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कुछ मिठास पाने को .....संतोष

फ़ाइलुन मफ़ाईलुन फाइलुन मफ़ाईलुन



कुछ मिठास पाने को तल्खियाँ ज़रूरी हैं

क़ुर्ब के लिए जैसे दूरियाँ ज़रूरी हैं



सिर्फ़ रोने धोने से दिल न उनका पिघलेगा

साथ अश्क बारी के सिसकियाँ ज़रूरी हैं



तैर कर तो दरया को पार कर नहीं सकते

इसके वास्ते यारो किश्तियाँ ज़रूरी हैं



देख सूखी धरती में फ़स्ल उग नहीं सकती

बारिशों के मौसम में बदलियाँ ज़रूरी हैं



जब मकां बनाओ तो ध्यान ये भी रख लेना

धूप के लिए कुछ तो खिड़कियाँ ज़रूरी… Continue

Added by santosh khirwadkar on November 18, 2017 at 11:30am — 13 Comments

मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है

*1222 1222 1222 122*



ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।

मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।।



कभी वादे किये जिसने कसम खाकर ख़ुदा की,

वही फिर अब न जाने क्यों ज़ुदा होने लगा है।।



वहाँ पर हाल कैसा है, वही बस जान पाया,

यहाँ पर ज़ख़्म, ज़ख़्मों की दवा होने लगा है।।



समझ बैठा था' तुमको मैं, मुहब्बत का समंदर,

गुमाँ मेरा यहाँ आकर, रफ़ा होने लगा है।।



मुहब्बत का हमेशा ही यही अंज़ाम होता,

शमा से…

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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 17, 2017 at 5:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल (नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का )

(फाइलातुन -फ़इलातुन-फ़इलातुन-फेलुन )

जिन से आबाद हर इक गोशा है वीराने का |

नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का |

इंतज़ारी में कटी उम्र नहीं इसका गम

रंज है आपका वादे से मुकर जाने का |

कमसे कम मेरे ख़यालों में ही आ जाया करो

वक़्त कब मिलता है तुम को मेरे घर आने का |

लाख तू मेरी वफ़ाओं को भुला दे दिल से

अज़्म मुहकम है मेरा प्यार तेरा पाने का |

कोई इक बूँद को तरसे कोई भर भर के पिए

खूब दस्तूर…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 17, 2017 at 11:00am — 24 Comments

चांद का टुकड़ा है या कोई परी या हूर है - सलीम रज़ा रीवा

2122 2122 2122 212

चांद  का टुकड़ा है या कोई  परी या हूर है 

उसके चहरे पे चमकता हर घड़ी इक नूर है

-

हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही …

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Added by SALIM RAZA REWA on November 17, 2017 at 10:30am — 14 Comments

शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के

शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के,

मौसम ने यूं पलट खाया,

शीतल हो उठा कण-कण धरती का,

कोहरे ने बिगुल बजाया!!



हीटर बने हैं भाग्य विधाता,

चाय और कॉफी की चुस्की बना जीवनदाता,

सुबह उठ के नहाने वक्त,

बेचैनी से जी घबराता!!



घर से बाहर निकलते ही,

शरीर थरथराने लगता,

लगता सूरज अासमां में आज,

नहीं निकलने का वजह ढूढ़ता!!



कोहरे के दस्तक के आतंक ने,

सुबह होते ही हड़कंप मचाया,

शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के

मौसम ने यूं पलटा…

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Added by Sushil Kumar Verma on November 17, 2017 at 10:00am — 4 Comments

महफिल का भार

शादी की महफिल में,

हाइलोजन के भार से,

दबा कंधा,

ताशे और ढोल का,

वजन उठाये हर बंदा,

हाइड्रोजन भरे गुब्बारे,

सजाने वालों का पसीना,

स्टेज बनाने गड्ढे खोदने का,

तनाव लिये युवक,

चूड़ीदार परदों पर,

कील ठोंकता शख्श,

पूड़ी बेलती कामगर,

महिलाओं की एकाग्रता,

कुर्सियाॅं सजाते,

युवकों का समर्पण,

कैमरा फलैश में,

चमकते लोगों की शान,

कहीं न कहीं,

इन सबका होना जरूरी है,

किसी की खुशी,

किसी की मजबूरी है,

ये…

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Added by Manoj kumar shrivastava on November 16, 2017 at 10:00pm — 8 Comments

