"दद्दा, आपने यह जो सम्मान पत्र स्वर्णिम फ़्रेम में लगवा रखा है, इसकी वापसी की बोली तीन लाख सत्तर हज़ार तक पहुंच गयी है!अब और क्या चाहिये!कमा लो, बढिया मौका है!कुछ बच्चों के काम आयेगा!वैसे भी अब आप तो साल दो साल के मेहमान हो!फ़िर तो यह भी रद्दी हो जायेगा"!
"बक़वास बंद करो, नहीं तो दैंगे दो जूते खींच के"!
"जूते भले ही दो की ज़गह चार मार लो, पर यह बहती गंगा में हाथ धोने का अवसर मत छोडो"!
"हम शेर हैं, हम भेड बकरी नहीं जो इस भेड चाल में शामिल हो जांय"!
"दद्दा यह कोई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 9, 2015 at 11:00am — 13 Comments
सिसकते दीये - (लघुकथा ) -
शंकर कुम्हार की जब से टांग टूटी थी, सारी घर गृहस्थी बिखर गयी थी!घरवाली दमा की मरीज़ , बेटा छोटू महज़ पांच साल का, कौन चलाये घर के खर्चे!त्यौहार सिर पर ! त्यौहार मनाना तो दूर ,रोज़मर्रा के खर्चे पूरे नहीं पड रहे थे!
शंकर ने जैसे तैसे थोडे से छोटे बडे मिट्टी के दीपक बनाये थे कि त्यौहार पर बेच कर चार पैसे आजायेंगे तो दीवाली ठीक ठाक मन जायेगी! छोटू को बडी मुश्किल से ,दस रुपये रोज़ देने का लालच देकर दीपक बेचने भेजा!छोटू भी खुश था कि सौ दो सौ रुपये कमा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 6, 2015 at 8:00pm — 2 Comments
सैयां भये कोतवाल -(लघुकथा) -
बाल श्रम विरोध कानून सप्ताह के दौरान छापेमारी में पंद्रह बालकों को रिहा कराया गया!इनमें अधिकतर बच्चे अपने परिवार से भाग कर आये थे!कुछ अनाथ भी थे!जो अनाथ थे ,उनको तो अनाथालय वालों ने आश्रय दे दिया मगर जिनके मॉ बाप थे ,परिवार थे ,उनको लेने से अनाथालय वालों ने मना कर दिया!
अब सात बच्चे पुलिस की देख रेख में थे!उनके परिवारों को सूचना भिजवा दी थी!कुछ तो आसाम और नेपाल तक से भाग कर आये थे!अभी तो यह भी निश्चित नहीं था कि जो पते बच्चों ने दिये वह सत्य भी हैं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 6, 2015 at 1:00pm — 16 Comments
उत्सव –( लघुकथा ) -
"नाना जी, इस बार दीवाली पर पूरे मकान को बिजली की लडियों से ढक दैंगे, सारा घर जगमग करेगा"!
"नहीं छुट्टू, इस बार दीवाली पर यह सम्भव नहीं होगा"!
"किसलिये नाना जी"!
"छुट्टू, तेरी नानी,तेरे पापा और तेरी मॉ की बरसी होना बाकी है,उसके बाद ही हम कोई उत्सव मना सकते हैं"!
"यह तो और भी अच्छा है, एक साथ ही दौनों काम कर लेते हैं, दीवाली पर ही बरसी मना लेते हैं"!
"छुट्टू, बरसी एक साल पूर्ण होने पर पंडित जी द्वारा दी गयी तिथि पर ही होती…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 29, 2015 at 11:23am — 8 Comments
अधूरी ख्वाहिशें - ( लघुकथा ) -
कीर्ति के शिखर पर बैठे एक खिलाड़ी ने जब सन्यास ले लिया तो उसके कुछ समय पश्चात. पत्रकार सुधीर जिज्ञासा वश ढूंढता हुआ, उसका साक्षात्कार लेने, उसके पैत्रिक गॉव जा पहुंचा!गॉव के बाहर ही एक व्यक्ति मैले कुचैले वस्त्रों में सिर पर गोबर का टोकरा ले जाता दिखा!सुधीर ने उससे भूतपूर्व बालीबाल खिलाडी रघुराज सिंह का घर पूछा!
"क्या करोगे भाई उसके घर जाकर"!
“मुझे उनका साक्षात्कार लेना है"!
