For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिज्जु "शकूर"'s Blog (133)

तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ- ग़ज़ल

2122- 2122- 2122

दिल से निकले वो तराना चाहता हूँ

इक मसर्रत का फसाना चाहता हूँ                       (मसर्रत =खुशी)

 

देख कर मुझको छलक जायें न आँसू

तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ

 

जी लिया मैंने बहुत बचते हुये अब

मुश्किलों को आजमाना चाहता हूँ

 

बेझिझक मै पत्थरों के शह्र जाके

उनको आईना दिखाना चाहता हूँ

 

सुब्ह की चुभती हुई इस धूप को मैं

अपनी आँखों से हटाना चाहता हूँ

 

हर…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on March 21, 2014 at 6:30pm — 28 Comments

जब से तेरी जुस्तजू होने लगी

2122- 2122- 212

जब से तेरी जुस्तजू होने लगी             (जुस्तजू=तलाश)

अजनबी सी मुझसे तू होने लगी

 

वक्त का होने लगा है वो असर

अब महक फूलों की बू होने लगी

 

भागता था जिस बला से दूर मैं

हर तरफ वो रू-ब-रू होने लगी

 

मुस्तकिल ये ज़िन्दगी होती नहीं           (मुस्तकिल= स्थाई)

क्यूँ इसी की आरज़ू होने लगी

 

उम्र के फटने लगे हैं अब लिबास

सो दवाओं से रफ़ू होने लगी

 

नफरतें ही…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on March 17, 2014 at 7:58am — 16 Comments

ग़ज़ल- शिज्जु शकूर

2122/ 2122/ 2122/ 212

कातिलों के शह्र में अहले जिगर आते नहीं

भीड़ से होकर परे चहरे नज़र आते नहीं

 

मेरे चारों ओर किस्मत ने बना दी बाड़ सी

हाल ये है अब परिन्दे तक इधर आते नहीं

 

वक्त सा होने लगा है दोस्तों का अब मिजाज़

गर चले जायें तो वापस लौटकर आते नहीं

 

ज़ीस्त के कुछ रास्तों पे तन्हा चलना ठीक है

क्यूँकि अक्सर साथ अपने राहबर आते नहीं

 

नक्शे-माज़ी देखने को आते तो हैं रोज़-रोज़

खण्डहर…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on March 10, 2014 at 9:00am — 30 Comments

लगी दाँव पे आन- दोहे

तेलंगाना पे भिड़े, अपनी मुट्ठी तान।

अपने भारत देश की, लगी दाँव पे आन।।

 

कोई तोड़े काँच को, पत्र लिया जो छीन।

आगे पीछे भैंस के, बजा रहे हैं बीन।।

 

मिर्चें लेकर हाथ में, करे आँख में वार।

मानवता इस हाल पे, अश्रु बहाये चार।।

 

हिस्सा जाता देख कर, हुये क्रोध से लाल।

बरसीं गंदी गालियाँ, ये संसद का हाल।।

 

चढ़ा करेला नीम पर, अपनी छाती ठोक।

शक्ति संग सत्ता मिली, रोक सके तो रोक।।

 

(मौलिक व…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on March 5, 2014 at 8:00am — 20 Comments

बेटी भी औलाद है- दोहे

पढ़े लिखे कुछ लोग भी, दे हैरत में डाल।

बेटी भी औलाद है, फिर क्यूँ करे बवाल।।

 

इतनी छोटी बात भी, समझे ना इंसान।

बेटी जन्में पुत्र को, रखते कुछ तो मान।।

 

बेटी मेरा खून है, बेटी मेरी जान।

बेटी से ये सृष्टि है, बेटी से इंसान।।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on February 22, 2014 at 5:30pm — 14 Comments

तीर शब्दों के चला ही दे

1222/1222/1222/1222

अरे नादान ये मय है जिगर को ये जला ही दे

मेरे इस दर्दे दिल के वास्ते कोई दवा ही दे

 

कभी जब खींच ले जाये समंदर साथ अपने तो

गुज़रती मौज कश्ती को किनारे पर लगा ही दे

 

तेरी आँखों में मेरे दर्द की तासीर है शायद       (तासीर= असर)

उदासी भी तेरी इस बात की पैहम गवाही दे      (पैहम= लगातार)

 

इरादों को किया मजबूत तेरे पत्थरों ने ही

तेरा हर वार मेरा हौसला आखिर बढ़ा ही दे

 

बचूँगा कब…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 7:30am — 19 Comments

पहचानो आवाज-दोहे

इक गुलदस्ते की तरह, सजा हमारा देश।

तरह-तरह के लोग हैं, तरह-तरह के वेश।।

 

