For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,126)

भिखारन की निष्ठा

भिखारन की निष्ठा

मेरे घर के करीब भिखारियों का एक परिवार रहता था. चार बच्चे और पति – पत्नी. सुबह तड़के ही सभी घर से निकल जाते और गोधूली बेला तक सभी वापस आ जाते.

एक दिन क्या हुआ कि पति और बच्चे तो आ गये लेकिन भिखारन को आने में देर हो गयी . उसके आते आते रात के आठ बज गये. सभी भूखे थे. अतः भिखारन ने जल्दी से चावल की हांडी चूल्हे पर रख दी. चावल जब पक गया तो उसने अपने पति और बच्चों को पहले खिला दिया. बाद में जब वह खाने बैठी तो देखा हांडी में चावल के साथ एक छिपकली भी पक गयी है. भिखारन के…

Continue

Added by coontee mukerji on May 8, 2013 at 12:00pm — 9 Comments

कुछ खरी खोटी....कुण्डलिया

कुणडलिया

----



लाख दवायें कर रहे, कम ना होता रोग

लिखा शास्त्र मे है यही, सबसे उत्तम योग

सबसे उत्तम योग, रोग यह दूर भगाता

ह्रदयों मे उत्साह , बदन मे फुर्ती लाता

स्वस्थ वही हैं आज, योग जो करते जायें

काम करे जो योग, करे नहि लाख दवायें

----

बात बनाना है कला, बात सही यह जान

भागदौड की जिंदगी, आता हरदम काम

आता हरदम काम, मुसीबत दूर भगाता

मुश्किल जो हैं काम, उसे यह सहज बनाता

कहते हैं कविराय, पडा उसको पछताना

सीख सका नहि आज, अभी तक… Continue

Added by manoj shukla on May 8, 2013 at 10:30am — 14 Comments

डमरू घनाक्षरी



32 वर्णो का डमरू दण्डक ‘‘ल सब‘‘ अर्थात इसके बत्तीसों वर्ण लघु होते है।



‘‘कमल नमन कर तमस शमन कर, उजस उरन भर हरष सकल नर।

अपजस हर मन सब रस तन भर, कलश सगर सम हृदय तरल कर।।

हलधर मत कह जन मन भय डर, भग कर लठ लय तड़ तड़ तब मर।

हलधर जय जय भगवन छत धर, मन भय हर-हर भजन करत तर।।‘‘

भावार्थ- कमल आदित्य के समान ही समस्त तिमिर को नष्ट करने वाला, हृदयों मे उल्लास, ओज और सभी प्राणियों में हर्ष का संचार करके दुःखों और सारी विकृतियों को दूर करने वाला है। यह शुभ…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 8:00am — 12 Comments

कलम

ईश्वर ने चाहे मुझको 

खुशियाँ कम दे दी ,

मगर अच्छा किया कि

हाथ में मेरे कलम दे दी .

जब भी आँसू बहे आँखों से

शब्द बन के उतर जाते  .

होती न गर कलम हाथ में 

कैसे ग़म ये निकल पाते ,

थोड़ी सी मिली खुशियों में 

ज़हर बनके घुल जाते  .

हम घुट-घुट कर कबके 

यहाँ पर मर जाते  ,

इतना सारा ज़हर पीके हम           

भला कैसे फिर जी पाते .

इसी कलम ने ज़हर निकाला 

जब-जब दर्द ने डंक मारे ,

इसी कलम की…

Continue

Added by POOJA AGARWAL on May 7, 2013 at 9:30pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तस्वीर

यह रोज़ ही की बात है

जब रात गए,

शबनम की बरसात हुआ करती है-

पात पात रात भर

वात बहा करती है,

चोरी छिपे मैंने भी देखा है

दोनों को,

जब रात से प्रभात की

मुलाक़ात हुआ करती है -

मैं तो बस दर्शक हूँ

यह एक तसवीर है.

