Added by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 10:24am — 20 Comments
22 22 22 22 2
शहर ज़रा सा मुझमें भी तो आया है
यही सोच के गाँव गाँव शर्माया है
मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया
किस अँधियारे ने इसको भरमाया है
याराना कुह्रों से है क्या मौसम का
आसमान तक देखो कैसे छाया है
चौखट चौखट लाशें हैं अरमानों की
किस क़ातिल को गाँव हमारा भाया है
सूखी डाली करे शिकायत तो किस को
सूरज आँखें लाल किये फिर आया है
छप्पर चुह ते झोपड़ियों का क्या…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 15, 2015 at 8:30am — 27 Comments
हमारे अंदर का बनिया
सब कुच्छ बेचता है,
राम भी, कृष्ण भी,
धर्म और ईमान भी,
तीर और कमान भी.
अब उसके दुकान में
नये- नये समान हैं,
झूठाई, सपनों की मिठाई,
दंभ के साथ बढ़ती ढिठाई
ईन्हे वो रोज नई नई
जगहों पे सजाता है
ज़ोर से आवाज़ लगाता है
हिंदू हो या मुसलमान,
सिख हो या ख्रिस्तान,
उसके लिए सभी बराबर हैं.
वो बड़ी ईमानदारी से
बेईमानी बेचता हैं
दरअसल जो बिकता है
वही टिकता है.
मौलिक वा…
ContinueAdded by Dr.Vijay Prakash Sharma on April 15, 2015 at 8:00am — 12 Comments
मनहरण घनाक्षरी -
इस छन्द का विन्यास 8, 8, 8, 7 वर्णो की आवृति पर अथवा 16-15 वर्णों की यति पर कुल 31 वर्ण से किया जाता हैं। इसके चरणान्त में ।s लघु गुरू या s।s गुरू लघु गुरू रखने पर लय-गति में निरन्तरता बनी रहती है।
1
अम्ब, अम्ब सत्य ज्ञान, ताल छन्द के विधान,
रास रंग संग में उमंग के प्रमान हैं।
दिव्य शुभ्र शारदे बिसार के कलंक काल,
सूर्य-चन्द्र ज्योति से सजा रही वितान है।।
अखण्ड ब्रह्म तेज में, धरा-व्योम प्रेम करें
सृ-िष्ट रूप में अनादि…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2015 at 10:00pm — 5 Comments
मुख पर स्थाई भाव
न राग न द्वेष
शांत और निच्छल
पूर्णता को प्राप्त
जिन्दगी की भाग-दौड़
बहू की भुन-भुन
बेटे की झिड़की
पत्नि की देखभाल
और ....
महंगी दवाइयों से
मिल गयी मुक्ति
चल पड़ा वो
सब कुछ त्याग
महा-यात्रा…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 3:47pm — 23 Comments
कौन हो ? रो क्यों रही हो? - गाँव के बाहर बैठी उस स्त्री से बाल्या ने पूछा
"शहर शहर घूम आई ..धुवें से काली काली हो गयी.. मैं बरसना चाहती हूँ लेकिन सब ने बहाना कर के भगा दिया ..कहाँ जाऊं" उसने रोते रोते कहा
अरे माई . कितना इंतज़ार करवाया .. पिछले दो साल से तुम नहीं आयीं.. उस साल बापू ने रो रो कर इसी पेड़ से लटक कर जान दे दी .. पिछले साल माँ ने कर्ज लेकर बीज बोये और फिर भूखी ही मर गयी... तू यहाँ बरस खेतों पे... अबकी फसल मैं दोनों का श्राद्ध करूँगा…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
212 212 212 212
छोड़ दूँ अब कुंवारा नगर मैं पिया
काट लूँ सँग तुम्हारे सफर मैं पिया
मन न माने मगर क्या बताऊँ तुम्हें
साथ दोगे चलूंगी सहर मैं पिया
पंखुड़ी खिल गयी राग पाकर कहीं
बेज़ुबां अब न खोलूं अधर मैं पिया
मौत का गम नहीं साथ तुम हो मेरे
मुस्करा के पिउंगी जहर मैं पिया
अब तुम्हारे सिवा कुछ न चाहूंगी मैं
दिल मिलाओ मिलाऊं नज़र मैं पिया
दूर से देखकर आज रुकना…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 2:49pm — 8 Comments
गजल- आत्मा भरपूर सी...
