१२२२ १२२ १२२२ १२२
मैं अपना घर सम्भालूँ वो अपना घर संभालें
ये बंदूकें हटा लें अमन से हल निकालें
झुलसती अब है धरती नहीं जमता हिमानी
अगन पीकर मही की चलो नदियाँ बचा लें
गले रोजाना मिलते , मिलाते हाथ भी हैं
कभी तो ऐ पड़ोसी दिलों को भी मिला लें
कली मुरझा रही है सिसकते हैं ये भंवरे
जहाँ में है अँधेरा चरागों को जला लें
बहुत रूठे हुए हैं हमारे अपने हमसे
चलो खुद आगे बढ़कर के रूठों…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2016 at 10:34am — 8 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
दो घड़ी जब ठहरना नहीं आपको
तय ही है प्यार करना नहीं आपको
चाँद अम्बर पे भी चाँद छत पे भी है
कुछ भी हो है बहकना नहीं आपको
रात दिन हुस्न क्यूँ यूं संवरता फिरे
आँखों से कुछ समझना नहीं आपको
बात गुल बुलबुलों तोता मैना कि क्या
है कभी जब चहकना नहीं आपको
सूखती जूड़े में नित नयी गुल कली
खूब समझे बदलना नहीं आपको
कितना भी यूं घटाओं सा उमड़ो मगर
अब्र जैसे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2015 at 6:30pm — 8 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते
क्या होता खुदा जग में गर अपने नहीं होते
हर जुल्म सहा उसने लेकिन न कहा कुछ भी
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते
था जंगली वो हाथी देता ही कुचल हमको
गर पास धनुष अपना शर अपने नहीं होते
बिगड़े न अगर होते बेटे तो यकीनन ही
रातों में भटकते क्यूँ घर अपने नहीं होते
चोरी से कहाँ बचते चोरों से बचाते क्या
मजबूत घरों के गर दर अपने नहीं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 4:36pm — 7 Comments
२१२२ १२२२ २१२२ १२१२
शहर में आ गया पर भूला नहीं गाँव दोस्तों
भूल सकता नहीं पीपल की मैं वो छाँव दोस्तों
खेल के नाम पे होती है सियासत ही बस यहाँ
चल नहीं सकता मेरा कोई यहाँ दाँव दोस्तों
सजदा करने में भी आती है शरम सबको आजकल
कोई बूढों के झुक के छूता नहीं पाँव दोस्तों
माँ ने जिस बाँध के सहरा है बसाया मेरा जहाँ
मैं उसी माँ की भी बैठा ही नहीं ठाँव दोस्तों
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on October 2, 2015 at 10:42am — 12 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
गुनगुनाते हुए ज़िन्दगी की ग़ज़ल
मैं चला जा रहा राह अपनी बदल
हुस्न को देख दिल जो गया था मचल
आज उसको भी देखा है मैंने अटल
वो घने गेसू गुल से हसीं लव कहाँ
है मुकद्दर खिजाँ तो खिजाँ से बहल
उनके कूचे में मेरा जनाजा खड़ा
सोचता अब भी शायद वो जाए पिघल
शक्ल में गुल की ये मेरे अरमान हैं
नाजनी इस तरह तू न गुल को मसल
चैन मुझको मिला कब्र में लेटकर
शोरगुल भी नहीं न…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 2:52pm — 13 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२
मैं तो दीवाना हूँ मुझको न जलाओ ऐसे
मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे
चांदनी रात में ऐ चाँद यूं छत पे आकर
मेरे सोये हुए अरमाँ न जगाओ ऐसे
रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही
दिल से धुंधली मेरी यादें न मिटाओ ऐसे
अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो
मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे
तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता
पर न आँखों के गुहर अपने लुटाओ ऐसे
बिन…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2015 at 2:30pm — 11 Comments
मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है
आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है
कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर
पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है
जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें
गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है
राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए
डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है
तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में
जब…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2015 at 10:34am — 15 Comments
तरही ग़ज़ल
2122 1122 1122 22
ये तबाही भरे मंजर नहीं देखे जाते
आँखों में गम के समंदर नहीं देखे जाते
फलसफा इश्क का मैं आज तुम्हे समझा दूं
इश्क में रहजन-ओ –रहवर नहीं देखे जाते
एक मुफलिस की ग़ज़ल सुनके बज्म झूम उठी
रुतवे महफ़िल में सुखनवर नहीं देखे जाते
इक सदी होने को आयी हमें आज़ाद हुए
मुझसे हैं लोग जो बेघर नहीं देखे जाते
रिंद गर सच्चा तू होता तो खुद समझ लेता
खाली क्यूँ मुझसे ये सागर नहीं देखे जाते
खेलती थी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 1, 2015 at 4:44pm — 18 Comments
2212 1212 221 122
दर्पण को देख हुस्न यूं शर्माने लगा है
लगता खुमारे इश्क उस पे छाने लगा है
उंगली में चुनरी लिपटी है दांतों से दबे ओंठ
इक दिल धड़क धड़क के नगमे गाने लगा है
जगते हैं पहरेदार भी आँखों के निशा में
ख्वावो में उनके जबसे कोई आने लगा है
रुक-रुक के सांस चलती है नजरों में उदासी
सीने से दिल निकल के जैसे जाने लगा है
कलियों के साथ देख के भंवरों को वो तन्हा
कुछ कुछ समझ…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2015 at 2:00pm — 12 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२
वक़्त ये चलता है चलते हुए सूरज की तरह
तन मेरा जलता है जलते हुए सूरज की तरह
रोशनी इल्म की दुनिया में तभी बिखरेगी
तम को निगलोगे निगलते हुए सूरज की तरह
जुल्फ की छांव तले शाम गुजारो अपनी
अब्र में छुप के बहलते हुए सूरज की तरह
राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना
कितने फिसले हैं फिसलते हुए सूरज की तरह
अब्र की छांव में हर रोज छुपाकर खुद को
इक कमर ने छला…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 10:49am — 15 Comments
