212---1222---212---1222 |
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झूठ भी नहीं कहते, सत्य भी नहीं कहते |
दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते |
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प्रीत का कहो कैसे, आप सुख उठाएंगे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 12, 2015 at 10:30am — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 10:11am — 10 Comments
क्या ये मेरा वही गाँव है
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क्या ये मेरा वही गाँव है
सूरज अलसाया निकला है
मुर्गा बांग नहीं देता है
नहीं यहाँ चिड़ियों की चीं चीं
ना कौवे की काँव काँव है
क्या ये मेरा वही गाँव है
दो पहरी सोई सोई है
दिवा स्वप्न में कुछ खोई है
यहाँ धूल में सनी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 9:32am — 22 Comments
नवगीत
मन थोड़ा भटका हुआ है!
सपने टूटे,दिल भी टूटा,
रातें रूठीं,दिन भी रूठा,
उम्मीदों का चाँद झाड़ पर
देखो ना अटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!
नयन-गगन में नजर गड़ी,
कैसी फिजा पल्ले पड़ी,
सूख चले अब जलद-नयन,
मानस में खटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!!
उठती-सी लहरें उमंगित,
उर-अर्णव कितना तरंगित,
पूरी पूनम थी कल की रात,
प्रात हुआ, झटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!!!
@मनन
Added by Manan Kumar singh on April 11, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
पल में शोहरत गर पानी है,बात अनर्गल बोलो तुम !
ताजमहल से शिव-मंदिर के कारिडोर को खोलो तुम !!
धर्म का सारा सोया सिस्टम,यूँ पल में जग जाएगा !
हर पेपर-हर चैनल में तेरा बयान ही आयेगा !!
खुली-बहस होगी तब सब जन अपना पक्ष सुनायेंगें !
कोई यमन औ जयवंती कुछ राग भैरवी गाएंगें !!
संसद की चौपाल पे फिर तेरा बयान छा जाएगा !
खो जायेंगें मुद्दे सारे - ताजमहल लहराएगा !!
मुद्दे की गर बात कही तो, खुद को हाशिये पर पाओगे !
दो कौड़ी की…
ContinueAdded by rajkumarahuja on April 11, 2015 at 4:00pm — 4 Comments
२१२२ २१२२ २१२
हुस्न का जादू जहाँ चल जायेगा
रिन्दों का दिल भी बहाँ जल जायेगा
जुल्फों को अपनी बिखेरेंगे वो जब
उस घड़ी ये तय है दिन ढल जायेगा
आ गए वो मौत से पहले मेरी
वक़्त मेरी मौत का टल जायेगा
हुस्न की मुझ पे इनायत हो गयी
ये रकीबों को मेरे खल जायेगा
उनसे मिलते वक़्त ये सोचा नहीं
दिल में पौदा प्यार का पल जायेगा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 11, 2015 at 10:30am — 3 Comments
अर्चक,
अर्चना करता है !
अर्धांगिनी से,
अराग होकर !
अल्लाह,
दे दे अवकाश मुझे,
इस अवदशा से !
अवर्ण्य हैं,
इनके…
ContinueAdded by rajkumarahuja on April 10, 2015 at 6:30pm — 7 Comments
जीवन का आधार प्रीत है ...........
जीवन का आधार प्रीत है
स्वप्न का श्रृंगार प्रीत है
जलते रहना दीप लौ पर
शलभ की निस्वार्थ प्रीत है
विरह में बरसात की बूंदें
सावन का रूठा संगीत है
लहरों पे वो छवि मयंक की
नयन बिम्ब की तरल प्रीत है
मधुर पलों का मौन समर्पण
अधरों पर अधरों की जीत है
भुजबंधन का तरुण स्पन्दन
आसक्त पलों की मधुर प्रीत है
आवारापन वो तिमिर-केश का
मधुप…
Added by Sushil Sarna on April 10, 2015 at 1:51pm — 8 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया
मेरा तो हर ख्वाब टूटा क्या तुम्हारा खो गया
शख्स जो कहता था मुझसे राह अब उसकी जुदा है
देख कर मुझको नशे में, बालकों सा रो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on April 10, 2015 at 11:00am — 9 Comments
"ए रांड....." - परीक्षा देकर निकलते ही ऊँची आवाज में सीसा घोलती गाली वर्षा के कानों में पड़ी.. मुड़कर देखा तो संतोष सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुवे अपने मित्रों के साथ उसकी तरफ देख कर ठहाके लगा रहा था. वही जिसके प्यार को पिछले साल ठुकरा दिया था.. अपमान के एहसास से आँखों में आंसू आ गए .. पर वह चुपचाप वहां से चल दी.. क्या कहती ?