"एक गुमनाम आदमी का साक्षात्कार,क्यों मज़ाक करते…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 28, 2015 at 11:43am — 5 Comments
"सुगना, क्या यह सच है कि दशहरे की रात को तुमने चौधरी जगन्नाथ के तीनों बेटों की खलिहान में सोते हुए कुल्हाडी से हत्या की थी"!
"बिलकुल सच है ज़ज़ साब,मैंने ही मारा उन तीनों राक्षसों को , रावण के साथ उनका मरना भी ज़रूरी था, "!
"तुम्हें अपनी सफ़ाई में कुछ कहना है"!
"ज़ज़ साब, उन तीनों दरिंदों ने उसी खलिहान में मुझे भूसा लेने बुलाया था और भरी दोपहरी में मेरी इज़्ज़त तार तार कर दी!मेरा बापू चौधरी के पास शिकायत करने गया तो चौधरी बोला कि सुगना के बापू जब पेड पर फ़ल लदे होते हैं तो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 26, 2015 at 5:00pm — 9 Comments
गुरु दक्षिणा – (लघुकथा ) -
विश्व विद्यालय के प्राचार्य डॉ टीकम सिंह शिक्षा और साहित्य जगत की जानी मानी हस्ती थे!सुगंधा का सपना था कि वह डॉ सिंह को अपनी पी. एच. डी. का गाइड बनाये!डॉ सिंह एक सनकी और सिरफ़िरे किस्म के इंसान थे!वह अविवाहित थे!वह महिलाओं को अपने अधीन लेना पसंद नहीं करते थे!
लेकिन सुगंधा भी ज़िद्दी स्वभाव की थी!एक दिन पहुंच गयी डॉ सिंह के बंगले पर!
"सर मुझे आपके अधीन पी. एच ड़ी. करनी है"!
"मैं महिलाओं को अपना शिष्य नहीं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 25, 2015 at 11:43am — 10 Comments
"चाचू, अपने पास तो ट्रैक्टर है फ़िर अपने खेत में ये बुधिया,उसकी घरवाली और छोकरी, बिना बैल के इस तरह हल क्यों चला रहे हैं"!
"मुन्ना बाबू,इनको बडे दादू ने सज़ा दी है"!
"सज़ा किस बात की"!
"इन लोगों ने हमारे ट्यूबवैल के पानी की नाली में हाथ मुंह धोया और पानी पिया, तो पानी अशुद्ध हो गया"!
"वह पानी तो खेत में जा रहा था ना"!
"ये नीच जाति के लोग हैं, यह सब मना है इनके लिये, ये हमारी कोई चीज़ को नहीं छू सकते"!
“पर चाचू ये दौनों औरतें तो पहले हमारे घर के सारे काम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 24, 2015 at 5:30pm — 8 Comments
ज़मीर – ( लघुकथा ) -
गोपाल ने जैसे ही मेट्रो से बाहर निकलकर मोबाइल के लिये जेब में हाथ डाला!मोबाइल गायब था!उसके हाथ पैर फ़ूल गये!उसका सब कुछ ही मोबाइल में था!उसने क्या करना है ,कहां जाना है , उसके सारे कागज़ात की प्रतियां सब मोबाइल में ही थी!उसे कुछ नहीं सूझ रहा था!
तभी सामने उसे पी.सी.ओ. दिखा!उसने तुरंत अपना मोबाइल नंबर मिलाया!दूसरी ओर से आवाज़ आयी,हैलो, "आप कौन"!
"आप कौन हो भाई "!
"कमाल है भाई, फ़ोन आपने मिलाया है तो आप बताओ ना कि आप कौन हो"!
"देखो भाई, आप…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 20, 2015 at 1:22pm — 8 Comments
सच्चा आनंद – (लघुकथा ) -
"शुक्ला जी,सुना है आप पूरे नव रात्र छुट्टी पर हो"!
"सही सुना है आपने गौतम जी"!
"ऐसा क्या कठोर व्रत पूजा पाठ कर रहे हो कि पूरे नौ दिन की छुट्टी ले ली, व्रत उपवास तो हम भी करते हैं,पर छुट्टी खराब करके नहीं"!
"कुछ ऐसा ही व्रत कर रहा हूं इस बार "!
"कुछ विस्तार से बताओगे"!
