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सदस्य टीम प्रबंधन
दीवानी मीरा

बावरिया हो भागती, सजनी ज्यों पिय ओर l

दीवानी मीरा बनी, थाम कन्हैया डोर ll

थाम कन्हैया डोर, प्रेम में सुध बुध हारी l

मोहबंध सब त्याग, पुकारूँ बस गिरधारी ll

प्राण भक्ति में लीन, ओढ़ चूनर केसरिया l

प्रभु संग मधुर मिलन, हुई…

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Added by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 3:07pm — 16 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४१ (बाकी रह गया इक शख्स जो राज़ नवादवी है)

दिन ऐसे गुज़र जाते है जैसे हाथ से ताश के पत्ते. देखते देखते महोसालोदहाई सर्फ़ हो गए, कहाँ गए सब? ज़िंदगी में जो बीत गया, किधर चला चला गया? जो लोग अब नहीं हैं तकारुब में और जिनके मख्फी साये ही ज़हन में आते जाते हैं, वो कहाँ हैं अभी? ख्वाहिशों से भी मुलायम सपने जो कभी पूरे नहीं हुए, उदासियों सी भी तन्हा कोई राहगुज़र जो कभी मंजिल तक न पहुँच पाई, दिल की सोजिशों से भी रंजीदा इक नज़र जो झुक गई मायूसियों के बोझ तले- क्या हुआ उनका?

 

तुम्हारे गाँव का वो खाली खाली घर जहाँ बसी है आईने के…

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Added by राज़ नवादवी on October 31, 2012 at 9:03am — 6 Comments

गोत्रज विवाह

गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज |

गोत्रज में कैसे मिलें, रखिये सतत तमीज ||

गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |

दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग ||

नहीं चिकित्सा शास्त्र में, इसका दिखे उपाय |

गोत्रज जोड़ी अनवरत, संतति का सुख खाय ||

गोत्रज शादी को भले, भरसक दीजे टाल |

मंजूरी करती खड़े, टेढ़े बड़े सवाल ||

परिजन लेवे गोद जो, कर दे कन्या-दान |

उल्टा हाथ घुमाय के, खींचें सीधे कान ||

मिटते दारुण दोष पर, ईश्वर अगर सहाय |

सबसे…

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Added by रविकर on October 31, 2012 at 8:48am — 5 Comments

श्रद्धांजलि

31 अक्टुबर,1984 को भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की न्रशंस हत्या हुई |
भारत में नारी को सम्मान की नजरों से देखा जाता है | उन्हें काव्यात्मक श्रद्धांजलि -
 
दूरदर्शी, पक्के इरादें…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 9:30pm — No Comments

मै भी अभी जिन्दा हूँ !!

मै भी अभी जिन्दा हूँ !!

-----------------------

तीव्र झोंके ने पर्दा उड़ा दिया

सारे बाज -इकट्ठे दिखा दिया

चालबाज, कबूतरबाज , दगाबाज

अधनंगे कुछ कपडे पहनने में लगे

दाग-धब्बे -कालिख लीपापोती में जुटे

माइक ले बरगलाने  नेता जी आये

जोकर से दांत दिखा हँसे बतियाये

“ये मंच अब हमारा है” खेती…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 30, 2012 at 8:51pm — 13 Comments

दीदार के खातिर यूँ आवाम दिवानी है

कुछ विपत्तियों के चलते में मुशायरे में वक़्त नहीं दे पाया इसके लिए सभी अग्रजों गुरुजनों और सदस्यों से क्षमा चाहता हूँ आशा है अनुज को क्षमा करेंगे

आज कुछ उबरा तो सोचा कुछ लिखूं





हर काम निराला माँ लगता है कहानी है

दुर्गा है तू ही काली माँ आदि भवानी है



दिन रात भरा रहता दरबार ये मैया का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 30, 2012 at 7:04pm — 4 Comments

दुख (हाईकु)

सूखती नदी

उजड़ते मकान

अपना गाँव

 

कैसा विकास

लोगों की भेड़ चाल

सुख न शांति

 

गाँवों में बसा  

नदियों वाला देश

पुरानी बात 

सूखती नदी

बढ़ता गंदा नाला

मेरा शहर 

बिका सम्मान

क्या खेत खलिहान

दुखी किसान 

लोग बेहाल

गिरवी जायदाद

कहाँ ठिकाना 

सड़े अनाज

जनता है लाचार

सोये सरकार 

Added by नादिर ख़ान on October 30, 2012 at 6:00pm — 3 Comments

प्रेम का अस्तिव

 