घर पहुँच कर देखा .. मुन्नी सो रही थी
"वर्षा कल का पेपर कैसे देगी.. कोर्ट की तारीख आगे बढ़वा लेती" माँ रसोई से आते आते बोली
"माँ…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 10, 2015 at 9:30am — 8 Comments
मौसम नेअभी जलवे दिखलाने हज़ारों हैं
साहिल से अभी तूफां टकराने हज़ारों हैं
इस उम्र में भी मरता है तुमपे कोई मुझसा
कहते थे कभी हमसे दीवाने हज़ारों हैं
मैंने हैं सजा रक्खे सब दिल में करीने से
जो ग़म के दिये तुमने नज़राने हज़ारों हैं
इस शहर मे भी तेरे हमदर्द तो हैं अपने
अपने तो हैं कम लेकिन बेगाने हज़ारों हैं
कितने हैं…
Added by charanjit chandwal `chandan' on April 10, 2015 at 8:30am — 1 Comment
कोकिला मुझको जगाती, उठ जा अब तू देर न कर
देर पहले हो चुकी है, अब तो उठ अबेर न कर
उठ के देखो अरुण आभा, तरु शिखर को चूमती है
कूजते खगवृन्द सारे, कह रहे अब देर न कर
उठ के देखो सारे जग में, घोर संकट की घड़ी है
राह कोई भी निकालो, सोच में तू देर न कर
देख कृषकों की फसल को, घोर बृष्टि धो रही है,
अन्नदाता मर रहे हैं, लो बचा तू देर न कर
ईमानदारी साथ मिहनत, फल नहीं मिलता है देखो,
लूटकर धन घर जो लावे, उनके…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 3:00pm — 2 Comments
Added by shree suneel on April 9, 2015 at 2:46pm — No Comments
हम छोटे छोटे थे
जब माँ
कोयले की राख़ से
गोले बनाती थी
हम भी बैठे बैठे
गोले बनाते थे
ये वाला मेरा
ये वाला तेरा
मेरा गोला ज्यादा मोटा
तेरा वाला पतला गोला
धूप मे गोले
फैला दिये जाते
सूरज अपनी तपन से
हवा अपने वेग से
गोले को सूखा देते
शाम को अम्मा
उन्हे उठाती
तब भी हम लड़ते
ये तेरा वाला
ये मेरा वाला
अंगीठी मे एक एक करके
गोले जलाये…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2015 at 1:30pm — 2 Comments
अपनी मांसल देह का, करे प्रदर्शन नार !
कम कपड़ों में घूम रही, देखो बीच बजार !!
आधुनिकता के नाम पर, देखो ये करतूत !
वस्त्र हैं इसने तज दिए, बस चिंदी संग- सूत !!
लिव-इन-रिलेशन में रहे, देखो नारी आज !
कथा के पचड़े कौन पड़े, जब यों-ही मिले परसाद !!
यों-ही मिले परसाद, रिलेशन महिमां गाओ !
इक से मन भर जाए, तो झट दूजा ले आओ !!
स्वतंत्रता की होड़ में,विवेक गया है छूट !
नारी खुद है लुट रही,औ पुरुष रहा है लूट !!
आज नए इस…
ContinueAdded by rajkumarahuja on April 9, 2015 at 11:30am — 14 Comments
कुत्ते की बेइज्जती
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एक बार सब मिलकर
हाथ जोडो
और कुत्ते की वफादारी को बेइज्जत
करना छोडो
कुत्ता जो एक टूक रोटी…
Added by umesh katara on April 9, 2015 at 8:13am — 16 Comments
हवा क्यूँ है ?
ये सूरज क्यूँ है ?
क्या करूँगा मैं किरणों का
ये सूरज निकलता क्यूँ है ?
ना जमीं मेरी है
ना आसमां मेरा
बस इन अंधेरों का अँधेरा मेरा !
ये चमन क्यूँ है
ये फूल मुरझाये क्यूँ नहीं अब तक
ये तितलियाँ... ये भंवरे
घर गये क्यूँ नहीं अब तक
पेड़ों ने पत्तियाँ गिराई नहीं ?
हर चीज़ क्यूँ मुरझाई नहीं अब तक
धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक
जब तू ही नहीं
तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 9, 2015 at 7:33am — 5 Comments
22—22—22—22—22—2 |
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पलकों से हर लफ्ज़ सजाना पड़ता है |
आँसू पीकर गीत बनाना पड़ता है |
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मंहगाई में झूठा रौब जताने को… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 1:30am — 16 Comments
मुतकारिब मुसम्मन सालिम
122 122 122 122
न जाने किये कौन से रतजगे हैं
मुझे आप से तुम वो कहने लगे है
पिया है अमिय रूप वह जो तुम्हारा
पड़ा हूँ , सभी रोम रस में पगे हैं
हुआ पाटली नैन का जोर जादू
खड़े इंद्र गन्धर्व सब तो ठगे हैं
जिन्हें काम का देवता लोग कहते
तुम्हे देखकर काम उनके जगे हैं
हुआ है अभी यह नया नेह बंधन
कि लगते मुझे वे सगों से…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 8, 2015 at 8:20pm — 16 Comments
221 212 1 1221 212
बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है
सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है
कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है
बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली
लेकिन जो सच थी बात, उठाई हुई तो है
देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक
तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है
सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा
उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 8, 2015 at 3:30pm — 32 Comments
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