई है।

लगा जो मर्ज लिखने का, दिखाते ओ बी ओ को ही,

उसी के पास इसकी क्यों कि इकलौती दवाई है।

तुझे शत शत 'नमन' मेरा बधाई…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2022 at 8:04am — 9 Comments

ओबीओ की बारहवीं सालगिरह का तुहफ़ा

ग़ज़ल

212 212 212

तू है इक आइना ओबीओ

सबने मिल कर कहा ओबीओ

जो भी तुझ से मिला ओबीओ

तेरा आशिक़ हुआ ओबीओ

तुझसे बहतर अदब का नहीं

कोई भी रहनुमा ओबीओ

जन्म दिन हो मुबारक तुझे

मेरे प्यारे सखा ओबीओ

यार बरसों से रूठे हैं जो

उनको वापस बुला ओबीओ

हम तेरा नाम ऊँचा करें

है यही कामना ओबीओ

जो नहीं सीखना चाहते

उनसे पीछा छुड़ा ओबीओ

और जो सीखते हैं उन्हें

अपने…

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Added by Samar kabeer on April 2, 2022 at 9:00pm — 37 Comments

क्षणिकाएँ -मिलावट .....

क्षणिकाएँ -मिलावट



मर गया

एक शख़्स 

खा कर

मिलावटी

जीवन रक्षक दवा

----------------------

कैसे करेंगे

देश की रक्षा

देश के नौनिहाल

पी कर दूध

मिलावटी

------------------------

ख़ूब कमाया धन

जन जन से

बेचकर सामान

मिलावटी

पर

पाप कमाया

असली

------------------------

बनावटी रिश्ते

मिलावटी प्यार

कैसे दें

असली सुगन्ध

फूल काग़ज़ के …

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Added by Sushil Sarna on April 2, 2022 at 12:30pm — 8 Comments

बस बहुत हुआ अब जाने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो, सांस जरा तो आने दो

घुटन भरे इस कमरे मे, जरा धूप तो छंटकर आने दो

बस बहुत हुआ अब जाने दो

बहुत सुनी कटाक्ष तेरी, बात-बात पर दुत्कार तेरी

शुल के जैसे बोल तेरे, चुन-चुन कर मुझे हटाने दो

खामोशी में है प्यार मेरा, ना मुझपर कुछ उपकार तेरा

मुझको जो गरजू समजा…

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Added by AMAN SINHA on April 1, 2022 at 12:50pm — 1 Comment

रोला छंद .....

रोला छंद :-

धड़की बन कर याद , सुहानी  वो  बरसातें  ।

दो अधरों की पास, सुलगती दिल की बातें ।

अनबोली  वो  बात, प्यार का बना फसाना ।

धड़के दिल के पास, मिलन का वही तराना ।

-----------------------------------------------------

दिन भर करते पाप, शाम को फेरें  माला ।

उपदेशों  के  संत, साँझ को  पीते  हाला  ।

पाखंडी  संसार , यहाँ  सब   झूठे  मेले   ।

ढोंगी करता मौज , सज्जन दु:ख ही झेले ।

सुशील सरना / 31-3-22

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on March 31, 2022 at 3:00pm — 6 Comments

अंध विश्वास

मैंने देखा है जहाँ में लोग दो तरह के है

हाँ यहाँ पर हर किसी को रोग दो तरह के है

एक को लगता है जैसे सब देवता के हाथ है

एक को लगता सबकुछ दानवो के साथ है

 

मन के विश्वास को कोई आस्था बता रहा

दूसरा अपने भरम को सत्य से छिपा रहा

लोगों के आस्था का यहाँ हो रहा व्यापार है

हर गली में पाखंडियों का लग रहा बाज़ार है…

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Added by AMAN SINHA on March 31, 2022 at 10:14am — 2 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पंख था कतरा हुआ : ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

2122 - 2122 - 2122 - 212

ये उड़ानों का भला फिर हौसला कैसा हुआ।

आपने जो भी दिया हर पंख था कतरा हुआ।

देखिए विज्ञापनों का दौर ऐसा आ गया

काम होने से जरूरी है दिखे होता हुआ।

जब रपट आई तो सारे एक स्वर में कह गए

कुछ हुआ हो ना हुआ हो आंकड़ा अच्छा हुआ।

चूर कर दी शख्सियत यूं जख्म भी दिखता नहीं

ये तरीका चोट करने का बहुत संभला हुआ।

दे रहें हैं आप लेकिन मिल न पाया आज तक

आपका सम्मान भी लगता है बस मिलता…

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Added by मिथिलेश वामनकर on March 30, 2022 at 6:11pm — 11 Comments

बस कुछ दिनों की बात है

बस कुछ दिनों की बात है, ये वक़्त गुज़र जाएगा

मौत के अंधेरे को चीर के फिर उजला सवेरा आएगा

समय सब्र रखने का है, एक व्रत रखने का है

अगर संयम से चले हम तो फिर ये संकट भी टल जाएगा

बस कुछ ................................................

है प्रार्थना सभी से मिलकर साथ रहो तुम सब

बहूत देख लिया जग हमने, बस घर मे रहो सारे…

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Added by AMAN SINHA on March 30, 2022 at 10:20am — 3 Comments

युद्ध के विरुद्ध हूँ मैं

युद्ध के विरुद्ध हूँ मैं …

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Added by amita tiwari on March 30, 2022 at 12:00am — 5 Comments

2-रोला छंद .....

रोला छंद .....

मधुशाला में जाम, दिवाने लगे  उठाने ।
अपने -अपने दर्द, जाम में लगे भुलाने ।
कसमें वादे प्यार ,सभी  हैं  झूठी  बातें ।
आँसू आहें अश्क, प्यार की हैं  सौग़ाते ।
-----------------------------------------------
दमके  ऐसे  गाल, साँझ की  जैसे  लाली ।
मृग शावक सी चाल ,चले देखो मतवाली ।
मदिरालय  से  नैन, करें  सबको  दीवाना ।
अधरों पर मुस्कान, प्यार का मधुर तराना ।

सुशील सरना / 29-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on March 29, 2022 at 9:40pm — 6 Comments

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