सबका अस्तिव और अहसास

हृदय में जगाता

श्रद्धा, आशा और विश्वास

मीठे स्वर का पान कर

स्वर्ग ले आता भू धरा पर

 

बिना शर्त के बिना नियम के

संचालित कर हर डगर को

सुब्द्ता से मुक्त कर

मार्ग देता सुगम बना

अंतर्मनो को जोड़ने का

प्रेम करता है प्रयास

                                                 

मित्र को शत्रु, शत्रु को मित्र

गैर को अपना, अपने को गैर 

फूल माला सी डोर बना

राग, द्वेष…

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Added by PHOOL SINGH on October 30, 2012 at 3:12pm — 2 Comments

सागर में गिर कर हर सरिता// गीत

सागर में गिर कर हर सरिता बस सागर ही हो जाती है 

लहरें बन व्याकुल हो हो फिर तटबंधों से टकराती है 



अस्तित्व स्वयं का तज बोलो 

किसने अब तक पाया है सुख …

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Added by seema agrawal on October 30, 2012 at 2:09pm — 18 Comments

वीकेंड (कहानी)

"क्या यार?.........हमलोग एक घंटे से इस कैफे में बैठे हैं और वीकेंड का एक बढ़िया प्लान नहीं बना पा रहे........व्हाट इज दिस?" रितिका ने झल्लाते हुए कहा| साथ बैठा उसका क्लासमेट मोहित उसे उखड़ता देख के उसकी हँसी उड़ाते बोला - "मैडम जी.....मैं तो कब से प्लानों की लाइन लगा रहा हूँ, आपको जँचे तब तो"| रितिका थोड़ा और गुस्से में आ के बोली - "मोहित, जस्ट कीप योर माउथ शटअप.......तुम्हारे आइडियाज हमेशा बोरिंग होते हैं....तुम अपनी तो रहने दो बस"| मोहित को बात बुरी लग गई - "क्यों? तुम्हारे उस विभोर के…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 30, 2012 at 12:01pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
करवाचौथ की फुलझड़ियाँ "माहिया"

"माहिया" में  पति पत्नी की चुहल बाजी  मात्रा १२,१०,१२ कही कहीं गायन की सुविधा के लिए एक दो मात्रा कम या ज्यादा हो सकती हैं

(पत्नी )

सास को बुलाऊंगी 
जब अपना पहला 
करवाचौथ मनाउंगी 
(पति )
मम्मी जी आ जाना 
पर्व  के बहाने
तुम पाँव  दबवा  जाना 
(पत्नी )
सासू जी आ जाना 
ले कर  शगुन  अपने 
कंगन देती जाना 
(पति )
चंदा जब आएगा 
बदरी…
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Added by rajesh kumari on October 30, 2012 at 12:00pm — 37 Comments

कहानी - नशा - वीनस केसरी

पांचवा दिन| घर बिखरा हुआ है, हर सामान अपने गलत जगह पर होने का अहसास करवा रहा है, फ्रिज के ऊपर पानी की खाली बोतलें पडी हैं, पता नहीं अंदर एकाध बची भी हैं या नही; बिस्तर पर चादर ऐसी पडी है की समझ नहीं आ रहा बिछी है या किसी ने यूं ही बिस्तर पर फेक दी है; कोई और देखे तो यही समझे की बिस्तर पर फेंक दी है, कोई भला इतनी गंदी चादर कैसे बिछा सकता है | शायद मानसी के जाने के दो या तीन दिन पहले से बिछी हुई है | बाहर बरामदे की डोरी पर मेरे कुछ कपड़ें फैले है | तार में कपड़ों के बीच कुछ जगह खाली है, कपडे…

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Added by वीनस केसरी on October 30, 2012 at 3:23am — 16 Comments

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

क्षण क्षण ह्रदय उसके लिए है क्यों मेरा रोता !
 
बिन तात के अनाथ हो गया मेरा साकेत ,
अब कौन सुख की नींद होगा वहां सोता…
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Added by shikha kaushik on October 29, 2012 at 10:30pm — 6 Comments

एक गजल

सभी अग्रजों एवं गुरुजनों को प्रणाम करते हुए यहां पहली बार गजल पोस्ट कर रहा हूं. उम्मीद है आप सबको पसन्द आयेगी.....





उठा दिल में धुआं सा है


पुराना प्यार जागा है,



कहो तो हम…

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Added by VISHAAL CHARCHCHIT on October 29, 2012 at 8:30pm — 10 Comments

तायफा बन गयी है देखो नेतागर्दी अब यहाँ .

