सत्य की तलाश - लघुकथा –
आधी रात का वक्त था। गाँव से दूर पूर्व की ओर एक खाली पड़े खेत में एक चिता सजाई जा रही थी। चारों ओर से पुलिस उस खेत को घेरे हुए थी।ऐसा लग रहा था जैसे पूरे देश की पुलिस यहाँ एकत्र कर रखी हो।पुलिस के अलावा कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।
हाँ पुलिस के घेरे से बाहर अवश्य एक भीड़ जुटी हुई थी।भीड़ में कुछ लोग रो रहे थे। कुछ हँस भी रहे थे।कुछ नारे लगा रहे थे।
इसी बीच एक सौ साल से ऊपर का वृद्ध पुरुष सफेद धोती से अपना जर्जर शरीर लपेटे हुए हाथ में एक लाठी लिए भीड़ को…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 7, 2020 at 11:40am — 10 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता
ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता
बिछा के राहों में काँटे पता देते हैं मंज़िल का
कोई तो रहनुमा होता कोई तो मेह्रबाँ होता
ख़ुदा या फेर लेता रुख़ जो तू भी ग़म के मारों से
तो मुझ-से बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता
बने तुम हमसफ़र मेरे ख़ुदा का शुक्र है वर्ना
न जाने तुम कहाँ होते न जाने मैं कहाँ …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2020 at 8:36am — 3 Comments
देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम
सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१।
**
बाँट रहे हैं जाति-धर्म में दशकों पहले जैसा ही
एक रहो सब देश की खातिर कहने वाले नेता कम।२।
**
सब धनिकों का पक्ष उठाते अपनी अण्टी भरने को
अब निर्धन की पीड़ाओं को सुनने वाले नेता कम।३।
**
ठाठ पुराने राजा जैसे अब हर नेता अपनाता
लाल …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 7:01pm — 4 Comments
122 122
उधर जब तपन है
इधर भी अगन है
अदू साथ तेरे
मुझे क्यों जलन है
ये क्यों मीठी मीठी
सी दिल में चुभन है
वही दुश्मन-ए-जाँ
वही जान-ए-मन है
सुखी वो नहीं पर
दुखी आज मन है
जहाँ फूल थे कल
वहाँ आज गन है
यहाँ झूठ सच है
यही तो चलन है
कहो कुछ भी'सालिक'
तुम्हारा दहन है
*मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by सालिक गणवीर on October 5, 2020 at 9:30pm — 10 Comments
Added by Deepalee Thakur on October 5, 2020 at 7:34pm — 8 Comments
वेदना कुछ दोहे :
गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज।
नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।
इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग।
रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।
पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान।
नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।
बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात।
बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।
नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान।
आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 5, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जमीं पर बीज उल्फत के कोई बोता नहीं दिखता.
लगाता प्रेम सरिता में कोई गोता नहीं दिखता.
करे अपराध कोई और ही उसकी सजा पाए,
वो कहते हैं हुआ इंसाफ़, पर होता नहीं दिखता.
झरोखे हैं न आँगन है, न दाना है न गौरैया,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 5, 2020 at 9:30am — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं
भाषण देने वाले नेता सारे यार मवाली हैं
**
इन के दिन की बातें छोड़ो रातें तक मतवाली हैं
जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं
**
कहते तो हैं नित्य ग़रीबी यार हटाएँगे लेकिन
जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं
**
देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर ख़र्चे में इन की आदतें हैराँ करने वाली हैं
**
काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:01am — 6 Comments
ख़ूब इतराते हैं हम अपना ख़ज़ाना देख कर
आँसुओं पर तो कभी उन का मुहाना देख कर.
.
ग़ैब जब बख्शे ग़ज़ल तो बस यही कहता हूँ मैं
अपनी बेटी दी है उसने और घराना देख कर.
.
साँप डस ले या मिले सीढ़ी ये उस के हाथ है,
हम को आज़ादी नहीं चलने की ख़ाना देख कर.
.
इक तजल्ली यक-ब-यक दिल में मेरे भरती गयी
एक लौ का आँधियों से सर लड़ाना देख कर.
.
ऐसे तो आसान हूँ वैसे मगर मुश्किल भी हूँ
मूड कब…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2020 at 12:37pm — 8 Comments
अवसरवादी - लघुकथा –
आज शहर के लोक प्रिय नेताजी का जन्मदिन बड़े जोर शोर से मनाया जा रहा था। इस बार इतने सालों बाद बहुत खोज बीन के बाद ये पता चला कि नेताजी की असली जन्म तिथि दो अक्टूबर ही है।किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ क्योंकि नेताजी जिस जमाने में पैदा हुए थे उस वक्त स्कूल में दाखिले के समय कोई जन्म तिथि का प्रमाण पत्र माँगता भी नहीं था।बनवाने का रिवाज़ भी नहीं था।मुँह जुबानी जो भी तारीख बोल दी वही लिख दी जाती थी।
कैसा विचित्र संयोग था कि नेता जी का जन्म दिन भी बापू जी और…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2020 at 7:25pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on October 2, 2020 at 1:57pm — 6 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 1, 2020 at 1:00pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
.
है जिधर मेरी नज़र उसकी नज़र जाने तो दो
कायनात ए इश्क़ को हर सू बिखर जाने तो दो
.
