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Tasdiq Ahmed Khan's Blog (117)

ग़ज़ल (हमें गुज़रा ज़माना याद आया ) -----------------------------------------------



ग़ज़ल (हमें गुज़रा ज़माना याद आया )

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मफाईलुन---मफाईलुन---- फऊलन

मुहब्बत का फसाना याद आया |

हमें गुज़रा ज़माना याद आया |

बनी है जान की दुश्मन शबे गम

कोई साथी पुराना याद आया |

शबे गम चैन भी आएगा कैसे

वो फिर ज़ालिम यगाना याद आया |

न जब इज़्ज़त मिली परदेस जा कर

वतन का आब दाना याद आया |

मिलीं जब ठोकरें हर एक दर से

मुझे उनका ठिकाना याद आया…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 12, 2016 at 7:21pm — 12 Comments

ग़ज़ल ( वो वादे से अपने मुकर जाएगा )

ग़ज़ल ( वो वादे से अपने मुकर जाएगा )

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फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल

ख़बर थी किसे एसा कर जाएगा |

वो वादे से अपने मुकर जाएगा |

न अब और ले इम्तहाने वफ़ा

ये दीवाना हद से गुज़र जाएगा |

चला तीर तिरछी नज़र का अगर

बचाएँगे दिल तो जिगर जाएगा |

बपा हश्र हो जाएगा उस जगह

वो जिस रास्ते पर ठहर जाएगा |

करेगा सितम के जो दौरान उफ़

निगाहों से उनकी उतर जाएगा…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 4, 2016 at 10:05am — 14 Comments

ग़ज़ल ( एक मुस्कान से जो मर जाए )

फाइलातुन -मफाइलुन -फेलुन

उनके चेहरे पे जो नज़र जाए |

मुस्तक़िल वो वहीं ठहर जाए |

उसपे तुमने उठा लिया खंजर

एक मुस्कान से जो मर जाए |

मैकदा है इधर नज़र है उधर

कोई जाए तो अब किधर जाए |

इक परिंदा भी जा सके न जहाँ

कौन लेकर वहाँ खबर जाए |

बात है देश की हिफ़ाज़त की

क्या गरज है हमारा सर जाए |

जो जबां कर सके न उल्फ़त में

काम वो इक निगाह कर जाए |

पानी पानी घटाएँ…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 9:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल ( किस ने फूंके नशेमन तमाम )

ग़ज़ल

---------

212 -212 -2121 /212

उसपे वारा है जीवन तमाम ।

जिस में मौजूद हैं फ़न तमाम ।

सख़्त लहजे का अंजाम है

हो गए तुझ से बद ज़न तमाम ।

उनको देखूंगा जब तक नहीं

दिल की होगी न धड़कन तमाम।

अबतो आ जाओ बन कर बहार

उजड़ा उजड़ा है गुलशन तमाम ।

किस को सौंपें क़यादत भला

रहबरों में हैं रहज़न तमाम ।

पूछना है तो बिजली से पूछ

किस ने फूंके नशेमन तमाम ।

इश्क़ तस्दीक़ आसाँ…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 20, 2016 at 2:25pm — 10 Comments

अस्ल दीपावली ( लघुकथा

सुरेश को घर में आता देख बच्चे फ़ौरन उनके पास आगये और थैले को देखने लगे ,वो बाज़ार से जो सामान लेकर आए थे

उनमें उनके पटाखे भी थे |



बच्चे पटाखे देख कर बोले " यह क्या पापा आप तो सिर्फ़ फुलझड़ी ,अनार और चरखी ही लाए हैं , आवाज़ वाले बम ,और

रॉकेट वग़ैरा नहीं लाए "

सुरेश ने जवाब में कहा " दीपावली रोशनी का त्योहार है ,इसमें सिर्फ़ रोशनी करनी चाहिए "

बच्चे फिर बोले " हर तरफ से पटाखों की आवाज़ें आ रही हैं , कितना अच्छा लग रहा है ,दूसरे बच्चे चिढ़ाएगे कि हमारे…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 31, 2016 at 9:30am — 9 Comments

