२१२२//१२२१/२२१२
मुफलिसी में ही जिसका गुजारा हुआ
कौन शासन जो उस का सहारा हुआ।१।
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उसको जूठन का मतलब न समझाइए
जिस ने पहना हो सब का उतारा हुआ।२।
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चाद किस्मत में उस के नहीं था मगर
आस भर को भी कोई न तारा हुआ।३।
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जिस ने जीवन जिया है सहज कष्ट में
आप कहते हैं उस को ही हारा हुआ।४।
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है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 21, 2020 at 6:22am — 8 Comments
दस्तक :
वक़्त बुरा हो तो
तो पैमानें भी मुकर जाते हैं
मय हलक से न उतरे तो
सैंकड़ों गम
उभर आते हैं
फ़िज़ूल है
होश का फ़लसफ़ा
समझाना हमको
उनके दिए ज़ख्म ही
हमें यहां तक ले आते हैं
वो क्या जानें
कितने बेरहम होते हैं
यादों के खंज़र
हर नफ़स उल्फ़त की
ज़ख़्मी कर जाते हैं
तिश्नगी बढ़ती गई
उनको भुलाने के आरज़ू में
क्या करें
इन बेवफ़ा क़दमों का
लाख रोका
फिर भी
ये
उनके दर तक ले जाते हैं
उनकी…
Added by Sushil Sarna on November 20, 2020 at 8:43pm — 2 Comments
मुझे भी पढ़ना है - लघुकथा –
"ऐ सुमन, मुन्ना नहीं दिखाई दे रहा?"
"काहे परेशान हो? अभी आ जायेगा।"
"अरे तू समझती काहे नहीं है। यह गाँव देहात नहीं है।शहर का मामला है। एक मिनट में बच्चा गायब हो जाता है।"
"हम सब जानते हैं इसलिये उसकी दादी माँ भी साथ गयी हैं।"
"अरे मगर गये कहाँ हैं वे दोनों?"
"और कहाँ जायेंगे? दो साल से स्कूल जाने का सपना मन में पाल रखा है। स्कूल की प्रार्थना की घंटी सुनते ही दौड़ जाता है।"
"अब क्या करें सुमन? घर की माली हालत तो तुम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 20, 2020 at 6:22pm — 6 Comments
2122-1212-22
1
आदमी कब ख़ुदा से डरता है
अपनी हर बात से मुकरता है
2
जब सर-ए-शाम ग़म सँवरता है
आइना टूटकर बिखरता है
3
आज का काम आज ख़त्म करें
वक़्त किसके लिए ठहरता है
4
ताबिश-ए-ख़्वाब के लिए दिलबर
रंग मेरे लहू से भरता…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on November 20, 2020 at 12:00pm — 4 Comments
पूर्णता का जो है प्रतीक ,वह तो बस एक शून्य है
शून्य है जीवन का सत्य ,शून्य ही सम्पूर्ण है
जिस बिंदु से आरम्भ होता ,होता वहीं वह पूर्ण है
आरम्भ जीवन का शून्य से और अंत भी बस शून्य है
शून्य में जोड़ दो ,चाहे जितने शून्य तुम
या निकालो शून्य में से चाहे जितने शून्य तुम
शून्य फिर भी शून्य…
ContinueAdded by Veena Gupta on November 20, 2020 at 3:20am — 6 Comments
2122 2122 2122 2
चुप रहीं आँखें सजल ने कुछ नहीं बोला
इसलिए मनवा विकल ने कुछ नहीं बोला
भाव जितने हैं सभी को लिख दिया हमदम
क्या कहूँ! तुमसे ग़ज़ल ने कुछ नहीं बोला?
जिस किनारे बैठ के पहरों तुम्हें सोचूँ
उस जलाशय के कमल ने कुछ नहीं बोला?
एक पत्थर झील में फेंका कि जुम्बिश हो
झील के खामोश जल ने कुछ नहीं बोला
साथ 'ब्रज' के रात भर पल पल रहे जलते
जुगनुओं के नेक दल ने…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 19, 2020 at 9:00pm — 6 Comments
छंदमुक्त काव्य
जिंदगी से जिंदगी लड़ने लगी है
आदमी को आदमी की शक्ल
अब क्यूँ इस तरह अखरने लगी है //
आँख में आँख का तिनका…
ContinueAdded by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 19, 2020 at 1:00pm — 1 Comment
बड़ी नज़ाकत से हमने .....
