Added by Nazeel on January 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
एक बार मेरे आँगन में कदम रखो श्रीमान ,
फिर समझ में आएगा कितने हो महान ,
एक तस्वीर जिसपे हम वर्षो से फूल चढ़ाते हैं ,
एक तस्वीर ऐसा भी आओ तो तुझे दिखाते हैं ,
मरने वाला मर गया तुम बन गए महान ,
एक बार मेरे आँगन में कदम रखो श्रीमान ,
पार्टी बाजी गुट बाजी उनको हमसे दूर किया ,
आपने उनको बा इज्जत शहीद ऐलान किया ,
फिर मेरे आँगन में उनका पुतला लगा दिया ,
कमाने वाला चला गया हमें मझधार दिया ,
और आप…
Added by Rash Bihari Ravi on January 31, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
पास हो मेरे ये कितनी
बार तो बतला चुके तुम !
कौन कहता जा चुके तुम ?
आँख जब धुंधला गई तो
मैंने देखा
तुम ही उस बादल में थे ,
और फिर बादल नदी का
रूप लेकर बह चला था ,
नेह की धरती भिगोता
और मेरी आत्मा हर दिन हरी होती गई !
उसके पनघट पर जलाए
दीप मैंने स्मृति के !
झिलमिलाते , मुस्कुराते
तुम नदी के जल में थे !
जब भी दिल धडका मेरा तब
तुम ही उस हलचल में थे…
Added by Arun Sri on January 31, 2012 at 12:00pm — 6 Comments
चुन चुन कर जमा किये थे
Added by rajesh kumari on January 31, 2012 at 11:00am — 2 Comments
आज महात्मा गांधी जी की पुन्य तिथि पर एक बालकविता प्रस्तुत है:
अपने प्यारे बापू
कितने अच्छे थे अपने बापू
सादा सा जीवन था उनका
लड़े लड़ाई सच की ही वह
ध्यान हमेशा रखा सबका l
हिंसा ना भाती थी उनको
साथ अहिंसा का अपनाया
सबके लिये थी दया-भावना
काम बड़ा करके दिखलाया l
भारत को आज़ाद कराने में
लगा दिया जीवन था सारा
देश छुड़ाया जब अंग्रेजों से
सबसे ऊँचा था उनका नारा l
दुबली-पतली काया थी…
Added by Shanno Aggarwal on January 30, 2012 at 10:30pm — 3 Comments
Added by rajesh kumari on January 30, 2012 at 8:43am — 9 Comments
ज़िन्दगी कॆ रंग,,,,,,,,
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ज़िंदगी कॆ रंग पिचकारी,सॆ सब छूट गयॆ ॥
कैसॆ बतायॆं हम लाचारी, सॆ सब छूट गयॆ ॥१॥
घर, कुआं, खॆत,बगीचा,सब हमारॆ भी…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 30, 2012 at 1:59am — 1 Comment
हाइकू.
Added by AVINASH S BAGDE on January 27, 2012 at 7:03pm — 5 Comments
बीत गए बरस तिरसठ
Added by rajesh kumari on January 26, 2012 at 12:30pm — 10 Comments
हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन l
आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !
सुबह-सुबह उठी जब मुन्नी
बोली मेरी स्कूल से छुट्टी
भैया की कालेज से छुट्टी
पापा की आफिस से छुट्टी
मौज ही मौज है सारा दिन l
हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन l
आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !
निकलेगा जलूस सड़कों पर
देखेंगे टीवी हम मिलकर
हाथों में सधा तिरंगा होगा
भरत नाट्यम डांस भी होगा
होगी तब खूब ताक धिना-धिन l
हाँ, आज का दिन…
Added by Shanno Aggarwal on January 26, 2012 at 4:00am — 4 Comments
उठो साथियों!