बने-बनाये शब्दों पर

बने-बनाये शब्दों पर
तू क्यों फंदे!
कलम सलामत है तेरी,
तू लिख बंदे,
उम्मीद मत कर कि कोई,
आयेगा तुझे,
तेरे दर पे सिखाने,
इंसां को देख,
तू खुद सीख बंदे,
बुराई लाख चाहे भी,
तुझे फॅंसाना,
अच्छाई को पूज,
खुद मिट जाएंगे,
विचार गंदे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Manoj kumar shrivastava on November 16, 2017 at 9:30pm — 4 Comments

महिला सशक्तिकरण (कामरूप छःन्द)

नारी न अबला, आज सबला, हौसले की खान

हर गम सहे वो, बिन कहे वो, बिखेरे मुस्कान

ममतामयी वो, गुण क़ई जो, ईश का वरदान

सम्मान घर की, शक्ति नर की, देव गाते गान



शिशु साथ पाले, घर सँभाले, और बाहर नाम

उल्टी पवन हो, थल गगन हो, करे ना आराम

कंधा मिलाकर, पग बढ़ाकर, ख़डी है हर धाम

पीछे नहीं अब, वो करे सब, हर तरह के काम



घर से निकलती, साथ चलती, हर कदम अब नार

अपनी लगन से, नित सृजन से, रचे नव संसार

छोटा बड़ा हो, दुख खड़ा हो, वो न माने हार

देवी स्वरूपा,… Continue

Added by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 7:43pm — 8 Comments

***हरी कलम***(लघुकथा)राहिला

"क्यों मिश्रा जी!आजकल किस क्षेत्र में सीजन चल रहा है।"

मेज पर फ़ाइल रखने आये बाबू से उन्होंने पूछा ।साहब का आशय समझ, वह टेढ़ी मुस्कान के साथ बोला-

"साहब!त्योहार तो बचे नहीं,लेकिन एक तहसील में कमलेश्वर भगवान के मंदिर चला जा सकता है।"

"अच्छा...! क्यों, वहाँ क्या हो रहा है ?"

"साहब!स्थानीय मेला लगा है।और कम से कम दस विद्यालय हैं उस क्षेत्र में ।"

"दस तो काफी हैं।"

कहते हुए हरियाली की चकाचौंध उनकी आँखों में कौंध गयी।

"नहीं साहब!दस में से सिर्फ चार पर ही जा… Continue

Added by Rahila on November 16, 2017 at 12:30pm — 11 Comments

मधुर दोहे :

मधुर दोहे :

मन के मधुबन में मिले, मन भ्र्मर कई बार।
मूक नयन रचते रहे, स्पंदन का संसार।।

थोड़ा सा इंकार था थोड़ा सा इकरार।
सघन तिमिर में हो गयी , प्रणय सुधा साकार।।

बाहुपाश से देह के, टूटे सब अनुबंध।
स्वप्न सेज महका गयी ,मधुर बंध की गंध।।


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 9:22pm — 12 Comments

हाइकु

(1) बचे न जीव
ख़त्म होते जंगल
है अमंगल ।
(2) सूखी धरती
बरसे न बादल
गायब जल ।
(3) भारतवर्ष
संस्कृतियों की गंगा
मन है चंगा ।
(4) आओ बनाएँ
खुशहाल भारत
है ज़रूरत ।
(5) रक्षा नायक
राष्ट्र का रखवाला
सेना नायक ।
(6) जातीय भेद
देश का नुकसान
घटाए शान ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on November 15, 2017 at 6:26pm — 14 Comments

दिल धड़कता था जिस अजनबी के लिए

*212 212 212 212*



हो गया ख़ास वह, ज़िंदगी के लिए।

दिल धड़कता था' जिस, अज़नबी के लिए।।



दूर तुम से रहा, आज तक मैं सनम,

हूँ ख़तावार उस, बेबसी के लिए।।



जान देकर तुझे, जान जाता अगर,

जान जीता नहीं, मयकशी के लिए।।



देख चहरा तिरा, चाँद शरमा गया,

बन गई शम'अ तू, तीरगी के लिए।।



मुझको' रब की कई, नेमतें मिल गईं,

सर झुकाया सदा, बंदगी के लिए।।



बिन तिरे एक पल, मुझको' जीना नहीं,

दिलनशीं चाहिए, दिल्लगी के… Continue

Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 3:34pm — 17 Comments

सबसे छोटा क़ाफ़िया और सबसे बड़ी रदीफ़ पर एक और ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा



