ग़लत कोई और है , हम क्यों बदलें
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बैलों का स्वभाव उग्र होता है , प्रकृति प्रदत्त
होना भी चाहिये
बिना उग्रता के भारी भारी गाड़ियाँ नहीं खींची जा सकती
जो उसे जीवन भर खींचना है
बिना शिकायत
गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है
गायों की थन से बहता दूध ,
दर असल उसकी ममता ही है ,
अमृत तुल्य , कल्याण कारी
गायें उग्र नहीं होतीं
प्रकृति जिसे धारिता के योग्य बनाती है , उसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 11:00am — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 11:00am — 19 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 5, 2015 at 10:30pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 4, 2015 at 10:05am — 17 Comments
व्यर्थ का अचंभा
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अचंभित न होइये
आपके ही माउस के किसी क्लिक का परिणाम है
आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर आई ये फाइल
गलती कंप्यूटर से हो नहीं सकती ,
कंप्यूटर ही गलत , बिग़ड़ा चुन लिया हो तो और बात
अगर ऐसा है तो,
इस ग़लत चुनाव का कारण भी आप ही हैं
कंप्यूटर सदा से निर्दोष है, और रहेगा
फाइल खुलने में देरी- जलदी हो सकती है
कंप्यूटर की शक्ति, प्रोसेसर , रेम , हार्डडिस्क के अनुपात में
लेकिन ये तय है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 5:36pm — 19 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 1, 2015 at 11:55am — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 10:29am — 30 Comments
मेरे सबसे प्रिय रचनाकार
कभी प्रत्यक्ष मिला नहीं आपसे
सपना है मेरा ,
आपसे मिलना , बातें करना
घंटों ,
किसी झील के किनारे
सूनसान में
आपकी हर रचनायें
गढती जाती है
मेरे अन्दर आपको
बनती जाती है
आपकी छवि ,
कभी धुंधली , कभी चमक दार , साफ साफ
क़ैद है मेरे दिलो दिमाग़ में
आपकी रचनाओं की सारी खूबियों के साथ
आपकी एक बहुत प्यारी छवि
क्या आप सच में वैसे ही हैं
जैसी आपकी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 29, 2015 at 8:16am — 31 Comments
रिक्शा वाला
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आपको याद तो होगा
वो रिक्शा वाला
गली गली घूमता ,
माइक में चिल्लाता , बताता
आज फलाने टाकीज़ में , फलानी पिक्चर लगी है
पर्चियाँ हवा में उड़ाता
पर्चियों के लिये रिक्शे के पीछे भागते बच्चे
बच्चों को पर्चियाँ छीनते झपटते देख खुश होता
किसी निराश हुये बच्चे को पर्ची कभी अपने हाथों से दे देता
बिना किसी अपेक्षा के , आग्रह के ,
एक जानकारी सब से साझा करता
न कोई आग्रह , न…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 7:51am — 24 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2015 at 11:10am — 19 Comments
परिवर्तन
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बून्द की नाराजगी का संज्ञान
सागर ले ही
ज़रूरी नहीं
फिर भी नाराजगी बून्द की अपनी स्वतंत्रता है
प्रकृति प्रदत्त
संज्ञान अगर सागर ले भी ले तो
खुद में कोई परिवर्तन भी करे ये नितांत ज़रूरी नहीं
वैसे हर नाराजगी कोई परिर्वतन ही चाहती हो किसी में
ये भी ज़रूरी नहीं
कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है
कुछ स्वांतः सुखाय
अपने ज़िन्दा होने के सबूत के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 25, 2015 at 10:00am — 25 Comments
मै कभी नहीं मरता
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आप बच नहीं सकते
उलझने से
ऐसा इंतिज़ाम है मेरा
फैला दिया है मैने मेरा अहंकार हर दिशाओं मे
हर दिशाओं के हर कोणों में
बस मैं हूँ , मैं
कहीं भी जायें, उलझेंगे ज़रूर
जब भी कोई उलझता है , मेरे मैं से
चोटिल करता उसे
तत्काल मुझे ख़बर लग जाती है , और तब
मुझे खड़ा पाओगे तुम उसी क्षण
अपने विरुद्ध
तमाम हथियारों से सुसज्जित
ये भी तय है ,
हरा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 9:30am — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 20, 2015 at 9:07am — 23 Comments
दुआओं में याद कीजियेगा ,
जब याद कीजियेगा ,
दुआ कीजियेगा।
मिलते हैं तो कहते हैं ,
आपकी सुबह अच्छी हो ,
शाम अच्छी हो ,
रात अच्छी हो,
जितनी बार मिलते हैं , हर बार कहते हैं ।
दिन रहते , विदा होते हैं , तो
आपका दिन अच्छा हो , कहते हैं ।
दुआओं में असर होता है ,
लोग यूँ भी दुआ करते हैं ,
हाथ मिला कर कहते हैं,
सिर को थोड़ा झुका कर कहते हैं ,
मुस्कुरा कर कहते हैं ,
जिसे जानते हैं , उस से कहते हैं ,
नहीं जानते , उस से भी…
Added by Dr. Vijai Shanker on January 18, 2015 at 11:30am — 14 Comments
आपसी ताप से जलती टहनियाँ
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आँधियों की छोड़िये
हवा थोड़ी भी तेज़ बहे, स्वाभाविक गति से
टहनियाँ रगड़ खाने लगतीं हैं
एक ही वृक्ष की
आपस में ही
पत्तियाँ और फूल न चाहते हुये भी
कुसमय झड़ जाने के लिये मजबूर हो जाते हैं
टहननियों की अपनी समझ है ,
परिभाषायें हैं खुशियों की ,
गमों की
फूल और पत्तियाँ असहाय
जड़ें हैरान हैं , परेशान हैं
वो जड़ें ,
जिन्होनें सब टहनियों के लिये…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 1:16pm — 17 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2015 at 2:00pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 2, 2015 at 8:23pm — 20 Comments
वर्ष फिर बीत गया
यूँ दे गया, अनुभव
जीने के
लड़ने के, अंधेरों से
रौशनी के लिए
सत्य से सत्य को
छीन लिया
असत्य से असत्य
छोड़े भी और मांग भी लिए
अधिकारों को
थोड़ी सी घुटन में
राहों में चलते रहे
अपनों के साथ
अपनों के ही लिए
जान लिया, पहचाना भी
समझ भी तो गये
अँधेरा और दुःख
दोनो ही तो, चाहिए
रौशनी और सुख के साथ-साथ
बड़ा अच्छा लगता है
इनके बीच…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on January 1, 2015 at 7:28am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 11:24pm — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2014 at 1:03pm — 24 Comments
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