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क्यों तू ही मन को भाये...

और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||



जी करता है, पिघल मै जाऊं, तेरे साँसों  की गरमी में|

अजब सुकून मुझे मिलता है तेरे हाथों की नरमी से||

मै तुझमे मिल  जाऊं ऐसे, कोई भी मुझको ढूंढ़ न पाए|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए|

और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|



जब-जब गिरती नभ से बूँदें  , मै पूरा  जल जल जाता हूँ|

जी करता है भष्म  हो जाऊं, पर तुमको…

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Added by आशीष यादव on August 3, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

पुरवा ने ली अंगड़ाई

हे पिया, तू अब तो आजा 

पुरवा ने ली अंगड़ाई l

सिहर उठा ये तन मन मोरा 

है बरखा बहार आई ||

 

काँप रहा तन ये अपना

बज रहा यूँ ही कंगना |

तनहा तनहा जीते जीते 

अब आँख है भर आई ||

 

हे पिया, तू अब तो आजा 

पुरवा ने ली अंगड़ाई ll

 

सज गए सभी नज़ारे 

तन पे गिर रही फुहारें |

धीरे धीरे रुक रुक के 

अब तो चल रही पुरवाई ||

 

हे पिया, तू अब तो आजा 

पुरवा ने ली अंगड़ाई…

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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 3, 2011 at 6:00pm — 2 Comments

दहेज प्रथा: बीच बहस में

दहेज प्रथा पर तमाम लोगों का एकमत राय है कि यह एक अभिशाप है, कि सभ्य समाज पर कलंक है, कि ....... . परन्तु यह सोचने और मंथन करने की बात है कि इतनी ज्यादा बहस, निंदा और कानूनों को बना-बनाकर ढेर लगा देने के बाद भी यह प्रथा समाप्त नहीं हो पा रही है, वरन् नये सिरे से परवान चढ़ रही है, इसके पीछे अवश्य ही कोई ता£कक और गंभीर कारण भी तो रहे होंगे, जिसपर भी ध्यान देना चाहिए. आइए एक नजर डालते है:

1. लड़की पक्ष हमेशा ही खुद से ज्यादा क्वालिफाई और सम्पन्न तबका का हिस्सा बनाना चाहता है, दुर्भाग्य से…

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Added by Rohit Sharma on August 2, 2011 at 7:14pm — 1 Comment

ओ बी ओ अष्टक

एक समय रवि साथ लिए सब,

बागी गणेश प्रीतम जी आयो,

ओबीओ का जब जनम भयो तब,

ये ख़ुशी लिए बिजय जी आयो,

सभे मिली जब किये बिनती,

योगराज जी प्रधान बने हमारो,



को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,

पाठ साहित्य पर होत बिचारो!



गजल की बात राणाजी शुरू कियो,

तब आगे बढ़ी तिलकराज जी आयो,

योगराज जी साथ दियो तब,

अम्बरीश जी किये बिचारो,

शुरू किये सब मिली मुशायरा,

सौरभ जी और अभिनव हमारो.



को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,

पाठ साहित्य पर होत…

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Added by Rash Bihari Ravi on August 1, 2011 at 8:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल - अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई

अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।

सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।

नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।

जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।

जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।

नेमीचंद पूनिया चंदन

Added by nemichandpuniyachandan on August 1, 2011 at 5:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल - ग़मों का दौर हूँ मैं

ग़ज़ल - ग़मों का दौर हूँ मैं

ग़मों का दौर हूँ मैं ,

ग़ज़ल है और हूँ मैं |

 

दशहरी गंध तुम हो ,

तुम्हारी बौर हूँ मैं |

 

तेरा हर तिल…

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Added by Abhinav Arun on August 1, 2011 at 4:19pm — 15 Comments

मुक्तिका: ..... बना दें --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

..... बना दें

संजीव 'सलिल'

*

'सलिल' साँस को आस-सोहबत बना दें.

जो दिखलाये दर्पण हकीकत बना दें.. 



जिंदगी दोस्ती को सिखावत बना दें..

मदद गैर की अब इबादत बना दें.



दिलों तक जो जाए वो चिट्ठी लिखाकर.

कभी हो न हासिल, अदावत बना दें..



