ममता ....
"सुनिए, मैं ये कह रही थी कि 5 दिन के बाद अपनी पोती नीलू का जन्म दिन है । नीलू पूरे चार साल की हो जाएगी" पार्वती ने लेटे-लेटे अपने पति राघव से कहा।
"हाँ वो तो है ।" राघव ने जम्हाई लेते हुए कहा ।
"मैं ये सोच रही थी क्यों न हम इस मौके पर हम अपनी तरफ से ग्यारह हजार रुपये का चेक अपने आशीर्वाद के रूप में भेज दें क्योंकि शारीरिक व्याधियों की हम दिल्ली तो जा नहीं सकते ।" पार्वती ने कहा ।
"तेरा विचार सही है । मैं कल ही बैंक में चेक डाल दूँगा ।…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 28, 2023 at 9:46pm — 4 Comments
Added by AMAN SINHA on February 27, 2023 at 12:52pm — 4 Comments
Added by AMAN SINHA on February 25, 2023 at 12:31pm — No Comments
अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव
भरी दुपहरी मिल जाती है, जहाँ पेड़ की छाँव।।
*
नगर हमेशा दुख देकर ही, माने अपनी जीत
आँगन चाहे एक नहीं पर, खड़ी बहुत हैं भीत
अपनों की तो बात अलग है, रही गाँव की रीत
किसी पराये का भी दुख में, सहला देता पाँव
अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव।।
*
उसकी माँगें नहीं असीमित, रोटी कपड़ा गेह
जिसे नगर सा नहीं ठाठ से, होता पलभर नेह
मन में सेवाभाव…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2023 at 6:17pm — 2 Comments
वही दिन है वही रातें जैसे वर्षों पहले थे
पर अब जैसे तुम मिले हो पहले तो ऐसे ना थे
अब भी पुरानी तसवीरों में ऐसी है मुस्कान तेरी
जैसे कोई बांध के रख दे नज़रों से जुबान मेरी
सन्दुक में रखे कपड़े तेरे नए आज भी लगते हैं
तेरी यादों की खुशबू से महके-महके से रहते हैं
हंसी पुरानी गयी कहाँ अब तेरे कपड़े तो ऐसे ना थे
पर अब जैसे तुम मिले…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 22, 2023 at 10:00am — No Comments
कहाँ रहते वो कैसे रहते
उनसे न होती अपनी बात
वैर भाव की बात नही ये, अब उनसे न कोई दुआ-सलाम।।
खैरियत भी वो नहीं पूछते
क्या प्रेमभाव की करूँ मैं बात
अच्छे-खासे रिश्ते उनसे, न जानें क्यूँ वो रहते नाराज।।
हसी-मजाक, टिटौली चलती
हमारी कौन सी लगी उन्हें बुरी बात
कल तक थे जो अपनों से बढ़कर, है आज उसने दूरी खास।।
आना-जाना लगा रहता था
मिलजुल कर पहले रहते…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on February 21, 2023 at 9:38am — 4 Comments
दिखता है हर ओर यहाँ तो केवल दुख का बौर।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
घाव कुरेदे पल पल दुनिया कर बैठी नासूर।
इस कारण ही घर कर बैठी पीर यहाँ भरपूर।।
औषध कोई काम न करती मत बोलो अब और।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
शीतल छाँव नहीं है वन में दावानल की आग।
तानसेन की सुता न कोई गाती बादल राग।।
बन्द झरोखों को क्या खोलें उमस भरा जब दौर।।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2023 at 7:31am — 2 Comments
2122 1212 22 / 112
कारवाँ प्यार का रुका क्यूँ है
हादसा आज ये हुआ क्यूँ है
