कैसा है यह नाते पर नाता..? Copyright ©
निकल कर देखा.. अपनी माँ के उदर से उसने,
अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,
सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,
लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,
बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,
फिर भी अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,
गोद…
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments
हैं तुझपे नाज आज जो तुने कर दिया ,
हार हुई मगर तुने दर्द किनारा कर दिया ,
जय हो तेरी जय हिंदुस्तान की हो ,
सतकबीर जय तेरी उस धार की हो ,
Added by Rash Bihari Ravi on December 20, 2010 at 5:43pm — No Comments
घनाक्षरी :
जवानी
संजीव 'सलिल'
*
१.
बिना सोचे काम करे, बिना परिणाम करे, व्यर्थ ही हमेशा होती ऐसी कुर्बानी है.
आगा-पीछा सोचे नहीं, भूल से भी सीखे नहीं, सच कहूँ नाम इसी दशा का नादानी है..
बूझ के, समझ के जो काम न अधूरा तजे- मानें या न मानें वही बुद्धिमान-ज्ञानी है.
'सलिल' जो काल-महाकाल से भी टकराए- नित्य बदलाव की कहानी ही जवानी है..
२.
लहर-लहर लड़े, भँवर-भँवर भिड़े, झर-झर झरने की ऐसी ही रवानी है.
सुरों में निवास करे,…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on December 20, 2010 at 5:00pm — 1 Comment
ग़ज़ल
प्रश्न मेरे सामने यह एक अन्धा सा कुआँ है |
क्या हुआ जो दोस्त था कल आज वो दुश्मन हुआ है ||
जिसने दी थी कल खुशी, वो आज आँसू दे रहा,
ये न जाने किसकी मेरे वास्ते एक …
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 20, 2010 at 3:00am — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on December 20, 2010 at 12:30am — 2 Comments
Added by madan kumar tiwary on December 19, 2010 at 6:50pm — 2 Comments
माहिर होते है
भेड़ और गधे
एक लीक एक चलने में //
सुना है ---
अगर एक भेड़ कुए में गिरा
सब भेड़ उसी में गिरेंगे //
आज ----
कंक्रीट के जंगल में
रहनेवाला मानव
इसी भेडचाल की नक़ल तो कर रहा //
Added by baban pandey on December 19, 2010 at 5:49pm — 2 Comments
ग़ज़ल
by
अज़ीज़ बेलगामी
हम समझते रहे हयात गयी
क्या खबर थी बस एक रात गयी
खान्खाहूँ से मैं निकल आया
अब वो महदूद काएनात…
Added by Azeez Belgaumi on December 19, 2010 at 4:00pm — 22 Comments
अमेरिकी वेबसाइट विकीलिक्स के क्या कहने, वह सब कुछ जानती है। किसने, किसके बारे में क्या कहा, उसे सब कुछ पता है। दुनिया में आज हर किसी की नजर जूलियन असांज की वेबसाइट पर टिक गई हैं, क्योंकि वह एक के बाद एक खुलासे करती जा रही है। बीते कुछ दिनों से ऐसा कुछ माहौल बन गया है कि जैसे कोई कुछ बता सकता है तो वह है, विकीलिक्स। यही कारण है कि मेरा भी ध्यान विकीलिक्स पर है कि अब वे क्या खुलासा करने वाली है ? वैसे विकीलिक्स, जो भी भीतर की बात बता रही है, उससे इन दिनों बड़े चेहरे माने जाने वाले कइयों की पाचन…
ContinueAdded by rajkumar sahu on December 19, 2010 at 1:09pm — No Comments
ग़ज़ल
रात - रात भर सोते - जगते, मैंने उसे मनाया है |
फिर भी खुदा न मेरा अब तक, सिर सहलाने आया है ||
कहते हैं- मालिक ने हमको, तुमको, सबको, जन्म दिया,
पर लगता है - कोई वो पागल था जिसने भरमाया है ||
एक …
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 19, 2010 at 12:00am — 2 Comments
लघुकथा:
काफिला
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कें... कें... कें...
मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.
हा...हा...हा...
अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 12:00am — 5 Comments
नवगीत:
मुहब्बत
संजीव 'सलिल'
*
दिखाती जमीं पे
है जीते जी
खुदा की है ये
दस्तकारी मुहब्बत...
*
मुहब्बत जो करते,
किसी से न डरते.
भुला सारी दुनिया
दिलवर पे मरते..
न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने.
जमाना को दी है
खुदा ने ये नेमत...
*
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 18, 2010 at 11:21pm — 1 Comment
..एक व्यथा ...कथा नहीं यह
नीलेश और रोमा आज कुछ जल्दबाजी में थे |कल रात को भी नीलेश अपनी ड्यूटी कुछ जल्दी छोड़कर घर आ गया था |और भोर से ही रोमा…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 10:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल
मैं दर्दों का समंदर हूँ, ग़मों का आशियाना हूँ |
मैं जिंदा लाश हूँ , बीमार दिल , घायल फसाना हूँ ||
बदन पर ये हजारों ज़ख्म, तोहफे हैं ये अपनों के,
मैं जिनके प्यार का बीमार, आशिक हूँ , दिवाना हूँ ||…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 18, 2010 at 9:30pm — 1 Comment
ग़ज़ल :- आदमी हो कि आदमी भी नहीं
तुझसे बर्दाश्त ये खुशी भी नहीं
घाट पर पूजा बंदगी भी नहीं |
जिसने बम फोड़ा उसका मकसद क्या
हम करें माँ की आरती भी नहीं |
स्वस्तिका पूछ रही है मरकर
आदमी हो की आदमी भी नहीं |
फाइलों की…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 8:30pm — 2 Comments
ग़ज़ल : - याद तेरी में
याद तेरी में गुनगुनाता हूँ
ज़िंदगी को करीब पाता हूँ |
शीत कहती मुझे तू छू कर देख
और मैं…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 8:00pm — 2 Comments
सराहे और पूजे जाने के लिए एक सोच है ,
दर्शन है एक ह्रदय है ,
समर्पण है ऐसी कोरी किताब नहीं,
कि गाहे -बगाहे. लिख दे कहानी कोई,
एक अंतर्मन है.जिसमे करते स्वयं प्रभु रमण हैं
उसके सीने में भी ,
दिल है धड़कता उसके जज्बातों में भी है कोई बसता,
एक मुकम्मल सा फ़रिश्ता,
जुड़ा-जुड़ा सा हो जिससे कोई…
ContinueAdded by anupama shrivastava[anu shri] on December 18, 2010 at 2:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल
बहुत विषैला है विष यारो, दुनिया की सच्चाई का |
आखिर, कैसे दर्द सहें हम, दिल में फटी बिवाई का ||
बनकर इन्सां जीते - जीते खुद को हमने लुटा दिया,
फिर भी तमगा मिला न हमको एक अदद अच्छाई का ||…
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 18, 2010 at 2:00am — 2 Comments
!! वायु प्रवाह !! ©
(१)
वायु प्रवाह पर विचार !
अचानक उठा खयाल !
कितने होते हैं प्रकार ?
(२)
नाना हैं वायु प्रवाह !
कह चुकी संस्कृत भी !
वायु प्रकार के भेद भी !
मुख्य हैं तीन प्रकार !
उच्च निम्न मध्यम !
सप्तम सुप्त औसत स्वर !
(३)
भीषण मार सप्तम सुर…
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 17, 2010 at 5:30pm — 3 Comments
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