(2)

रात की लज्जा,

चहारदीवारी के साये में,

मेरे आंगन में छुपे

कलियों के आंचल में

सिमट-सिमट जाती है -

लेकिन वह सूरज

अनायास मेरे घर की

प्राचीर को लांघ…

Continue

Added by sharadindu mukerji on May 7, 2013 at 9:30pm — 9 Comments

मैं तुम्हारी हूँ

मेरे  प्राणेश-

यह आखिरी शाम,

और वह भी ,बीत गयी।

तुम्हारी वह, खामोशी,

आज फिर से, जीत गयी।

कुछ भी तो मुझे न मिला,

न राधा का अभिमान,

न मीरा का सतीत्व।

फिर कैसे मिलता,

मेरे यौवन को व्यक्तित्व।

क्योंकि सागर की, बाहों में हीं,

नदी पाती है अस्तित्व।

काश! तुम समझ…

Continue

Added by Kundan Kumar Singh on May 7, 2013 at 9:00pm — 9 Comments

दुनिया की सबसे प्यारी माँ के लिए

माँ

मुझे वो दिन याद है 
जब तू मुझे गोदी में लेकर,
बैठी रहती थी रात रात भर,
कि मुझे नींद आ जाए|
पर तू सारी रात जागकर …
Continue

Added by Usha Taneja on May 7, 2013 at 8:30pm — 14 Comments

सर झुकाना नहीं आता

क्या करें, 

इतनी मुश्किलें हैं फिर भी

उसकी महफ़िल में जाकर मुझको

गिडगिडाना नहीं   भाता.....

 

वो जो चापलूसों से घिरे रहता है

वो जो नित नए रंग-रूप धरता है

वो जो सिर्फ हुक्म दिया करता है

वो जो यातनाएँ दे के हंसता है

मैंने चुन ली हैं सजा की राहें

क्योंकि मुझको हर इक चौखट पे

सर झुकाना नहीं आता...

 

उसके दरबार में रौनक रहती

उसके चारों तरफ सिपाही हैं

हर कोई उसकी इक नज़र का मुरीद

उसके नज़दीक…

Continue

Added by anwar suhail on May 7, 2013 at 8:21pm — 7 Comments

क्या करें ,सरकार की मजबूरी है

कालाबाजारी ,भ्रष्टाचार , दरिंदगी ,व्यभिचार ,

बेशर्मी ,बेहूदगी ,बेचारगी ,बेरहमी ,बेहयाई ,

आतंकवाद ,जातिवाद ,भाई-भतीजावाद ,परिवारवाद ,

सब राजनीति में रास्ते हैं ,

पर क्या करें ,सरकार की मजबूरी है ,इन रास्तों से गुजरना पड़ता है .



हमें पता है पडौसी ,निर्दोष जनता में आतंक फैला रहा है ,…

Continue

Added by Dr Dilip Mittal on May 7, 2013 at 6:39pm — 5 Comments

माँ का पल्लू

माँ का पल्लू



मेरा छोटा भाई हमेशा मेरी माँ का पल्लू थामे रहता .माँ जहाँ भी जाती वह पल्लू पकड़े साथ साथ चलता . कभी कभी तो माँ को जब बाथरूम जाना होता तो और मुश्किल में पड़ जाती. कभी माँ खीज कर कहती – छोड़ो पल्लू बेटा ! इतना अपशकुन क्यों करते हो ? अगर मैं मर गयी तो क्या करोगे ?

अबोध बालक तो कुछ नहीं समझ पाया कि मृत्यु क्या…

Continue

Added by coontee mukerji on May 7, 2013 at 6:00pm — 9 Comments

माँ ... श्रध्दांजलि !

माँ ... श्रध्दांजलि !

(पावन माँ दिवस पर)

मैं प्राण-स्वपन तुम्हारा, तुमने सर्जन किया था मेरा,

कभी मैंने जन्म लिया था तुम्हारे पावन-अंदर,…

Continue

Added by vijay nikore on May 7, 2013 at 3:30pm — 26 Comments

ग़ज़ल - शिवाजी भी यहीं के हैं, नहीं क्यों याद आता है

बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

1222 1222 1222 1222

..............................................................

