जब तक इन्द्रिय भोग में होती मन की वृत्ति
सकल दुखों ,भव - ताप से मिलती नहीं निवृत्ति
उस असीम की शक्ति से संचालित सब कर्म
परम विवेकी संत ही जाने उसका मर्म
पंच तत्व के मेल से बनें प्रकृति के रूप
यह दर्पण , इसमें दिखे सत्य ,'अरूप' , अनूप
दृढ़ संकल्पित यदि रहे नित्य , सनातन जान
डरे भला क्यों मौत से ? अजर , अजेय , अमान
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 23, 2020 at 11:03am — 2 Comments
2122 2122 2122 2122
कैसे कह दें मुल्क में कितनी निखर आयी सियासत ।
क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई सियासत ।।
चाहतें सब खो गईं और खो गए अम्नो सुकूँ भी ।
इक तबाही का लिए मंज़र जिधर आई सियासत ।।
नफ़रतों के ज़ह्र से भीगा मिला हर शख़्स मुझको ।
कुर्सियों के वास्ते जब गाँव- घर आई सियासत।।
मन्दिरो मस्ज़िद में बैठे खून के प्यासे बहुत हैं ।
क्या हुआ इस मुल्क में जो इस कदर आई सियासत ।।
आदमी का ख़्वाब देखो फिर ठगा सा…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 23, 2020 at 1:00am — 8 Comments
धन, दौलत तो उपयोग की वस्तु, जाती कभी भी साथ नहीं
कद्र ना होती उस शख्स की, पैसा जिसके पास नहीं ||
आज बचा लो कल मिलेगा, इसे बचाना दोष नहीं
दर-दर की वो ठोकर खाता, गरीब की कोई औकात नहीं ||
सुख-वैभव उसके दर विराजे, पैसो की ना जिसके पास कमी
अनकहे रिश्ते खुद बन जाते, आदर्श बनती हर बात कही ||
कुछ दोष तो यूं छिप जाते, उम्मीद जिसकी होती…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 19, 2020 at 1:44pm — 2 Comments
मौन की भाषा सुनो,मौन मुखरित हो रहा है
जाने कितने शिकवे छिपे हैं,जाने कितने हैं फसाने
अपने अंतर में छुपाये,जाने कब से सह रहा है
खामोशी चारों तरफ है,अब न कोइ शोर है
कोइ नहीं है पास में अब,एकाकीपन का ये दौर है
लग रहा है फिर भी ऐसा,ज्यों गूंजता कानों में कोइ शोर है
ध्यान और एकांत ने,धीरे से फिर समझा दिया
मौन तो इक शक्ति है विश्वास है
नयी राहों पर देता ज्ञान का प्रकाश है
एकांत मौन में मिलती नयी उर्जा सदा
मौन चिंतन ही…
ContinueAdded by Veena Gupta on December 18, 2020 at 3:33am — 1 Comment
जीवन की इस नदिया को,बस बहते ही जाना है
लक्ष्य यही है इसका इकदिन,सागर में मिल जाना है
चाहे जितनी बाधाएँ हों,चाहे जितने हों भटकाव
लक्ष्य प्राप्त करना ही होगा,होगा ना उसमें बदलाव
मीठे पानी की नदिया इकदिन,खारा सागर बन जायेगी
इसी तरह ये जीवन नदिया इकदिन,अमर आत्मा बन जायेगी
पर जाने से पहले जीवन में,कुछ ऐसे मीठे काम करो
नदिया जैसे सब याद करें,आत्मा अमर हो जाने दो
मौलिक /अप्रकाशित
वीणा
Added by Veena Gupta on December 18, 2020 at 3:00am — 3 Comments
( एक )
लोग राजनीति में बड़े - बड़े
बदलाव लाने के लिए आते हैं।
सत्ता में आते ही कद-काठी ,
डील-डौल , रंग-रूप , वाणी ,
पहनावा सब बदल जाते हैं ,
सबसे बड़ी बात , चेहरे - मोहरे
और इरादे तक बदल जाते हैं।
( दो )
वह गतिमान है ,
चलते रहना उसकी प्रकृति।
वह समय है , गुजर जाता है।
पर अतीत को छोड़ जाता है ,
और छोड़ जाता है ,
अतीत के अवशेष, धरोहरें,
स्मृतियाँ , स्मारक , कहानियां।
समय प्रति क्षण चलायमान…
Added by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2020 at 9:30am — 6 Comments
खेतीहर का ध्यान बँटाकर दाना चोरी करता है
मल्लाहों से नौका लेकर नदिया चोरी करता है।१।
*
बात उजाले की नित कर के तारा चोरी करता है
मन्दिर मस्जिद रटकर सबकी पूजा चोरी करता है।२।
*
मन्जिल पास बड़ी है अब तो राहत पाँवों को देदो
