२१२२/२१२२/२१२२/२१२
पेट जब भरता नहीं गुफ़्तार उसका दोस्तो
ढोइए अब और मत यूँ भार उसका दोस्तो।१।
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नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी
हर वचन जाता रहा बेकार उसका दोस्तो।२।
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है खबर रस्ते से करने वो लगा है दरकिनार
रास्ता जिस ने किया तैयार उस का दोस्तो।३।
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हाल देखे से न भरनी जो हमारी झोलियाँ
क्या करें इस हाल में दीदार उसका दोस्तो।४।
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यूँ चमन पूरा खफ़ा हैं फूलों से बरताव पर
दे रहे हैं साथ लेकिन ख़ार उसका दोस्तो।५।
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भाण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2020 at 9:54am — 9 Comments
खंडित मूर्ति - लघुकथा –
"सुमित्रा, यह लाल पोशाक वाली लड़की तो वही है ना जिसकी खबर कुछ महीने पहले अखबार में छपी थी।"
"हाँ माँ यह वही है।"
"इसके साथ स्कूल के चपरासी ने जबरदस्ती की थी ना।"
"हाँ माँ,वही है। आप क्या कहना चाहती हो?"
"मैं यह कहना चाहती हूँ कि इसे पूजा में किसने बुलाया?"
"माँ यह मेरी बेटी के साथ पढ़ती है। उसकी दोस्त है। उसने इसे मुझसे पूछ कर ही बुलाया है।"
"यानी यह तुम्हारी मर्जी से यहाँ आयी है। सब कुछ जानते बूझते हुए।"
“माँ , वह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 23, 2020 at 1:14pm — 8 Comments
२१२२ २१२२
फूल काँटों में खिला है,
प्यार में सब कुछ मिला है.
है न कुछ परिमाप गम का,
गाँव है, कोई जिला है.
झोंपड़ी का देखकर गम,
तख़्त कब कोई हिला है.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 19, 2020 at 11:30am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
नहीं दो-चार लगता है बहुत सारे बनाएगा
जहाँ मिलता नहीं पानी वो फ़व्वारे बनाएगा (1)
ज़रूरत से ज़ियादा है शुगर मेरे बदन में पर
मुझे वो देखते ही फिर शकर-पारे बनाएगा (2)
फ़लक के इन सितारों की तरह ही देखना इक दिन
ज़मीं पर भी ख़ुुदा अपने लिए तारे बनाएगा (3)
ज़मीं पर पैर रखने की जगह दिखती नहीं उसको
फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा (4)
जहाँ में ख़ुशनसीबों की नहीं दिखती…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on October 19, 2020 at 7:30am — 8 Comments
परम ज्योति , शाश्वत , अनन्त
कण - कण में सर्वत्र
विन्दु रूप में क्यों भला
बैठेगा अन्यन्त्र ?
सबमें वह , उसमें सभी
चहुँदिशि उसकी गूँज
क्या यह संभव है कभी
सिन्धु समाए बूँद ?
ज्ञान नेत्र से देखते
संत , विवेकी व्यक्ति
आत्मा ही परमात्मा
घटे न उसकी शक्ति
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 18, 2020 at 10:53pm — 4 Comments
छोटू - लघुकथा –
पत्रकार सम्मेलन से लौटते हुए एक ढावे पर चाय पीने रुक गया।ढावे पर एक नौ दस साल के बच्चे को काम करते देख मेरे अंदर की पत्रकारिता जनित मानवता जाग उठी।मैंने उसे इशारे से बुलाया,"क्या नाम है तुम्हारा?"
वह मेरे चेहरे को टुकुर टुकुर देख रहा था। मैंने पुनः वही प्रश्न दोहराया।वह तो फिर भी वैसे ही गुमसुम खड़ा रहा लेकिन ढावे का मालिक आगया,"साहब, इसका नाम छोटू है।यह गूंगा बहरा है।"
"इसके माँ बाप कहाँ हैं?"