हुआ पैदा जो अंधा वो खड़ा राहें दिखाता है।

फटी आवाजवाला रोज अब गाने सुनाता…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 7, 2013 at 1:11pm — 23 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मशीनी मानव !!

बस पांच मिनट का पड़ाव  

उस स्टेशन पर 
देख रही हूँ उस पार किस तरह 
वो  उस हथौड़े को 
अपने सर के ऊपर तक ले जाकर 
खटाक से वार कर रहा है
 उस लोहे पर जिसको 
चूड़ियों से भरे दो हाथ 
थाम रहे हैं दोनों और से 
कितना आत्म विशवास है 
उन दोनों को अपने उन हाथों पर 
लोहा इच्छित आकार 
लेता जा रहा है धीरे-धीरे
सोच रही…
Continue

Added by rajesh kumari on May 7, 2013 at 11:58am — 18 Comments

जीवन में जिन्दगी का माँ एहसास हो तुम .........

तपती धुप धूप में

छाँव हो तुम

मेरे लिए

बहुत खास हो तुम

तुम्हारे एहसास भर से

दूर हो जाती है हैं मेरी…

Continue

Added by Sonam Saini on May 7, 2013 at 11:00am — 22 Comments

दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं

तमाम विसंगतियों के विरोध में एक ताज़ा ग़ज़ल .....



दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं 

फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं 



किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का

अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं



आरियाँ…

Continue

Added by वीनस केसरी on May 6, 2013 at 9:30pm — 52 Comments

॥ मेरा साथ निभाना तुम ॥ (श्रंगार रस का पहला प्रयास )

 

॥ मेरा साथ निभाना तुम ॥

मै बसंत हूँ , मेरी बहार बन जाना तुम ।

मै सूरज बनूँ तुम्हारा, मेरी किरण बन जाना तुम । …

Continue

Added by बसंत नेमा on May 6, 2013 at 12:30pm — 9 Comments

माँ

मई महीने के दूसरे रविवार को 

"मातृ दिवस" …

Continue

Added by यशोदा दिग्विजय अग्रवाल on May 6, 2013 at 11:00am — 13 Comments

सांप नाथ -नाग नाथ उवाच //कुशवाहा //

सांप नाथ -नाग नाथ उवाच 

---------------------------------

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी 

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

कैसे आती है 

खून बहे रक्त नली में 

तारे टिमके जैसे जमी पर  

प्रेमियों को भाती है

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी

--------------------

न आये तो क्या हो  करते

रात गुजर  कैसे  करते

जनता त्राहि त्राहि करती 

खेती किसानी करते…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 10:04am — 14 Comments

नर-नारी संवाद



कहता है नर सदियों से

‘’ हे नारी !

पड़े सागर तल में

सीप में जो मोती द्वय

या ‌‌– तुम्हारे दो नयन हैं ! .

तुम रूपजाल हो या –

तुम्हारे अंग – अंग में

प्रकृति अटकी हुई है .’’

नारी कहती है

हे नर !

‘’ मैं ही अक्ष हूँ .

मैं ही आँसू

मोती भी

और सीप भी हूँ -

तुम्हारे लिये ही

मैं रोती हूँ, हँसती हूँ,

सजती हूँ, गाती हूँ

समझो न मुझे तुम रूपजाल

मैं प्रकृति की छाया हूँ

मही मेरी जननी है ‘’

( नर-नारी…

Continue

Added by coontee mukerji on May 6, 2013 at 10:00am — 8 Comments

!!! मेरे घर आई एक नन्हीं परी !!!

!!! मेरे घर आई एक नन्हीं परी !!!


(आ0 गनेशजी सर जी को सादर शुभकामनाओ सहित समर्पित।)


चतुर्दश चन्द्र रूप सुखं। दिव्य तेज मुखारविदं।।
कर क्रीडति किन किन धुनं। किलकत मंद मंद हॅसं।।
सुख पाय तके छवि बलं। रवि रश्मि रति सरस मनं।।
जय हो श्री गनेशजी शुभं। जय हो श्री गनेशजी शुभं।।


के0पी0सत्यमध् मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 6, 2013 at 9:15am — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
Friday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service