Added by AVINASH S BAGDE on January 25, 2012 at 11:41pm — 3 Comments
बहती गंगा मॆं,,,,,
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स्वार्थ की चादर, तानकर सॊयॆ हैं सब ॥
न जानॆ कौन सॆ, भ्रम मॆं खॊयॆ हैं सब ॥१॥
समय किसी का, उधार रखता नहीं है,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 25, 2012 at 9:23pm — 1 Comment
नाशाद मेरा मिहिर तो जिंदगी वफात है
साँसों के गिर्दाब में इस रूह की निजात है l
साहिर है तेरी कलम में कुछ कमाल का
जैसे खून में भरा हो कुछ रंग गुलाल का l
हर्फों में छुपा रखी है सदियों की बेबसी
तेरे चेहरे पे अब देखती हूँ ना कोई हँसी l
बातों में बेरुखाई अब होती है इस कदर
बेजार सी जिंदगी जैसे बन गई हो जहर l
तासीर न कम होती है होंठों को भींचकर
या बेसाख्ता बहते हुये अश्कों से सींचकर…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 24, 2012 at 7:50pm — 9 Comments
खिड़की से नज़र आता
भूतिया वो पेड़
जिसकी हर एक शाख
पतझड़ की सोच में डूबी
मानो उंगलियाँ
और पत्ते...
आसेबी हवा के ज़ोर…
ContinueAdded by Nutan Vyas on January 24, 2012 at 7:21pm — 2 Comments
इशारॊं-इशारॊं सॆ
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इशारॊं-इशारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥
आज सितारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥१॥
गुलॊं सॆ मॊहब्बत, है हर एक कॊ,
क्यूं न ख़ारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥२॥
यह हवॆली महफ़ूज़, है या कि नहीं,
इन पहरॆदारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥३॥
रॊटी की कीमत, समझ मॆं आ जायॆ,
जॊ बॆरॊजगारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥४॥
उस की आबरू, नीलाम हॊगी कैसॆ,
चलॊ पत्रकारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥५॥
किसकी सिसकियां, हैं उन खॆतॊं मॆं,
"राज"जमींदारॊं…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 24, 2012 at 3:13pm — 4 Comments
क्यों आज तुम्हे अब चैन नहीं है महलों में?,
Added by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:00pm — 27 Comments
ख़ुशी के कितने लमहे हैं, जीस्त जिनसे संवारी है,
मेरे गम का मगर ये पल, मेरे जीने पे भारी है.
कोई भी ख्वाब अब आता नहीं, जो दे सुकूं मुझको,
मुलाजिम हूँ, रातों पर मेरे, अब पहरेदारी है.
जलाए कितने ही घर, कितने ही दुश्मन मिटा डाले,
नहीं आती कोई भी चीख, ये कैसी खुमारी है.
हो कोई सामने, पर बढ़ना है सर काटकर मुझको,
जिसे ठहराते हो जायज, वो जीने की बीमारी है.
मेरी जेबें भरी हैं, खूँ सने सिक्कों से अब, लेकिन,
कोई…
Added by Arvind Kumar on January 23, 2012 at 3:22pm — No Comments
छरहरा सा वदन उसका श्वेत वस्त्र धारण किये ।
था पीत किरीट भाल की शोभा तन वहुत नाजुक लिए।
खोल के जो कपाट घर के देखा उसको गौर से ।
शर्म से नज़रें झुका लीं प्रिय सी चंचलता लिए ।
थाम के उसको लगाया होंठ से अपने जभी ।
इश्क की गर्मी से मेरी खुद ही खुद वह जल उठी ।
खेंच कर सांसों को उसकी जब मै उसको पी गया ।
आग सीने में लगी जल कर कलेजा रह गया ।
धुंए का गुब्बार निकला और फिजा…
ContinueAdded by Mukesh Kumar Saxena on January 23, 2012 at 11:34am — 2 Comments
निशा के आँचल को समेट
खुद को किरणों में लपेट
क्षितिज पार फैली अरुणाई
बहने लगी पवन बौराई
कोहरे का आवरण हटा
सूरज ने खोले नयन कोर l
नीड़ में दुबके बैठे आकुल
भोर हुई तो चहके खगकुल
खुले झरोखे हवा की सनसन
आकर तन में भरती सिहरन
है नव प्रभात, संदेश नवल
नव उमंग, मन में हलचल
कमल सरोवर पर अलि-राग
काँव-काँव कहीं करते काग
हर्ष से तरु-पल्लव विभोर l
संक्रांति मनाते हैं हिलमिल…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 23, 2012 at 3:30am — 9 Comments
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