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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Page

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार इंगित मिसरों पर आपके सुझाव उत्तम और सिरोधार्य हैं। सादर.."
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार। इंगित मिसरों को बदलने का प्रयास करता हूँ। एक मिसरे में बदलाव किया है देखिएगा। सादर.. गया है छोड़ हमको भी "मुसाफिर" गुजरते  काफिलों …"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई शिज्जू शकूर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। गिरह भी खूब हुई है। हार्दिक बधाई।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई चेतन जी , सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "टपकती छत हमें तो याद आयी" मुझे लगता है ऐसा करने गेयता बढ़ेगी। सादर.."
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गुणीजनो के सुझावों से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें  भी  लौटने   को   घर नहीं हैभटकती ख़्वाहिशों से याद आया।२।*कि  घर की  रौनकें हैं  बेटियाँ सेचहकती तितलियों से याद…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई।  चौथे शेर में हमें कुछ मिसिंग लग रहा। सजनी ने इक़रार करके....क्या ?  सादर"
Nov 16
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा है । मुसाफिर राह में खुद को लूटता है इससे आपका क्या तात्पर्य है? चौथे शेर की बात करें तो शेर का वाक्य विन्यास कहन के हिसाब से यूं लगता है कि आदमी ने…"
Nov 16
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा पूर्ण  कर दी है। इसके लिए असीम हार्दिक बधाई और आभार। ओबीओ पर पसरे सन्नाटे को देख मन कलपता है। कई बार इस सम्बंध में लिखने की सोची पर लिख नहीं पाया। आज…"
Nov 15
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न हमसे किसी को होअपना था गाँव, गाँव की आँखों के नूर थे।।*केवल हँसी थी और वो अद्भुत था बचपना।जो भी  दिवस  थे  पास  में मस्ती में चूर…"
Nov 15
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को बनाया आदमी ने आदमी की सोच ओछी सोचता है।। * हैं लगाते पार झोंके नाव जिसकी है हवा विपरीत जग में बोलता है।। * जान  पायेगा  कहाँ  से  देवता को आदमी क्या आदमी को जानता है।। * एक हम हैं कह रहे हैं प्यार तुमसे कौन जग में राज अपने खोलता है।। * अब जरूरत ही कहाँ है रहज़नों कीराह में खुद को "मुसाफिर" लूटता है।। * मौलिक/अप्रकाशित लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"See More
Nov 11
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला आदमी  का  आदमी से बैर जब।२। * दुश्मनो की क्या जरूरत है भला रक्त  के  रिश्ते  हुए  हैं  गैर जब।३। * तन विवश है मन विवश है आज यूँ क्या करें हम  मनचले  हों पैर जब।४। * सोच लो कैसा  समय  तब सामने मौत मागे  जिन्दगी  की  खैर जब।५। * मौलिक/अप्रकाशित लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"See More
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Oct 26
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Oct 26
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Oct 26

Profile Information

Gender
Male
City State
Delhi
Native Place
Dharchaula,uttarakhand
Profession
teaching

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२



कर तरक्की जो सभा में बोलता है

बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।।

*

देवता जिस को बनाया आदमी ने

आदमी की सोच ओछी सोचता है।।

*

हैं लगाते पार झोंके नाव जिसकी

है हवा विपरीत जग में बोलता है।।

*

जान  पायेगा  कहाँ  से  देवता को

आदमी क्या आदमी को जानता है।।

*

एक हम हैं कह रहे हैं प्यार…

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Posted on November 11, 2025 at 1:03pm — 1 Comment

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

****

तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब

भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१।

*

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला

आदमी  का  आदमी से बैर जब।२।

*

दुश्मनो की क्या जरूरत है भला

रक्त  के  रिश्ते  हुए  हैं  गैर जब।३।

*

तन विवश है मन विवश है आज यूँ

क्या करें हम  मनचले  हों पैर जब।४।

*

सोच लो कैसा  समय  तब सामने

मौत मागे  जिन्दगी  की  खैर जब।५।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

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Posted on November 4, 2025 at 10:32pm

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतें

उसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।

*

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं

चढ़ती हैं आदमी में जो कुर्सी की फितरतें।२।

*

कहने लगे हैं चाँद को,  सूरज को पढ़ रहे

समझे नहीं हैं लोग जो धरती की फितरतें।३।

*

किस हाल में सवार हैं अब कौन क्या कहे

भयभीत नाव देख के  माझी  की फितरतें।४।

*

पूजन सफल समाज में कन्या का है तभी

उसमें समायें मान को काली की…

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Posted on October 23, 2025 at 7:19am

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२

****

खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१।

*

चूड़ियाँ खनकें  हिना का रंग हँसता

स्वप्न सजनी के सभी गुलज़ार करके।२।

*

चाँद का पथ तक रहीं बेचैन आँखें,

लौट आओ कह स्वयं उपहार करके।३।

*

रूठना पलभर मनाना उम्रभर को

प्यार में सजनी ने यूँ इकरार करके।४।

*

मान अम्बर क्यों न जाये रीझने को

जब रिझाती  हो  धरा शृंगार करके।५।

*

भर दिवस उपवास कर माँगी दुआ…

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Posted on October 9, 2025 at 7:23pm — 3 Comments

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At 9:49pm on October 7, 2025,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

At 10:59am on January 25, 2023, Anita Bhatnagar said…

सादर आभार आदरणीय 

At 3:37pm on December 21, 2021, KullarSaddik said…

अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)

At 8:45am on January 16, 2021, Aazi Tamaam said…

मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं

At 8:39pm on December 3, 2020,
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
said…

जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी 

At 11:39pm on November 22, 2020, DR ARUN KUMAR SHASTRI said…

प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं

At 8:37am on May 14, 2020, Om Prakash Agrawal said…
आदरणीय
सराहना हेतु सहृदय आभार एवं धन्यवाद
At 4:12pm on May 7, 2020, सालिक गणवीर said…
हौसला अफजाई के लिए आपका ममनून हूँ आदरणीय
At 4:04pm on August 8, 2018, babita garg said…

शुक्रिया लक्ष्मण जी

At 11:44am on March 3, 2018, Sanjay Kumar said…
बहुत बहुत धन्यवाद और आभार। कोशिश करूंगा कि कुछ योगदान कर सकूं। बस हौसला अफजाई करते रहिएगा और जहां जरूरी हो तो कुछ सिखा दीजियेगा। सादर
 
 
 

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