कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!
Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
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छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,
कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई
कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 2:30pm — 17 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी
सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी
छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका
छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका
छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments
सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से -
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,
छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||
.…
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 3, 2012 at 6:30pm — 6 Comments
तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
का आभास हुआ
जब कुछ बच्चों को
घर की मुंडेर
पर चढ़कर
पतंग उड़ाते देखा
अलग अलग रंगों की
छटा बिखेरती,
ऊँची और ऊँची
चढ़ रही थी
आसमान में
परिंदे उड़ते हैं जैसे ।
मेरी पतंग ही रानी है
शायद यही सोचकर
लड़ाया पेंच एक बच्चे ने,
दूसरी पतंग धराशायी
हो गई
दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी
फिर मांझा चढ़ाया
और दूसरे ही क्षण
उसकी शहजादी करने…
ContinueAdded by mohinichordia on January 2, 2012 at 10:30am — 7 Comments
बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.
अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र.
तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.
देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.
अम्बरीष…
Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments
(छंद - दुर्मिल सवैया)
जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी
कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी
तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…
Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments
Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments
आत्मविस्मरण
विद्युत सी तरंग ,
कम्पन का भूकंप ,
स्पर्श नहीं आग !
मन से तन तक जाग !
सांसों में उच्छ्वास,
एक एहसास ...
होश नहीं,
जान बही !
कम्पित होठों की प्यास,
एक एहसास ...
हाथों में नर्म बारूद,
बारूद मुख में,
विस्फोट नस नस में !
बढ़ी प्यास,
एक एहसास ...
रिक्तता उभय ओर,
पूर्णता पे जोर,
साँसों का…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on December 28, 2011 at 4:32pm — 2 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2011 at 11:00am — 2 Comments
तुम्हे शिकायत है
इस गहरे अँधेरे से ,
पर क्या तुमने कोशिश की
एक दिया जलाने की ?
या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर
बनाया कोई सुरक्षा घेरा
कुछ जलते दीयों को
हवा से बचाने के लिए ?
नही न ?
कोई बात नहीं !
अभी सूखा नही है
समय का फूल !
चलो ढूँढे !
समंदर में डूबे सूरज को ,
इकठ्ठा करें
एक मुट्ठी धूप ,
उछाल दें पर्वतों पर ,
घाटियों में भी !
खिला…
ContinueAdded by Arun Sri on December 16, 2011 at 12:30pm — 26 Comments
लाख चाहकर भी मुझे न तुम बुझाओगे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2011 at 12:30pm — 12 Comments
वो पल सबसे अच्छे थे
जो गुज़रे थे तेरी बाहों में ।
खयालों में उन पलों को जी लेती हूँ
उन सांसों की सरगम से
मन को भिगो लेती हूँ
वो पल वापस नहीं लोटेंगे, मुझे पता है
उन स्मृतियों से आँखों को
नम…
ContinueAdded by mohinichordia on December 17, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल गई मेरे दिल की।
वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।
फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।
उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
जूँ ही क़ुरबत मिली मेरे दिल की।
कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।
अब हमें रोकना है नामुमकिन,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।
फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।
Added by इमरान खान on December 19, 2011 at 8:00am — 3 Comments
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 17, 2011 at 7:27pm — 3 Comments
माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,
.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |
अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
पढने वालों के लिए इम्तहाँ हूँ मैं |
.
चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…
ContinueAdded by Nazeel on December 15, 2011 at 12:00pm — 4 Comments
जब कभी भी आजमाया जायेगा
आदमी औकात पर आ जायेगा
शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला
वो यकीनन बुत बनाया जायेगा
क़ैद कर मेरी सहर की रोशनी
भोर का तारा दिखाया जायेगा
जिद पे गर बच्चा कोई आ ही गया
चाँद थाली में सजाया जायेगा
गर वो वादों पर यकीं करने लगे
उस से रोज़ी पर न जाया जायेगा
फ़र्ज़दारी का सिला जो दे चुके
कत्लगाहों में बसाया जायेगा
ये जहां तो इक मुसलसल मांग…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 8, 2011 at 11:00am — 7 Comments
राणा प्रताप काव्य पाठ करते हुए
…
ContinueAdded by वीनस केसरी on November 26, 2011 at 11:37pm — 5 Comments
भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए
फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए
आपकी ताक़त का अंदाजा इसी से लग गया
इस दफे भी आप ही कुर्सी संभाले रह गए
लाख कोशिश की मगर फिर भी छुपा ना पाए तुम
चंद घेरे आँख के नीचे जो काले रह गए
जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी
देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए
जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई
इस पुराने घर में बस…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on November 27, 2011 at 11:30pm — 16 Comments
Added by AK Rajput on November 27, 2011 at 9:30am — 5 Comments
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