For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

सत्य की तलाश  - लघुकथा –

सत्य की तलाश  - लघुकथा –

आधी रात का वक्त था। गाँव से दूर पूर्व की ओर एक खाली पड़े खेत में एक चिता सजाई जा रही थी। चारों ओर से पुलिस उस खेत को घेरे हुए थी।ऐसा लग रहा था जैसे पूरे देश की पुलिस यहाँ एकत्र कर रखी हो।पुलिस के अलावा कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।

हाँ पुलिस के घेरे से बाहर अवश्य एक भीड़ जुटी हुई थी।भीड़ में कुछ लोग रो रहे थे। कुछ हँस भी रहे थे।कुछ नारे लगा रहे थे।

इसी बीच एक सौ साल से ऊपर का वृद्ध पुरुष सफेद धोती से अपना जर्जर शरीर लपेटे हुए हाथ में एक लाठी लिए भीड़ को…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 7, 2020 at 11:40am — 10 Comments

ग़ज़ल (न यूँ दर-दर भटकते हम...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222

न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता

ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता 

बिछा  के राहों  में काँटे  पता देते  हैं  मंज़िल   का

कोई  तो  रहनुमा   होता  कोई   तो  मेह्रबाँ   होता

ख़ुदा या  फेर लेता रुख़  जो तू भी ग़म के मारों से

तो  मुझ-से  बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता

बने  तुम  हमसफ़र  मेरे  ख़ुदा  का   शुक्र  है वर्ना 

न  जाने  तुम  कहाँ  होते  न  जाने मैं  कहाँ …

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2020 at 8:36am — 3 Comments

नेता कम - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम

सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१।

**

बाँट रहे  हैं  जाति-धर्म  में  दशकों  पहले जैसा ही

एक रहो सब देश की खातिर कहने वाले नेता कम।२।

**

सब धनिकों का पक्ष उठाते अपनी अण्टी भरने को

अब निर्धन की पीड़ाओं  को  सुनने वाले नेता कम।३।

**

ठाठ  पुराने  राजा  जैसे  अब  हर  नेता अपनाता

लाल …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 7:01pm — 4 Comments

उधर जब तपन है..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

 

122 122

उधर जब तपन है
इधर भी अगन है

अदू साथ तेरे
मुझे क्यों जलन है

ये क्यों मीठी मीठी
सी दिल में चुभन है

वही दुश्मन-ए-जाँ
वही जान-ए-मन है

सुखी वो नहीं पर
दुखी आज मन है

जहाँ फूल थे कल
वहाँ आज गन है

यहाँ झूठ सच है
यही तो चलन है

कहो कुछ भी'सालिक'
तुम्हारा दहन है

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

Added by सालिक गणवीर on October 5, 2020 at 9:30pm — 10 Comments

चॉकलेट बार (लघुकथा)

चॉकलेट बार
12 अप्रेल , 2015 
आज अम्मा जी पंचतत्व में विलीन हो गई ।
माली के बेटे पुनीत का स्कूल में दाखिला कराया आज से उसकी रुकी हुई पढ़ाई लिखाई का सारा जिम्मा मेरा
मेरी श्रद्धांजलि अम्मा जी को।
25 मई, 2018
आज पुनीत का दसवीं बोर्ड का परिणाम आया प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण 
पुनीत में वही…
Continue

Added by Deepalee Thakur on October 5, 2020 at 7:34pm — 8 Comments

वेदना कुछ दोहे :

वेदना कुछ दोहे :

गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज।

नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।

इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग।

रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।

पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान।

नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।

बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात।

बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।

नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान।

आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।

सुशील…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 5, 2020 at 4:00pm — 8 Comments

मगर होता नहीं दिखता - गजल

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

जमीं पर बीज उल्फत के कोई बोता नहीं दिखता.

लगाता प्रेम सरिता में कोई गोता नहीं दिखता.

 

करे अपराध कोई और ही उसकी सजा पाए,

वो कहते हैं हुआ इंसाफ़, पर होता नहीं दिखता.

 

झरोखे हैं न आँगन है, न दाना है न गौरैया,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on October 5, 2020 at 9:30am — 12 Comments

जन के हाथों थमी थालियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं

भाषण  देने  वाले  नेता  सारे  यार  मवाली हैं

**

इन के दिन की  बातें  छोड़ो रातें तक मतवाली हैं

जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं

**

कहते  तो  हैं  नित्य  ग़रीबी  यार  हटाएँगे  लेकिन

जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं

**

देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को

पर  ख़र्चे  में  इन की  आदतें  हैराँ  करने वाली हैं

**

काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:01am — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की- ख़ूब इतराते हैं हम अपना ख़ज़ाना देख कर

ख़ूब इतराते हैं हम अपना ख़ज़ाना देख कर

आँसुओं पर तो कभी उन का मुहाना देख कर.