क्या हमें हासिल हुआ इस ज़िन्दगी से दोस्तो
सब बताएंगे मगर जाँ से गुज़र जाने तो दो
.
हम अदालत में करेंगे पैरवी हर झूठ की
शर्म आँखों की ज़रा सी और मर जाने तो दो
.
तर्के निस्बत का भी मातम तुम मना लेना मगर
ताज दिल का टूट कर पहले बिखर जाने तो दो
.
आँख से बहता समंदर बाँध कर रखना ज़रा
कतरा कतरा…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on September 30, 2020 at 10:30pm — 4 Comments
तुम्हें लगता है रस्ता जानता हूँ
मगर मैं सिर्फ चलना जानता हूँ.
.
तेरे हर मूड को परखा है मैंने
तुझे तुझ से ज़ियादा जानता हूँ.
.
गले मिलकर वो ख़ंजर घोंप देगा
ज़माने का इरादा जानता हूँ.
.
मैं उतरा अपने ही दिल में तो पाया
अभी ख़ुद को ज़रा सा जानता हूँ.
.
बहा लायी है सदियों की रवानी
मगर अपना किनारा जानता हूँ.
.
बता कुछ भी कभी माँगा है तुझ से?
मैं अपना घर चलाना जानता हूँ.
.
निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 30, 2020 at 1:46pm — 8 Comments
221 2121 1221 212
सूखी हुई है आज मगर इक नदी है तू
मैं जानता हूँ रेत के नीचे दबी है तू
मरना है एक दिन ये नई बात भी नहीं
जी लूँ ऐ ज़िंदगी तुझे जितनी बची है तू
आँखों को चुभ रही है अभी तेरी रौशनी
काँटा समझ रहा था मगर फुलझड़ी है तू
ऐ मौत कोई दूसरा दरवाजा खटखटा
आवाज़ मेरे दर पे ही क्यों दे रही है तू
हर बार ये लगा है तुझे जानता हूँ मैं
महसूस भी हुआ है कभी अजनबी है तू
आज़ाद हो रही…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on September 28, 2020 at 10:00pm — 18 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 27, 2020 at 10:00pm — 8 Comments
तर्क-ए-वफ़ा का जब कभी इल्ज़ाम आएगा
हर बार मुझ से पहले तेरा नाम आएगा.
.
अच्छा हुआ जो टूट गया दिल तेरे लिए
वैसे भी तय नहीं था कि किस काम आएगा.
.
अब रात घिर चुकी है इसे लौट जाने दे
यादों का क़ाफ़िला तो हर इक शाम आएगा.`
`
उर्दू की बज़्म में कभी हिन्दी चला के देख
तेरे कलाम में नया आयाम आएगा.
.
उस सुब’ह धमनियों में ठहर जाएगा ख़िराम
जिस भोर मेरे नाम का पैग़ाम…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2020 at 12:00pm — 10 Comments
फ़ाइलुन -फ़ाइलुन - फ़ाइलुन -फ़ाइलुन
2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2
वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी
रोज़ मुझपे क़हर बनके गिरने लगी
रोज़ उठने लगी लगी देखो काली घटा
तर-बतर ये ज़मीं रोज़ रहने लगी
जबसे तकिया उन्होंने किया हाथ पर
हमको ख़ुद से महब्बत सी रहने लगी
एक ख़ुशबू जिगर में गई है उतर
साँस लेता हूँ जब भी महकने…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 27, 2020 at 10:31am — 40 Comments
माधवी पटना की लेडी डॉक्टर से मिलकर बाहर आते ही पति से बोली,' यह ओवरी वाला क्या चक्कर था मधुप?'
' बकवास ही समझो '
' वाकई दोनों ओवरी बराबर आकार की होती है?छपरा वाली डॉक्टरनी बोली थी।'
' नहीं होती।मैंने अपने दोस्त डॉक्टरों से सलाह की थी।' पति बोला।
' फिर वह मुई ऑपरेशन किस चीज का करती?'
' पता नहीं। डोनेशन वाले डॉक्टर - डॉक्टरनी भी तो होते हैं भई।'
' ऐसा?'
'और क्या? यहां सब चलता है।' पति हिकारत भरे लहजे में बोला।
' मौलिक व अप्रकाशित'
Added by Manan Kumar singh on September 26, 2020 at 1:20pm — 1 Comment
अजीब था यह अनमोल नाता ... अमृता प्रीतम जी
कई दशक पहले मैं जब भी प्रिय अमृता प्रीतम जी के उपन्यास पढ़ता था, पुस्तक को रखते एक कसक-सी होती थी, यह इसलिए कि एक बार आरम्भ करके उनकी पुसत्क को रखना कठिन होता था। आज भी ऐसा ही होता है। जब से एक प्रिय मित्र पिंकी केशवानी जी ने अमृता जी की पुस्तक “मन मंथन की गाथा” मुझको भेंट में भेजी, जब भी ज़रा-सा अवकाश मिलता है, यह पुस्तक मुझको झट पास बुलाती है।
मित्र पिंकी ने पुस्तक में लिखा, “एक छोटी-सी भेंट,…
ContinueAdded by vijay nikore on September 25, 2020 at 10:51pm — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |