सजा औरत को देने में मज़ा है तेरा ,
क़हर ढहाना, ज़फा करना जूनून है तेरा !
दर्द औरत का बयां हो न जाये चेहरे से ,
ढक दिया जाता है नकाब से चेहरा !
बहक न जाये औरत सुनकर बगावतों की खबर ,
उसे बचपन से बनाया जाता है बहरा !
करे न पार औरत हरगिज़ हया की चौखट ,
उम्रभर देता है मुस्तैद होकर मर्द पहरा !
मर्द की दुनिया में औरत होना है गुनाह ,
ज़ुल्म का सिलसिला आज तक नहीं ठहरा…
Added by shikha kaushik on March 31, 2013 at 9:02pm — 9 Comments
मुझे आज ही ज्ञात हुआ की 1 अप्रैल 2013 को ओबीओ की
तीसरी वर्ष गाँठ है। तीन वर्षो में इस मंच ने मुझ जैसे सैकड़ों लेखको को तैयार किया
है | इस अवसर पर दोहों के रूप में सभी सदस्यों में सहर्ष पुष्प समर्पित है ।-
बढे साथ का…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 9:00pm — 21 Comments
फूलों ने जब खिलना है तशीर मुताबिक
फेलेगी खुशबु भी तब समीर मुताबिक
कर ले, कह ले, कुछ भी ये हक है तेरा
कलम लिखेगी जब,अपनी जमीर मुताबिक
यूँ तो सपने हजारों तेरे मन में हें,
याद करेंगे लोग पर तदबीर मुताबिक
साथ निभाएँगे कब तक पंख जो मंगवें,
तुम कब उड़ोगे न खुद की जमीर मुताबिक
शख्स जिसका उम्र भर घर ना हुआ था अपना
ऐसा मिलेगा जब भी तो फकीर मुताबिक
चाल ढाल मेरी भी मुझ को समझ ना आई
चलता रहाँ…
Added by मोहन बेगोवाल on March 31, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
Added by Savitri Rathore on March 31, 2013 at 5:03pm — 4 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 31, 2013 at 4:47pm — 12 Comments
Added by Monika Dubey on March 31, 2013 at 4:08pm — 2 Comments
===========ग़ज़ल===========
दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए
लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए
सच है हर बात तो फिर सामने आया करिए
आइने से यूँ निगाहें न चुराया करिए
हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा
चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए
चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो
कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए
हो बड़े गर तो गरीबों को सहारा देकर
इस अमीरी को कभी आप भुनाया…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 31, 2013 at 3:30pm — 13 Comments
सखी! साजन नहि आए रात।
नयन से नीर,
झर झर टपकत,
सावन झरै बरसात।
सुन्दर-सुन्दर,
सेज सजाई,
करवट करे उफनात।।
सखी! साजन नहि आए रात।
द्वार खड़ी पथ,
उड़त धूल अस,
बड़ा तूफान गहरात।
अब फिर डूबा,
सूरज पछुवा,
फिर-फिर डसे कस रात।।
सखी! साजन नहि आए रात।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 31, 2013 at 2:00pm — 10 Comments
चारपाई पर लेटे लेटे ,
ख्याली पुलाव पका रहा था !
सुन्दर अभिनेत्री के साथ ,
झील में नहा रहा था !!
इशारा किया पास आओ ,
इतने में शर्मा गयी!
उसकी यह चंचल अदा
मुझे और भी भा गयी…
Added by ram shiromani pathak on March 31, 2013 at 12:37pm — 17 Comments
प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...
गूँज लें सारी फिजाएँ
युगल मन मल्हार गाएँ
चंद्रिकामय बन चकोरी
प्रेम उद्घोषण करूँ...
प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...
मन-स्पंदन कर दूँ शब्दित
तोड़ कर हर बंध शापित
नेह पूरित निर्झरित उर
गान से तर्पण करूँ...