"गौतम जी अपने कार्यालय के पीछे जो कुष्ठ रुग्णालय है, उसमें दस कुष्ठ रोगी हैं!मैं पूरे नव रात्र उस रुग्णालय में अपनी सेवायें दे रहा हूं!प्रातः सात बजे से…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 19, 2015 at 3:45pm — 10 Comments
कर्तव्यनिष्ठ - ( लघुकथा ) -
"सुषमा जी,यह क्या देख रहा हूं! कन्या गुरुकुल की लडकियों को अस्त्र शस्त्र और मार्शल आर्ट्स सिखाया जा रहा है!
"जी सर"!
"सुषमा जी, आपने किसकी अनुमति से यह शुरु किया है"!
"सर, इसकी अनुमति ज़िलाधीश महोदय ने दी है, जो कन्या गुरुकुल के अध्यक्ष हैं"!
"और इसका खर्चा कौन देगा"!
"उसकी व्यवस्था भी ज़िलाधीश महोदय ने किसी समाज़ सेवी संस्था के द्वारा कराई है"!
"मगर सुषमा जी इसकी क्या आवश्यकता थी"!
"सर आपने देखा नहीं,…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 16, 2015 at 11:10am — 3 Comments
सुनयना की शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे कि उसकी सास का फ़ोन आगया,"समधन जी, ज़रा फ़ुरसत निकाल कर अपनी लाडली को ले जाना"! और आगे बिना कुछ कहे सुने फ़ोन काट दिया!शाम को सुनयना के मॉ बापू पहुंच गये उसके ससुराल!
"कोई भूल हो गयी क्या हमारी सुनयना से"!
"नहीं जी, भूल तो हमसे हुयी जो इसकी भोली सूरत और एम. बी. ए. की डिग्री से धोखा खा गये"!
"आखिर हुआ क्या, बहिनजी, कुछ बताइये तो सही"!
"कोई एक बात हो तो बतायें! बिना उठाये सुबह उठती नहीं, महारानीजी, बिस्तर पर ही चाय चाहिये,रसोई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 14, 2015 at 12:00pm — 6 Comments
"चाचीजी, मेरे मन में वर्षों से एक सवाल है, यदि आप बुरा ना मानो तो पूछ लूं"!
"बिरज़ू बेटा, पूछ ले क्या शंका है तेरे मन में"!
"चाचीजी, पूरे खानदान में आपकी और चाचाजी की जोडी सबसे अब्बल है! सुंदर ,स्वस्थ और आकर्षक, मगर संतान हीन!क्या आपने कभी इस बारे में नहीं सोचा!कोई जांच आदि नहीं कराई"!
"क्या करेगा अब ये गढे मुर्दे उखाडकर, जाने भी दे"!
"चाचीजी, बताइये ना, ऐसा क्यों हुआ"!
"तो सुन, जब मैं व्याह के आयी थी तो पहले ही दिन मुझे घर की औरतों ने बताया कि तेरे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 13, 2015 at 2:00pm — 6 Comments
औपचारिकता – ( लघुकथा )
शहर के मशहूर,युवा व्यवसायी और समाजसेवी राहुल जी का सडक हादसे में निधन हो गया!पार्थिव शरीर घर आ गया था!सारा शहर उमड पडा था!कोठी में पैर रखने को जगह नहीं थी!मातम का माहौल था!औरतों के रोने के अलावा अन्य कोई आवाज़ नहीं आरही थी! करीबी लोग दाह संस्कार की व्यवस्था में लगे थे!
राहुल जी के बहनोई विनोद जी भी मौजूद थे!मगर वे जब से आये थे , तभी से अपने मोबाइल को कान से लगाये हुए थे!अन्य सभी उपस्थिति लोगों ने माहौल की नज़ाकत को देखते हुए अपने मोबाइल बंद कर दिये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 6, 2015 at 5:25pm — 6 Comments
इंसानी फ़ितरत – ( लघुकथा ) –
"हे पवन देव ,कृपया मेरी सहायता कीजिये"!आम के वॄक्ष ने कराहते हुए कहा
“क्या हुआ बन्धु, कोई कष्ट है क्या"!
"क्या आप नहीं देख रहे, यह उदंड मानव झुंड, पत्थर मार मार कर मुझे घायल कर रहा हैं"!
"तो इसमें मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं"!
"आप अपने वेग से मुझे झकझोर कर मेरे फ़लों को नीचे गिरा दीजिये ताकि यह संतुष्ट होकर, पत्थर प्रहार बंद कर दें"!
"तुम बहुत भोले हो मित्र, ऐसा कुछ भी नहीं होगा,ये इंसान हैं"!