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
अपने -अपने दर्दों को
मुस्कराहटों में ढाला है
मुद्दा ये नहीं कि
चराग़ बेवफ़ाई का
जलाया किसने
सच तो ये है अश्क चश्म में
दोनों ने संभाला है
ये हाला है उल्फत की
उल्फत का ये प्याला है
पाक मोहब्बत का दोनों के
दिल में पाक शिवाला है
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
सुशील सरना
मौलिक एवं अपक्राशित
Added by Sushil Sarna on November 18, 2020 at 6:07pm — 2 Comments
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मुझ से तो तुम बस सहयोग ही करो
मानव जनम मिला है तत्सम आचरण करो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
प्रेरणा न बन सको तो कोई फरक नही
लेकिन किसी सन्मार्ग में कंटक तो न बनो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मै आज हूँ बस आज और अभी
गुजरे हुये पलो से मेरी तुलना तो न करो
भविष्य से मेरा कोई सम्बन्ध है कहा
वर्तमान को ही मैंने जीवन कहा
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मुझ से तो तुम बस सहयोग…
ContinueAdded by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 14, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
मेटती आयी है घर की तीरगी दीपावली
सब के मन में भी करे अब रोशनी दीपावली।१।
**
रीत कितने ही युगों से चल रही हो ये भले
हर बरस लगती है सब को पर नई दीपावली।२।
**
तोड़ आओ ये नगर का जाल कहती साथियों
गाँव की नीची मुँडेरों पर जली दीपावली।३।
**
दीप सब ये प्रेम और' विश्वास के हैं इसलिए
आँख चुँधियाती नहीं साथी घनी दीपावली।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 14, 2020 at 8:57am — 8 Comments
दीपोत्सव हम मना रहे
जगमग जग ये हो सारा
ज्ञान का ऐसा दीप जलायें
अज्ञान दूर हो जग से सारा
सौहार्द प्रेम का हो प्रसार
वसुधैव कुटुम्बकम का सच हो नारा
दीपक ऐसा एक जलायें
फैले प्रेम का उजियारा
(मौलिक/अप्रकाशित)
Added by Veena Gupta on November 14, 2020 at 2:00am — 4 Comments
2122 1212 22/112
फिर से मुझको न वो हरा जाए
इससे पहले ही कुछ किया जाए (1)
जब वो आँखों से कुछ नहीं कहता
कान में कुछ तो बुदबुदा जाए (2)
बन गया है वो मील का पत्थर
अब उसे ठीक से पढ़ा जाए (3)
यार अब बन गया अदू मेरा
अब भले को बुरा कहा जाए (4)
सीधे रस्ते पे क्या चलेगा वो
जिसका ईमान डगमगा जाए (5)
है जबाँ यार ये महब्बत की
उससे उर्दू में कुछ कहा जाए…
Added by सालिक गणवीर on November 13, 2020 at 9:30am — 7 Comments
मुंगेरीलाल और कोरोनाकाल... सबके बहुत बुरे हालचाल! लॉकडाउन पर लॉकडाउन... घर में क़ैद सब जॉब डाउन, रोज़गार डाउन! बेचारे मुंगेरीलाल ने अपनी कम्पनी की नौकरी छोड़कर बड़ी मुसीबत कर ली थी सात साल पहले। उनका काम और रुझान दिलचस्प और संतोषजनक था, फ़िर भी सपनों और दिवास्वप्नों में खोये रहने और बड़ी-बड़ी बातें फैंकने के कारण दफ़्तर, घर, बाज़ार और ससुराल सभी जगह लोग उनका मज़ाक उड़ा-उड़ा कर मौज-मस्ती कर लिया करते थे। उन सबकी बातों को मुंगेरीलाल कभी हल्के में, तो कभी बहुत गंभीरता से ले लेते थे।
एक बार…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on November 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments
भगवान देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है। लेता है, तो एक झटके में ले लेता है। देकर ले लेता है, तो हँसाने के बाद रुला-रुला कर। राजन, रंजीता और गंगा का ज़िन्दगीनामा भी यही साबित करता रहा; गार्गी और गार्गी की बार्बी का भी! बार्बी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; बार्बी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। यही हाल गार्गी का था। गार्गी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; गार्गी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2020 at 8:30am — 4 Comments
दोस्तो गर ज़िन्दगी में कामरानी चाहिए
ज़ह्न-ओ-दिल से गर्द नफ़रत की हटानी चाहिए
अर्ज़ कर दूँ आख़िरी ख़्वाहिश इजाज़त हो अगर
एक शब मुझको तुम्हारी मेज़बानी चाहिए
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी अगर कुछ आपसे बच पाए तो
हम ग़रीबों को भी थोड़ी शादमानी चाहिए
मूँद कर आँखें न चलना याद रखना ये सबक़
ज़िन्दगी में हर क़दम पर सावधानी चाहिए
ज़िन्दगी में लाज़मी तो है मगर इंसान को
दफ़्न करने के लिये भी माल पानी चाहिए
फ़ज़्ल से रब के मुकम्मल हो गई मेरी ग़ज़ल
दोस्तो…
Added by Samar kabeer on November 9, 2020 at 5:30pm — 22 Comments
आज वो बेहद खुश थी। कई दिनों बाद कुछ ठीक-ठाक ग्राहक आये थे। वह अरसे बाद आज रात बच्चों को अच्छा खाना खिला पाई थी। बच्चे भी बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाकर तृप्त दिख रहे थे, "माँ, वाह, मज़ा आ गया !"