 

तानेज़नी पुरजोर है सियासत  की  गलियों में यहाँ ,

ताना -रीरी कर रहे हैं  सियासतदां  बैठे यहाँ .
 
इख़्तियार मिला इन्हें राज़ करें मुल्क पर ,
ये सदन में बैठकर कर रहे सियाहत ही यहाँ…
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Added by shalini kaushik on October 28, 2012 at 2:56pm — 1 Comment

'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए ''

कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ !

जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए .



कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ !

जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए .



दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहुत दरार ,

हम तो रहे वही ; वो जाने-माने हो गए .



देखते ही होती थी सब में दुआ सलाम ,

लियाकत गए सब भूल ;ये फसाने हो गए .



लिहाज के पर्दे फटे ; सब हो रहा नंगा…

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Added by shikha kaushik on October 27, 2012 at 10:30pm — 3 Comments

रावण दहन

रावण जैसा महापंडित, महाघ्यानी

और महाज्ञानी

ना धरा पर कभी आया था

ना कभी अब आयेगा

ऐसा शूरवीर व् यौद्धा था वो

जिससे सारा ब्रह्माण्ड घबराया था

सारे देवो को बंधन दे

त्रिलोक विजय के साथ साथ

मृत्यु पर भी विजय वो पाया था

अहं में जब हुआ चूर तब

भगवान् अवतरित हो

जन्म ले श्री राम रूप में

पावन वसुंधरा पर आया था

बस एक चूक जो

हो गयी लंकेश से

जो सीता का हरण

वो कर लाया था

ऐसा त्रिलोक विजेता था वो

पर आज ही के दिन

श्री… Continue

Added by PHOOL SINGH on October 26, 2012 at 3:12pm — 2 Comments

लघु कथा: चरण- स्पर्श

रमिता रंगनाथन, मिसेज़ शास्त्री की खातिर में यूँ जुटी थीं- मानों कोई भक्त, भगवान की सेवा में हो। क्यों न हो- एक तो बॉस की बीबी, दूसरे फॉरेन रिटर्न। अहोभाग्य- जो खुद उनसे मिलने, उनके घर तक आयीं! पहले वडा और कॉफ़ी का दौर चला फिर थोड़ी देर के बाद चाय पीना तय हुआ। इस बीच 'मैडम जी', सिंगापुर के स्तुतिगान में लगीं थीं- "यू नो- उधर क्या बिल्डिंग्स हैं! इत्ती बड़ी बड़ी...'एंड' तक देख लो तो सर घूम जाता है...और क्या ग्लैमर!! आई शुड से- 'इट्स ए हेवेन फॉर शॉपर्स'..." रमिता ने महाराजिन को, चाय रखकर जाने का…

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Added by Vinita Shukla on October 26, 2012 at 3:00pm — 6 Comments

इस बदलते मौसम में अपनी हिफाजत खुद करे (हास्य व्यंग)-लक्ष्मण लडीवाला

भाई राज दवा नवी की  डायरी के चालीसवे पन्ने ने बदलते मौसम से बेखबर से मुझे खबर कर दिया |
गर सीलिंग फेन की गडगडाहट बंद होती है, तो रियाज करते मच्छरों की आहंग (संगीत,आवाज) या 
गुनगुनाहट हलकी नींद को उड़ा देती है | डेंगू जैसा मच्छर  काट गया तो मै भी करोडो अनजाने लोगो
से सैकड़ो जाने पहचाने डेंगू मरीजों में शुमार हो…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 26, 2012 at 3:00pm — 13 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ४० (वही घर के कोने अपना मुंह छुपाए, वही रास्ते में तुम्हारी यादों के नक्श.. शरमाए शरमाए)

घरों में सीलिंग फैन्स की घड़घड़ाहट बंद सी होने लगी है और दिन सुबुकपा और रातें संगीन. मौसम ने करवट की इक गर्दिश पूरी की हो जैसे- धूप की शिद्दत खत्म होने लगी है और सुकून और मुलायमियत के झीने से सरपोश के उस तरफ साकित ओ मुतमईन, आयंदा और तबस्सुमफिशाँ कुद्रत के नए रूप का एहसास होने लगा है. घर की हर शै जैसे तपिश भरी दोपहरियों से सज़ायाफ्ता ज़िंदगी की नींद से बेदार होने लगी है और जल रहे लोबान के धुंए की तरह दूदेसुकूत फजाओं में फ़ैल रहा है. ये आमदेसरमा (जाड़े के मौसम के आगमन) के बेहद इब्तेदाई रोज़…

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Added by राज़ नवादवी on October 26, 2012 at 12:30pm — 11 Comments

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