Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 8:00pm — 10 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 7:44pm — 8 Comments
Added by MAHIMA SHREE on May 12, 2012 at 6:30pm — 26 Comments
स्याह रातों में चाँद का गिलास नहीं देख सकता
उखड़ी उखड़ी आवाज़ तेरी, बोझल सांस नहीं देख सकता
.
तेरे माथे पर कोई दोष न होगा कभी ,
तुझे मजबूर, बद -हवास नहीं देख सकता
.
हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा ,
तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता
.
मेरी रूह में घुल गयी है मधु तेरी रहमत की
क्या हुआ कि रहूँ तनहा, तुझे आस पास नहीं देख सकता
.
हैं अजीब हालात, मगर तेरे कदम न रुकें
तुझे बिखरा हुआ सा, उजास…
Added by Nilansh on May 12, 2012 at 3:30pm — 13 Comments
हमारी फिक्र थी ये गाँव अब भी गाँव है
सियासत के करम से गाँव अब भी गाँव है
मखमली सेज सूखी घास से देखो बनी
महल सी झोपड़ी में गाँव अब भी गाँव है
मिलेगी छाँव बरगद नीम पीपल की घनी
मिटे हर पीर जाके गाँव अब भी गाँव है
ख़ुशी हर चेहरे में औ दर्द दिल में दफ़न
रंज औ गम भुलाके गाँव अब भी गाँव है
सखी ऐसे तके है राह हाये प्रियतम की
बिछाये चश्म अपने गाँव अब भी गाँव है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 1:44pm — 10 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 12, 2012 at 1:30pm — 28 Comments
कितना जोश और ख़ुशी
थी तुम्हारी आवाज में
जब तुमने मुझे फोन पर बताया
की माँ तुम्हारे दामाद ने
आज पांच आतंकवादियों
को मार गिराया
तुम लगातार ख़ुशी से बता
रही थी और मेरा मन
कंहीं दूर किसी धुंधलके
की तरफ खिंचता जा रहा था
तुम्हारी आवाज दूर होती जा रही थी
कुछ क्षण बाद वापस आती हूँ तो सोचती हूँ
की तुम कितनी बहादुर हो
बिलकुल अपने
जांबाज पति की तरह
मुझे गर्व है तुमपर
मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 12, 2012 at 12:47pm — 5 Comments
हे ईश्वर
यह सच है की,
मैंने चाहा 'ए.सी'
ये भी सच
मैंने माँगी
'प्राइवेसी'
हे अंतर्यामी
रही चाहत मेरी सदैव
रहूँ मैं लाईम-लाईट में
और
टिका रहे हर वक़्त मुझ पर ही कैमरा
आती रहे निरंतर कानो में
हरे-हरे नोटों के
फड़फड़ाने की आवाज़...
लेकिन
मेरी मुद्दत की तमन्नाओं का
ये क्या तर्जुमा.... मेरे परवरदिगार
आज खड़ा हूँ मैं बन कर
ATM का चौकीदार !!!
~…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 9:59pm — 6 Comments
तुम्हारे दिल में बस जाते, अगर तुम रास्ता देते....
तबाह-ए-ख़ाक हो जाते, अगर तुम वास्ता देते ....
दिल को एहसास ही रहा, मगर तेरे ना हुए हम....
ज़माने को रुला जाते, अगर हम दास्ताँ कहते ....
Added by Shayar Raj Bajpai on May 11, 2012 at 8:00pm — 5 Comments
मनाने का हुनर हमको कभी न आया दोस्तों
बड़ी मगरूर थी वो मैं समझ न पाया दोस्तों
दिखे नादान सा लेकिन खबर सभी की है उसे
जिसे सबने सता के आदमी बनाया दोस्तों
गर्दिशों से मिटा जिसके ख्वाब महलों के रहे
उजालों की ख्वाहिस में झोपड़ी जलाया दोस्तों
बुरा कितना रहा हो आदमी जमाने में मगर
जनाजा चार कांधो ने वही उठाया दोस्तों
तडपता वो रहा जिसके लिये जिगर को थाम…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 11, 2012 at 7:30pm — 10 Comments
हाइकु...
१..
बचपन में
सहारा लगता है
पचपन में
. ----
२.
अदालत है
देखो फंस ना जाना
पुलिस-थाना..
-----
३.
साँझ ने घेरा
गहरा है अँधेरा
कहाँ सबेरा...
४.
अदावत में
बच नहीं पावोगे
अदालत में .
५.
यह तस्वीर
हैं रंग कैसे- कैसे
ये तकदीर ..
६..
धर्म अपना
ईमान भी अपना
कर्म अपना.
७..
कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे.
८.
देश…
Added by AVINASH S BAGDE on May 11, 2012 at 4:30pm — 8 Comments
© AjAy Kum@r
Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 11:56am — 6 Comments
मैं
भीड़ हूँ
इस लोकतंत्र के ढाँचे की मैं रीढ़ हूँ
जी हाँ
मैं भीड़ हूँ...
तिनका-तिनका जोड़ता दिन का
रोज़ बिखरता-जुड़ता
मन-आशाओं का नीड़ हूँ
मैं भीड़ हूँ...
कहाँ फुर्सत
वैष्णव-जन को,
की जाने मुझ को
एक परायी पीड़ हूँ
मैं भीड़ हूँ...
~ © AjAy Kum@r
Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 11:30am — 10 Comments
Added by MAHIMA SHREE on May 10, 2012 at 4:15pm — 17 Comments
हां भीड़ में शामिल
मैं भी तो हूँ
रोज
अलसुबह उठ के
जाती हूँ
शाम को आती हूँ
दूर से देखती हूँ
कहती हूँ
ओह देखो तो जरा
कितनी भीड़ है
और फिर
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ
Added by MAHIMA SHREE on May 10, 2012 at 4:00pm — 26 Comments
Added by rajesh kumari on May 10, 2012 at 1:45pm — 17 Comments
Added by Monika Jain on May 9, 2012 at 12:30am — 12 Comments
जिसका अंक है कोई, न रूप आकार है,
जो प्रकाश पुंज है, जो निर्विकार है,
कणों कणों से एक सुर में ये पुकार है,
वही तो सृजनकार है, वही तो सृजनकार है।
ये नगर ये…
ContinueAdded by इमरान खान on May 8, 2012 at 1:00pm — 8 Comments
छहः साल का नन्हा सा बच्चा था रोहन, लेकिन बड़ा होशियार.मम्मी पापा सब की आँखों का तारा . पढने में जितना होशियार उतना ही बड़ा खिलाडी.हमेशा कोई न कोई नयी हरकत कर के माँ को चौंका देता था. एक दिन शाम को काफी अँधेरा हो चला लेकिन रोहन खेल कर घर नहीं लौटा. माँ की डर के मारे हालत ख़राब होने लगी. उलटे सीधे विचार मन में आने लगे..बेहाल हो कर ढूंढने निकली तो देखा की जनाब शर्ट को पेट पर आधा मोड़े हुए उस में कोई चीज़ बटोरे लिए चले आ रहे हैं. ख़ुशी…
ContinueAdded by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 1:00am — 24 Comments
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