ग़ज़ल ( जादूगरी हो गयी )

फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन

आँखों आँखों में जादूगरी हो गयी | 

उसका मैं हो गया वह मेरी हो गयी |

उनकाअहसास महफ़िल में उसदम हुआ 

यक बयक जब वहाँ रोशनी हो गयी |

फ़ायदा तो उठाएगा इस का जहाँ 

आपसी प्यार में गर कमी हो गयी |

कोई अपनी कमी को नहीं देखता 

क़ौल सबका है दुनिया बुरी हो गयी|

आगये वक़्तेआख़िर इयादत को वह 

पूरी ख्वाहिश मेरी आख़िरी हो गयी |

वक़्त आया है जिस दिन से मेरा…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 27, 2016 at 9:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल(शबाब पहने हुए )

फाइलातुन-मफाइलुन-फइलुन

कमसिनी में शबाब पहने हुए |

हुस्न निकला निक़ाब पहने हुए |

तुहमते बेवफ़ाई का कब से

हम हैं बैठे खिताब पहने हुए |

कौन आया है चीखी तारीकी

बज़्म में माहताब पहने हुए |

आँख में इंतज़ार दिल में तड़प

मैं हूँ यह इंक़लाब पहने हुए|

मत यक़ीं करना उसपे आया है

जो वफ़ा का हिजाब पहने हुए |

सामना अस्ल का ज़रूरी है

क्यूँ हैं आँखों में ख्वाब पहने हुए…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 20, 2016 at 8:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल ( शुरुआते मुहब्बत हो गयी )

ग़ज़ल ( शुरुआते मुहब्बत हो गयी )

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(फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन- फाइलुन )

यक बयक मुझ पर सितमगर की इनायत हो गयी ।

ऐसा लगता है शुरुआते  मुहब्बत   हो  गयी ।

की वफ़ा गैरों से अहदे इश्क़ अपनों से किया

जानेमन यह तो अमानत में खयानत हो गयी ।

यह नतीजा तो अज़ीज़ों पर  यक़ी करने का है

यूँ नहीं पैदा सनम के दिल में नफरत हो गयी ।

दिल की अब कीमत कहाँ है हुस्न के बाजार…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 3, 2016 at 8:58pm — 16 Comments

ग़ज़ल ( अहदे वफ़ा चाहिए )

ग़ज़ल ( अहदे वफ़ा चाहिए )

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फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल

न कुछ तुम से इसके सिवा चाहिए ।

हमें सिर्फ़ अहदे वफ़ा चाहिए ।

जो दौलत है ले जाओ तुम भाइयों

मुझे सिर्फ़ माँ की दुआ चाहिए ।

करे ऐब गोई जो हर शख़्स की

उसे दोस्तों आइना चाहिए ।

जो क़ायम करे एकता मुल्क में

हमें सिर्फ़ वह रहनुमा चाहिए ।

कहीं दिल लगाना भी है लाज़मी

अगर दर्दे ग़म का मज़ा चाहिए ।

ज़रूरी है ख़िदमत भी मख़लूक़ की

अगर…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 28, 2016 at 9:26pm — 14 Comments

ग़ज़ल ( साजन के तेवर देख कर )

ग़ज़ल

--------

फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन

चाहता है सिर्फ़ दिल मेरा ये मंज़र देख कर ।

फोड़ लूँ मैं अपनी आँखें उनको मुज़्तर देख कर ।

ज़िन्दगी में भी वो आजाएं जो मेरे दिल में हैं

सोचता रहता यही हूँ उनको अक्सर देख कर ।

हर किसी के पास तो होता नहीं ख़ुद का मकाँ

किस लिए हैं आप हैराँ मुझको बे घर देख कर ।

किस में हिम्मत है बढाए दोस्ती का हाथ जो

आस्तीं में आपकी पोशीदा खंज़र देख कर ।

फिर मुसीबत ना…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 18, 2016 at 11:53am — 10 Comments