आज की इस आमदनी की बात उसके दल्ले पति से भी न छुपी रह सकी थी। दो-चार थप्पड़ रसीद कर उसने उससे कुछ पैसे ऐंठ लिये। ठेके पर दोस्तों के साथ बैठ, ठर्रा गटकाते हुए उधर वह भी बड़बड़ाये जा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 9, 2020 at 4:21pm — 8 Comments
212 212 212 212
1
दोस्तों के बिना ज़िन्दगी दोस्तो
इक कहानी उदासी भरी दोस्तो
2
बीच में फ़ासले ला के दौलत के क्यों
आज़माने लगी दोस्ती दोस्तो
3
हाथ में हाथ डाले खड़ी दोस्ती
गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ के भी दोस्तो
4
कारवाँ अज़्म का रोके रुकता नहीं
राह चाहे हो मुश्किल भरी दोस्तो
5
हार बैठे हैं दिल कू-ए-उल्फ़त में हम
अब न खेलेंगे बाजी नई दोस्तो
6
सुब्ह होते ही बेहिस जहाँ के सितम
ढूँढ लेंगे हमारी गली…
Added by Rachna Bhatia on November 9, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
आज मम्मी जी पापा जी छोटे के लिए लड़की देखने जा रहे। हम दो भाई है, छोटे भाई का नाम अभिषेक है। मुझे तो बैंक जाना था, फरवरी मार्च दो महीने, बैंक से छट्टिया वैसे भी नहीं मिलतीं। सास- ससुर की लाड़ली बड़ी बहू उनके साथ जारही थी। बहुत खुश थी, बड़ी बहू-चयन का विशेष दायित्व जो मिल गया था। पापा जी ने तो कह दिया था, हम ठहरे पुराने जमाने के लोग, आजकल जो अपेक्षाएं, एक बहू से परिवार को हो सकती है तुम बेहतर जानती हो। ड्राईवर के आते ही कहा, गाड़ी लगाओ, रामबीर चार घंटे का रास्ता है । बारह बजे तक पहुँचना है,…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 8, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
जब मैं कल रात ड्यूटी से घर आई , तो महाभारत घर में पहले से ही हमेशा की तरह चल रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब घर वालों ने अपनी मर्जी से मेरी शादी की, मेरी राय तक नहीं पूछी गई l क्यूंकि मेरे जैसी जो पहले ही तीस पार कर चुकी होl उन से भला कौन राय लेता l मैं तो बोझ थी, जिसको निपटाना चाहा l जानलेवा बीमारी ने शादी के कुछ महीनों बाद ही उनको मुझसे जब दूर कर दिया। तब मुझे लगा, अब मुझे उस घर में एक अजनबी की तरह नहीं रहना चाहिए, मैं जल्दी से उनका बोझ कम करना चाहा। उनके जाने के बाद, मैं उस घर में अकेले…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 4, 2020 at 9:30pm — 3 Comments
अनजाने से .....
मैं
व्यस्त रही
अपने बिम्ब में
तुम्हारे बिम्ब को
तराशने में
तुम
व्यस्त रहे
स्वप्न बिम्बों में
अपना स्वप्न
तराशने में
हम
व्यस्त रहे
इक दूसरे में
इक दूसरे को
तलाशने में
वक्त उतरता रहा
धूप के सायों की तरह
मन की दीवारों से
हम के आवरण से निकल
मैं और तू
रह गए कहीं
अधूरी कहानी के
अपूर्ण से
अफ़साने…
Added by Sushil Sarna on November 4, 2020 at 7:30pm — 7 Comments
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