.

ग़ैब जब बख्शे ग़ज़ल तो बस यही कहता हूँ मैं  

अपनी बेटी दी है उसने और घराना देख कर. 

.

साँप डस ले या मिले सीढ़ी ये उस के हाथ है,

हम को आज़ादी नहीं चलने की ख़ाना देख कर.

.

इक तजल्ली यक-ब-यक दिल में मेरे भरती गयी

एक लौ का आँधियों से सर लड़ाना देख कर.

.

ऐसे तो आसान हूँ वैसे मगर मुश्किल भी हूँ

मूड कब…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2020 at 12:37pm — 8 Comments

अवसरवादी  - लघुकथा –

अवसरवादी  - लघुकथा –

आज शहर के लोक प्रिय नेताजी का जन्मदिन  बड़े जोर शोर से मनाया जा रहा था। इस बार इतने सालों बाद बहुत खोज बीन के बाद ये पता चला कि नेताजी की असली जन्म तिथि दो अक्टूबर ही है।किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ क्योंकि नेताजी जिस जमाने में पैदा हुए थे उस वक्त स्कूल में दाखिले के समय कोई जन्म तिथि का प्रमाण पत्र माँगता भी नहीं था।बनवाने का रिवाज़ भी नहीं था।मुँह जुबानी जो भी तारीख बोल दी वही लिख दी जाती थी।

कैसा विचित्र संयोग था कि  नेता  जी का जन्म दिन भी  बापू जी और…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 2, 2020 at 7:25pm — 4 Comments

बापू की लाठी से ....

 
बापू की लाठी से ....
 
हार गई दम्भी बन्दूक
बापू की लाठी से…
Continue

Added by Sushil Sarna on October 2, 2020 at 1:57pm — 6 Comments

हक़ीक़त का हमेशा सामना करने से डरते हैं (१२४ )

++ग़ज़ल++( 1222 1222 1222 1222 )
हक़ीक़त का हमेशा सामना करने से डरते हैं
मुहब्बत की वो पहले इब्तिदा करने से डरते हैं
मुहब्बत की उन्हें हासिल नहीं होती कभी मंज़िल
जहाँ में जो भी इज़हार-ए-वफ़ा करने से डरते हैं
न उन की कोई सुनता है न अपनी बात कह पाते
जो अक्सर लोग अर्ज़-ए-मुद्दआ करने से डरते हैं
कोई भी इल्म हो काबू में उनके आ नहीं…
Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 1, 2020 at 1:00pm — 2 Comments

है जिधर मेरी नज़र उसकी नज़र जाने तो दो

2122 2122 2122 212

.

है जिधर मेरी नज़र उसकी नज़र जाने तो दो

कायनात ए इश्क़ को हर सू बिखर जाने तो दो

.

क्या हमें हासिल हुआ इस ज़िन्दगी से दोस्तो

सब बताएंगे मगर जाँ से गुज़र जाने तो दो

.

हम अदालत में करेंगे पैरवी हर झूठ की

शर्म आँखों की ज़रा सी और मर जाने तो दो

.

तर्के निस्बत का भी मातम तुम मना लेना मगर

ताज दिल का टूट कर पहले बिखर जाने तो दो

.

आँख से बहता समंदर बाँध कर रखना ज़रा

कतरा कतरा…

Continue

Added by Rachna Bhatia on September 30, 2020 at 10:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल नूर की- तुम्हें लगता है रस्ता जानता हूँ

तुम्हें लगता है रस्ता जानता हूँ

मगर मैं सिर्फ चलना जानता हूँ.

.

तेरे हर मूड को परखा है मैंने

तुझे तुझ से ज़ियादा जानता हूँ.

.

गले मिलकर वो ख़ंजर घोंप देगा

ज़माने का इरादा जानता हूँ.

.

मैं उतरा अपने ही दिल में तो पाया  

अभी ख़ुद को ज़रा सा जानता हूँ.

.

बहा लायी है सदियों की रवानी

मगर अपना किनारा जानता हूँ.

.

बता कुछ भी कभी माँगा है तुझ से?