ऐसा कह कर सब के पग से रस्ता चोरी करता है।३।
*
ये कैसा राजा आया है आज हमारी नगरी में
सन्तों जैसे पहरावे में …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2020 at 7:04am — 9 Comments
एक भ्रात है भरत के जैसा,
जिसमें कुछ पाने का भाव नहीं
समर्पित करता भ्रात चरण में,
राज्य संग सुख, चैन सभी ||
तिलभर भी छल ना मन में,
जग भी उसके साथ नहीं
कठोरता/ताने सहता सारे जन की,
मातृ की करनी उसकी सभी ||
विभीषण भी एक भ्रात उधर है
सिंहासन पर जिसकी आँख लगी
कठिन समय में भ्रात छोड़ता,
शत्रुओं को बताता भेद सभी ||
ना अंतक्रिया भी भ्रात की करता
सुख-भोग से भी इंकार…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 15, 2020 at 6:58pm — 2 Comments
2122 1212 22/122
क़ैद नज़रों में ही रखा है मुझे
उसने आज़ाद कब किया है मुझे (1)
इससे बहतर तो था अदू मेरा
यार दीमक सा खा रहा है मुझे (2)
रात की नींद उड़ गई मेरी
ख़्वाब में जब से वो दिखा है मुझे (3)
सुब्ह तक होश में नहीं आया
रात इतनी पिला चुका है मुझे (4)
मंज़िलों तक पँहुच नहीं पाया
पर वो रस्ता बता गया है मुझे (5)
वो शिकायत कभी नहीं करता
उससे इतना ही अब गिला है मुझे …
Added by सालिक गणवीर on December 14, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
बाढ़-सूखा सूदखोरी हर समय डर अन्नदाता के लिए
कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।
**
हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर
खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।
*
कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज
मायने रखता नहीं कुछ खेत ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
*
नित्य भूखे पेट सोता है उपज को वो बचाने खेत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2020 at 8:00am — 12 Comments
2122 2122 212
.
1
अपनी हर लग़्ज़िश छिपा ली जाएगी
हाँ क़सम झूठी भी खा ली जाएगी
2
जिंदगी की शान-ओ-शौकत के लिए
बात कुछ भी अब बना ली…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on December 11, 2020 at 11:30am — 10 Comments
विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
ह्रदय बसाये देवी सीता
वन वन भटकें राम
लोचन लोचन अश्रु बावरे
बहते हैं अविराम
सुन चन्दा तू नीलगगन से
देख रहा संसार
किस नगरी में किस कानन में
खोया जीवन सार
हे नदिया हे गगन,समीरा
ओ दिनकर ओ धूप
तृण तृण से यूँ हाथ जोड़कर
पूछ रहे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 10, 2020 at 7:00pm — 8 Comments
नंगे पाँव
ठंड मे ठिठुरते
फुला फुला के गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास गाँव है
गरीब सही पर सुरक्षित पाँव हैं
ठंड मे ठिठुरते
नंगे पाँव गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
इसी उम्र के अपने नौनिहालों को याद करना
उनके लिए शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास बल है बलबूते हैं
उनके पास पाँव हैं
पाँव…
ContinueAdded by amita tiwari on December 10, 2020 at 2:30am — 5 Comments
मेरे छोटे से बेटे तक ने थाली सरका दी । कहा नहीं खाऊँगा । इस खाने को उगाने वाले अन्नदाता यदि भूखे हैं ,बेघर हैं उनकी आवाज़ गले मे घुट रही है तो नैतिकता की मांग है कि मुझे ये खाना खाने का हक़ नहीं है । नहीं जानता हूँ कि कौन कितना गलत है या सही है लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि ऐसे मौसम मे घर छोडने का ,सड़कों पर बैठने का और सर पर कफन बांधने का शौक किसी को नहीं हो सकता । जब भविष्य अंधकारमय लगता है तभी वर्तमान ऐसे कदम उठाता है तब जीवन और मौत मे कोई अंतर नहीं रह जाता है । एक आम…