जाति धर्म के फेर में, उलझ गया इंसान।
प्रेम शांति का मार्ग है, सत्य यही लो जान।।

 

तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।

बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।

 

मक्कारी औ झूठ से, जो ना आये बाज।

उसकी भाषा लो समझ, पहचानो आवाज।।

(मौलिक व अप्रकाशित)* संशोधित

Added by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2014 at 9:30pm — 22 Comments

दोहावली-1

दोहे लिखने की मेरी पहली कोशिश है

घूम - घूम के देश मे, बाँट रहा है ज्ञान।

बातें कड़वी बोलता, सत्य उसे ना मान।।

 

अपना सीना तान के, करे शब्द से वार।

अन्धे उसके भक्त हैं, करते जय जयकार।।

 

बाँटे अपने देश को, लेके प्रभु का नाम।

उसको आता है यही, अधर्म का ही काम।।

 

यही देश का भाग है, यही देश का सत्य।

कोई आगे आय ना, नाग करे सो नृत्य।।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

संशोधन के पश्चात पुनः दोहे…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on February 2, 2014 at 10:30pm — 16 Comments

चंद यादें ग़ज़ल बन किताबों में हैं

212  212  212  212

चंद यादें ग़ज़ल बन किताबों में हैं

हसरतें तेरी ही इन निगाहों में हैं

 

कुर्बतें वो तबस्सुम तेरी शोखियाँ

बस यही साअतें मेरी यादों में हैं

 

अपने आँचल से तूने हवा दी जिन्हें

वो शरारे हरिक सिम्त राहों में हैं

 

जो सिवा अपने सोचें किसी और की

अज़्मतें इतनी क्या हुक्मरानों में हैं

 

कुछ खबर ले कोई आके इनकी ज़रा

कितनी बेचैनियाँ ग़म के मारों में हैं

 

साअत= क्षण,…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2014 at 3:45pm — 30 Comments

पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ

212/ 212/ 212/ 212

 

पास लाई हमें जाने कब दूरियाँ

ये लगे है कि मिट जाये अब दूरियाँ

 

चाँदनी भी है कंदील भी हाथ में

फिर भी क्यूँ रौशनी से अजब दूरियाँ

                                                                  

याद आती रहे आपको मेरी तो

मैं कहूँ है बहुत मुस्तहब दूरियाँ

 

मुझको शिकवा न तुझको शिकायत कोई

दरमियाँ क्यूँ ये फिर बेसबब दूरियाँ

 

मेरी अफ़्सुर्दगी को बढ़ाये बहुत                 …

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 28, 2014 at 8:30am — 13 Comments

पत्थर मारने की आदत(ग़ज़ल)

221 2122 221 2122

 

शब्दों में पत्थरों को भर मारने की आदत

यूँ बेवजह तुम्हे ठोकर मारने की आदत

 

हमने मुहब्बतों में झेले सितम हज़ारों

दीवार पे हमें है सर मारने की आदत

 

ईमानो हक की बातें हैं करते आज वे ही

जिनको है भीड़ में छुप कर मारने की आदत

 

हालात दर्द को पैहम यूँ बढ़ाये उसपे

ऐ हुक्मराँ तेरी नश्तर मारने की आदत

 

उड़ना जिन्हे है वो उड़ ही जाते हैं परिन्दे

उनको नही ज़मीं पे पर मारने की…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2014 at 3:30pm — 26 Comments

ग़ज़ल (212- 212- 212- 212)

क्या कहूँ साथ अपने वो क्या ले गई

आँधी थी सायबाँ ही उड़ा ले गई

 

मैंने बस एक ही गाम उठाया मुझे

रहनुमा बन के तेरी दुआ ले गई

 

काम आये सितारे अँधेरो में रात

जब चिरागों की लौ को हवा ले गई

 

मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला

गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई

 

जीने की कोशिशें उसकी बेजा नहीं

क्या हुआ गर खुशी वो चुरा ले गई

 

रात के ख़्वाब बाकी थे आँखों में कुछ

सुब्ह की बेरहम धूप उठा ले…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 18, 2014 at 7:35pm — 21 Comments

लोकतंत्र का मुखौटा पहने (अतुकांत)

लोग कहते हैं

ज़माना बदल गया

मै कहता हूँ-

फ़क़त चेहरे बदले हैं,

व्यक्ति परक समाज तब भी था

अब भी है,

रियासतों,

शाही आनो-शान के बीच,

इंसानों के लहू से लिखी गई,

इतिहास की इबारत,

जो आज भी सुर्ख़ है

 