जुल्मो-सितम हँस के करते रहो तुम.

सनम क्यों न इनको इनायत बना दें?



रुकेंगे नहीं पग हमारे कभी भी.

भले खार मुश्किल बगावत बना दें..



जो खेतों में करती हैं मेहनत…

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Added by sanjiv verma 'salil' on August 1, 2011 at 11:30am — 4 Comments

क्या आपको ओ बी ओ लोगिन करने में समस्या होती है ?

साथियों !

हमारे संज्ञान में लाया गया है कि कुछ सदस्यों को ओ बी ओ लोगिन ( sign in ) करने में समस्या होती है | इस सम्बन्ध में कहना है कि ....

 

प्रथम बार sign up कर जब आप ओ बी ओ सदस्यता ग्रहण कर लेते है तो उसके बाद आपको केवल sign in करनी होती है ध्यान रखे sign up नहीं, sign up सिर्फ एक बार सदस्यता ग्रहण करने हेतु प्रयोग किया जाता है |

 

sign in करने हेतु दो डाटा कि आवश्यकता होती है ...

१- आपका इ-मेल आई डी, जिसका प्रयोग आप सदस्यता ग्रहण करने में प्रयोग…

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Added by Admin on July 31, 2011 at 9:00pm — 5 Comments

क्या होती हैं ये यादें

यादें क्यों याद आती हैं

क्यों होती हैं ये यादें

क्या कहना चाहती हैं ये यादें

क्यों तड़पाती हैं ये यादें

क्यों याद आती हैं ये यादें

क्यों ना भुला कर भी भुला पाती हैं ये यादें

क्यों बार बार भिगो देती हैं नयनो को ये यादें

क्यों दुख देती हैं ये यादें

क्यों कमजोर बनाती हैं ये यादें

क्यों भावुक बनाती हैं ये यादें

क्यों धुंधली हो कर भी गायब नही होती हैं ये यादें

क्यों मिटाए ना मिटती हैं ये यादें

क्यों लौट आती हैं धुंधली यादें भी

क्यों… Continue

Added by Rohit Singh Rajput on July 31, 2011 at 4:53pm — 3 Comments

आज का परिवार

धीरे  धीरे  इस  तरहा  बदला  घर  का हाल!

पहले  दिल  मे  फिर  उठी आँगन मे दीवार,

 

घर के खुशियो को लगा जाने किस का श्राप!

खेत  बाते  घर  बता  और …

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Added by jahir on July 31, 2011 at 2:00pm — No Comments

हास्य रचना : स्वादिष्ट निमंत्रण

हास्य रचना

स्वादिष्ट निमंत्रण

तुहिना वर्मा 'तुहिन'

 

''खट्टे-मिट्ठे जिज्जाजी को चटपटी साली जी यानी आधी घरवाली…

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Added by sanjiv verma 'salil' on July 31, 2011 at 12:30pm — No Comments

दिलेरी का एक नाम ‘फूलबाई’, अब तक 7 हजार पोस्टमार्टम !

अक्सर कहा जाता है कि नाम बड़ा होता है या काम और अंततः कर्म की प्रधानता को तवज्जो दी जाती है। ऐसी ही एक महिला है, जिसने नाम के विपरित बड़ा काम किया है, वो भी हिम्मत व दिलेरी का। जिस काम को कोई मर्दाना भी करने के पहले हाथ-पांव फुला ले, वहीं यह नारी शक्ति की मिसाल महिला करती हैं, लाशों का पोस्टमार्टम। ऐसा भी माना जा रहा है कि संभवतः यह छत्तीसगढ़ की पहली महिला होगी, जिसने ऐसे हिम्मत के काम को चुना और एक नई मिसाल भी कायम की है। जी हां, छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा में ‘फूलबाई’ नाम की एक… Continue

Added by rajkumar sahu on July 30, 2011 at 11:23pm — No Comments

हे अतिथि (कसाब) तुम कब जाओगे ?"

