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जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतें
उसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।
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कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं
चढ़ती हैं आदमी में जो कुर्सी की फितरतें।२।
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कहने लगे हैं चाँद को, सूरज को पढ़ रहे
समझे नहीं हैं लोग जो धरती की फितरतें।३।
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किस हाल में सवार हैं अब कौन क्या कहे
भयभीत नाव देख के माझी की फितरतें।४।
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पूजन सफल समाज में कन्या का है तभी
उसमें समायें मान को काली की…
Posted on October 23, 2025 at 7:19am
२१२२/२१२२/२१२२
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खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके
साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१।
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चूड़ियाँ खनकें हिना का रंग हँसता
स्वप्न सजनी के सभी गुलज़ार करके।२।
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चाँद का पथ तक रहीं बेचैन आँखें,
लौट आओ कह स्वयं उपहार करके।३।
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रूठना पलभर मनाना उम्रभर को
प्यार में सजनी ने यूँ इकरार करके।४।
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मान अम्बर क्यों न जाये रीझने को
जब रिझाती हो धरा शृंगार करके।५।
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भर दिवस उपवास कर माँगी दुआ…
Posted on October 9, 2025 at 7:23pm — 2 Comments
Posted on September 25, 2025 at 5:02pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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जिनकी ज़बाँ से सुनते हैं गहना ज़मीर है
हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर है।१।
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जब सच कहे तो काँप उठे झूठ का नगर
हमको तो सच का ऐसे ही गढ़ना ज़मीर है।२।
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सत्ता के साथ बैठ के लिखते हैं फ़ैसले,
जिनकी कलम है सोने की, मरना ज़मीर है।३।
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ये शौक निर्धनों का है, पर आप तो धनी,
किसने कहा है आप को, रखना ज़मीर है।४।
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चलने लगी हैं गाँव में, बाज़ार की हवा,
पनपेंगे ज़र के…
Posted on September 3, 2025 at 9:15pm — 4 Comments
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
सादर आभार आदरणीय
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
शुक्रिया लक्ष्मण जी
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