नाम बदले

मगर हालात न बदले

हुक्मरान बदले

मगर

जनता पहले भी ग़ुलाम थी

अब भी ग़ुलाम है

अंग्रेज़ों के पहले भी

अंग्रेज़ों के बाद भी

बेबसी ने ग़ुलाम…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:30pm — 12 Comments

ताब जो मेरे इरादों में है- शिज्जु

2122 1122 22/112

 

तिश्नगी में न सराबों में है

ताब जो मेरे इरादों में है

 

चहचहाते हुये पंछी ये कहें

ज़िन्दगी अब भी खराबों में है

 

ध्यान से पहले सुनो फिर समझो

क्या हकीकत मेरे दावों में है

 

बादलों की ये शरारत है जो

चाँद का नूर हिजाबों में है

 

अब तलक तेरी ज़ुबाँ पे थी वो

बात अब मेरे सवालों में है

 

काम आयेगी अकीदत आखिर

ऐसी तासीर दुआओं में है

ताब=…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 10, 2014 at 8:28pm — 22 Comments

एक तरही ग़ज़ल- शिज्जु

मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया

 

चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ

बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया

 

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया

 

मायूस हुआ तेरी तीखी…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 9:00am — 34 Comments

वहीं हूँ जहाँ से चला था

मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,

हकीकत के सीने में दफ़्न,

कुछ इच्छाओं की

उन धुँधली यादों को,

मेरे सपनों की लाशों को,

अब तक ढो रहा हूँ मैं…

 

कई दफे

ज़िन्दगी करीब से गुज़री,

मगर,

मैं ही जी न पाया..

आज मुझे लगता है

मैंने बहुत कुछ खो दिया,

पहले जो खोया है..

उसे याद कर,

और फिर,

उन्हीं यादों में खोकर,

 

एक लम्बा सफर तय किया,

मगर,

आज मुझे लगा

कि मैं…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 3, 2014 at 11:07am — 38 Comments

नये युग की शुरुआत लिखें

सूखे पत्तों के ढेर में

उम्मीद का

एक अंकुर फूटा

 

सूखे पत्ते मानो,

लाशें हैं

लाश हारे हुये लोगों की

लाश,

पराधीनता को किस्मत समझ

डर-डर के जीने वालों की

 

वो अंकुर है

भाग्योदय का

कीचड़ में उतर

परजीवियों को

साफ कर

समाज से

बीमारी हटाने वालों का

जो एक ज़र्रा था कल तक

आज

ज़माना उसकी चमक देख रहा है

 

अपनी नन्हीं आँखें खोल

मानो, कह रहा…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2013 at 10:52am — 32 Comments

एक तरही ग़ज़ल- शिज्जु

2122 1122 22/112

आँधी से उजड़ा शजर लगता है

वो बुलन्द अब भी मगर लगता है

 

सिर्फ किरदार नये हैं उसके

इक पुराना वो समर लगता है

 

बेकरानी में कहीं गुम शायद

इक बियाबान में घर लगता है

 

वो कहीं शिद्दते- तूफ़ाँ तो नही

रास्ता छोड़ अगर लगता है

 

पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो

तेरे हाथों में हुनर लगता है

 

काँच का दिल है ज़बाँ पे पत्थर

बच के जाऊँ मुझे डर लगता…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 12:00pm — 34 Comments

पोता (लघुकथा )

“एक पोता भी  नही दे सकी कलमुंही”  वार्ड में सास की आवाज़ गूँजी,

इतने में अंदर आते हुये डॉक्टर ने जब ये सुना तो कहा- “पति के शरीर में एक्स- वाई(X-Y) क्रोमोसोम्स होते हैं, पत्नि के शरीर में एक्स-एक्स(X-X) क्रोमोसोम्स होते हैं, पति का वाई(Y) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटा होता है, पति का एक्स(X) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटी होती है l

पता नही आपके क्या समझ में आया?  लेकिन इतना सच जान लीजिये आपको पोता नही मिला उसका पूरा…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 24, 2013 at 10:30am — 38 Comments

रात (अतुकांत)

दिन भर के सफर का

थका हुआ सूरज, मानो..

ज़मीं की सेज़ पर,

लहरों के झूले में,

चाँदनी की चादर ओढ़े

सबकुछ भूल के,

सोने जा रहा हो,

लहराते हुये लहरो में,

मानो,

कह रहा है

मेरे दोस्तो

विदा, फिर मिलेंगे सुबह...

मैं चला

 

होती है रात विश्राम को,

थकान मिटाने को,

चलें सफर में

रात के साथ...

पिछला ग़म भुलाने को

चलो

सुबह एक नई शुरूआत करेंगे

 

 -मौलिक व…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 18, 2013 at 10:30am — 17 Comments

Monthly Archives

2023

2020

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service