बह्र - 2122, 2122, 2122, 212
फिर मुझे वह हूर सी लगने लगी।
दुश्मनी भी नूर सी लगने लगी।
गंग जन - मन को सदा पावन करे,
वास्तव में सूर सी लगने लगी।
तट, नदी का मध्य भी उकता गया,
रेत - पन्नी घूर सी लगने लगी।
आस्था की डुबकियॉं नित स्वर्ग हित,
बेवजह मगरूर सी लगने लगी।
आदमी सर-झील-नदियॉं पाट कर,
हस्तियॉं मशहूर सी लगने लगी।
आपदाएं नित्य घर-मन दाहतीं,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2015 at 12:30pm — 10 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 14, 2015 at 10:39am — 22 Comments
2122 2122 2122 212
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आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा
आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला
एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका
खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें
आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा
माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना
शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही
खेलना मासूम दिल से…
Added by umesh katara on April 13, 2015 at 10:00pm — 22 Comments
बैसाखी की सबको शुभकामनाये
(दस माहिया)
(१)
कोठे पे वो पाखी
नाच रहा देखो
अज आई बैसाखी
(२)
गेहुओं की बालियाँ
फसल कटी देखो
नच पीट के तालियाँ
(३)
नच लें औ गायें हम
आई बैशाखी
नव वर्ष मनाएँ हम
(४)
करो तन मन चंगा जी
आज धरा पर खुद
उतरी थी गंगा जी
( ५ )
गुरु गोविंद सिंह हुए
बना खालसा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 13, 2015 at 11:00am — 21 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
बह गये तूफान में वो जा किनारे से लगे
लड़ने वाले ही मगर सब बेसहारे से लगे
हार के बाहर हुये वो चैन की अब साँस लें
जीतने की जो कहें मुझको वो हारे से लगे
बारहा मेरे करीब आकर ठहर जाते हैं यूँ
ये हवादिस मेरी किस्मत के इशारे से लगे
लुट गया सामां सफर में हर मुसाफिर का यहाँ
लोग भी बेआस बेबस गम के मारे से लगे
कागज़ों पर है नुमायाँ हाले दिल मेरा “शकूर”
राख से कुछ हर्फ़ कुछ…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2015 at 10:16pm — 30 Comments
अभी तुम्हारे दिल में
भीड बहुत है
काफी शोर-शराबा है
नशा -ए -दौलत का
अदा-ए-हुस्न का
जोश-ए-जवानी का
आना जाना भी बहुत है
दिल फेंक प्रेमियों का
अभी तुम भी परेशान हो
सोच-सोचकर
किसको दिल में रखूँ
किसे नहीं
..
मगर
जब ये भीड छट जाये
दिल हो जाये
खाली खाली
उस वक्त मुझे कहना
अपने दिल में रहने को
मैं रहुंगा तुम्हारे दिल में
क्योंकि
मुझे अकेलापन
बहुत पसन्द है
उमेश कटारा…
Added by umesh katara on April 12, 2015 at 2:30pm — 14 Comments
इक दिन बिकने लग जाएँगे बादल-वादल सब
दरिया-वरिया, पर्वत-सर्वत, जंगल-वंगल सब
पूँजी के नौकर भर हैं ये होटल-वोटल सब
फ़ैशन-वैशन, फ़िल्में-विल्में, चैनल-वैनल सब
महलों की चमचागीरी में जुटे रहें हरदम
डीयम-वीयम, यसपी-वसपी, जनरल-वनरल सब
समय हमारा खाकर मोटे होते जाएँगे
ब्लॉगर-व्लॉगर, याहू-वाहू, गूगल-वूगल सब
कंकरीट का राक्षस धीरे धीरे खाएगा
बंजर-वंजर, पोखर-वोखर, दलदल-वलदल सब
जो न बिकेंगे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:19pm — 18 Comments
Added by shree suneel on April 12, 2015 at 11:27am — 18 Comments
१२२ १२२
भलाई किये जा
बुराई लिये जा
उन्हें बाँट अमृत
जहर खुद पिये जा
तेरे पास जो है
दिये जा दिये जा
उन्हें तू उठा दे
मगर खुद निये जा
जवानी लुटा दे
बुढ़ापा सिये जा
जमाना ख़रा है
भरोसा किये जा
यही जिन्दगी है
जिये जा जिये जा
-------(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by rajesh kumari on April 12, 2015 at 11:09am — 26 Comments
जनाजा जब उठे मेरा जरा तुम मुस्कुरा देना
दिये थे फूल जो तुमको जनाजे पे चढ़ा देना
गिराओ अश्क मत अपने बचा कर तुम इन्हें रख लो
चलो जब लाल जोड़े में इन्हें तब तुम बहा देना
वफा मेरीअगर तुमको कभी झूठी लगी हो तो
न आये चैन मर कर भी मुझे वो बद्दुआ देना
गलत खुद को समझना मत वफा मैं ही न कर पाया
न मुझ सा बेवफा कोई जमाने को बता देना
समझ लो प्यार में तुम से यही चाहत बची मेरी
कभी तुम…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on April 12, 2015 at 11:00am — 13 Comments
Added by Samar kabeer on April 12, 2015 at 10:52am — 16 Comments
गजल/गीतिका (12/04/2015)
अश्क इधर अपने रुख़्सार आया है,
तब उधर प्यार पर एतबार आया है।
तू सिसकता रहा,लमहे गये कितने,
एक कहाँ,दफा हजार बार आया है।
आह भरती चुप उसने मिलायी नजर
ऐसी ही उसकी अदा प्यार आया है।
तू दफा कई था आशियाँ उसके गया,
उसे लगा कोई कसूरवार आया है।
भूल सब रंजोगम,बस जगायेआरजू,
उसके दर आज गुनहगार आया है।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन
Added by Manan Kumar singh on April 12, 2015 at 10:46am — 6 Comments
कल उपार्जन केंद्र पर रामदीन को अपने नमीरहित शुष्क चमकदार गेहूं को बेचने जाना है. अचानक बे-मौसम घिर आये बादलों को देख, रामदीन अपने आँगन में पड़े अनाज को अपनी पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों की मदद से घर में भरने को जुट गया..
उधर उपार्जन केंद्र पर किसानों से ही खरीदा हजारों क्विंटल गेहूं खुले में पड़ा हुआ है. जिला प्रशासनिक अधिकारी ने चिंता जताते हुए समिति अध्यक्ष को फोन पर जानकारी लेते हुए पूछा..
“ उपज पर बारिश न हो, इसकी कैसी क्या व्यवस्था है..? अगर बारिश होती है तो अधिक से…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on April 12, 2015 at 10:38am — 16 Comments
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