"ये अनाथ है।"
"मैं इसकी एक फोटो ले…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 17, 2020 at 10:58am — 4 Comments
नमिता गाड़ी की पिछली सीट पर आंखें मूंदे हुए सिर टिकाए सोच में डूबी हुई थी। यूं तो उसे फिल्म इंडस्ट्री में आए 3 साल हो गए थे। वह एक छोटे से कस्बे से आती थी, शुरू में उसको काम मिलने में बहुत दिक्कत हुई, दरअसल वह बोल्ड सीन देने से बचना चाहती थी, लेकिन बॉलीवुड में यह संभव न था। इधर 6 महीनों में उसने दो बड़ी फिल्में साइन की थीं, लेकिन आज उसका मन बहुत ज्यादा उद्वेलित था, क्योंकि अपनी मर्जी के विरुद्ध उसे आज काफी बोल्ड दृश्य करने पड़े थे। यही सब सोचते सोचते वह अपने घर पहुंच गई। फ्लैट का ताला खोला…
ContinueAdded by Dr Vandana Misra on October 16, 2020 at 9:00pm — 3 Comments
ख़ामोश दो किनारे ....
बरसों के बाद
हम मिले भी तो किसी अजनबी की तरह
हमारे बीच का मौन
जैसे किसी अपराधबोध से ग्रसित
रिश्ते का प्रतिनिधित्व कर रहा हो
ख़ामोशी के एक किनारे पर तुम
सिर को झुकाये खड़ी हो
और
दूसरे किनारे पर मैं
मौन का वरण किये खड़ा हूँ
क्या कभी मिट पाएँगे
हम दोनों के मिलन में अवरोधक
ख़ामोशी के
ख़ामोश दो किनारे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 16, 2020 at 6:54pm — 6 Comments
जिन की ख़ातिर हम हुए मिस्मार; पागल हो गये
उन से मिल कर यूँ लगा बेकार पागल हो गये.
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सुन के उस इक शख्स की गुफ़्तार पागल हो गये
पागलों से लड़ने को तैयार पागल हो गये.
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छोटे लोगों को बड़ों की सुहबतें आईं न रास
ख़ुशबुएँ पाकर गुलों से ख़ार पागल हो गये.
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थी दरस की आस दिल में तो भी कम पागल न थे
और जिस पल हो गया दीदार; पागल हो गये.
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एक ही पागल था मेरे गाँव में पहले-पहल
रफ़्ता रफ़्ता हम सभी हुशियार पागल हो गये.
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इल्तिजा थी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2020 at 3:00pm — 13 Comments
पागल दिल का पागल सपना ......
इत् -उत् ढूँढूँ साजन अपना
नैनन द्वार भी आये न सपना
बैरी कजरा बह -बह जाए
का से कहूँ दुःख साजन अपना
तुम यथार्थ से बन गए सपना
प्यार किया करके बिसराया
प्रीतम तोहे तरस न आया
तडपत तडपत रैन बिताई
काहे तो पे ये मन आया
मुश्किल दिल को है समझाना
भूलूँ कैसे तेरी बातें
प्यार भरी वो प्यारी रातें
हर आहट पर ऐसा लगता
लौटी जैसे फिर मुलाकातें
आहत करे तेरा यूँ…
Added by Sushil Sarna on October 14, 2020 at 6:21pm — 2 Comments
सागर से भी गहरे देखे.
जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे.
नए दौर में नई सदी में,
साँसों पर भी पहरे देखे.
गांधी जी के तीनों बंदर,
अंधे गूँगे बहरे देखे.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 14, 2020 at 12:54pm — 10 Comments
122 122 122 12
रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया
ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया
मेरे साथ गम का चले कारवाँ
अकेला मैं फ़िर क्यों बता हो गया
जिसे छूना तुमको न मुमकिन लगे
समझ लो वही अब ख़ुदा हो गया
नहीं ज़िन्दगी ज़िन्दगी सी रही
सफ़र यह भी अब बदमज़ा हो गया
सुख़न शाइरी भी अजब शै हुई
तसव्वुर का इक आसरा हो गया
अँधेरों की आदत बना लीजिए
ज़िया से अधिक फ़ासला हो…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on October 14, 2020 at 10:41am — 7 Comments
हाथ पकड़ कर चाहा जिसका हो जाना
उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना।१।
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किस्मत किस्मत रटते सबको देखा पर
एक न पाया जिस ने किस्मत को जाना।२।
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मीत अकेलेपन सा कोई और नहीं
लेकिन ये भी सब को पाया तो जाना।३।
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नींद न आये तो ये कैसे भूलें हम
झील किनारे गोद में सर रख सो जाना।४।
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पीर हमें अब लगती सच में अपनी सी
फूल के बदले पथ में काँटे बो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 13, 2020 at 6:40pm — 13 Comments
पानी से आग बुझाने की ....