ContinueAdded by amita tiwari on December 9, 2020 at 1:43am — 8 Comments
2122 1122 1122 22
सामने आ तू कभी ख़्वाब में आने वाले
क्या मिला तुझको मेरी नींद उड़ाने वाले (1)
ऐसा लगता है कि आने का इरादा ही नहीं
वर्ना महशर में भी आ जाते हैं आने वाले (2)
चंद लम्हे भी अगर बंद हुई हैं पलकें
आ ही जाते हैं नये ख़्वाब दिखाने वाले (3)
क्या ग़जब है कि नये लोग चले आए हैं
घर में पहले से ही थे आग लगाने वाले (4)
मैं इस उम्मीद में बस आज तलक ज़िंदा हूँ
लौट आएँगे कभी छोड़ के जाने वाले…
Added by सालिक गणवीर on December 8, 2020 at 9:20am — 10 Comments
221 2121 1221 212
हर बात अपने दिल की बताई नहीं जाती
करके कोई दुआ भी यूँ गाई नहीं जाती।1
दिल आपकेे है बस में ये अब जानते हैं हम
जादूगरी ऐसी भी दिखाई नहीं जाती।2
हैं दर्द-ओ-ग़म भरे हुए इतने कि क्या कहें
ये दास्तान दिल की सुनाई नहीं जाती।3
ये बदगुमानी आपकी आई है बीच में
बिगड़ी है इतनी बात बनाई नहीं जाती।4
फिर साथ होगी होली दीवाली की धूम भी
हमसे अकेले ईद मनाई नहीं जाती।5
दिल आपका दुखा तो…
ContinueAdded by Richa Yadav on December 7, 2020 at 1:29pm — 4 Comments
किसी समय मानवी सनक से
यह धरणी शापित ना हो
करे ध्वंस क्षण में अवनी का
वह कुशस्त्र चालित ना हो
ज्ञान,शक्ति,आनन्द त्रिवेणी
की धारा बाधित ना हो
जाति-धर्म की सीमाओं में
बंध कोई त्रासित ना हो
रहे सदा वसुधा का आँचल
हरा - भरा तापित ना हो
फैले नव प्रकाश जीवन में
योग क्षेम नाशित ना हो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 6, 2020 at 9:43am — 2 Comments
221 1221 1221 122
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आग़ाज मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इजाज़त है हलाहल भी नहीं है।
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है ज़माने
इन्सान बनेगा कोई अटकल भी नहीं है ।
आसान नहीं होता जहाँ रोटी जुटाना,
तू मौज मनाता दुखी बेकल भी नहीं है |
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीँ पड़ता
मुँहजोर है औलाद उसे कल भी नहीं है |
है एक मुसीबत वो निभाने हैं मरासिम,
अब वक्त बचा क़म है, वो दल-बल भी नहीं…
Added by Chetan Prakash on December 5, 2020 at 7:30am — 2 Comments
फसल की बालियां,डालियां और पत्तियां आपस में बातें कर रही थीं।
' हम फल हैं।जीवन का पर्याय हैं।' बालियां इतरा कर कह रही थीं।
' हम भोजन न बनाएं,तो सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जायेगी।' पत्तियों ने आंखें तरे ड़ कर कहा।
' वाह वाह! क्या कहने! गर हम तुम्हें न संभालें तो फिर क्या हो?' डालियां जरा मौज में झूमकर बोलीं।
' ठहरो,ठहरो।हमें असमय सूखने पर मजबूर न करो।हम अभी नाजुक दौर में हैं।' बालियों और पत्तियों की सम्मिलित आर्त ध्वनियां गूंजने लगीं।
जड़ और तने एक दूसरे को…
Added by Manan Kumar singh on December 4, 2020 at 11:00pm — 2 Comments
उस असीम , विराट में
इस सृष्टि का संगीत
ताल,लय,सुर से सुसज्जित
नित्य नव इक गीत
नृत्य करती रश्मियाँ
उतरें गगन से भोर
मृदु स्वरों की लहरियों पर
थिरकतीं चँहु ओर
गगन पर जब विचरता
आदित्य , ज्योतिर्पुंज
विसहँते सब वृक्ष,पर्वत,
नदी ,पाखी , कुन्ज
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 4, 2020 at 7:30pm — 3 Comments
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