1212 1212 1212 1212
बशर तमाम भीड़ में मुकाम ढूंढते रहे
जमी पे हैं मगर फलक पे नाम ढूंढते रहे
हुनर तराशने की उम्र मस्ती में ही काटकर
बिना हुनर मियां कहाँ पे काम ढूंढते रहे
कभी भी बीज आम के चमन में बोये जब नहीं
तो फिर चमन में क्यूँ यूं आप आम ढूंढते रहे
जो रिंद हैं उन्हें तो मयकशी ही रास आयेगी
वो मयकदे तलाशते हैं जाम ढूंढते रहे
जतन तमाम ही किये पढ़ाने लाडले को जब
तभी से मन ही मन वो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 2, 2015 at 11:30am — 24 Comments
२१२२ १२१२ २२
हुस्न वाले सलाम करते हैं
क़त्ल यूं ही तमाम करते हैं
वो मसीहा चमन को लूट कहे
काम ये लोग आम करते हैं
आग दिल में लगाते गुल दिन में
रात तन्हाई नाम करते हैं
काम मेरा हुनर जो कर न सका
मैकदे के ये जाम करते हैं
जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ
शेख तो सुब्हो-शाम करते हैं
कैसे रिश्तों में वो तपिश मिलती
रिश्ते जब तय पयाम करते हैं
उनको बुलबुल…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:06pm — 19 Comments
2122 2122 212
चाँदनी बदली को इतना भा गयी
पगली बदली चाँद को ही खा गयी
जिसको रोता देख हमने की मदद
वो ही बिपदा बन मेरे सर आ गयी
हक़ की मैंने की यहाँ है बात जब
गोली इक बन्दूक की दहला गयी
जिस घड़ी लव पे हँसी आयी मेरे
वो उसी पल अश्क से नहला गयी
जान से मारा मगर जब बच गया
आ मेरे घावों को वो सहला गयी
Added by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2015 at 1:43pm — 12 Comments
१२१२ ११२२ ११२२ २२
तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या
घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या
हमें वो हीन कहें दींन कहें या मुफलिस
बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या
बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो
खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या
जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा
बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या
मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे
नसीब उन को महल हैं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 3:33pm — 10 Comments
१२१ २२ १२१ २२ यूं कतरा कतरा शराब पीकर हैं जिन्दा अब तक जनाब पीकर सवाल मुश्किल थे जिन्दगी के मगर दिए सब जवाब पीकर ये मय लगी कडवी सच के जैसी न कह सका मैं ख़राब पीकर पहाड़ सीने पे दर्दो गम के नहीं रहा कोई दवाब पीकर जिन्हें मयस्सर न रोटियाँ… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on May 12, 2015 at 1:54pm — 20 Comments
2122 1122 1122 22/112
हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये
आप हैं बुझते दिए आप जरा चुप रहिये
आईना देख के बालों की सफेदी देखें
गाल भी लगते हैं अब आपके पंचर पहिये
आप तैराक थे उम्दा ये हकीकत है पर
बाजू कमजोर हवा तेज न उल्टे बहिये
इश्क का भूत नहीं सर से है उतरा माना
पर सही क्या है ये, इस उम्र में खुद ही कहिये ?
लोग जिस मोड़ पे अल्लाह के हो जाते हैं
आप उस मोड़ पे मत दर्दे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 11:00am — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२
तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही है
नदियों की कल कल न बांधों में सुनायी दे रही है
कोई भी इल्जाम मैंने तो लगाया था नहीं फिर
वो हंसी गुल जाने क्यूँ इतनी सफाई दे रही है
चीख बस बच्चों कि ही तुमको सुनायी देती है क्यूँ
ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही है
एक रोटी के लिए तरसा दिया उस माँ को तुमने
जो गृहस्ती ज़िंदगी भर की बनायी दे रही है
काम दुनिया में…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 10:30pm — 14 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे
कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे
तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो
मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे
रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना
और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे
लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे
मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे
गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा
कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे
पापियों के पाप से धरती हिली जब
थी कहानी दर्द की वादे सवा पे…
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2015 at 5:30pm — 22 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा
जिस घड़ी पत्थर का ये दिल मोम सा हो जायेगा
भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक
माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा
आज तक मंदिर न जाकर कर दिया जो पाप है
माँ की सेवा से मिला आशीष वो धो जायेगा
मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़
तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा
मानती जिस को थी दुनिया इक मसीहा आज…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on April 22, 2015 at 1:00pm — 15 Comments
२१२२ २१२२ २१२
हुस्न का जादू जहाँ चल जायेगा
रिन्दों का दिल भी बहाँ जल जायेगा
जुल्फों को अपनी बिखेरेंगे वो जब
उस घड़ी ये तय है दिन ढल जायेगा
आ गए वो मौत से पहले मेरी
वक़्त मेरी मौत का टल जायेगा
हुस्न की मुझ पे इनायत हो गयी
ये रकीबों को मेरे खल जायेगा
उनसे मिलते वक़्त ये सोचा नहीं
दिल में पौदा प्यार का पल जायेगा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 11, 2015 at 10:30am — 3 Comments
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