212 212 212 212, 212 212 212 212

-

जब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी /

लब तुम्हारी महब्बत में खो…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 9:00am — 21 Comments

गीत... ओ बरसते मेघ प्यारे-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मनोरम छंद SISS SISS पे आधारित गीत



ओ बरसते मेघ प्यारे



चल रही पुरवा सुहानी

प्रीत की कहती कहानी

नीर जो अम्बर से बरसे

आसुओं की है रवानी

बात ये उनको बता रे

ओ बरसते मेघ प्यारे



खुशनुमा कुछ पल चुरा लूँ

संग तेरे मैं भी गा लूँ

बीत जायेगा ये मौसम

आँख में तुझको समा लूँ

रुक जरा सा हे सखा रे

ओ बरसते मेघ प्यारे



राह तेरी तकते तकते

साल बीता है बिलखते

जो बसे थे उर नगर में

रह गये सपने सुलगते

मोर दादुर… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 6:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल-चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है- कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है

बहर : १२२२  १२२२  १२२२  १२२२

चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है

इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |

सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी   

अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |

खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ

चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |

लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और

सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 7:30am — 8 Comments

पिया....

बंद दरवाज़ा देखकर

लौटी है दुआ

आँख खुली तो जाना ख़्वाब और सच है क्या

 

धीमे-धीमे दहक रहे है

आँखों में गुजरे प्यार वाले पल

राख हो कर भी सपने

गर्म है

बुझे आँच की तरह

 

बर्फ में जमे अहसास

मानो धुव में ठहरे

दिन –रात की तरह

 

चुपी ओढे बैठी मैं

चेहरे पर सजाए मुस्कुराहट

प्यार का…

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Added by Rinki Raut on November 13, 2017 at 10:42pm — 4 Comments

३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...

३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...

मन चाहे करती रहूँ , दर्पण में शृंगार।
जब से अधरों को मिला, अधरों का उपहार।1।

अब सावन बैरी लगे, बैरी सब संसार।
जब से कोई रख गया, अधरों पे अंगार।2।

नैंनों की होने लगी , नैनों से ही रार।
नैन द्वन्द में नैन ही, गए नैन से हार।3।

जीत न चाहूँ प्रीत में , मैं बस चाहूँ हार।
'दे दे मेरी देह को', स्पर्शों का शृंगार।4।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on November 13, 2017 at 8:00pm — 14 Comments

धुँआ (सरसी छन्द)

*धुआँ (सरसी छःन्द)*



आसमान में धुआँ धुआँ है, हुए सभी बेहाल |

व्याकुलता बढ़ती जाती है, जीना हुआ मुहाल ||



काली धुंध सड़क पे छायी, मुश्किल चलनी राह |

नर नारी सबके ही मुख से, निकल रही है आह ||



अस्त व्यस्त सारा जन जीवन, सुनता कौन पुकार |

आपस में कर खींचातानी,बढ़ा रहे तकरार ||



जिम्मेदारी भूल गए हैं, सभी बजाते गाल |

दिल के भीतर कालापन है, बिगड़ गयी है चाल ||



धुँधलायी नित बढ़ती जाती,उठता रोज सवाल |

फिक्र नहीं है यहाँ किसी… Continue

Added by डॉ छोटेलाल सिंह on November 13, 2017 at 5:51pm — 12 Comments

ग़ज़ल: दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए

दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए 

आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए

जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है 

ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए

अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके 

अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए

आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है 

क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए

घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं 

ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए

जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना 

खुद ही…

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Added by Alok Rawat on November 13, 2017 at 2:30pm — 17 Comments

जनाजा

“क्या पढ़ रही हो बेटा, लैपटॉप पर इस कदर आखें गडाये?”-साहित्यकार मनमोहन ने अपनी बेटी रूपा से सवाल किया

“कुछ नहीं पापा, साहित्य सेवा मंच पर प्रकाशित रुपेश जी की कहानी पढ़ रही हूँ, लेकिन पापा इस शानदार रचना पर किसी की कोई भी प्रतिक्रिया नहीं है” रूपा ने जवाब देते हुए प्रश्न किया

“शानदार रचना! नहीं बेटा बड़ी कमियाँ हैं इसके लेखन में“

“कमियाँ हैं! कमियां हैं तब तो आपको निश्चित रूप से मंच से जुड़े हर सदस्य को इस पर प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी”

“ हाँ, बेटा तुम सही कह रही हो, लेकिन ये… Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2017 at 11:41am — 13 Comments

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