गुलदस्ता वो नहीं कोई फूल नहीं
दीवाना दोस्त गुमशुदा क्यूँ है
चलनी है रहगुज़र मुझे और भी
बदगुमाँ फिर वो दिलरुबा क्यूँ है
वो जुनूँ प्यार का हवा हो गया
होंसला बारहा हुआ क्यूँ है
कौन जाने वो मसअला क्या है
राय़गाँ हुस्न अब हुआ क्यूँ है
कोई रिश्ता ठहरता ही नहीं याँ
राबतों को ये बद्दुआ क्यूँ…
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 17, 2023 at 7:43am — 1 Comment
हे जग अभियंता, सृजनहार,
हे कृपासिंधु, हे गुणागार
हे परब्रह्म, हे पुण्य प्रकाश
हो पूरित तुम से, सही आस
हर छोटे-से छोटा जो कण,
या विश्व सकल विस्तार अनंत
तुम्हीं में समाहित सब कुछ…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on February 16, 2023 at 7:00pm — 2 Comments
आँखों में घड़ियाली आँसू अधरों पर चिंगारी हो
उन लोगों से बचके रहना जिनमें ढब हुशियारी हो।१।
*
सिर्फ जरूरत भर को लोगो पेड़ काटना अच्छा है
हर जंगल को नित्य मिटाने क्यों हाथों में आरी हो।२।
*
सभी पीढ़ियों कई युगों की यही धरोहर इकलौती
सिर्फ तुम्हारी एक जरूरत क्यों धरती पर भारी हो।३।
*
अल्प जरूरत अति बताकर नष्ट करो मत धरती
आज कहीं तो सुन्दर अच्छे आगत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2023 at 7:01am — 2 Comments
221-1221-1221-122
हालाँकि किया आपने इज़हार नहीं है
ये बात समझना कोई दुश्वार नहीं है
अब छोड़िए इज़हार भी दरकार नहीं है
"ख़ामोश है लब पर कोई तकरार नहीं है
मैं जान गया हूँ तुझे इंकार नहीं है"
ये बात अलग है कि दिल-ओ-जान से चाहूँ
पाने को तुम्हें जान मैं क्या कुछ नहीं कर दूँ
ये भी है हक़ीक़त कि कभी होगा नहीं यूँ
"मैं बेच के ग़ैरत को तेरा प्यार ख़रीदूँ
इस बात पे राज़ी दिल-ए-ख़ुद्दार नहीं है"
भाती है ग़ज़ल सब को, जो भाता हो ग़ज़ल…
Added by Gurpreet Singh jammu on February 15, 2023 at 3:41pm — 5 Comments
प्यार-शहादत का दिन ये
क्यूं जज़्बात से किसी के खेले
एक ओर है पुलवामा की घटना
उधर, ले प्रेमियों के दिल हिचकोले।।
कितनों के सुहाग उजड़ गए
दुनियाँ, कितनों के लाल थे छोड़े
भाई बिन कितनी बहनें रोती
कितने, पिता की याद में रोते।।
कोई खुश है प्रेम को पाकर
कोई इंतजार में इत-उत डोले
रात-दिन है कोई जागता
कुछ प्रेमी की याद में रोते।।
बड़ा है दिन ये दोनों का ही
क्यूं अहमियत न इसकी समझें
श्रृद्धा-सुमन तू…
Added by PHOOL SINGH on February 14, 2023 at 9:30am — No Comments
दिल का दादी होना
Added by amita tiwari on February 14, 2023 at 4:00am — No Comments
शोर है चहुँ ओर ,आया प्यार का मौसम, मगर
प्यार करने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए।।
*
भोग का आनन्द क्षण भर तृप्ति का आभास दे।
वह न हो पाया तो मन को हार का अहसास दे।।
कौन शिव सा अब शती की देह थामें डोलता।
ओट पाते वासना के द्वार पलपल खोलता।।
भोगने को तन तनिक उत्तेजना का पल बहुत।
प्यार करने के लिए तो पूर्ण जीवन चाहिए।।
*
देखता हर पथ सुगढ़ जाता यहाँ है प्यास तक।
आ सका है कौन अब संभोग से संन्यास तक।।