कल शाम से ही स्वर्ग और नरक या कहे तो जन्नत और जहन्नुम  दोनों में हडकंप मचा हुआ है कारण आप सब जानते है. वो एसा कारण तो है ही जिसके कारण हडकंप मच सके आखिर उसने २६ नवम्बर २००८ को पूरे मुंबई में हडकंप मचा दिया था. हाँ में उसी महान (अन्यथा ना ले पर पिछले दो साल से जिस तरह से उसे सर आँखों पर बिठाकर उसकी…

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Added by kanupriya Gupta on July 30, 2011 at 2:30pm — No Comments

दर्द-ए-दिल

उन्हें किस्सा ऐ गम सुनाते सुनाते

कटी रातें आँसू बहाते बहात

कहीं बुझ न जाये चिरागे ऐ तमन्ना

चिरागे ऐ मोहब्बत जलाते जलाते

किसी को खबर हीं नहीं लुट गया हूँ ..

.मोहब्बत की दुनिया बसाते बसाते

कह दे कोई उनसे वो खुद बाज़ आ जाये अपने सितम से

हम थक गये है उन्हें मनाते मनाते…

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Added by Niraj kumar on July 29, 2011 at 2:00pm — 1 Comment

कौन हो तुम ?

 

कौन हो तुम ?

अलसाई सी सुबह में कोमल छुवन के अहसास से हो

अनजाने चेहरों में एक अटूट  विश्वास से हो...

 

गडगडाते  बादलों में सुरक्षा के अहसास के जैसे,

काँटों भरी दुनिया में स्वर्ग के पारिजात के जैसे

 

बद्दुआओं की भीड़ में ईश्वर के आशीर्वाद से तुम

लम्बे समय के मौन में आँखों के संवाद से तुम...

 

लड़कपन की उम्र में कनखियों  के प्यार तुम,

हर मोड़ की हार के बाद आशाओं के विस्तार तुम.

 

सूनी आँखों से…

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Added by kanupriya Gupta on July 29, 2011 at 11:30am — 1 Comment

aitbaar

Added by Vasudha Nigam on July 28, 2011 at 5:04pm — No Comments

जिंदगी

ज़िन्दगी का सफ़र कितना ही कठिन हो मगर,
हँस कर गुज़ार ही लूंगी!
संघर्षो की तपती धूप में तपकर,
अवसादों की गहरी छाया में चलकर,
मंजिल को पा ही लूंगी!
लम्बी पगडंडियों में चलते चलते अक्स

काँटों की छुअन से मनन विचलित होता हैं,
तो भी इस कटीली छुअन से ज़िन्दगी का सार ही लूंगी!

Added by Vasudha Nigam on July 28, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

याद आते है वो लम्हे....

याद आते है वो लम्हे तो आँखो से आँसू छलक जाते है,

वो किताबो वाले दिन बडी मुश्किल से मिलते है,

हम तो यादो मे जलते है पर वो कहीं और रहते है,

याद आते है वो लम्हे तो आँखो से आँसू छलक जाते है,



वो घंटो बाते…

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Added by Bishwajit yadav on July 28, 2011 at 1:00pm — 1 Comment

गज़ल

 

दूर मंजिल कब मिलेगी रास्ता कोई नहीं,

वो मुसाफिर हूँ कि जिसका रहनुमा कोई नहीं.



आशिकी में जो बने हैं आज मजनू  देखिये,

है अजब ये चीज उल्फत खुशनुमा कोई नहीं.



दोस्ती से दिल मिला लो सामने है आइना,

दुश्मनी को दूर रक्खो है मज़ा कोई नहीं .



वो जो आये हैं यहाँ पर खिल गया…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2011 at 10:30pm — 8 Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - कामनवेल्थ गुरू सुरेश कलमाड़ी, जांच एजेंसी के सामने मुंह नहीं खोल रहे हैं।

पहारू - मगर, ए. राजा तो जुबान खोलकर सरकार का सिरदर्द बन गया है।





2. समारू - बिलासपुर में आईटीआई का पर्चा लीक होने की खबर है।

पहारू - छग के लिए पर्चा लीक होना कौन सी बड़ी बात है।





3. समारू - ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने सूत की माला से जूता साफ किया।

पहारू - नेता तो जनता को बरसों से जूते के ‘तलवे’ नीचे रखते आ रहे हैं।



4. समारू - छग सरकार ने अब शहरों…

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Added by rajkumar sahu on July 27, 2011 at 9:00pm — No Comments

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"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
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"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
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