"आपके इस…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 22, 2015 at 8:56pm — 13 Comments
हिन्दी का अखबार – ( लघुकथा ) -
"रणजीत , तुम्हारे घर के फ़ाटक में यह हिन्दी का अखबार लगा हुआ था, कौन पढता है तुम्हारे घर में "!
"पहले बाबूजी पढा करते थे पर अब कोई नहीं पढता"!
"अंकल को गुजरे हुए तो सात साल हो गये , फ़िर क्यों मंगाते हो"!
" बाबूजी के स्वर्गवास के बाद, मम्मीजी की इच्छा थी कि यह अखबार उनके जीते जी आता रहे!मम्मीजी रोज़ सुबह हिन्दी का अखबार, बाबूजी का चश्मा, बाबूजी की चाय उनके कमरे में रख आती थी!उन्हें इससे बडा सकून मिलता था"!
"पर अब तो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 13, 2015 at 7:30pm — 17 Comments
महाराज युधिष्ठिर अपने कक्ष में सामंतों के साथ व्यस्त थे!तभी बाह्य द्वार पर युद्ध विजय के विजय घोष और शंख, नगाडे,ढोल आदि वाद्यों की आवाज़ हुई!युधिष्ठिर बाहर आये तो देखा कि लघु भ्राता भीम वाद्य-यंत्र वादकों को निर्देश दे रहे थे!
"भ्राता भीम, अभी कोई युद्ध नहीं हुआ और ना कोई युद्ध विजय तो यह वाद्य यंत्र क्यों बजाये जा रहे हैं"!
"महाराज, क्षमा करें, आज आपने युद्ध से भी बडी विजय प्राप्त की है"!
"हम आपका आशय समझने में असमर्थ है, भ्राता भीम"!
"महाराज, अभी आपके पास…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 1, 2015 at 10:00pm — 16 Comments
दीनदयाल की विधवा की दस लाख की लॉटरी खुल गयी!घर रिश्तेदारों से भर गया I छोटा दो कमरों का मकान! मॉ बेटी दो प्राणी, दौनों परेशान!
"अम्मा, ये लोग कौन हैं,और कब तक रहेंगे"!
"बेटी,ऐसे नहीं बोलते, मेहमान हैं,बधाई देने आये है"!
"मैने तो कभी नहीं देखा इनको"!
"ये तेरे बापू के करीबी रिश्तेदार हैं"!
"अम्मा,दो महिने पहले जब बापू शांत हुए थे, तब तो कोई नहीं आया था"!
मंदिर में भज़न बज रहा था,"सुख के सब साथी, दुख में न कोय"!
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by TEJ VEER SINGH on August 18, 2015 at 5:00pm — 14 Comments
लघुकथा - टूटे फ़ूटे लोग –
"महाराज, यह मेरा त्यागपत्र है, कृपया स्वीकार कर लीजिये"!
" चित्रगुप्त जी, यह कैसी अनहोनी कर रहे हो!आपके बिना यह कार्य कौन देखेगा!हमारे पास दूसरा कोई अनुभवी व्यक्ति भी नहीं है"!
"महाराज, अब यह काम करना मेरी सामर्थ्य का नहीं है"!
"चित्रगुप्त जी,विस्तार से समझाइये ,आखिर मामला क्या है"!
"महाराज,पृथ्वी लोक से, विशेषकर भारतीय उप महाद्वीप से जो मृत लोग आ रहे हैं, उनके शरीर विकृत अवस्था में आ रहे हैं!कुछ शरीर बिना चेहरे के भी आते हैं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 11, 2015 at 5:00pm — 4 Comments
लघुकथा - मज़हब –
"मेरी राय में ,हमें उनके प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले पुनः विचार करना चाहिए"!
"यार तू बार बार ऐसी शंका ले कर क्यों बैठ जाता है"!
"देख भाई , वो लोग पांच बडे शहरों में पांच ज़गह बम्ब रखवाना चाहते हैं, और वो ज़गह हैं , स्कूल,अस्पताल,रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और सिनेमा घर"!
"और बदले में हमें दैंगे दस करोड, हम पांचों को दो दो करोड मिलेंगे,समझा"!
"पर यार इन सब ज़गहों पर अपने मज़हब के लोग भी तो होते हैं"!
"अरे यार ये क्या मज़हब की रट लगा रखी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 31, 2015 at 1:00pm — 6 Comments
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