शहर के किसी कालेज की
Added by Ritik 'Hatif' on July 27, 2011 at 8:30pm — 4 Comments
छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विख्यात लक्ष्मणेश्वर की नगरी खरौद में सावन सोमवार पर श्रद्धालुओं का तांता लगता है। भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन के लिए प्रदेश से अनेक जिलों के अलावा दूसरे राज्यों से भी दर्शनार्थी भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां सावन सोमवार के दिन सुबह से श्रद्धालुओं की लगी कतारें, देर रात तक लगी रहती हैं और भक्तों के हजारों की संख्या में उमड़ने के कारण मेला का स्वरूप निर्मित हो जाता है। भगवान लक्ष्मणेश्वर स्थित ‘लक्षलिंग’ में एक चावल चढ़ाया जाता है और श्रद्धालुओं में असीम…
ContinueAdded by rajkumar sahu on July 27, 2011 at 5:12pm — No Comments
हर प्रश्न का हल भी वो है
और
जटिल प्रश्नों से भरी उलझन भी वो है........
क्या है वो.....
जीवन की परिभाषा वो
मृत्यु की परछाई वो
जीवन तो पहले भी था
अब जीवन की सार्थकता भी वो है.......
क्या है वो......
बिंदिया की चमक वो
कंगन की खनक वो
शृंगार तो सजाता पहले भी था
अब शृंगार की चमक भी वो है
क्या है वो.....
दिल की धड़कन भी वो
चेहरे की ख़ुशी भी वो
ख़ुशी पहले भी थी
पर ख़ुशी की खनक भी वो
क्या है वो......
एक…
Added by Yogyata Mishra on July 27, 2011 at 5:00pm — 6 Comments
Added by sangeeta swarup on July 27, 2011 at 4:00pm — 16 Comments
Added by rajkumar sahu on July 27, 2011 at 12:05pm — No Comments
बेल की पाती -कपूर की बाती.
बेला है थाली सजावन की.
सखी पावन सोमारी है सावन की .
सावन में शंकर को दूधो नहाओ.
रोरी और चन्दन का टीका लगाओ.
महीना है शम्भु मनावन की.
सखी पावन सोमारी है सावन की .
…
ContinueAdded by satish mapatpuri on July 26, 2011 at 11:00pm — No Comments
हज़रत निज़ामुद्दीन-बैंगलोर राजधानी ऐक्स्प्रेस में दो रातों तक कुछ नन्हे-मुन्ने कॉकरोचों से दो-दो हाथ करते हुए 30 अक्टूबर की सुबह जब हम बैंगलोर सिटी जंक्शन पहुंचे तो दिन निकल चुका था । ट्रेन रुकने से पहले ही हमें उन क़ुलियों ने घेर लिया जो चलती ट्रेन में ही अन्दर आ गये थे । सामान उठाकर ले चलने से लेकर होटल दिलाने, लोकल साइट-सीइंग और मैसूर-ऊटी तक का टूर कराने के ऑफ़र्ज़ की बरसात होने लगी । मगर हम तो काफ़ी जानकारी पहले से ही इकट्ठा करके पूरी तैयारी से आये थे, इसलिये क़ुली साहिबान की दाल नहीं…
ContinueAdded by moin shamsi on July 26, 2011 at 1:34pm — 15 Comments
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
जब हम बैचेन से रहते हैं
अक्सर कुछ कहने की चाह मे
सपनों मे खोये रहते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
उनकी एक झलक पाने के लिए
हम हर दिन राहों मे इंतजार करते हैं
न जाने क्यों हम कुछ कहने से डरते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
अक्सर वो सपनों में आती है
आँखें खोलूँ तो न जाने कहाँ चली जाती है
सिर्फ इन आँखों को उसकी ही सूरत भाती है
क्या इसी…
Added by Bishwajit yadav on July 26, 2011 at 10:30am — 6 Comments
अभी कुछ दिनो पहले
Added by Aradhana on July 25, 2011 at 7:30pm — 16 Comments
१.
उम्र के इस पड़ाव पर
खड़ा हूँ ये सोच कर
क्या खोया क्या पाया
समझूँ सबकुछ देख कर
वही पर हूँ
जहाँ पर था
उस समय भी
मैं ही था
आज भी हूँ
उस समय
मैं बालक था
लड़कपन और ठिठोली करता
आज भी हूँ
वही बालक
मगर अंतर हैं
तब वो पुत्र था
आज ये पिता है.
२.
मैं स्कूल नहीं जाऊँगा ,
जब ये शब्द मुझे याद आते हैं
कसम से
बहुत याद…
Added by Rash Bihari Ravi on July 25, 2011 at 7:30pm — 4 Comments
सृष्टि का सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी मनुष्य ,
Added by Rash Bihari Ravi on July 25, 2011 at 7:00pm — 2 Comments
यूँ ज़िन्दगी में आया पहला प्यार
जैसे रेत की तपन में पड़ गई सावन की फुहार
तुमको देखा तो लगा की बस यहीं हैं
जिस पर करना हैं अपना सब कुछ निसार
घंटो छत पर कड़ी धुप में खड़े रहते थे हम
इस इंतज़ार में की बस एक बार हो जाये तेरा…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 25, 2011 at 3:37pm — 4 Comments
*
नैन
बैन.
नहीं
चैन.
कटी
रैन.
थके
डैन.
मिले
फैन.
शब्द
बैन.
चुभे
सैन.
*
16 december 2010
Added by sanjiv verma 'salil' on July 25, 2011 at 8:46am — 3 Comments
लाश तेरी यादों की मैं न छोड़ पाता हूँ
रोज दफ़्न करता हूँ रोज खोद लाता हूँ
जो रकीब था कबसे बन गया खुदा मेरा
रोज सर कटाता हूँ रोज सर झुकाता हूँ…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 24, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
बरखा बहार आयी :-
Added by Mohini Dhawade on July 24, 2011 at 3:18pm — No Comments
ग़ज़ल
लगती है बाज़ार गुज़रते हैं आदमीं
हर रोज़ बिकने खड़े होते हैं आदमीं
उठते हैं हर सुबह जाने क्या सोचकर
इस पेट के आगे पर झुकते हैं आदमीं
तपती दोपहरी में जब लगती है प्यास
बुझे ए कैसे यही सोचते हैं आदमीं …
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 24, 2011 at 9:47am — 2 Comments
मुक्तिका:
जानकर भी...
संजीव 'सलिल'
*
रूठकर दिल को क्यों जलाते हो?
मुस्कुराते हो, खूब भाते हो..
एक झरना…
Added by sanjiv verma 'salil' on July 24, 2011 at 9:00am — 1 Comment
घनाक्षरी सलिला :
छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग.
संजीव 'सलिल'
*
अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे.
बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे..
बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे.
भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे..
*
नवी रीत बनन दे, नीक न्याब चलन दे, होसला ते बढ़न दे, कउवा काँव-काँव.
अगुवा के कोचिया, फगुवा के लोटिया, बिटिया…
Added by sanjiv verma 'salil' on July 22, 2011 at 8:00am — 5 Comments
Added by rajkumar sahu on July 21, 2011 at 10:35pm — No Comments
"एक"
वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,
Added by Rash Bihari Ravi on July 21, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
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