ग़ज़ल ( करम की नज़र कहाँ )

ग़ज़ल

---------

(मफऊल -फाइलात -मफ़ाईल -फाइलुन )

सबको पता है तुझको मेरे दिल ख़बर कहाँ ।

वह डालते हैं सब पे करम की नज़र कहाँ ।

जैसे ही सामना हुआ मेरे हबीब से

बदली में छुप गया है न जाने क़मर कहाँ ।

हातिम की बात हर कोई करता तो है मगर

आता है उसके जैसा नज़र अब बशर कहाँ ।

खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं

होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ

जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका

वह दे सकेगा साथ…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 11, 2016 at 8:11pm — 12 Comments

ग़ज़ल ( अंजाम तक न पहुंचे )

ग़ज़ल ( अंजाम तक न पहुंचे )

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मफऊल-फ़ाइलातुन -मफऊल-फ़ाइलातुन

आग़ाज़े इश्क़ कर के अंजाम तक न पहुंचे ।

कूचे में सिर्फ पहुंचे हम बाम तक न पहुंचे ।

फ़ेहरिस्त आशिक़ों की देखी उन्होंने लेकिन

हैरत है वह हमारे ही नाम तक न पहुंचे ।

उसको ही यह ज़माना भूला हुआ कहेगा

जो सुब्ह निकले लेकिन घर शाम तक न पहुंचे ।

बद किस्मती हमारी देखो ज़माने वालो

बाज़ी भी जीत कर हम इनआम तक न…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 1, 2016 at 10:17pm — 12 Comments

ग़ज़ल ( क़लम तक न पहुंचे )

ग़ज़ल ( क़लम तक न पहुंचे )

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१२२ --१२२ --१२२ --१२२

वो पहुंचे मगर चश्मे नम तक न पहुंचे ।

हंसी में छुपे मेरे गम तक न पहुंचे ।

इनायत है उनकी मगर खौफ भी है

कहीं  सिलसिला यह सितम तक न पहुंचे ।

कई बार उनसे हुई बात लेकिन

मेरे जज़्बए दिल सनम तक न पहुंचे ।

यही रहबरों चाहती है रियाया

सियासत कभी भी धरम  तक न पहुंचे ।

तसव्वुर नहीं बंदिशें हैं मिलन…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 21, 2016 at 5:33pm — 10 Comments

ग़ज़ल ( जश्ने आज़ादी )

ग़ज़ल ( जश्ने आज़ादी )

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शिकवे गिले भुलाकर उल्फत को हम बढ़ाएं ।

मिल जुल के आओ जश्ने आज़ादी हम मनाएं ।

तोड़ें न मंदिरों को मस्जिद नहीं गिराएं ।

माहौल एकता का हम देश में बनायें ।

क़ुर्बानियों से जिनकी आज़ाद हम हुए हैं

हम उनके हक़ में आओ दस्ते दुआ उठायें ।

उल्फत से हम रहेंगे झगड़ा नहीं करेंगे

क़ौमी निशाँ के नीचे आओ क़सम ये खाएं।

गैरों ने जिस अदा से अपने वतन को लूटा

अपनों को भा गयी हैं शायद वही अदाएं ।

बस…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 15, 2016 at 1:47pm — 12 Comments

ग़ज़ल (ज़िंदगी के लिए )

ग़ज़ल (ज़िंदगी के लिए )

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२१२ ---२१२ --२१२ --२१२

मेरे महबूब तेरी ख़ुशी के लिए ।

ले लिए हम ने गम ज़िंदगी के लिए ।

गौर से अपने कूचे पे डालें नज़र

मुंतज़िर है कोई आप ही के लिए ।

मुस्कराता रहे ज़ुल्म सह के सदा

कब है मुमकिन हर इक आदमी के लिए ।

इक क़लम और कागज़ ही काफी नहीं

लाज़मी है सनम शायरी  के लिए ।

ऐसे आशिक़ हुए हैं रहे इश्क़ में

जान दे दी जिन्होंने किसी…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 13, 2016 at 8:47pm — 18 Comments