मैं अपना घर चलाना जानता हूँ.      

.

निलेश…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on September 30, 2020 at 1:46pm — 8 Comments

सूखी हुई है आज मगर इक नदी है तू...( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

सूखी हुई है आज मगर इक नदी है तू

मैं जानता हूँ रेत के नीचे दबी है तू

मरना है एक दिन ये नई बात भी नहीं

जी लूँ ऐ ज़िंदगी तुझे जितनी बची है तू

आँखों को चुभ रही है अभी तेरी रौशनी

काँटा समझ रहा था मगर फुलझड़ी है तू

ऐ मौत कोई दूसरा दरवाजा खटखटा

आवाज़ मेरे दर पे ही क्यों दे रही है तू

हर बार ये लगा है तुझे जानता हूँ मैं

महसूस भी हुआ है कभी अजनबी है तू

आज़ाद हो रही…

Continue

Added by सालिक गणवीर on September 28, 2020 at 10:00pm — 18 Comments

फ़ितरत से हूँ मैं सब से जुदागाना समझिये (123)

( 221 1221 1221 122 )
फ़ितरत से हूँ मैं सब से जुदागाना समझिये…
Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 27, 2020 at 10:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल नूर की - तर्क-ए-वफ़ा का जब कभी इल्ज़ाम आएगा

तर्क-ए-वफ़ा का जब कभी इल्ज़ाम आएगा

हर बार मुझ से पहले तेरा नाम आएगा.

.

अच्छा हुआ जो टूट गया दिल तेरे लिए

वैसे भी तय नहीं था कि किस काम आएगा.

.

अब रात घिर चुकी है इसे लौट जाने दे

यादों का क़ाफ़िला तो हर इक शाम आएगा.`

`

उर्दू की बज़्म में कभी हिन्दी चला के देख

तेरे कलाम में नया आयाम आएगा.

.

उस सुब’ह धमनियों में ठहर जाएगा ख़िराम  

जिस भोर मेरे नाम का पैग़ाम…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2020 at 12:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल (वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी)

फ़ाइलुन -फ़ाइलुन - फ़ाइलुन -फ़ाइलुन

2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2



वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी 

रोज़ मुझपे क़हर बनके गिरने लगी

रोज़ उठने लगी लगी देखो काली घटा

तर-बतर ये ज़मीं रोज़ रहने लगी

जबसे तकिया उन्होंने किया हाथ पर

हमको ख़ुद से महब्बत सी रहने लगी

एक ख़ुशबू जिगर में गई है उतर

साँस लेता हूँ जब भी महकने…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 27, 2020 at 10:31am — 40 Comments

लेडी डॉक्टर(लघुकथा)

माधवी पटना की लेडी डॉक्टर से मिलकर बाहर आते ही पति से बोली,' यह ओवरी वाला क्या चक्कर था मधुप?'
' बकवास ही समझो '
' वाकई दोनों ओवरी बराबर आकार की होती है?छपरा वाली डॉक्टरनी बोली थी।'
' नहीं होती।मैंने अपने दोस्त डॉक्टरों से सलाह की थी।' पति बोला।
' फिर वह मुई ऑपरेशन किस चीज का करती?'
' पता नहीं। डोनेशन वाले डॉक्टर - डॉक्टरनी भी तो होते हैं भई।'
' ऐसा?'
'और क्या? यहां सब चलता है।' पति हिकारत भरे लहजे में बोला।
' मौलिक व अप्रकाशित'

Added by Manan Kumar singh on September 26, 2020 at 1:20pm — 1 Comment

अजीब था यह अनमोल नाता ... अमृता प्रीतम जी

अजीब था यह अनमोल नाता ... अमृता प्रीतम जी

 

कई दशक पहले मैं जब भी प्रिय अमृता प्रीतम जी के उपन्यास पढ़ता था, पुस्तक को रखते एक कसक-सी होती थी, यह इसलिए कि एक बार आरम्भ करके उनकी पुसत्क को रखना कठिन होता था। आज भी ऐसा ही होता है। जब से एक प्रिय मित्र पिंकी केशवानी जी ने अमृता जी की पुस्तक “मन मंथन की गाथा” मुझको भेंट में भेजी, जब भी ज़रा-सा अवकाश मिलता है, यह पुस्तक मुझको झट पास बुलाती है।

मित्र पिंकी ने पुस्तक में लिखा, “एक छोटी-सी भेंट,…

Continue

Added by vijay nikore on September 25, 2020 at 10:51pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service