किस तिनके ने दी इजाज़त
घर में धूप को आने की
दहलीज़ पे रातों की आकर
पलकों में ख़्वाब जलाने की
जिस खिड़की पर लगी थी चिलमन
नज़र से हुस्न बचाने की
उस खिड़की पर रुकी थी नज़रें
इस कम्बख़्त ज़माने की
मंज़िल उसको मान के हम
उसके इश्क में जलते रहे
वो चालें अपनी चलते रहे
हमसे हमें चुराने की
ख़्वाहिश बस ख़्वाहिश ही रही
पलकों में घर बनाने की
नादाँ दिल को मिली सज़ा
नज़रों से नज़र मिलाने की
कसर न छोड़ी…
Added by Sushil Sarna on October 12, 2020 at 3:25pm — 4 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
ज़िन्दगी भर हादसे दर हादसे होते रहे
और हम हालात पर हँसते रहे रोते रहे
आए हैं बेदार करने देखिये हमको वही
उम्र भर जो ग़फ़लतों की नींद में सोते रहे
कर दिए आबाद गुलशन हमने जिनके वास्ते
वो हमारे रास्तों में ख़ार ही बोते रहे
बोझ बन जाते हैं रिश्ते बिन भरोसे प्यार के
जाने क्यूँ हम नफ़रतों की गठरियाँ ढोते …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 11, 2020 at 9:57pm — 5 Comments
2122. 1122. 1122. 22.
रूठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे
अब नहीं जाते अँधेरे ये सँभाले मुझसे (1)
सूख जाता है गला प्यास के मारे जब भी
दूर हो जाते हैं पानी के पियाले मुझसे (2)
क़ैद रक्खा है मुझे उसने कई सालों से
चाबियों का भी पता पूछ न ताले मुझसे (3)
सामने मेरे बहुत लोग यहाँ भूखे हैं
आज निगले नहीं जाएँगे निवाले मुझसे (4)
हाथ जब मेरे सलीबें ही उठाना चाहें
ख़ार अब माँग रहे पैरों के छाले…
Added by सालिक गणवीर on October 11, 2020 at 3:30pm — 11 Comments
"आंटी जी, अगर उस दिन आप ने शिंदो के सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं ये कहाँ होती।" रज्जो ने कहा
कीमत तो इसकी पहले ही लग चुकी थी,बस उस दिन तो पैसे देने थे, मालिक को ।
शिंदो को तो इस बारे कुछ पता ही नही था।“भला हो उस के साथ डांस पार्टी में काम करने वाली का”,रज्जो ने बात बढ़ाते हुए कहा।
"उसने बता दिया,वरना पता नहीं कहाँ कहाँ बिक गई चुकी होती, अब तक ।
जब मालिक ने कहा कि कल वह किसी और डांस पार्टी के साथ काम करेगी " तब उसे खनक गई थी,कि इस के आगे़ क्या होने वाला…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 10, 2020 at 2:00pm — 2 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 21- 21
हादिसात ऐसे हुए हैं ज़िन्दगी में बार-बार
हर ख़ुशी हर मोड़ पर रोई तड़प कर ज़ार-ज़ार
दर्द ने अंँगडाईयाँ लेकर ज़बान-ए-तन्ज़ में यूँ
पूछा मेरी बेबसी से कौन तेरा ग़म-गुसार
अपनी-अपनी क़िस्मतें हैं अपना-अपना इंतिख़ाब
दिलपे कब होता किसी के है किसी को इख़्तियार
रफ़्ता-रफ़्ता जानिब-ए-दिल संग भी आने लगे अब
जिस जगह पर हम किया करते हैं तेरा…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 8, 2020 at 11:51am — 4 Comments
कौशिशें इतनी सी हैं बस शायरी की
आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की
हद जुनूँ की तोड़ कर की है इबादत
ख़ूँँ जलाकर अपना तेरी आरती की
गोलियों की ही धमक है हर दिशा में
और तू कहता है ग़ज़लें आशिक़ी की!
भूले-बिसरे लफ़्ज़ कुछ आये हवा में
कोई बातें कर रहा है सादगी की
इतनी लंबी हो गयी है ये अमावस
चाँद भी अब शक्ल भूला चांदनी की
बूँद मय की तुम पिलाओ वक़्ते-रुखसत
आखि़री ख्वा़हिश यही है ज़िन्दगी…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on October 7, 2020 at 5:00pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on October 7, 2020 at 3:03pm — 2 Comments
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