प्रीत शब्दातीत को…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on March 31, 2013 at 12:00pm — 28 Comments
बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
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जिस घड़ी बाजू मेरे चप्पू नज़र आने लगे
झील सागर ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे
झुक गये हम क्या जरा सा जिंदगी के बोझ से
लाट साहब को निरा टट्टू नज़र आने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 31, 2013 at 11:32am — 18 Comments
हे प्रातः स्मरणीय श्री कृष्ण,
तेरा जीवन भी है जैसे-
एक पहेली |
तेरे कृत्य को-
तेरे दृश्य को -
तेरे सन्देश को,…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 11:20am — 7 Comments
वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,
जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on March 31, 2013 at 11:16am — 5 Comments
( आपकी सेवा में मेरी ताज़ी रचना )
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वक्त आने पे जो न संभल पाते हैं |
फिर शहर खंडहर में बदल जाते हैं ||…
ContinueAdded by श्रीराम on March 31, 2013 at 8:30am — 2 Comments
सरला का छोटा सा सुखी परिवार था. वह बहुत ही अनुशासप्रिय थी. उसके दो बच्चे थे. एक बेटा एक बेटी. बेटा पाँच साल का था और बेटी तीन की. दोनों को अपने काबू में रखती थी सरला.
जब भी कहीं बाहर जाती बच्चों को घर के अंदर रहने की हिदायत देकर बाहर से मुख्य द्वार में ताला लगा देती. बच्चे जब तक बोलने लायक न थे सबकुछ ठीक चलता रहा. एक दिन सरला कहीं बाहर से आयी तो देखा बेटा घर में नहीं है. वह सारा घर छान मारी, आस पास देखा. मगर
बेटा कहीं भी नहीं मिला. वह परेशान होकर अपने पति को जब फ़ोन करना चाही…
Added by coontee mukerji on March 31, 2013 at 2:00am — 9 Comments
जिस ख्वाब की बदौलत ताउम्र सो न पाये
ना उनके हो सके हम वो मेरे हो न पाये
बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके
पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये
पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते
कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये
चाहा भले सभी ने बरबाद मुझको करना
सरसब्ज़ हसरतों की कश्ती डुबो न पाये
कुदरत को जालिमो ने इस तरह से सताया
ना हँस सके परिन्दे अब्रपार रो न पाये
मायूस तू न…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 31, 2013 at 12:00am — 18 Comments
भाग -5
गतांक से आगे)
भुवन की लड़की पारो (पार्वती) शादी के लायक हो चली थी. एक अच्छे घर में अच्छा लड़का देख उसकी शादी भी कर दी गयी. शादी में भुवन और गौरी ने दिल खोलकर खर्चा किया, जिसकी चर्चा आज भी होती है. बराती वालों को गाँव के हिशाब से जो आव-भगत की गयी, वैसा गाँव में, जल्द लोग नहीं करते हैं.
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चंदर का बेटा प्रदीप शहर में रहकर इन्जिनियरिंग की पढाई कर रहा था.. दिन आराम से गुजर रहे थे. पर विधि की विडंबना कहें या मनुष्य का इर्ष्या भाव, जो किसी को सुखी देखकर खुश नहीं होता…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on March 30, 2013 at 8:53pm — 2 Comments
प्राण-पल
पेड़ से छूटे पत्ते-सा समय की आँधी में उड़ा
मैं हल्के-से तुम्हारे सामने था आ गिरा,
तुमने मुझे उठाया, देखा, परखा, मुझको सोचा,
जाने क्यूँ मुझको लगा
कि वह पल मेरी बाकी ज़िन्दगी से अलग
मेरा ज़्यादा अपना था, अधिक प्रिय…
ContinueAdded by vijay nikore on March 30, 2013 at 3:30pm — 20 Comments
अपनी पुरानी डायरी में से आपके लिए कुछ हाज़िर कर रहा हूँ ! आशा है आपको पसंद आएगा !
ये प्रेमिकाएं बड़ी विकट होती हैं
बिल्कुल डाक टिकट होती हैं
क्योंकि जब ये सन्निकट होती हैं
तो आदमी की नीयत में थोडा सा इजाफा हो जाता है !
मगर जब ये चिपक जाती हैं तो
आदमी बिलकुल लिफाफा हो जाता है !!
सम्बन्धों के पानी से
या भावनाओं की गोंद से चिपकी हुई
जब ये साथ चल पड़ती हैं तो
अपने आप में हिस्ट्री बन जाती हैं !
जिंदगी के डाक खाने में उस लिफ़ाफ़े की
रजिस्ट्री…
Added by Yogi Saraswat on March 30, 2013 at 10:44am — 16 Comments
कल मैंने अपनी अप्रकाशित
कविताओं का एक बण्डल
नुक्कड़ के कोने पर बैठने वाले
छोले बेचने वाले को सौंप दिया
उसने इसे मुँह बंद करके हँसते हुए…
ContinueAdded by RAJEEV KUMAR JHA on March 30, 2013 at 10:31am — 6 Comments
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