आज उपमा लिख रही उपभोगवादी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2023 at 6:35pm — 3 Comments
मैं कौन हूँ
अब तक मैं अपना
पहचान ही नहीं पा सका
भीड़ में दबा कुचला व्यथित मानव
दड़बे में…
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on February 13, 2023 at 9:16am — 3 Comments
अज्ञातवास जब समाप्त हुआ
पांडवों में साहस भरा
कनक सदृश तप कर आए
उनमें प्रखर उत्साह का तेज बड़ा।।
कायर दहलता विपत्ति में अक्सर
शूरमा विचलित न कभी हुआ
गले लगाकर हर दुःख-विध्न को
धीरज से उसका तेज हरा।।
कांटो भरी राह पर चलकर
उफ्फ तक न वो कभी किया
धूल के गहने पहन चरण में
साहस के सहारे बढ़ता गया।।
उद्योग निरत नित करता रहता
उसने सब सुख-सुविधाओ का त्याग किया
शूलों के सदा समूल विनाश को
राह स्वयं के विकास की…
Added by PHOOL SINGH on February 12, 2023 at 8:29am — 2 Comments
यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।
नये वर्ष की अँखियाँ भीगी, बीती जून जुलाई में।।
*
हिचकी आयी भोर भये से,ना रुकने का नाम लिया।
तभी पुरानी राहों ने फिर, सोचा किसने याद किया।।
पलपल, पगपग जाने कितने, रंगो को था नित्य जिया
कई सूरतें उभरीं मन में, गठरी को जब खोल दिया।।
*
चुपके-चुपके नभ रोया नित, शरद भरी जुन्हाई में।
यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।।
*
कितना चाहो भले भूलना, हिर फिर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2023 at 5:42am — No Comments
मनमोहन छंद (प्रथम प्रयास )
8,6-पदान्त 111
कान्हा जी से, लगी लगन ।
पागल मन ये , हुआ मगन ।
मन में जागी, प्रीत अगन ।
भूल गया मन , धरा गगन ।
***
मनमोहन तू, बड़ा चपल ।
तुझे निहारें , नैन सजल ।
हरदम लगता , रूप नवल ।
छलकें नैना , छल छल छल ।
सुशील सरना /
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2023 at 3:22pm — No Comments
आज खुशी से झूमूँ सखि री पत्र पिया का आया है
भाव भरे अक्षर-अक्षर ने ये तन-मन हर्षाया है
लिखते, प्रिये! तुम्हीं से सब कुछ, सुख-दुख की सहभागी तुम
तुमने इस जीवन में खुशियों का सावन बरसाया है
रहता था निर्वासित सा मन जीवन के निर्जन वन में
पावन प्यार भरा गृह इसको तुमने ही लौटाया है
कहते- पीर भरा यह जीवन जो तपते मरुथल सा था
पाकर तेरा स्नेह सलिल अब हरा भरा हो आया है
नीरव हिय का रंगमहल था साज-बाज सब सूने थे
तेरी पायल…
Added by रामबली गुप्ता on February 11, 2023 at 9:30am — No Comments
हवन की अग्नि बुझ चुकी थी
शिक्षा प्राप्ति की आई बात
गुरू द्रोण ने जब इंकार किया तो
भगवान परशुराम की आई याद।।
नीड़ो में था कोलाहल जारी
फूलों से महका उपवन
ज्ञान की जिज्ञासा थी मन में भड़की
निकला खोज में जिसकी कर्ण।।
द्वार तृण-कुटी पर परशु भारी
आभाशाली-भीषण जो भारी भरकम
धनुष-बाण एक ओर टंगे थे
पालाश, कमंडलू, अर्ध अंशुमाली एक पड़ा लौह-दंड।।
अचरज की थी बात निराली
तपोवन में किसनें वीरता पाली
धनुष-कुठार…
Added by PHOOL SINGH on February 11, 2023 at 7:21am — No Comments
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