ग़ज़ल ( ख़िज़ाँ भी शामिल बहार में है )

१२१२२ - १२१२२

हंसी न अश्कों की धार में है ।

वफ़ा फ़क़त एतबार में है ।

लबों पे मुस्कान आँख है नम

ख़िज़ाँ भी शामिल बहार में है ।

लिपटना आता कहाँ है गुल को

ये ख़ास खसलत तो खार में है ।

निकाल दूँ अपने दिल से  उनको

कहाँ मेरे अख्तियार में है ।

जो देख ले खोए होश अपना

कशिश वो  रूए निगार में है ।

जुनूने दीदारे यार  देखो

खड़ा वो कल से कतार में है ।

कहाँ है तस्दीक…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 7, 2016 at 4:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल ( यक बयक हादसा घट गया )

ग़ज़ल (  हादसा घट गया )

--------

212 -212 -212

यक बयक हादसा घट  गया ।

राहे उल्फत से वह हट गया ।

ज़ुल्म में ही था शामिल करम

था गुमाँ मुझको वह पट गया ।

जाऊं सदक़े सियासत तेरे

हर कोई क़ौम में बट गया ।

नाव भी डगमगाने लगी

हो रहा है गुमाँ तट गया ।

ऐसा लगता है फ़हरिस्त से

नाम शायद मेरा कट गया ।

खाये पत्थर गली में तेरी

सर मेरा यूँ नहीं फट गया…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 15, 2016 at 7:33am — 21 Comments

ग़ज़ल ( आँखों से निकलते हैं )

ग़ज़ल ( आँखों से निकलते हैं )  

   १२२२ -१२२२ -१२२२ -१२२२

तड़प कर जो गमे जाने जहाँ दिल में पिघलते हैं ।

वही तो अश्क बन कर मेरी आँखों से निकलते हैं ।

क़यादत पर मेरी यह सोच के उंगली उठाना तुम

मेरे पीछे ही अपनों की तरह अग्यार चलते हैं ।

अगर देना नहीं था साथ तो पहले बता देते

अचानक कबले मंज़िल किस लिए रस्ता बदलते हैं ।

मुहब्बत करने वालों को है कब परवाह दुनिया की

जहाँ भी शमआ  जलती है वहां परवाने जलते हैं…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 3, 2016 at 7:58pm — 6 Comments

ग़ज़ल (गुलशन के लिए )

ग़ज़ल (गुलशन के लिए )

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2122 --2122 --212

जो चुने तिनके नशेमन के लिए ।

जल गए वह रात गुलशन के लिए ।

ख़ार मुरझाते नहीं गुल की तरह

क्यों नहीं चाहूँ मैं दामन के लिए ।

उनको ही शायर समझता है जहाँ

जिन के ईमां बिक गए धन के लिए ।

रास्ते तन्हा कभी कटते नहीं

लाज़मी साथी है जीवन के लिए ।

क्या पता कब दिल पे कर जाए असर

मैं वफ़ा रखता हूँ दुश्मन के लिए…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 16, 2016 at 9:28pm — 6 Comments

ग़ज़ल(उल्फत का रंग है )

ग़ज़ल (उल्फत का रंग है )

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221 --2121 --1221 ---212

ऐसा लगे है चढ़ गया उल्फत का रंग है ।

जो कल मेरे ख़िलाफ़ था वह  आज संग है ।

वह मेरे पास बैठ गए सब को छोड़ के

यूँ हर कोई न देख के महफ़िल में दंग  है ।

तरके वफ़ा का मश्वरा मत दीजिये हमें

सब जानते हैं आपका ये सिर्फ ढंग है ।

जिस दिन से जायदाद गए बाप छोड़ कर

घर तब से बन गया मेरा मैदाने जंग है ।

मैं एक क़दम…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2016 at 9:37am — 16 Comments

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